सपना, जो सच हो गया! Lok Katha / Folk Tales in Hindi

Sapna Jo Sach Ho Gaya Folk Tales in Hindi
सरसेम्‍बाय अनाथ था। न उसका पिता जिंदा रहा था, न ही माता। उसका जीवन दु:ख भरा था। उसने एक ज़मींदार की भेड़ें चराने की नौकरी कर ली। ज़मींदार ने उसे शरद ऋतु में एक लंगड़ी भेड़ देने का प्रलोभन दिया। नन्‍हा गड़रिया इस पर भी खुश था। वह भेड़ें चराता रहा, ज़मींदार की जूठन खाता रहा और शरद ऋतु के आने की प्रतीक्षा करता रहा।

”पतझड़ आते ही,” वह सोचता रहता, ”मुझे लंगड़ी भेड़ मिल जायेगी, तब मुझे भी गोश्‍त का स्‍वाद चखने को मिल जायेगा…”

एक बार सरसेम्‍बाय भेड़ों को एक नयी चरागाह में हांककर ले जा रहा था। सहसा झाडि़यों में से एक भेडि़या निकल आया और बोला:

”भेड़ दो! नही दोगे, तो एक की जगह दस को फाड़ डालूँगा।”

”मैं तुझे भेड़ कैसे दे सकता हूँ, भेडि़ये? क्‍योंकि यह रेवड़ मेरा नहीं है। ऐसे काम के लिए ज़मींदार मुझे जान से मार डालेगा।”

भेडि़या सोच में पड़ गया और फिर बोला:

”मुझे बहुत तेज़ भूख लगी है। तुम ज़मींदार के पास जाकर उससे मेरे लिए एक भेड़ मांगो।”

सरसेम्‍बाय ने मालिक के पास जाकर उसे पूरा कि़स्‍सा सुनाया। ज़मींदार ने हिसाब लगाया: दस भेड़ें एक से ज्‍यादा होती है: एक भेड़ दस से सस्‍ती पड़ेगी। उसने गड़रिये से कहा:

”भेडि़ये को एक भेड़ ले लेने दो, लेकिन बिना चुने। उसकी आंखों पर रूमाल बांध देना। जिसे वह दबोच ले, वही उसी की हो।”

सरसेम्‍बाय ने जैसी आज्ञा मालिक ने दी, वैसा ही किया।

भेडि़या आंखों पर रूमाल बांधे रेवड़ के बीच में घुस गया और उसने एक भेड़ का गला फाड़ दिया। लेकिन ठीक ही कहते हैं: ”करम रेख न मिटै, करै कोई लाखों चतुराई।” ऐसा ही हुआ। भेडि़ये ने संयोगवश उसी लंगड़ी भेड़ को फाड़ डाला, जिसे मालिक ने सरसेम्‍बाय को देने का वादा किया था। सरसेम्‍बाय फूट-फूटकर रोने लगा। भेडि़ये को उस पर दया आ गयी।

”अब कुछ नहीं किया जा सकता, गड़रिये,” वह बोला। ”शायद तुम्‍हारे भाग्‍य में ऐसा ही बदा था। मैं तुम्‍हारे लिए भेड़ की खाल छोड़ रहा हूँ। शायद तुम उसे किसी को अच्‍छी क़ीमत पर बेच दो।”

सरसेम्‍बाय ने भेड़ की खाल उठा ली और उसे कंधे पर आड़ी डालकर रेवड़ को आगे हांक ले चला।

सामने से भूरे क़दमबाज पर ज़मींदार आ रहा था। वह रकाबों पर पैर जमाये खड़ा होकर भेड़ों व मेढ़ों को गिनने लगा। उसने देखा- सारा रेवड़ सही-सलामत है, बस सरसेम्‍बाय की लंगड़ी भेड़ ग़ायब है। तभी सरसेम्‍बाय भी आ पहुँचा। वह रेवड़ के पीछे-पीछे हाथ में लाठी थामे चल रहा था और उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे।

ज़मीदार इतने जोर से ठहाका मारकर हंस पड़ा कि उसके तले क़दमबाज भी लड़खड़ा गया।

”वाह, कैसा गड़रिया है मेरा! खूब संभाल की अपनी भेड़ की! अरे, तू तो मेरी भेड़ों का भी सफ़ाया करवा देगा…. दूर हो जा मेरी आंखों से! मेरा-तेरा हिसाब साफ़ हो गया।”

और सरसेम्‍बाय धीरे-धीरे अपनी लाठी की छाया की दिशा में स्‍तेपी में चला गया। वह एक दूर के शहर में जा पहुँचा और बाज़ार में गया। वह काफ़ी देर तक भीड़ में भटकता रहा, पर किसी ने भी उससे भेड़ की खाल की क़ीमत नहीं पूछी। केवल शाम ढले वह एक आदमी को उसे तीन छोटे सिक्‍कों में बेच पाया।

”तीन सिक्‍कों की मैं तीन रोटियॉं खरीद लूँगा, तीन रोटियॉं तीन दिन के लिए काफ़ी होंगी। फिर जो हो सो हो!…

वह रोटी की दुकान की तरफ़ बढ़ा ही था कि रास्‍ते में उसे एक बीमार बूढ़ा भीख मांगता मिल गया। सरसेम्‍बाय ने एक सिक्‍का उसे दे यिा और दो अपने पास रख लिये। बूढ़े ने सिर हिलाया और झुककर जमीन से मुट्ठी-भर रेत उठाकर लड़के की ओर बढ़ाई।

”ले”, उसने कहा, ”अपनी नेकी के बदले में इसे रख ले।”

सरसेम्‍बाय ने सोचा कि फ़कीर पागल है, लेकिन उसने वृद्ध को ठेस नहीं पहुँचानी चाही और रेत लेकर अपनी जेब में डाल ली।

