पाँच गधोंवाला सौदागर! Tenali Rama Aur Krishnadevaraya Ki Kahani

Panch Gadho Wala Saudagar Tenali Ramakrishna Story in Hindi

एक बार महाराज कृष्णदेव राय और तेनाली राम साथ-साथ पड़ोसी राज्य के एक शहर सौरभ नगर भ्रमण करने के लिए गए। दोनों सौदागर के वेश में थे। उन दिनों यह आम प्रचलन था कि राजा-महाराजा जीवन और जगत में हो रहे परिवर्तनों को जानने के लिए समय-समय पर ऐसे ही वेश बदलकर घूमने के लिए निकल जाया करते थे।

सौरभ नगर में ये दोनों एक धर्मशाला में ठहरे। इस धर्मशाला में और बहुत से सौदागर ठहरे हुए थे। महाराज उत्सुकता से उन सौदागरों को अपने कमरे से निहार रहे थे।

तेनाली राम ने उन्हें इस तरह उत्सुक देखा तो पूछा, “क्या बात है महाराज, इस तरह आप हर आने-जानेवालों को क्यों देख रहे हैं? यह तो धर्मशाला है। यहाँ इसी तरह लोग आते-जाते रहेंगे। इनमें कोई अच्छा सौदागर होगा तो कोई बुरा। कोई बेशकीमती चीजें बेचनेवाला होगा तो कोई बात बेचकर पैसे कमाता होगा।”

महाराज कृष्णदेव राय ने मुस्कुराते हुए कहा, “नहीं तेनाली राम! मैं हर आने-जानेवाले को नहीं देख रहा। मैं तो सामने के कमरे में ठहरे उस अजीबो-गरीब परिधान वाले सौदागर को देख रहा हैं जो अपने साथ पाँच गधों को भी अपने कमरे में रखे हुए है और उन्हें प्यार से सहला रहा है। मैंने अब से पहले कमरे में पालतू कुत्ते, बिल्लियाँ, खरगोश, तोते, कबूतर आदि तो देखे थे मगर किसी को अपने कमरे में गधा रखते नहीं देखा था। इस कारण ही मुझे उत्सुकता हो रही है कि अपने साथ कमरे में गधों को रखनेवाला यह सौदागर कौन है तथा किस चीज के सौदे के लिए यहाँ ठहरा है…।”

“तो इसमें कौन-सी बड़ी बात है महाराज! हम लोग बाहर निकलेंगे तो यह बात आसानी से पता लग जाएगी।”

महाराज और तेनाली राम दोनों ही थोड़ी देर के बाद बाजार जाने के लिए अपने-अपने कमरों से बाहर निकले। दोनों जब धर्मशाला के मुख्य द्वार के पास पहुँचे तो तेनाली राम ने महाराज से कहा, “महाराज! तनिक ठहरिए।”

महाराज ने तेनाली राम की ओर प्रश्नसूचक दृष्टि से देखा तो तेनाली राम ने कहा, “आइए महाराज, धर्मशाला के व्यवस्थापक का कक्ष मुख्य द्वार के पास ही है। जरा चलिए, उस सौदागर के बारे में पता चल जाएगा कि वह कौन है, कहाँ से आया है और किस चीज का सौदा करता है!”

“धर्मशाला के रोजनामचे में ये सूचनाएँ गलत भी तो दर्ज हो सकती हैं, जैसे मेरे और तुम्हारे बारे में यह सूचना दर्ज है कि हम दोनों जवाहरातों की खरीद के लिए सौरभ नगर आए हैं।” महाराज ने पूछा।

