रंगा सियार – गीदड़ और शेर की पंचतंत्र प्रेरक कहानियां!

Raga Siyar Gidad Panchatantra Prerak Kahani in Hindi

त्यक्‍ताश्चाऽयान्‍तरा येन बाह्यश्चाम्यतरीकृताः।
स एव मृत्युमाप्नोति मूर्खश्चण्डरवीयथा ।।

अपने स्वभाव के विरुद्ध आचरण करने वाला… आत्मीयों को छोड़कर परकीयों में रहने वाला नष्ट हो जाता है।

एक दिन जंगल में रहने वाला चण्डरव नाम का गीदड़ भूख से तड़पता हुआ लोभवश नगर में भूख मिटाने के लिए आ पहुंचा।

उसके नगर में प्रवेश करते ही नगर के कुत्तों ने भौंकते-भौंकते उसे घेर लिया और नोचकर खाने लगे। कुत्तों से किसी तरह जान बचाकर चण्डरव भागते-भागते जो भी दरवाज़ा पहले मिला उसी में घुस गया। वह एक धोबी के मकान का दरवाजा था। मकान के अंदर एक बड़ी कड़ाही में धोबी ने नील घोलकर नीला पानी बनाया हुआ था। कड़ाही नीले पानी से भरी थी। गीदड़ जब डरा हुआ घुसा तो अचानक उस कड़ाही में जा गिरा। वहां से निकला, तो उसका रंग बदला हुआ था। अब वह बिल्कुल नीले रंग का हो गया। नीले रंग में रंगा हुआ चण्डरव जब वन पहुँचा तो सभी पशु उसको देखकर चकित रह गए। वैसे रंग का जानवर उन्होंने आज तक नहीं देखा था।

उसे विचित्र जीव समझकर शेर, बाघ, चीते भी डर-डरकर जंगल से भागने लगे। सबने सोचा, ना जाने इस विचित्र पशु में कितना सामर्थ्य हो। इससे डरना ही अच्छा है।

चण्डरव ने जब सब पशुओं को डरकर भागते देखा, तो उन्हें बुलाकर बोला- पशुओं! मुझसे डरते क्यों हो? मैं तुम्हारी रक्षा के लिए यहाँ आया हूँ। त्रिलोक के राजा ब्रह्मा ने मुझे आज ही बुलाकर कहा था कि आजकल चौपायों का कोई राजा नहीं है। सिंह-मृगादि सब राजाहीन हैं। आज मैं तुझे उन सबका राजा बना कर भेजता हूं। तुम वहां जाकर सबकी रक्षा करो। इसलिए मैं यहाँ आ गया हूँ। मेरी छत्रछाया में पशु आनंद से रहेंगे। मेरा नाम ककुद्द्रुम राजा है।

यह सुनकर शेर-बाघ आदि पशुओं ने चण्डरव को राजा मान लिया और बोले- स्वामी! हम आपके दास हैं। आज्ञा पालक हैं। आगे से आपकी आज्ञा का पालन करेंगे।”

चण्डरव ने राजा बनने के बाद शेर को अपना प्रधानमंत्री बनाया, बाघ को नगर-रक्षक और भेड़िए को संतरी बनाया। अपने आत्मीय गीदड़ों को जंगल से बाहर निकाल दिया। उनसे बात भी नहीं की।

उसके राज्य में शेर आदि जीव छोटे-छोटे जानवरों को मारकर चण्डरव को भेंट करते थे। चण्डरव उनमें से कुछ भाग खाकर शेष अपने नौकर-चाकरों को बाँट देता था।

कुछ दिन तो उसका राज्य बड़ी शांति से चलता रहा। किंतु एक दिन बड़ा अनर्थ हो गया।

उस दिन चण्डरव को दूर से गीदड़ों की किलकारियाँ सुनाई दीं। उन्हें सुनकर चण्डरव का रोम-रोम खिल उठा। खुशी में पागल होकर वह भी किलकारियाँ मारने लगा।

शेर-बाघ आदि पशुओं ने जब उसकी किलकारियाँ सुनी तो वे समझ गए कि वह चण्डरव ब्रह्मा का दूत नहीं बल्कि मामूली गीदड़ है। अपनी मूर्खता पर लज्जा से सिर झुकाकर वे आपस में सलाह करने लगे। इस गीदड़ ने तो हमें खूब मूर्ख बनाया। इसे इसका दंड दो। इसे मार डालो।

चण्डरव ने शेर-बाघ आदि की बात सुन ली। वह भी समझ गया कि अब उसकी पोल खुल गई है। अब जान बचानी कठिन है। इसलिए वह वहाँ से भागा। किंतु शेर के पंजे से भाग कर कहाँ जाता? एक ही छलांग में शेर ने उसे दबोचकर खंड-खंड कर दिया।

-इसीलिए मैं कहता हूं कि जो आत्मीयों को दुत्कार कर परायों को अपनाता है, उसका नाश हो जाता है।

दमनक की बात सुनकर पिंगलक ने कहा- दमनक! अपनी बात को तुम्हें प्रमाणित करना होगा। इसका क्या प्रमाण है कि संजीवक मुझे द्वेषभाव से देखता है?