रात आयी। घुप अंधेरा छा गया। ग़रीब गड़रिया कहॉं सिर छुपाये? उसने कारवां-सराय में रात गुज़ारने की इजाज़त मांगी। मालिक ने उसे रहने दिया, लेकिन राज गुजारने का भाड़ा मांगा, और सरसेम्‍बाय को एक सिक्‍का उसे देना पड़ गया।

मालिक ने अपने सारे किरायेदारों को क़ालीनों और नमदों पर सुला दिया, पर सरसेम्‍बाय को नंगी ज़मीन पर सोने को कहा। भूखे बालक को नींद अच्‍छी नहीं आयी और उसे ठण्‍डी सख्‍त जमीन पर बुरे सपने आते रहे।

पौ फटे कारवां-सराय में शोर होने लगा, लोग अहाते में चलने-फिरने लगे। परदेसी सौदागर सफ़र की तैयारी में ऊंटों पर माल लादते हुए आपस में बातें करने लगे।

उनमें से एक कहने लगा:

”मैंने रात में एक बहुत सुंदर सपना देखा। लगा जैसे मैं खान की तरह क़ीमती पलंग पर लेटा हूँ, मेरे ऊपर उजला सूरज झुका हुआ है और मेरे सीने पर उजला चांद खेल रहा है….

सरसेम्‍बाय सौदागर के पास जाकर बोला…

”मैंने अपने सारे जीवन में कभी कोई सुंदर सपना नहीं देखा। अपना सपना मुझे बेच दीजिये, साहद! ताकि यह सपना मेरा हो जाये।”

”सपना बेच दूँ?” व्‍यापारी हंस पड़ा। ”ठीक है। लेकिन इसके बदले में तू मुझे क्‍या देगा?”

”मेरे पास एक सिक्‍का है…. यह लीजिये।”

”ला, इधर ला तेरा सिक्‍का!” सौदागर चिल्‍लाया! ”सौदा तय हुआ। अब से मेरा सपना तेरा हो गया, छोकरे!”

सौदागर और भी ज़ोर से हंस पड़ा, और उसके साथ ही कारवां-सराय में मौजूद सारे लोग भी हंस पड़े। नन्‍हा गड़रिया अपनी खरीद पर खुश होकर, उछलता-कूदता अहाते से बाहर भाग गया…

तब से सरसेम्‍बाय ने न जाने कितने रास्‍ते नापे, न जाने कितने गांव उसके रास्‍ते में पड़े। लेकिन उसे न तो कहीं नौकरी मिली, न कहीं पनाह और न ही एक प्‍याली मट्ठा।

जाड़ा पड़ चुका था। सरसेम्‍बाय अंधेरी रात में स्‍तेपी (जंगल) में अपनी सांसों से उंगलियों को गरमाता भटक रहा था। तेज़ हवा उसे एक ओर से दूसरी ओर धकेल रही थी, हिम-झंझावात उसे एक ही जगह में फिरकी की तरह घुमा रहे थे। सरसेम्‍बाय रो पड़ा और ऑंसू उसके गालों पर जम गये। वह निढाल होकर बर्फ़ के ढेर पर बैठ गया और निराशा में कहने लगा:

”इतने कष्‍ट उठाने से तो बेहतर है, भेडि़ये मेरे टुकड़े-टुकड़े कर दे!”

उसका इतना कहना था कि उसी क्षण अंधेरे में से एक बड़ा-सा भेडिया निकल आया: उसके बाल खड़े थे, आंखे दहक रही थी!

”आखिर आ ही गया शिकार पकड़ में!” भेडि़या गुर्राया। ”मेरे बच्‍चे कितने खुश होंगे!”

”मुझे मार डाल, भेडि़ये” लड़के ने धीरे से कहा, ”कम-से-कम तेरे बच्‍चे तो खुश होंगे। मेरे लिए तो जीने से मर जाना बेहतर है…”

लेकन भेडि़या अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ, बस लड़के को एकटक देखता रहा। अंत में वह बोला:

”क्‍या तुम वही सरसेम्‍बाय है, जिसने मुझे लंगड़ी भेड़ दी थी? सलाम, मैं तुम्‍हें पहचान गया। डरो मत, मैं तुम्‍हें हाथ भी नहीं लगाऊँगा, बल्कि हो सकता है, जिन्‍दा रहने में तुम्‍हारी मदद करूँ। मेरी पीठ पर सवार हो जाओ और खूब कसकर पकड़े रहो!”

सरसेम्‍बाय उसकी पीठ पर सवार हो गया, और भेडि़या उसे धंसनेवाली बरफ के ढेरों पर से भागता ले चला। घने वन के किनारे तक उसे पहुँचाकर भेडि़या बोला:

”उधर आग दिखाई दे रही है, सरसेम्‍बाय? वहॉं अलाव जल रहा है। वहॉं डाकुओं के गिरोह ने पड़ाव डाला था। अब वे बहुत दूर जा चुके हैं और जल्‍दी वापस नहीं लौटेंगे… मुम अलाव के पास जाकर ताप लो। सुबह तक मौसम शायद कुछ गरम हो जाये… अलविदा!”

