मार्ग का साथी! – ब्राह्मण और कैकडा की पंचतंत्र कहानी

Marg ka Sathi Brahman aur Kekda Panchtantra Kahani in Hindi

नैकाकिना गन्तव्यम् ।
अकेले यात्रा मत करो।

एक दिन ब्रह्मदत्त नाम का एक ब्राह्मण अपने गाँव से प्रस्थान करने लगा।

उसकी माता ने कहा:- पुत्र! कोई न कोई साथी रास्ते के लिए खोज ले अकेले यात्रा नहीं करनी चाहिए।

ब्रह्मदत्त ने उत्तर दिया:- डरो मत माँ इस मार्ग में कोई उपद्रव नहीं है। मुझे जल्दी जाना है, इतने में साथी नहीं मिलेगा। मेरे पास साथी खोजने का समय नहीं है।

माँ ने कुछ और उपाय न देख पड़ोस से एक कर्कट (कैकडा) ले लिया और अपने पुत्र ब्रह्मदत्त को कहा कि यदि तुझे जाना ही है तो इस कर्कट को भी साथ लेता जा यह तुझे बहुत सहायता देगा।

ब्रह्मदत्त ने माता का कहना मान कर्कट (कैकडा) को ही साथी बना लिया। उसे कपूर की डिबिया में रखकर यात्रा के लिए चल दिया।

थोड़ी दूर जाकर वह थक गया और गर्मी बहुत सताने लगी तो उसने मार्ग के एक वृक्ष की छाया में विश्राम लिया। थका हुआ तो था ही, नींद आ गई।

उसी वृक्ष के बिल में एक साँप रहता था। जब वह ब्रह्मदत्त के पास आया तो उसे कपूर की गन्ध आ गई। कपूर की गन्ध साँप को प्रिय होती है। साँप ने ब्रह्मदत्त के कपड़ों में से कपूर की डिबिया खोल ली, लेकिन जब उसे खाने लगा, तो कर्कट ने साँप को मार दिया।

ब्रह्मदत्त जब जागा तो देखा कि पास ही काला साँप मरा पड़ा है। उसके पास कपूर की डिबिया भी पड़ी थी वह समझ गया कि यह काम कर्कट का ही है। प्रसन्न होकर वह सोचने लगा माँ सोच सकती थी कि पुरुष को यात्रा में कभी एकाकी नहीं जाना चाहिए। मैंने श्रद्धापूर्वक माँ का वचन पूरा किया, इसलिए काला साँप मुझे काट नहीं सका; अन्यथा मैं मर जाता।

इस कहानी के बाद स्वर्ण-सिद्धि अपने मित्र चक्रधर को वहीं छोड़कर अपने घर वापस आ गया।

इसके साथ ही पंचतंत्र की कहानियाँ ख़त्म होती हैं।

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