Posted inPanchatantra Stories

मार्ग का साथी! – ब्राह्मण और कैकडा की पंचतंत्र कहानी

नैकाकिना गन्तव्यम् । अकेले यात्रा मत करो। एक दिन ब्रह्मदत्त नाम का एक ब्राह्मण अपने गाँव से प्रस्थान करने लगा। उसकी माता ने कहा:- पुत्र! कोई न कोई साथी रास्ते के लिए खोज ले अकेले यात्रा नहीं करनी चाहिए। ब्रह्मदत्त ने उत्तर दिया:- डरो मत माँ इस मार्ग में कोई उपद्रव नहीं है। मुझे जल्दी […]

Posted inPanchatantra Stories

मिलकर काम करो! – दो सिर वाले पक्षी की कहानी!

असंहता विनश्यन्ति। परस्पर मिल-जुलकर काम न करने वाले नष्ट हो जाते हैं। एक तालाब में भारण्ड नाम का एक विचित्र पक्षी रहता था। इसके दो मुख थे, किन्तु पेट एक ही था। एक दिन समुद्र के किनारे घूमते हुए उसे एक अमृत समान मधुर फल मिला। यह फल समुद्र की लहरों ने किनारे पर फेंक […]

Posted inPanchatantra Stories

जिज्ञासु बनो! – चतुर ब्राम्हण और राक्षस की कहानी!

पृच्छकेन सदा भाव्यं पुरुषेण विजानता। मनुष्य को सदा प्रश्नशील, जिज्ञासु रहना चाहिए। एक जंगल में चंडकर्मा नाम का राक्षस रहता था। जंगल में घूमते-घूमते उसके साथ एक दिन एक ब्राह्मण आ गया। वह राक्षस ब्राह्मण के कन्धे पर बैठ गया। ब्राह्मण के प्रश्न पर वह बोला:- ब्राह्मण! मैंने व्रत लिया है। गीले पैरों से मैं […]

Posted inPanchatantra Stories

भय का भूत! – राक्षस और चोर की कहानी

यः परैति स जीवति। भागनेवाला ही जीवित रहता है। एक नगर में भद्रसेन नाम का एक राजा रहता था। उसकी कन्या रत्नवती थी। उसे हर समय यही डर रहता था कि कोई राक्षस उसका अपहरण न कर ले। उसके महल के चारों ओर पहरा रहता था, फिर भी वह सदा डर से काँपती रहती थी। […]

Posted inPanchatantra Stories

लोभ बुद्धि पर पर्दा डाल देता है! (बंदरों और राजा की कहानी)

यो लौल्यात् कुरुते कर्म, नैवोदर्कमवेक्षते । बिडम्बनामवाप्नोति स यथा चन्द्रभूषति ॥ बिना परिणाम सोचे चंचल वृत्ति से काम आरम्भ करनेवाला अपनी जय-हँसाई कराता है। एक नगर के राजा चन्द्र के पुत्रों को बन्दरों से खेलने का व्यसन था। बन्दरों का सरदार भी बड़ा चतुर था। वह सब बन्दरों को नीतिशास्त्र पढ़ाया करता था। सब बन्दर […]

Posted inPanchatantra Stories

शेखचिल्ली न बनो – कंजूस ब्राह्मण के सपने की कहानी।

अनागतवती चिन्तामभायां करोति य:। स एव पाण्डुरः शेते सोमशर्मपिता यथा।। हवाई किले मत बाँधो। एक नगर में कोई कंजूस ब्राह्मण रहता था। उसने भिक्षा से प्राप्त सत्तुओं में से थोड़े-से खाकर शेष से एक घड़ा भर लिया था। उस घड़े को उसने रस्सी से बाँध खूँटी से सरका दिया और उसके नीचे पास ही खटिया […]

Posted inPanchatantra Stories

मित्र की शिक्षा मानो! जुलाहे और देव के वरदान की कहानी!

यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा मित्रोक्तं न करोति यः। एव निधनं याति यथा मन्चरकोलिकः। मित्र की बात सुनो, पत्नी की नहीं। एक बार मन्थरक नाम के जुलाहे के सब उपकरण, जो कपड़ा बुनने के काम आते थे, टूट गए उपकरणों को फिर बनाने के लिए लकड़ी की ज़रूरत थी। लकड़ी काटने की कुल्हाड़ी लेकर यह समुद्र […]

Posted inPanchatantra Stories

संगीतविशारद गधा – गीदड़ और गधे की कहानी

साघु मातुल! गीतेन मया प्रोक्तोऽपि न स्थितः। अपूर्वोऽयं मणिर्बद्धः सप्राप्तं गीतलक्षणम्॥ मित्र की सलाह मानो । एक गाँव में उद्धत नाम का गधा रहता था। दिन में धोबी का भार ढोने के बाद रात को वह स्वेच्छा से खेतों में घूमा करता था। पर सुबह वह स्वयं धोबी के पास आ जाता था। रात को […]

Posted inPanchatantra Stories

एकबुद्धि की कथा – दो मछलियों और एक मेंढक की कहानी!

एकं व्यावहारिकं मनः श्रेयः शतं अव्यावहारिकचित्तात्। एक व्यवहार बुद्धि सौ अव्यावहारिक बुद्धियों से अच्छी है। एक तालाब में दो मछलियाँ रहती थीं। एक थी शतबुद्धि (सौ बुद्धियों वाली) दूसरी थी सहस्रबुद्धि (हजार बुद्धिवाली)। उस तालाब में एक मेंढ़क भी रहता था। उसका नाम था एकबुद्धि। उसके पास एक ही बुद्धि थी। इसलिए उसे बुद्धि पर […]

Posted inPanchatantra Stories

चार मूर्ख पण्डित! – पंचतंत्र की प्रेरक कहानियां

अपि शास्त्रेषु कुशला लोकाचारविवर्जिताः सर्वे ते हास्यतां यान्ति यथा ते मूर्खपण्डिताः॥ व्यवहार-बुद्धि के बिना पण्डित भी मूर्ख होते हैं। एक स्थान पर चार ब्राह्मण रहते थे। चारों विद्याभ्यास के लिए कान्यकुब्ज गए। निरन्तर बारह वर्ष तक विद्या पढ़ने के बाद वे सम्पूर्ण शास्त्रों के पारंगत विद्वान हो गए। किन्तु व्यवहार बुद्धि से चारों खाली थे। […]

error: Content is protected !!