भेडि़या चला गया और सरसेम्‍बाय जल्‍दी से आग के पास पहुँच गया। उसके बदन में कुछ गरमी आयी और थोड़ी ताक़त भी- उसने अलाव के पास डाकुओं द्वारा फेंकी हुई हड्डियॉं चचोड़ ली थीं। वह इतना खुश था कि उसका मन गाने को करने लगा। ग़रीब को खुश करने के लिए थोड़ी की ही जरूरत होती है…

उजाला होने लगा, अलाव पूरी तरह जलकर बुझ गया। जब कोयले काले पड़ गये, तो लड़के ने हाथ गरम-गरम राख में घुसेड़ दिये। कितना अच्‍छा लग रहा था हाथों को! वह हाथ राख के अंदर ही अंदर घुसेड़ता गया और अचानक उसकी उंगलियॉं किसी ठोस चीज से टकरा गयी। सरसेम्‍बाय ने उस चीज को राख से निकाला और भौचक रह गया… सोने की संदूकची! बालक का हृदय ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा… संदूकची में क्‍या है?…

सरसेम्‍बाय ने ढक्कन उठाया! उसी क्षण धरती के ऊपर सूरज का किनारा दिखाई दिया और उसकी पहली किरण सीधे संदूकची पर गिरी। सरसेम्‍बाय चीख उठा और असहृा चकाचौंध के कारण उसकी आंखे मुंद गयी: संदूकची हीरों से ठसाठस भरी थी!…

गड़रिये ने अपनी खोज सीने से सटा ली और खुशी से फूला न समाता जंगल में भागने लगा।

”बस किसी तरह किसी घर तक पहुँच जाऊँ!” वह सोच रहा था। ”अब मैं बिना दु:ख भोगे जीने लगूंगा… मेरी दौलत सौ आदमियों के लिए भी काफ़ी रहेगी।”

लेकिन वन उत्तरोत्तर घना होता जा रहा था। सरसेम्‍बाय को डर लगने लगा और वह अब पछताने लगा कि इतने घने वन में घुस आया।

”इतने निर्जन घने वन में मैं अपनी दौलत का क्‍या करूँगा?”

तभी उसे वृक्षों के तनों के बीच प्रकाश की झलक दिखाई दे गयी और लड़का चौड़े वनक्षेत्र में पहुँच गया। वनक्षेत्र के बीचों-बीच न जमनेवाली जल-धारा के किनारे एक सफ़ेद नमदे से मढ़ा शानदार तम्‍बू-घर था।

”यहॉं कैसे लोग रहते हैं?” सरसेम्‍बाय ने सोचा। ”कहीं वे असहाय दुखियारे को तंग नहीं करने लगेंगे?”

सरसेम्‍बाय ने सोने की संदूकची एक बूढ़े बलूत के कोटर में छिपा दी और तम्‍बू-घर के भीतर गया।

”सलाम!” उसने कहा।

तम्‍बू-घर में चूल्‍हा चल रहा था और उसके आगे एक लड़की गहरे सोच में डूबी, सिर झुकाये उकडूं बैठी हुई थी। आगंतुक को देखते ही लड़की झट उठ खड़ी हुई और आश्‍चर्य व भय से उसकी ओर देखने लगी।

”तुम कौन हो, लड़के, और यहॉं कैसे आ गये?” उसने अंत में पूछा।

सरसेम्‍बाय लड़की को एकटक देख रहा था, पर उसके मुंह से एक शब्‍द भी नहीं निकल पा रहा था। उसने ऐसी रूपवती कभी नहीं देखी थी, ऐसी कन्‍याओं का गुणगान तो केवल कविताओं में ही कवि अपनी रचनाओं में करते थे। किन्‍तु स्‍पष्‍ट था कि उसे कोई गंभीर दु:ख है: उसकी आंखे उदास थी, और चेहरा उतरा हुआ था।

लड़के ने अपने को काबू में करके कहा:

”मैं अनाथ हूँ! मेरा नाम सरसेम्‍बाय है। मैं नौकरी, रहने की ठौर और खाने की तलाश में भटक रहा था कि रास्‍ता भूलकर तुम्‍हारे यहॉं आ पहुँचा। पर तुम कौन हो, लड़की”

लड़की उसकी ओर बढ़ी और घबराहट भरे स्‍वर में बोली:

”मेरा नाम अलतीन-क़ीज है। दुनिया में मुझसे ज्‍यादा अभागी लड़की शायद ही कोई हो। लेकिन तुम्‍हें मेरी क्‍या चिन्‍ता, सरसेम्‍बाय? तुम खुद बहुत खतरे में हो… अगर तुम्‍हें इस मनहूस जगह से निकलने का रास्‍ता मिल जाये, तो यहा से भाग जाओ, सिर पर पैर रखकर भागो। तुम्‍हें मालूम है, तुम्‍हारा दुर्भाग्‍य तुम्‍हें कहॉं ले आया है? यह तम्‍बू-घर रक्‍तपिपासु जालमाउइज-कैम्‍पीर का है। वह किसी क्षण घर लौट सकती है। फिर तुम्‍हारी ख़ैर नहीं…. देर न करो, जान बचाकर भाग जाओ।…”

तभी बाहर से शोर, कड़क और क़दमों की आहट सुनाई दी। बालिका का चेहरा और अधिक फक हो गया।

”मौक़ा निकल गया!” लड़की ने डर के मारे कांपते हुए कहा और सरसेम्‍बाय का हाथ पकड़कर चूल्‍हे के पास से खींचकर उसे नमदे से अच्‍छी तरह ढक दिया।

सरसेम्‍बाय छिपा रहा, पर वह छोटे-से छेद में से तम्‍बू-घर में जो कुछ हो रहा था, सब देख रहा था।

दरवाजा भड़ाक से पूरा खुल गया और तम्‍बू-घर में लाल-लाल होंठोवाली राक्षसी भयावह जलमाउइज-कैम्‍पीर घुस आयी। उसकी नाक आंकुड़े जैसी थी, बाल खड़े हुए थे, दांत भेडि़ये की तरह निकले हुए थे। उसने अपनी धुंधली नज़र तम्‍बू-घर में चारों ओर दौड़ाई और चूल्‍हे के आगे उकडूं बैठकर अपनी सूखी-सूखी काली उंगलियां ज्‍वाला की ओर बढ़ाई। वह थोड़ी देर तक ऐसे ही जोर-जोर से हांफती बैठी रही, और अलतीन-क़ीज उससे कुछ दूरी पर निश्‍चल खड़ी रही।