“जी हाँ, महाराज! पर इसकी सम्भावना बहुत क्षीण है।” तेनाली राम ने उत्तर दिया।

“वह कैसे?” महाराज ने पूछा।

“बह ऐसे महाराज कि आसपास, मेरा मतलब है कि सौरभ नगर के आसपास दूसरा राज्य केवल विजयनगर ही है। इस तरह छद्मवेश में किसी दूरस्थ राज्य का राजा यहाँ आए, उसका कारण भी तो होना चाहिए। सम्प्रति इस तरह का कोई कारण नहीं दिखता। सौरभ नगर की शासन प्रणाली ने मुक्त व्यापार की नीति अपनाई है। इस राज्य का अपना कोई अर्थ-स्रोत ही नहीं है। पर्यटन के लिए बाहर से जो लोग यहाँ आते हैं, उनसे ही यहाँ का राजस्व चलता है।… दूसरे राज्यों से लोग यहाँ आते रहें इसलिए ही इस राज्य में ‘मुक्त व्यापार प्रणाली’ अपनाई गई है। यही कारण है कि यहाँ विभिन्न राज्यों के सौदागर बिना किसी रोक-टोक के आते हैं।”

महाराज ने तेनाली राम की ओर प्रशंसा-भरी-दृष्टि से देखते हुए सोचा कि तेनाली राम इसीलिए तो महत्त्वपूर्ण है कि वह हर बात को सूक्ष्मता से समझता है। महाराज तेनाली राम के साथ धर्मशाला के व्यवस्थापक के कक्ष में गए। तेनाली राम ने व्यवस्थापक की ओर देखते हुए पूछा, “वह गधेवाला सौदागर?”

“कौन… वह जो कन्धार से आता है?” व्यवस्थापक ने पूछा।

असल में तेनाली राम के पूछने का ढंग ही ऐसा था कि व्यवस्थापक को महसूस हुआ कि उसका उस सौदागर से पूर्व का सम्बन्ध है। व्यवस्थापक ने तेनाली राम से कहा, “आप सामने के गलियारे से सीधे चले जाएँ। अन्तिम दाईं तरफ के कमरे में वह मिल जाएगा।”

“इस बार वह क्या लाया है?”

तेनाली राम की ओर व्यवस्थापक ने आश्चर्य से देखा, फिर कहा, “वही पाँच गधे! अरे भाई, बात बेचनेवाला और क्या लाएगा?”

तेनाली राम ने जब यह सुना तब महाराज से कहा, “चलें, उससे मिल ही लें।”
असल में व्यवस्थापक की बातें सुनकर तेनाली राम की उत्सुकता उस गधेवाले सौदागर के प्रति बढ़ गई थी।

चलते-चलते तेनाली राम ने व्यवस्थापक से पूछा, “आप उसके गधों को भी कमरे में रहने देते हो?”

व्यवस्थापक ने हँसते हुए कहा, “गधा मत कहो! उसका एक गधा दो आदमी के बराबर है हमारे लिए। सौदागर एक कमरे में रहता है मगर ग्यारह कमरों का किराया चुकाता है।”

तेनाली राम की उत्सुकता और बढ़ गई। वह महाराज के साथ सौदागर के कमरे की ओर चल पड़ा।

महाराज की भी दिलचस्पी उस सौदागर के प्रति हो आई थी।

तेनाली राम ने कन्धारवाले सौदागर के कमरे के सामने पहुँचकर द्वार खटखटाया। वैसे कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और सौदागर अपने गधों को सहला रहा था। उसने दरवाजे की तरफ देखा तो दो सौदागरों को दरवाजे पर खड़ा पाया। किन्तु बिना कोई प्रतिक्रिया जताए वह फिर अपने गधों को सहलाने लगा।

तेनाली राम और महाराज चकित रह गए कि इस सौदागर ने उन्हें कुछ कहा नहीं। फिर तेनाली राम ने ही पहल की और पूछा, “आ जाउँ?”

“तुम्हारी मर्जी।” सौदागर गधे को सहलाते हुए बोला। उसकी आँखें गधे पर इस तरह टिकी थीं मानो वह गधा न हो, दुनिया की कोई नायाब वस्तु हो!

