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चतुर्थ तन्त्र – लब्धप्रणाशम्! बंदर और मगरमच्छ की कहानी जामुन के पेड़ वाली।

लब्धप्रणाशम्! – बंदर और मगरमच्छ की कहानी जामुन के पेड़ वाली। एक बड़ी झील के तट पर सब ऋतुओं में मीठे फल देने वाला जामुन का वृक्ष था। उस वृक्ष पर रक्तमुख नाम का बन्दर रहता था। एक दिन झील से निकलकर एक मगरमच्छ उस वृक्ष के नीचे आ गया। बन्दर ने उसे जामुन के […]

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स्वार्थ सिद्धि परम लक्ष्य – साँप और मेढकों की पंचतंत्र कहानी!

अपमानं पुरस्कृत्य मानं कृत्वा तु पृष्ठतः। स्वार्थमभ्युद्धरेप्राः स्वार्थभ्रंशो हि मूर्खता बुद्धिमानी इसी में है कि स्वार्थ-सिद्धि के लिए मानापमान की चिन्ता छोड़ी जाए। वरुण पर्वत के पास एक जंगल में मन्दविष नाम का बूढ़ा साँप रहता था। उसे बहुत दिनों से कुछ खाने को नहीं मिला था। बहुत भागदौड़ किए बिना खाने का उसने यह […]

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बोलने वाली गुफा! शेर और गीदड़ की पंचतंत्र कहानी

अनागतं यः कुरुते स शोभते आनेवाले संकट को देखकर अपना भावी कार्यक्रम निश्चित करने वाला सुखी रहता है। एक जंगल में खरनखर नाम का शेर रहता था। एक बार इधर-उधर बहुत दौड़-धूप करने के बाद उसके हाथ कोई शिकार नहीं आया। भूख-प्यास से उसका गला सूख रहा था। शाम होने पर उसे एक गुफा दिखाई […]

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मूर्ख मण्डली – सोने की बीट देने वाले पक्षी की पंचतंत्र कहानी!

सर्व वै मूर्खमण्डलम्। अचानक हाथ में आए धन को अविश्वासवश छोड़ना मूर्खता है। उसे छोड़ने वाले मूर्खमण्डल का कोई उपाय नहीं। एक पर्वतीय प्रदेश के महाकाय वृक्ष पर सिन्धुक नाम का एक पक्षी रहता था। उसकी विष्ठा में स्वर्ण-कण होते थे। एक दिन एक व्याप उधर से गुज़र रहा था। व्याघ को उसकी विष्ठा के […]

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चुहिया का स्वयंवर! Panchtantra Ki Kahani in Hindi

स्वजातिः दुरतिक्रमा। स्वजातीय ही सबको प्रिय होते हैं। गंगा नदी के किनारे एक तपस्वियों का आश्रम था। वहाँ याज्ञवल्क्य नाम के मुनि रहते थे। मुनिवर एक नदी के किनारे जल लेकर आचमन कर रहे थे कि पानी से भरी हथेली में ऊपर से एक चुहिया गिर गई। उस चुहिया को आकाश में बाज लिए जा […]

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घर का भेद – राजपुत्र और सांप की पंचतंत्र कहानी

परस्परस्य मर्माणि ये न रक्षन्ति जन्तवः। त एवं निधनं यान्ति वल्मीकोदरसर्पवत्। एक दूसरे का भेद खोलने वाले नष्ट हो जाते हैं। एक नगर में देवशक्ति नाम का राजा रहता था। उसके पुत्र के पेट में एक साँप चल गया था। उस साँप ने वहीं अपना बिल बना लिया था। पेट में बैठे साँप के कारण […]

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शत्रु का शत्रु मित्र! – ब्राह्मण, चोर और राक्षस की पंचतंत्र कहानी

शत्रवोऽपि हितायैव विवदन्तः परस्परम्। परस्पर लड़ने वाले शत्रु भी हितकारी होते हैं। एक गाँव में द्रोण नाम का ब्राह्मण रहता था। भिक्षा माँगकर उसकी जीविका चलती थी। सर्दी-गर्मी रोकने के लिए उसके पास पर्याप्त वस्त्र भी नहीं थे। एक बार किसी यजमान ने ब्राह्मण पर दया करके उसे बैलों की जोड़ी दे दी। ब्राह्मण ने […]

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शरणागत के लिए आत्मोत्सर्ग – कपोत व्याध की पंचतंत्र कहानी!

प्राणैरपि त्वया नित्यं संरक्ष्यः शरणाऽऽगतः। शरणागत शत्रु का अतिथि के समान सत्कार करो, प्राण देकर भी उसकी तृप्ति करो। एक जगह एक लोभी और निर्दय व्याध रहता था। पक्षियों को मारकर खाना ही उसका काम था। इस भयंकर काम के कारण उसके प्रियजनों ने भी उसका त्याग कर दिया था। तब से वह अकेला ही […]

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शरणागत को दुतकारो नहीं! हंसों की पंचतंत्र कहानी!

भूतान् यो नानुगृह्णा स्यात्मनः शरणाऽऽगतान् । भतार्थास्तस्य नश्यन्ति हंसाः पद्मवने यथा ॥ जो शरणागत जीव पर दया नहीं करते, उनपर दैव की भी दया नहीं रहती। एक नगर में चित्ररथ नाम का राजा रहता था। उसके पास एक पद्मसर नाम का तालाब था। राजा के सिपाही उसकी रखवाली करते थे। तालाब में बहुत से स्वर्णमय […]

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टूटी प्रीति जुड़े न दूजी बार! ब्राह्मण किसान और साँप की कहानी!

भिन्नश्लष्टा तु या प्रीतिर्न सा स्नेहेन वर्धते। एक बार टूटकर जुड़ी हुई प्रीति कभी स्थिर नहीं रह सकती। एक स्थान पर हरिदत्त नाम का ब्राह्मण रहता था। पर्याप्त भिक्षा न मिलने से उसने खेती करना शुरू कर दिया था। किन्तु खेती कभी ठीक नहीं हुई। किसी न किसी कारण फसल खराब हो ही जाती थी। […]

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