ताप लेने के बाद जालमउइज-कैम्‍पीर गुर्रायी:

”अलतीन-क़ीज, मेरे पास आ।”

डर के मारे थरथर कांपती लड़की ने बुढि़या की ओर क़दम बढ़ाया और रुक गयी, लेकिन उसने उसे अपनी आंकुडेनुमा उंगलियों से पकड़कर अपनी ओर खींच लिया।

अलतीन-क़ीज दर्द के मारे कराह उठी। सरसेम्‍बाय ने मु्ट्ठियॉं भींच ली और वह बुढि़या पर टूट पड़ने ही वाला था कि उसी क्षण जालमउइज-कैम्‍पीर गुस्‍से में चीखी और लड़की को दूर धकेलकर चिल्‍लायी:

”नालायक! तू क्‍यों रोजाना पीली पड़ती जा रही है और सूखी जा रही है? क्‍या तुझे मालूम नहीं कि मैं तुझे अपने तम्‍बू-घर में किस लिए रखे हुए हूँ? मुझे बहुत पहले ही तुझे चटकर जाना चाहिए था, पर मैं बराबर टालती आ रही हूँ – इंतजार कर रही हूँ कि कब तुझे अक्‍ल आये और तू मुटियाने लग जाये: अगर कल मेरे आने तक तू ऐसी ही दुबली रही, तो मैं मुझे इस चूल्‍हे में जिन्‍दा भून डालूँगी!”

इतना कहते ही बुढि़या बिस्‍तर पर गिरकर खर्राटे भरने लगी। और अलतीन-क़ीज आग के पास बैठी रात भर रोती रही।

सुबह जालमाउइज-कैम्‍पीर ने लड़की को फिर धमी दी और बैसाखी उठाकर तम्‍बू-घर से बाहर चली गयी। बाहर से शोर, कड़क और क़दमों की आहट सुनाई दी और फिर सब शांत हो गया।

सरसेम्‍बाय नमदा हटाकर निकला और उसने पूछा:

”अलतीन-क़ीज, तुम मुझे बताओ कि तुम इस रक्‍तपिपासु जालमाउइज-केम्‍पीर की दासी कैसे बनी?”

और अलतीन-क़ीज उसे पूरा किस्‍सा सुनाने लगी:

”मैं अपने गांव में अपने मॉं-बाप के साथ खुश और संतुष्‍ट रह रही थी। एक बार मेरे माता-पिता किसी के घर गये। जाते समय पिता ने मुझ से कहा था: ”प्‍यारी अलतीन-क़ीज, तुम्‍हें पूरे दिन अकेले रहना है। समझदारी से काम लेना, घर से बाहर मत निकलना और किसी को अंदर मत आने देना।” मैं ऊबने लगी और घर से बाहर निकल गयी। मेरी सहेलियां मेरे पास भागी आयीं और मुझे जंगल में फूल चुनने को कहने लगीं। मैं, बुद्धू चली गयी। फूल तोड़ रही थी कि मैंने देखा : एक मरियल बुढि़या बैसाखी टेकती आ रही है। ‘अहा, कितनी अच्छी लड़की है! अंहा, कैसी रूपवती है!…’ वह मुझसे कहने लगी। ‘तू कही दूर रहती है, लड़की?’ मैंने कहा, ‘नहीं, पास ही में रहती हूँ। वह रहा हमारा तम्‍बू-घर,’ वह बोली, ‘तो फिर मुझे अपने घर ले चल और साफ़ पानी पिला दे।’ मैंने कोई बुरी बात नहीं सोची, उसे गांव ले गयी और पानी पिला दिया। लेकिन वह तम्‍बू-घर से जाने का नाम ही नहीं ले रही थी, बस मुझे घूरे जा रही थी। ‘अहा, कितनी अच्‍छी लड़की है! अहा, कितनी रूपवती है! आ, तेरे बालों में कंघी कर दूँ।’ मैंने उसके घुटनों पर सिर रख दिया, और आंखे मूंदकर गहरी नीन्‍द में सो गयी। मुझे पता नही, मैं कितनी देर सोयी रही, पर मेरी नीन्‍द इस तम्‍बू-घर में खुली। बहुत दिन गुजर चुके हैं। तब से मैंने इस यंत्रणा देने वाली जालमाउइज़-केम्‍पीर के अलावा और किसी की सूरत नहीं देखी है। यहॉं ऐसे ही हर घड़ी अपनी मौत का इंतजार करती दिन काट रही हूँ।”

अपनी राम-कहानी सुनाकर अलतीन-क़ीज फिर रो-रोकर सरसेम्‍बाय को जलमाउइज-कैम्‍पीर के आने से पहले कहीं भाग जाने के लिए मनाने लगी।

किन्‍तु सरसेम्‍बाय उसके मनुहार करने पर केवल स्‍नेहपूर्वक मुस्‍कराता रहा और फिर उसे बहन की तरह गले लगाकर बोला :

‘मैं कभी तुम्‍हें छोड़कर नहीं जाऊँगा, अलतीन-क़ीज। हम साथ ही जायेंगे…”

”धन्‍यवाद, सरसेम्‍बाय, तुम्‍हारी नेकी के लिए,” अलतीन-कीज ने कहा, ”लेकिन तुम जो कह रहे हो, वह कभी पूरा नहीं होगा। जलमाउइज़-केम्‍पीर हमें रास्‍ते में पकड़ लेगी, और अगर नहीं भी पकड़े, तो भी हम हर हालत में कहीं बर्फ़ के किसी ढेर में ठिठुरकर मर जायेंगे।”