तेनाली राम और महाराज दोनों कमरे में प्रवेश कर गए लेकिन उसने उन्हें बैठने को नहीं कहा और गधे को उसी तरह सहलाता रहा मानो वह संसार का सबसे महत्त्वपूर्ण काम कर रहा हो।

तेनाली राम और महाराज पास की दीवार के सहारे कमरे में बिछी चटाई पर बैठ गए।

सौदागर ने अपने पाँच गधों में से दो गधों को कमरे में लगी दो खटियों से बाँध दिया। उसके तीन गधे खुले रहे।

पहली बार सौदागर ने उन दोनों की ओर बहुत प्रेम से देखा। लगभग उसी-दृष्टि से जिस- दृष्टि से वह अपने गधों को देख रहा था। फिर उन्हें मुस्कुराता हुआ देखता रहा। कुछ बोला नहीं।

महाराज ने फिर चुप्पी तोड़ी, “सुना, कन्धार से आते हो?”

सौदागर ने उनके प्रश्न पर ध्यान नहीं दिया और महाराज के सामने हाथ फैला दिया। बोला, “मैं उत्तर देने के पैसे लेता हूँ। निकालो पाँच स्वर्णमुद्राएँ फिर बात करो। यदि तुम्हारा साथी भी कुछ जानना चाहे तो उसके भी पाँच स्वर्णमुद्राएँ?”

“तुम क्या बताओगे?”

वह सौदागर उसी तरह मुस्कुराता हुआ उन दोनों को मौन देखता रहा। उसके चेद्दे पर निश्चिन्तता थी और हाथ उसी तरह स्वर्णमुद्राएँ लेने के लिए बड़े हुए थे।

महाराज ने अपनी जेब से स्वर्णमुद्राओं की थैली निकाली और उसमें से दस के स्थान पर ग्यारह स्वर्णमुद्राएँ गिनकर सौदागर के हाथ में रख दी।

सौदागर ने एक स्वर्णमुद्रा अपनी हथेली से निकालकर तल्खी के साथ महाराज के हाथ पर धर दी, “सुल्तान बख्शीश नहीं लेता, देता है, ध्यान रखना! मैं मन का बादशाह हूँ।”

पहली बार महाराज को अपने जीवन में ऐसा व्यक्ति मिला था जिसकी आवाज में ऐसा प्रभाव था कि उनका व्यक्तित्व उससे आच्छादित हो गया। उन्होंने मन-ही-मन सोचा-तो इसका नाम सुल्तान है! फिर मन में शंका हुई, कहीं यह कन्धार का सुल्तान तो नहीं?…. नहीं, नहीं, अगर ऐसा होता तो यह स्वयं को ‘मन का बादशाह’ नहीं कहता। चाहे जो हो, आदमी है दिलचस्प।

“सुना, बातें बेचते हो?” महाराज ने पूछा।

सौदागर ने फिर अपनी हथेली आगे बढ़ाई और कहा, “प्रति प्रश्न एक स्वर्णमुद्रा! एक व्यक्ति पाँच प्रश्न केवल!”

महाराज ने एक स्वर्णमुद्रा उसकी हथेली पर रख दी। सुल्तान फिर मुस्कुराया। महाराज कृष्णदेव राय इस अजीब सौदागर के अन्दाज के कायल तथा उसके व्यक्तित्व और व्यवहार से सम्मोहित से हो गए। तेनाली राम चुपचाप उस व्यक्ति को देखता रहा।

“सुना, तुम कन्धार से आए हो। हम लोग तुम्हारे सामने वाले कमरे में ठहरे हैं। तुम्हारे कमरे में गधों को देखकर तुमसे मिलने की इच्छा हुई। हम लोग कुछ दिन और रुकेंगे। तुम कब तक रुकोगे?”

सुल्तान ने अपनी हथेली फिर बढ़ा दी और महाराज को देखते हुए मुस्कुराता रहा।
महाराज ने एक स्वर्णमुद्रा उसकी हथेली पर फिर से रख दी।

“जब तक तुम दोनों की तरह तीन और उत्सुक सौदागर न आ जाएँ तब तक!”
महाराज ने उसकी हथेली पर एक स्वर्णमुद्रा रखते हुए पूछा, “तुमने अपने साथ इन गधों को क्यों रखा है?”

सुल्तान मुस्कुराया, “यही मेरे अन्नदाता हैं!”

