तृतीया तंत्र : काकोलूकीयम् (कौवे और उल्लुओं की कहानी)

तृतीया तंत्र : काकोलूकीयम् दक्षिण देश में महिलारोप्य नाम का एक नगर था। नगर के पास एक बड़ा पीपल का वृक्ष था। उसकी घने पत्तों से ढकी शाखाओं पर पक्षियों के घोंसले बने हुए थे। उन्हीं में से कुछ घोंसलों में कौवों के बहुत-से परिवार रहते थे। कौवों का राजा वायसराज मेघवर्ण भी वहीं रहता … Read more

उड़ते के पीछे भागना! Panchatantra Friendship Stories in Hindi

  यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवाणि निषेवते । ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवं नष्टमेव हि ।। जो निश्चित को छोड़कर अनिश्चित के पीछे भटकता है, उसका निश्चित धन भी नष्ट हो जाता है। एक स्थान पर तीक्ष्णविषाण नाम का एक बैल रहता था। बहुत उन्मत्त होने के कारण उसे किसान ने छोड़ दिया था। अपने साथी बैलों … Read more

भाग्यहीन नर पावत नाहीं! Bail aur Gidad Ki Panchatantra Kahani

अर्थस्योपार्जनं कृत्वा नैवाभोगं समश्नुते । करतलगतमपि नश्यति तु भवितव्यता नास्ति ॥ भाग्य में न हो तो हाथ में आए धन का भी उपभोग नहीं होता। एक नगर में सोमिलक नाम का एक जुलाहा रहता था। विविध प्रकार के रंगीन और सुन्दर वस्त्र बनाने के बाद भी उसे भोजन-वस्त्र मात्र से अधिक धन कभी प्राप्त नहीं … Read more

अति लोभ नाश का मूल! सूअर, शिकारी और गीदड़ की कहानी!

अतितृष्णा न कर्तव्या, तृष्णां नैव परित्यजेत् लोभ तो स्वाभाविक है, किंतु अतिशय लोग मनुष्य का सर्वनाश कर देता है। एक दिन एक शिकारी शिकार की खोज में जंगल की ओर गया। जाते-जाते उसे वन में काले अंजन के पहाड़ जैसा काला बड़ा सूअर दिखाई दिया। उसे देखकर उसने अपनी धनुष की प्रत्यंचा को कानों तक … Read more

बिना कारण कार्य नहीं! ब्राह्मण पति-पत्नी की कहानी

हेतुरत्र भविष्यति हर कार्य के कारण की खोज करो, अकारण कुछ भी नहीं हो सकता। एक बार मैं चौमासे में एक ब्राह्मण के घर गया था। वहां रहते हुए एक दिन मैंने सुना कि ब्राह्मण और ब्राह्मण-पत्नी में यह बातचीत हो रही थी:- ब्राह्मण:- कल सुबह कर्क संक्रांति है, भिक्षा के लिए मैं दूसरे गांव … Read more

धन सब क्लेशों की जड़ है! ताम्रचूड़ नाम के भिक्षु की कहानी

दक्षिण देश के एक प्रांत में महिलारोप्य नामक नगर से थोड़ी दूर महादेव जी का एक मंदिर था। वहां ताम्रचूड़ नाम का भिक्षु रहता था। वह नगर में से भिक्षा मांग कर भोजन कर लेता था और भिक्षा शेष को भिक्षा पात्र में रखकर खूटों पर टांग देता था। सुबह उसी भिक्षा शेष में से … Read more

द्वितीय तंत्र: मित्र सम्‍प्राप्ति! पंचतंत्र की प्रेरक कहानियां

दक्षिण देश के एक प्रांत में महिलारोप्य नाम का एक नगर था। वहां एक विशाल वटवृक्ष की शाखाओं पर लघुपतनक नाम का कौवा रहता था। एक दिन वह अपने आहार की चिंता में शहर की ओर चला ही था कि उसने देखा कि एक काले रंग, फटे पांव और बिखरे बालों वाला यमदूत की तरह … Read more

मूर्ख मित्र – बंदर और राजा की कहानी!

पण्डितोऽपि वरं शत्रुर्न मूर्खो हितकारकः हितचिंतक मूर्ख की अपेक्षा अहितचिंतक बुद्धिमान अच्छा होता है। किसी राजा के राजमहल में एक बंदर सेवक के रूप में रहता था। वह राजा का बहुत विश्वासपात्र और भक्त था। अंतःपुर में ही वह बेरोक-टोक जा सकता था। एक दिन राजा सो रहे थे और बंदर पंखा झेल रहा था, … Read more

जैसे को तैसा – लोहे की तराजू की! पंचतंत्र की प्रेरक कहानी!

तुलां लोहसहस्त्रस्य यत्र खादन्ति मूषिकाः राजन्स्तत्र हरेच्छ्येनो बालकं नात्र संशयः जहां मन भर लोहे की तराजू को चूहे खा जाएं वहां की चील भी बच्चे को उठाकर ले जा सकती है। एक स्थान पर जीर्णधन नाम का बनिया का लड़का रहता था। धन की खोज में उसने परदेस जाने का विचार किया। उसके घर में … Read more

करने से पहले सोचो! – बगुलों और सांप की पंचतंत्र कहानी

उपायं चिन्तयेत्प्रज्ञास्त्थाSपायं च चिन्तयेत्। उपाय की चिन्ता के साथ, तज्जन्य अपाय या दुष्परिणाम की भी चिन्ता कर लेनी चाहिए। जंगल के एक बड़े वटवृक्ष की खोल में बहुत-से बगुले रहते थे। उसी वृक्ष की जड़ में एक सांप भी रहता था। वह बगुलों के छोटे-छोटे बच्चों को खा जाता था। एक बगुला सांप द्वारा बार-बार … Read more

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