”हम वसंत तक इंतजार करेंगे और फिर भाग जायेंगे…”

अलतीन-क़ीज ने एक ठण्‍डी सांस ली।

”साहसी अकसर अदूरदर्शी होते हैं,” उसने कहा। ”तुम शायद भूल गये हो कि जालमाउइज-केम्‍पीर मुझे आज मार डालेगी।”

”नहीं, अलतीन-क़ीज, तुम नहीं मरोगी!” लड़का जोश में कह उठा। ”मैंने सब सोच लिया है। जालमाउइज-केम्‍पीर चालाक है, पर हम उसे चकमा देने की कोशिश करेंगे। तम्‍बू-घर में अंधेरा है, मैं तुम्‍हारा कुरता पहन लूँगा और आज तुम्‍हारी जगह उसके पास जाऊँगा!… मैं तुमसे लम्‍बा और मोटा हूँ… शायद हम बुढि़या को धोखा देने और गरम मौसम तक जिन्‍दा रहने में सफल हो जायें….

अलतीन-क़ीज ने हाथ पर हाथ मारा और कहने लगी कि वह सरसेम्‍बाय को उसकी खातिर कभी जान पर खेलने देने को तैयार नहीं होगी। किन्‍तु गड़रिया दृढ़ और अडिग रहा।

”अगर तुम, अलतीन-क़ीज, जिद करती रही, तो मैं आज ही जालमउइज-केम्‍पीर से जा भिडूंगा और तुमसे पहले उसके दांतों का शिकार बन जाऊँगा!”

तब लड़की मान गयी। उन्‍होंने आपस में कपड़े बदल लिये। अलतीन-क़ीज नमदे के पीछे छिप गयी, और सरसेम्‍बाय उसकी जगह चूल्‍हे के पास बैठ गया।

तभी बाहर से शोर, कड़क और क़दमों की आहद आयी और तम्‍बू-घर में लाल-लाल होंठोंवाली राक्षसी-भयावह जालमाउइज़-केम्‍पीर घुस आयी।

वह आग से हाथ तापकर गुर्रायी:

”अलतीन-क़ीज, मेरे पास आ!”

सरसेम्‍बाय बेधड़क बुढिया के पास आ गया। उसने उस पर धुंधली नज़रों से सिर से पैर तक देखा और बुदबुदायी:

”लगता है तू आज दिन भर में बुछ बड़ी हो गयी है!”

धोखे का संदेह न करते हुए उसने सरसेम्‍बाय का बदन टटोला, उसे नोच लिया हौर हंसती हुई बोली:

”अहा, कितनी चालाक लड़की है तू! मैं बहुत पहले ही भांप गयी थी कि तू मुझे बेवकू़फ बना रही है। तुझे एक बार अच्‍छी तरह धमकी देने की देर थी कि तू फ़ौरन रास्‍ते पर आ गयी!… ठीक है कुछ दिन और जी ले, थोड़ी चरबी चढ़ा ले…”

सरसेम्‍बाय और अलतीन-क़ीज के लिए कष्‍टदायी दिन और खतरनाक रातें बीतने लगी।…

अंतत: बसंत आया। जल-धारा में पानी कलकल करता बहने लगा, चिडि़यां चहकने लगी, फूल खिलने लगे।

सरसेम्‍बाय अपनी सहेली से बोला:

”प्‍यारी अलतीन-क़ीज! अब हम भागने की तैयारी करना चाहिए। मैं देख रहा हूँ कि जालमाउइज-केम्‍पीर पहले से ज्‍यादा चिड़च्डि़ी हो गयी है: उसे कहीं हमारे इरादे की भनक तो नही पड़ गयी है? बुढिया को मेरा पता चल गया, तो मुसीबत आ जायेगी, हम दोनों मारे जायेंगे। मैं कमान बनाकर शिकार करने जाऊँगा, रास्‍ते में खाने के लिए चिडि़याँ जमाकर लूँगा और तीन दिन बाद छिपकर लौट आऊँगा, फिर हम भाग जायेंगे।”

”जैसा ठीक समझो, सरसेम्‍बाय, वैसा ही करो,” लड़की ने उत्तर दिया, पर उसकी आंखे डबडबा आयीं। ”लेकिन शिकार करते समय होशियार रहना और सही-सलामत लौट आना।”

”रोओ मत, अलतीन-क़ीज, मेरे बारे में दु:खी मत होओ,” सरसेम्‍बाय ने कहा। ”और अगर ऊबने लगो, तो नदी के पास जाकर पानी को देखना: अगर पानी पर हंस के पर तैर रहे हों, तो समझ लेना कि मैं जि़न्‍दा और स्‍वस्‍थ हूँ और तुम्‍हें कहीं दूर से सलाम कहलवा रहा हूँ।”

”बच्‍चों ने ऐ दूसरे से विदा ली। अलतीन-क़ीज मित्र को थोड़ी दूर तक छोड़ने गयी: कही जालमाउइज-केम्‍पीर खाली तम्‍बू-घर में अचानक न आ धमके।

सरसेम्‍बाय चश्‍मे के किनारे-किनारे आगे बढ़ता गया।

पहले दिन उसने तीन हंस मारे और उनके पर नोचकर पानी में डाल दिये। दूसरे दिन उसने फिर तीन हंस मारे और फिर उनके पर पानी में डाल दिये।

तीसरे दिन सरसेम्‍बाय ने देखा: वनपथ में एक हिरन का छौना खड़ा है और उसके ऊपर काले कौवों का झुण्‍ड जोर-जोर से कांव-कांव करता मंडरा रहा है। कौवे छौने की आंखे निकाल लेना चाहते थे। लड़के को छौने पर दया आ गयी, उसने कौवों को भगा दिया।

