Posted inHindu Riti Riwaj / Manyataye

स्वस्थ जीवन के लिए प्राणायाम आवश्यक क्यों?

प्राण अर्थात् जीवनशक्ति (Vital Power) और उसका आयाम अर्थात् विस्तार, नियमन मिलकर प्राणायाम शब्द की रचना हुई है। प्राणायाम अष्टांगयोग का एक महत्त्वपूर्ण अंग है जिसका शाब्दिक अर्थ है- प्राण का व्यायाम। महर्षि पतंजलि के मतानुसार- तस्मिन् सति श्वास-प्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः अर्थात् श्वासप्रश्वास की गति का विच्छेद करके प्राणवायु को सीने में भरने, भीतर रोककर रखने […]

Posted inHindu Riti Riwaj / Manyataye

मौन व्रत का विशेष महत्त्व क्यों है ?

आध्यात्मिक उन्नति के लिए वाणी का शुद्ध होना परमावश्यक है। मौन से वाणी नियंत्रित एवं शुद्ध होती है। इसलिए हमारे शास्त्रों में मौन का विधान बनाया गया है। श्रावण मास की समाप्ति के बाद भाद्रपद प्रतिपदा से 16 दिनों तक इस व्रत के अनुष्ठान का विधान है। ऐसी मान्यता है कि मौन से सब कामनाएं […]

Posted inHindu Riti Riwaj / Manyataye

व्रत-उपवास का महत्त्व क्यों है ?

पुराणों में इस बात का विस्तार से उल्लेख मिलता है कि हमारे ऋषि-मुनि उपवास के द्वारा ही शरीर, मन एवं आत्मा की शुद्धि करते हुए अलौकिक शक्ति प्राप्त करते थे। वेद में कहा गया है- व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षयाप्नोति दक्षिणाम् । दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते ॥ – यजुर्वेद 19/30 मनुष्य को उन्नत जीवन की योग्यता व्रत […]

Posted inHindu Riti Riwaj / Manyataye

माता-पिता की सेवा करना सबसे बड़ा धर्म क्यों है ?

हिंदू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी सेवा माना गया है। शास्त्र मातृ देवो भव, पित्र देवो भव आदि सम्मानित वचनों से माता-पिता को देवताओं के समान पूजनीय मानते हैं। माता का स्थान तो पिता से अधिक माना गया है-जननी और जन्म-भूमि को तो स्वर्ग से भी श्रेष्ठ कहो गया है। प्रत्यक्ष में […]

Posted inHindu Riti Riwaj / Manyataye

स्वर्ग-नरक की कल्पना का आधार क्या है ?

मृत्यु के उपरांत प्राणी को स्वर्ग या नरक प्राप्त होता है, इस बात को संसार के समस्त धर्म एक स्वर से स्वीकार करते हैं। इस प्रकार मनुष्य को मृत्यु और पुनर्जन्म के बीच में स्वर्ग-नरक भोगना पड़ता है। इस संबंध में गरुड्पुराण में बताया गया है कि यमलोक में ‘चित्रगुप्त’ नामक देवता हर एक जीव […]

Posted inHindu Riti Riwaj / Manyataye

पाप-पुण्य के बुरे और अच्छे फल भुगतने की धारणा क्यों है ?

शास्त्र में कहा है- ‘पापकर्मेति दशघा।’ अर्थात् पाप कर्म दस प्रकार के होते हैं। हिंसा (हत्या), स्तेय (चोरी), व्यभिचार-ये शरीर से किए जाने वाले पाप हैं। झूठ बोलना (अनृत), कठोर वचन कहना (परुष) और चुगली करना-ये वाणी के पाप हैं। परपीड़न और हिंसा आदि का संकल्प करना, दूसरों के गुणों में भी अवगुणों को देखना […]

Posted inHindu Riti Riwaj / Manyataye

कर्म फल भोगना पड़ता है इसकी मान्यता क्‍यों है ?

भारतीय संस्कृति में कर्मफल के सिद्धांत को विश्वासपूर्वक मान्यता प्रदान की गई है। मनुष्य को जो कुछ भी उसके जीवन में प्राप्त होता है, वह सब उसके कर्मों का ही फल है। मनुष्य के सुख-दुख, हानि-लाभ, जीत-हार, सुख-दुख के पीछे उसके कर्मों को आधार माना गया है। कर्म फल भोगने की अनिवार्यता पर कहा गया […]

Posted inHindu Riti Riwaj / Manyataye

सुंदरकांड का धार्मिक महत्व क्यों है ?

हिंदू धर्म के पूज्य ग्रंथ श्रीरामचरित मानस में रामकथा विस्तार से वर्णित की गई है। इसके सात खंडों में सुंदरकांड का महत्त्व सर्वाधिक माना गया है। सुंदरकांड के प्रति लोगों का अधिक आकर्षण होने का मुख्य कारण यह है कि यह समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इसीलिए आपने देखा होगा कि पूरी रामायण […]

Posted inHindu Riti Riwaj / Manyataye

गौ सेवा का धार्मिक महत्त्व क्यों?

हिंदू धर्म में गाय को देवता और माता के समान मानकर उसकी सेवा-शुश्रूषा करना मनुष्य का मुख्य धर्म माना गया है, क्योंकि उसके शरीर में सभी देवता निवास करते हैं। कोई भी धार्मिक कृत्य ऐसा नहीं है, जिसमें गौ की आवश्यकता नहीं हो। फिर चाहे वह यज्ञ हो, 16 संस्कार (षोडश संस्कार) हों या कोई […]

Posted inHindu Riti Riwaj / Manyataye

चरण स्पर्श और साष्टांग प्रणाम क्‍यों करते है इसका क्‍या महत्व है?

भारतीय संस्कृति में माता-पिता एवं गुरुजनों के नित्य चरण स्पर्श करके आशीर्वाद प्राप्त करने की परंपरा सत्युग, त्रेता, द्वापर युग से होती हुई आज भी यथावत् बनी हुई है। अथर्ववेद में तो मानव-जीवन की आचार संहिता का एक खंड ही है, जिसमें व्यक्ति की प्रातः कालीन प्राथमिक क्रिया के रूप में नमन को प्रमुखता दी […]

error: Content is protected !!