महाराज ने पूछा, “कैसे?” और एक स्वर्णमुद्रा सुल्तान की हथेली पर रख दी।

“जो आता है वह इन गधों के बारे में ही बातें करता है।” सुल्तान ने मुस्कुराते हुए कहा।

महाराज ने एक स्वर्णमुद्रा और उसकी हथेली पर रखी और पूछा, “इन गधों में ऐसी क्या विशेषता है?”

“आज का इनसान जिन सूक्ष्म तरंगों को व्यवहार में लाता है वह सब कुछ!”

“जैसे?” पूछते हुए महाराज ने एक स्वर्णमुद्रा बढ़ाई मगर सुल्तान ने अपना हाथ वापस खींच लिया और महाराज के सामने पाँच स्वर्णमुद्राएँ गिनकर अपनी जेब में रख लीं।

महाराज समझ गए, अब सौदागर सुल्तान बातें नहीं करेगा। तब उन्होंने तेनाली राम की ओर देखा।

तेनाली राम ने सौदागर की हथेली पर पहली स्वर्णमुद्रा रखते हुए कहा, “पहले गधे पर क्या लदा है?”

“राजा-महाराजा के उपयोग में आनेवाला अत्याचार!” सुलतान ने उत्तर दिया।

“दूसरे गधे पर?” तेनाली राम ने सुल्तान की हथेली पर एक स्वर्णमुद्रा और रखी।

“पंडितों और विद्वानों के काम आनेवाला अहंकार!” सुल्तान ने उत्तर में कहा।

तीसरी स्वर्णमुद्रा हथेली पर रखते हुए तेनाली राम ने पूछा, “और तीसरे गधे पर?”

सुल्तान ने उत्तर दिया, “धनवानों के काम आनेवाला ईष्या भाव!”

चैथी मुद्रा सुल्तान की ओर बढ़ाते हुए तेनाली राम ने पूछा, “चौथे पर?”
“अधिकांश के उपयोग में आनेवाली बेईमानी।”

तेनाली राम मुस्कुराया और एक स्वर्णमुद्रा पुनः सुल्तान की हथेली पर रखते हुए कहा, “और पाँचवें गधे पर?”

“औरतों के काम आने वाला छल, कपट और प्रपंच।”

तेनाली राम और महाराज उठकर उस सौदागर के कमरे से बाहर निकल आए। दोनों एक-दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुराए।

महाराज ने कहा, “मूर्ख बन गए।”

तेनाली राम ने कहा, “अरे नहीं महाराज! वास्तव में यह सौदागर बातों का धनी है और खड़ी बातें करता है। उसने अपने व्यवहार से समझा दिया था कि वह अपने ग्राहकों को गधा समझता है। उसने दो गधों को खूँटे से बाँधकर बता दिया कि हम दोनों उसके सम्मोहन में बँध चुके हैं। गधों को अन्नदाता बताकर उसने बात और साफ कर दी। उसने यह भी ठीक कहा कि जो भी आता है, गधों से जुड़े प्रश्न ही करता है। युग की प्रवृत्तियों को उसने सूक्ष्म तरंग बताया। उसकी बातें साफ थीं और सच्ची थीं। कन्धार से यहाँ आने के बाद वह केवल पाँच जिज्ञासुओं से बातें कर लौट जाता है और इन पाँचों से उसे इतनी स्वर्णमुद्राएँ प्राप्त हो जाती हैं कि उसका गुजारा चल जाता है।”

“… लेकिन यह तो ठगी है!” महाराज ने कहा।

“ठगी क्या महाराज? छद्मवेश में घूमना ठगी से कम है क्या?” तेनाली राम ने मुस्कुराते हुए पूछा और फिर कहा, “मुझे तो इस व्यक्ति से मिलकर प्रसन्नता हुई, जो बातें बेच रहा है और मुझ जैसों को और सजग होने के लिए प्रेरित कर रहा है।”

महाराज चुप हो गए।

तेनाली राम मुस्कुराते हुए सोचने लगा-इस दुनिया में बुद्धि का उपयोग करने वाले निराले लोग भी हैं।

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