बूढ़ा हिरन दौड़ा आया।

”धन्‍यवाद, सरसेम्‍बाय,” वह बोला। ”मैं तुम्‍हारी नेकी का बदला जरूर चुकाऊँगा।”

सरसेम्‍बाय आगे चला। उसे दर्दभरी ”में-में” सुनाई दी। उसने गढ़े में झांककर देखा: वहॉं पहाड़ी बकरे का मेमना था। वह निकलने के लिए जोर लगा रहा था, चीख रहा था, पर निकल नहीं पा रहा था।

बालक को उस पर दया आ गयी और उसने उसे गढ़े में से निकला लिया। बूढ़ा पहाड़ी बकरा भागता आया और बोला:
”धन्‍यवाद, सरसेम्‍बाय। मैं तुम्‍हारी नेकी का बदला जरूर चुकाऊँगा!”

सरसेम्‍बाय आगे चला। यह कौन ची-ची कर रहा है?… देखा: घोंसले से गिरा उकाब का नीड़-शावक था। लड़के को चिडि़या के बच्‍चेच पर दया आ गयी और उसने उसे जमीन से उठाकर घोंसले में रख दिया।

बूढ़ा उक़ाब उड़ता आया।

”धन्‍यवाद, सरसेम्‍बाय। मैं तुम्‍हारी पेकी का बदला जरूर चुकाऊँगा!”

इस प्रकार सरसेम्‍बाय उस दिन किसी जानवर का शिकार न कर सका। शाम होने-वाली थी। तभी लड़के को याद आया कि उसने सुबह से पानी में हंस का एक भी पर नहीं डाला है। उसका दिल विकल होने लगा। अब बेचारी अलतीन-क़ीज नदी के किनारे खड़ी क्‍या सोच रही होगी? सरसेम्‍बाय बिना पलटकर देखे वापस भाग चला।

अलतीन-क़ीज उस समय उसकी प्रतीक्षा कर रही थी, उसकी याद में तड़प रही थी। जलमाउइज़-केम्‍पीर के घर से निकलते ही लड़की भागकर नदी के किनारे जा पहुँचती। लड़की जब देखती कि पानी कलकल करता बह रहा है, उस पर हंस के पर तैर रहे हैं, तो वह मुस्‍कराने लगती: ”सरसेम्‍बाय जिन्‍दा है!”

तीसरा दिन, उनकी जुदाई का आखिरी दिन आया। अलतीन-क़ीज नदी के किनारे खड़ी एकटक देखती रही, एक घंटा, दो घंटे, तीन घंटे… पानी तो कलकल करता बह रहा था, पर उस पर हंस के परो का निशान भी नहीं था…

लड़की किनारे पर गिर पड़ी और हाथों से मुंह ढककर फूट-फूटकर रोने लगी:

”सरसेम्‍बाय अब इस दुनिया में नहीं रहा! दिलेर लड़का जान से मारा गया और उसे यह भी मालूम नहीं पड़ा कि मैं उसके लिए हज़ार बार मरने को तैयार हो जाती, बस किसी तरह वह जिन्‍दा बच जाये और सुखी रहे…”

बेचारी रोती-बिलखती रही और यह न देख पायी कि कैसे जालमाउइज-केम्‍पीर गुस्‍से के मारे कांपती उसके पास आ पहुँची। बुढि़या ने अपनी बंदिनी के कंधों को दबोच लिया और उस को सज़ा देने के लिए तम्‍बू-घर में घसीट लेगयी।

”तेरी चालबाजि़यों का,” वह दहाड़ी, ”भेद खुल गया, छोकरी! भागने की सोच रही थी? अना हिमायती खोज लिया? अच्‍छी तरह समझ ले: तू मुझसे बचकर कहीं नहीं जा सकती, और तुझे कोई नहीं बचा सकता। तेरी मौत आ गयी है!… मैं तुझे अभी जिंदा चबाकर खा जाऊँगी!”

अचानक दरवाजा भड़भड़ाया और फटाक से पूरा खुल गया: देहली पर सरसेम्‍बाय खड़ा था। अलतीन-क़ीज अपने को छुडाकर उसकी ओर लपकी और उसकी गरदन में हाथ डाल दिये, लेकिन बुढि़या उसे कसकर पकड़े रही, उसे अपने हाथों से नहीं निकलने दिया उसने।

”ठहर, जालमाउइज-केम्‍पीर!” लड़का चिल्लाया। ”मेरी बात सुन ले। अलतीन-क़ीज को छोड दे- तुझे छुड़ौती में क़ीमती चीज दूँगा।”

”छुडौती देगा? वाह रे ढीठ! तू, फटीचर छोकरा, क्‍या देगा मुझे इसके बदले में?”

सरसेम्‍बाय ने पेड़ के कोटर में से सोने की संदूकची निकालकर बुढि़या के सामने उसका ढक्‍कन खोल दिया। बहुमूल्‍य हीरे-जवाहरात को देखते ही जलमाउइज़-केम्‍पीर लालच के कारण चीख उठी और उसने लड़की को छोड़ दिया। उसके गुस्‍से पर लालच हावी हो गया।

”ले जा छोकरी को, ले जा! ओर तेरे हीरे इधर ला!”

