बहवो न विरोद्धव्या दुर्जया हि महाजनः बहुतों के साथ विरोध न करें! एक वल्मीक में बहुत बड़ा काला नाग रहता था। अभिमानी होने के कारण उसका नाम था अतिदर्प। एक दिन वह अपने बिल को छोड़कर एक और संकीर्ण बिल से बाहर जाने का यत्न करने लगा। इससे उसका शरीर कई स्थानों से छिल गया। […]
धूतों के हथकंडे! ब्राह्मण और तीन ठगों की पंचतंत्र की शिक्षाप्रद कहानी
बहुबुद्धिसमायुक्ताः सुविज्ञानाश्छलोत्कटाः। शक्ता वञ्चयितुं पूर्ता ब्राह्मणं छगलादिव।। धूर्तता और छल से बड़े-बड़े बुद्धिमान और प्रकाण्ड पंडित भी ठगे जाते हैं। एक स्थान पर मित्रशर्मा नाम के धार्मिक ब्राह्मण रहते थे। एक दिन माघ महीने में, जब आकाश पर थोड़े-थोड़े बादल मंडरा रहे थे, वह अपने गाँव से चले और दूर के गाँव में जाकर अपने […]
बिल्ली का न्याय! Panchatantra Story in Hindi
क्षुद्रमर्थापतिं प्राप्य न्यायान्वेषणतत्परौ। उभावपि क्षयं प्राप्ती पुरा शशकपिञ्जलौ॥ नीच और लोभी को पंच बनाने वाले दोनों पक्ष नष्ट हो जाते हैं। एक जंगल के जिस वृक्ष की शाखा पर मैं रहता था उसके नीचे के तने में एक खोल के अन्दर कपिंजल नाम का तीतर भी रहता था। शाम को हम दोनों में खूब बातें […]
बड़े नाम की महिमा! हाथी और खरगोश की पंचतंत्र कहानी
त्र्यपदेशेन महतां सिद्धि सञ्जायते परा। बड़े नाम के प्रताप से ही संसार के काम सिद्ध हो जाते हैं। एक वन में चतुर्दन्त नाम का महाकाय हाथी रहता था। वह अपने हाथीदल का मुखिया था। बरसों तक सूखा पड़ने के कारण वहाँ के सब झील, तलैया, ताल सूख गए और पेड़ मुरझा गए। सब हाथियों ने […]
उल्लू का अभिषेक! – पंचतंत्र की कहानी
एक एव हितार्थाय तेजस्वी पार्थिवो भुवः एक राजा के रहते दूसरे को राजा बनाना उचित नहीं एक बार हंस, तोता, बगुला, कोयल, चातक, कबूतर, उल्लू आदि सब पक्षियों ने सभा करके यह सलाह की कि उनका राजा वैनतेय केवल वासुदेव की भक्ति में लगा रहता है, व्याधों से उनकी रक्षा का कोई उपाय नहीं करता, […]
तृतीया तंत्र : काकोलूकीयम् (कौवे और उल्लुओं की कहानी)
तृतीया तंत्र : काकोलूकीयम् दक्षिण देश में महिलारोप्य नाम का एक नगर था। नगर के पास एक बड़ा पीपल का वृक्ष था। उसकी घने पत्तों से ढकी शाखाओं पर पक्षियों के घोंसले बने हुए थे। उन्हीं में से कुछ घोंसलों में कौवों के बहुत-से परिवार रहते थे। कौवों का राजा वायसराज मेघवर्ण भी वहीं रहता […]
उड़ते के पीछे भागना! Panchatantra Friendship Stories in Hindi
यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवाणि निषेवते । ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवं नष्टमेव हि ।। जो निश्चित को छोड़कर अनिश्चित के पीछे भटकता है, उसका निश्चित धन भी नष्ट हो जाता है। एक स्थान पर तीक्ष्णविषाण नाम का एक बैल रहता था। बहुत उन्मत्त होने के कारण उसे किसान ने छोड़ दिया था। अपने साथी बैलों […]
भाग्यहीन नर पावत नाहीं! Bail aur Gidad Ki Panchatantra Kahani
अर्थस्योपार्जनं कृत्वा नैवाभोगं समश्नुते । करतलगतमपि नश्यति तु भवितव्यता नास्ति ॥ भाग्य में न हो तो हाथ में आए धन का भी उपभोग नहीं होता। एक नगर में सोमिलक नाम का एक जुलाहा रहता था। विविध प्रकार के रंगीन और सुन्दर वस्त्र बनाने के बाद भी उसे भोजन-वस्त्र मात्र से अधिक धन कभी प्राप्त नहीं […]
अति लोभ नाश का मूल! सूअर, शिकारी और गीदड़ की कहानी!
अतितृष्णा न कर्तव्या, तृष्णां नैव परित्यजेत् लोभ तो स्वाभाविक है, किंतु अतिशय लोग मनुष्य का सर्वनाश कर देता है। एक दिन एक शिकारी शिकार की खोज में जंगल की ओर गया। जाते-जाते उसे वन में काले अंजन के पहाड़ जैसा काला बड़ा सूअर दिखाई दिया। उसे देखकर उसने अपनी धनुष की प्रत्यंचा को कानों तक […]
बिना कारण कार्य नहीं! ब्राह्मण पति-पत्नी की कहानी
हेतुरत्र भविष्यति हर कार्य के कारण की खोज करो, अकारण कुछ भी नहीं हो सकता। एक बार मैं चौमासे में एक ब्राह्मण के घर गया था। वहां रहते हुए एक दिन मैंने सुना कि ब्राह्मण और ब्राह्मण-पत्नी में यह बातचीत हो रही थी:- ब्राह्मण:- कल सुबह कर्क संक्रांति है, भिक्षा के लिए मैं दूसरे गांव […]