दमनक- इसका प्रमाण आप स्वयं अपनी आँखों से देख लेना। आज सुबह ही उसने मुझसे यह भेद प्रकट किया है कि वह कल आपका वध करेगा। यदि कल आप उसे अपने दरबार में लड़ाई के लिए तैयार देखें, उसकी आंखें लाल हो, होंठ फड़कते हों, एक ओर बैठकर आपको क्रूर वक्रदृष्टि से देख रहा हो, तब आपको मेरी बात पर स्वयं विश्वास हो जाएगा।

शेर पिंगलक को संजीवक बैल के विरुद्ध उकसाने के बाद दमनक संजीवक के पास गया। संजीवक ने जब उसे घबराए हुए आते देखा, तो पूछा- मित्र! स्वागत हो, क्या बात है? बहुत दिन बाद आए! कुशल तो है?

दमनक- राजसेवकों के कुशल का क्या पूछना? उनका चित्त सदा अशांत बना रहता है। स्वेच्छा से वह कुछ भी नहीं कर सकते। निःशंक होकर एक शब्द भी नहीं बोल सकते। इसलिए सेवावृत्ति को सब वृत्तियों से अधम कहा जाता है।

संजीवक- मित्र! आज तुम्हारे मन में कोई विशेष बात करने को है, वह निश्चिंत होकर कहो। साधारणतया राजसचिवों को सब कुछ गुप्त रखना चाहिए, किंतु मेरे-तुम्हारे बीच कोई परदा नहीं है। तुम बेखटके अपने दिल की बात मुझसे कह सकते हो।

दमनक- आपने अभय वचन दिया है, इसलिए मैं कह देता हूँ। बात यह है कि पिंगलक के मन में आपके प्रति पाप-भावना आ गई है। आज उसने मुझे बिल्कुल एकांत में बुलाकर कहा है कि कल सुबह ही वह आपको मारकर अन्य मांसाहारी जीवों की भूख मिटाएगा।

दमनक की बात सुनकर संजीवक देर तक हतप्रभ-सा रहा। मर्च्‍छा-सी छा गई उसके शरीर में। कुछ चेतना आने के बाद तीव्र वैराग्य-भरे शब्दों में बोला- राजसेवा सचमुच बड़ा धोखे का काम है। राजाओं के दिल होता ही नहीं। मैंने भी शेर से मैत्री करके मूर्खता की।

समान बल-शील वालों से ही मैत्री होती है। समान शील-व्यसन वाले ही सखा बन सकते हैं। अब यदि मैं उसे प्रसन्न करने की चेष्टा करूंगा, तो भी व्यर्थ है, क्योंकि जो किसी कारणवश क्रोध करे, उसका क्रोध उस कारण के दूर होने पर दूर किया जा सकता है, लेकिन जो अकारण ही कुपित हो, उसका कोई उपाय नहीं है। निश्चय ही पिंगलक के पास रहने वाले जीवों ने ईर्ष्यावश उसे मेरे विरुद्ध उकसा दिया। सेवकों में प्रभु की प्रसन्नता पाने की होड़ लगी ही रहती है। वे एक-दूसरे की वृद्धि सहन नहीं करते।

दमनक- मित्रवर! यदि यही बात है तो मीठी बातों से अब राजा पिंगलक को प्रसन्न किया जा सकता है। वहीं उपाय करो।

संजीवक – नहीं दमनक! यह उपाय सच्चा उपाय नहीं है। एक बार तो मैं राजा को प्रसन्न कर लूंगा, किंतु उसके पास वाले कूट-कपटी लोग फिर किन्हीं दूसरे झूठे बहानों से उसके मन में मेरे लिए जहर भर देंगे और मेरे वध का उपाय करेंगे, जिस तरह गीदड़ और कौवे ने मिलकर ऊंट को शेर के हाथों मरवा दिया था।

दमनक ने पूछा – किस तरह?

संजीवक ने तब ऊंट, कौवों और शेर की यह कहानी सुनाई।

आगें पढें:- फूँक-फूँक कर पग धरो!

देखें सभी पंचतंत्र की प्रेरक कहानियां


Read All Motivational and Inspirational Stories in Hindi, Panchtantra Short Stories With Moral for Kids in Hindi, Panchtantra Ki Kahaniyan Bacchon Ke Liye

error: Content is protected !!