सरसेम्‍बाय आखिर इतना मूर्ख तो था नहीं जो संदूकची बुढि़या के हाथों में पकड़ाता।

”ये ले हीरे, बुढि़या, उठा लें!” लड़का चिल्‍लाया और हीरे चारों ओर बिखेरने लगा। हीरे तारों की तरह चमकते ज़मीन पर लुढ़कने लगे। जालमाउइज़-केम्‍पीर लपककर उन्‍हें उठा-उठाकर अपने पल्‍ले में डालने लगी, और उधर सरसेम्‍बाय अलतीन-क़ीज का हाथ पकड़कर तम्‍बू-घर से बाहर भाग निकला।

वे बिना रास्‍ते पर ध्‍यान दिये वनपथ से भागते रहे, मुड़कर देखने से डरते जंगल में भागते रहे। वृक्षों की शाखाऍं उनके बेंत की तरह चोटें मारती रहीं, टहनियॉं खरोंचती रहीं, ठूंठ और लट्ठे उनका रास्‍ता रोकते रहे। अलतीन-क़ीज बिलकुल निढाल हो गयी, उसके पैर घायल और लहू-लुहान हो गये, वह भागती-भागती अपनी चोटियां संभालती रही, आस्‍तीन से चेहरे का पसीना पोछती रही।

भागते लड़के-लड़की को अचानक अपने पीछे से शोर और कड़क सुनाई दिये: धरती कांपने लगी, पेड़ गिरने लगे- जालमाउइज़-केम्‍पीर उनका पीछा कर रही थी।

”जल्‍दी से भागो, अलतीन-क़ीज!” सरसेम्‍बाय ने कहा। ”अब हमारी सारी आस केवल हमारे पैरों पर ही है।”

पर अलतीन-क़ीज उससे बोली:

”मुझमें अब और ताक़त नहीं रही, सरसेम्‍बाय। मेरा सिर चकरा रहा है, मेरे घुटने टूटे जा रहे हैं। आगे तुम अकेले भाग जाओ! जब तक जालमाउइज़-केम्‍पीर मुझे खा पायेगी, तुम दूर पहुँच जाओगे…”

”तुम क्‍या कह रही हो, अलतीन-क़ीज ? मैं तुम्‍हें कभी छोड़कर नहीं जाऊँगा। तुम मुझे दुनिया में सबसे ज्‍यादा प्‍यारी हो।”

वे फिर भागने लगे। पर जालमाउइज़-केम्‍पीर निरन्‍तर निकट आती जा रही थी… बुढि़या गालियां दे रही थी, धमकी दे रही थी:

”मैं जरूर तुम्‍हें पकड़ लूँगी! हर हालत में जिंदा चबा डालूँगी!”

अलतीन-क़ीज गिर पड़ी, उसे सांस बड़ी मुश्किल से आ रही थी। वह धीरे से फुस-फुसायी:

”अलविदा, सरसेम्‍बाय!… मुझे छोड़ जाओ, अपनी जान बचाओ… मैं तो अब नहीं बच सकूंगी…”

लड़का रो पड़ा:

”अगर मरना है, तो साथ ही मरेंगे!…”

उसने लड़की को ज़मीन से उठाकर अपनी पीठ पर बिठा लिया और हांफता हुआ आगे भागा।

तभी अचानक बूढ़ा हिरन जैसे जमीन फाड़कर निकल आया और करने लगा:

”मैं तुम्‍हें नहीं भूला, सरसेम्‍बाय। मेरी पीठ पर बैठ जाओ, बच्‍चों। मेरी गरदन पकड़े रहो: मनसूह बुढि़या मुझे नहीं पकड़ सकती।”

बूढ़े हिरन ने उन्‍हे पलक झपकते ऊँची पहाड़ी के पास पहुँचा दिया और बोला: ”जालमाउइज़-केम्‍पीर तुम्‍हें यहॉं नहीं ढूँढ़ पायेगी।”

बच्‍चे एक दूसरे से चिपटे पहाड़ी की तलहटी में बैठ गये, पर वे दम भी न ले पाये थे कि देखा जालमाउइज़-केम्‍पीर धूल के गुबार उड़ाती, चीखती-चिल्‍लाती सीधी उनहीं की ओर भागी आ रही है।

सरसेम्‍बाय झट उठ खड़ा हुआ और अपनी सखी को अपनी ओट में कर, हाथ में नुकीला पत्‍थर उठाकर जूझने के लिए तैयार हो गया।

तभी अचानक बूढ़ा पहाड़ी बकरा उनके आगे जैसे जमीन फाड़कर निकल आया और बोला:

”मैं तुम्‍हें भूला नहीं हूँ, सरसेम्‍बाय। मेरी पीठ पर बैठ जाओ, बच्‍चों और मेरी सींग कसकर पकड़ लो। मैं तुम्‍हें मुसीबत से बचा लूँगा।”

जालमाउइज़-केम्‍पीर भागती हुई पहाड़ी तक पहुँची ही थी कि लड़का और लड़की उसकी चोटी पर जा पहुँचे। बुढि़या गुस्‍से से पागल हो उठी, पहाड़ी को दांतों से चबाने लगी, पंजों से खोदने लगी। पहाड़ी हिल उठी, लगा बस जैसे ढहने ही वाली है।

अचानक बूढ़ा उक़ाब उड़कर पहाड़ी पर आ पहुँचा और बोला:

”मैं तुम्‍हें भेला नहीं हूँ, सरसेम्‍बाय। बच्‍चों, जल्‍दी से मेरे पंखों पर बैठ जाओ। तुमने, सरसेम्‍बाय, मेरे बच्‍चे को बचाया था और मैं तुम लोगों को बचाऊँगा।”

बच्‍चे उक़ाब के ऊपर कूदे, उक़ाब उन्‍हें बुलन्‍दी पर ले उड़ा और उसी क्षण पहाड़ी ढह गयी, ढही भी ऐसे कि दुष्‍ट जालमाउइज़ – केम्‍पीर उसके नीचे दब गयी।

उक़ाब दिन भर उड़ता रहा। फिर जंगल के बीच एक गांव के पास उतर गया।
अलतीन-क़ीज ने जमीन पर क़दम रखकर चारों ओर नज़र दौड़ायी और ख़ुशी के मारे चिल्‍ला उठी:

”अरे, यह तो मेरा गांव है!”

लड़की की आवाज सुनकर उसके पिता और माता घर से बाहर भागे, बेटी की ओर लपके और उसे गले लगाकर चूमने लगे, प्‍यार करने लगे।

”तुम इतने दिनों तक कहॉं रहीं, अलतीन-क़ीज? तुम पर कैसी मुसीबत टूट पड़ी थी, बेटी? तुम्‍हारे उद्धार के लिए हम किसका धन्‍यवाद करें?”

लड़की ने उन्‍हें पूरा कि़स्‍सा सुनाकर सरसेम्‍बाय की ओर इशारा किया:

”यही है मेरा उद्धारक!”

धूल में लथपथ, जगह-जगह खरोंचे खाया, गंदे चिथड़े पहने और नंगे पांव सरसेम्‍बाय शर्म के मारे आंखें झुकाये खड़ा था।

अलतीन-क़ीज के माता और पिता उसके हाथों में हाथ डालकर तम्‍बू-घर में ले आये और उसे अच्‍छे-अच्‍छे कपड़े पहनाकर सम्‍मानित स्‍थान पर बिठा दिया।

”हमारे यहॉं बस जाओ, प्‍यारे सरसेम्‍बाय, हमेशा हमारे साथ रहो! हम छोटे बच्‍चे की तरह तुम्‍हारा लाड़-प्‍यार करेंगे और सफ़ेद दाढ़ीवाले बुजुर्ग की तरह तुम्‍हारी इज्‍ज़त करेंगे।”

बर्ष बीतते रहे। सरसेम्‍बाय गांव में रहता रहा और कभी अलतीन-क़ीज से जुदा नहीं हुआ। मेहनत और आराम, दु:ख और सुख – वे सब बराबर-बराबर बांटते रहे। जंगल में सरसेम्‍बाय जैसा दिलेर और योग्‍य बांका लड़का कोई नहीं था, और दुनिया में अलतीन-क़ीज से बढ़कर सुंदर और स्‍नेहमयी लड़की कोई नहीं थी। उन्‍होंने समय आने पर युवावस्‍था में पदार्पण किया, सयाने हुए, उनका विवाह हो गया और वे पहले से भी अधिक सुखी हो गये। शीघ्र ही उनकी प्रथम संतान-पुत्र का जन्‍म हुआ, जिस पर पिता को गर्व था और जो माँ की खुशी था।

एक बार सरसेम्‍बाय काम के बाद जंगल की सुगंधित घास पर लेटा हुआ था, पास ही में उस पर झुकी अलतीन-क़ीज बैठी थी, और नन्‍हा बेटा उसके सीने पर कूद रहा था। सरसेम्‍बाय अपने को भाग्‍यशाली अनुभव कर हंसा और खुशी से बोला:

”देखो, मेरा वह अद्भुत सपना सच हो गया, जिसे मैंने बचपन में सौदागर से कारवां-सराय में एक मामूली-से सिक्‍के में खरीदा था। देखो जरा: मैं बेशक़ीमती पलंग – मेरी मातृभूमि की पवित्र भूमि पर लेटा हुआ हूँ, मेरे ऊपर उचला सूरज- मेरी प्‍यारी अलतीन-क़ीज, तुम झुकी हुई हो, और मेरे सीने पर उजला चांद-मेरा प्‍यारा-प्‍यारा बेटा, मेरी पहली संतान खेल रहा है…. इस क्षण कौन ऐसा खान है, जिसे मुझसे ईर्ष्‍या न हो!”

अपने कष्‍ट भरे बचपर को याद करके सरसेम्‍बाय को एक बार फिर अपने उन चिथड़ों को देखने की इच्‍छा हुई, जिन्‍हें पहनकर वह कभी बाय के यहॉं से चला गया था, दुनिया भर में भटकता रहा था और रक्‍तपिपासु जालमाउइज़-केम्‍पीर के तम्‍बू-घर में अपनी अलतीन-क़ीज से पहली बार मिला था। उसकी पत्‍नी उसके छुटपन की क़मीज़ निकालकर उसके पास ले आयी। सरसेम्‍बाय ने उसे हाथों में थामा और सिर हिलाया: वह केवल चिथड़ा भर रह गयी थी… पर उसमें जेब साबुत थी और वह खाली नहीं थी: उसमें कुछ था। लेकिन क्‍या हो सकता है? सरसेम्‍बाय ने जेब में हाथ डाला और मुट्ठी भर रेत निकाली। उसे वह भिखारी याद हो आया, जिसे उसने बाजार में छोटा सिक्‍का दिया था, बूढ़े की यह अजीब भेंट याद आयी, और उसने एक ठण्‍डी सांस लेकर रेत हवा में उछाल दी। हवा के एक झोंके ने हल्‍के-फुल्‍के रेत के कणों को जंगल में फैला दिया। और सारी निस्‍सीम जंगल अलगिनत भेड़ों के रेवड़ों, गायों, घोड़ों व ऊंटों के झुण्‍डों से भर गयी: रेत के कण शानदार, ऊंटों, तेज घोड़ों, दुधारू गायों और मोटी-ताजी भेड़ों में बदल गये।

गावं के लोग आकर पूछने लगे:

”ये अनगिनत झुण्‍ड किसके है? यह अनदेखी दौलत किसकी है?”

सरसेम्‍बाय ने जवाब दिया:

”ये अनगिनत रेवड़ मेरे और आपके हैं, यह अनदेखी दौलत आपकी और मेरी है।”

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