महाभारत शांति पर्व 235.18 के अनुसार पत्नी पति का शरीर ही है और उसके आधे भाग को अद्धांगिनी के रूप में वह पूरा करती है। तैत्तिरीय ब्राह्मण 33.3.5 में इस प्रकार लिखा है- ‘अथो अर्धी वा एवं अन्यतः यत् पत्नी’ अर्थात् पुरुष का शरीर तब तक पूरा नहीं होता, जब तक कि उसके आधे अंग […]
शास्त्रों में सगोत्र (एक ही गोत्र में) विवाह करना वर्जित क्यों?
एक ही गोत्र में शादी क्यों नहीं करनी चाहिए! हमारी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विवाह अपने कुल में नहीं, बल्कि कुल के बाहर होना चाहिए। एक गोत्र में (सगोत्री) विवाह न हो सके, इसीलिए विवाह से पहले गोत्र पूछने की प्रथा आज भी प्रचलित है। शास्त्रों में अपने कुल में विवाह करना अधर्म, निंदित और […]
मांग में सिंदूर भरना सुहाग की निशानी क्यों ?
विवाह के अवसर पर एक संस्कार के रूप में वर, वधू की मांग में सिंदूर भरता है। इसे ही सुमंगली क्रिया कहते हैं। इसके पश्चात् विवाहित स्त्री अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए जीवन-भर मांग में सिंदूर लगाए रखती है, क्योंकि मांग में सिंदूर भरना हिंदू धर्म की परंपरा के अनुसार सुहागिन होने […]
विवाह में सात फेरे अग्नि के समक्ष ही क्यों?
यज्ञाग्नि के चारों ओर फिरना ही परिक्रमाएं फेरे के नाम से जानी जाती हैं। इसे भांवर फिरना भी कहते हैं। यों तो शास्त्रों के अनुसार यज्ञाग्नि की चार परिक्रमाएं करने का विधान है, लेकिन लोकाचार से सात परिक्रमाएं करने की प्रथा चल पड़ी है। ये सात फेरे विवाह संस्कार के धार्मिक आधार होते हैं। इन्हें […]
विवाह में वर-वधू कौन-सी प्रतिज्ञाएं लेते हैं और क्यों?
वर-वधू को विवाह की रस्में पूर्ण हो जाने के पश्चात् अपने कर्तव्य धर्म का महत्त्व भली-भांति समझाने और उनका निष्ठा पूर्वक पालन कराने हेतु संकल्प के रूप में अलग-अलग प्रतिज्ञाएं कराई जाती हैं, जिनके पूरी होने पर स्वीकृति स्वरूप दोनों से ‘स्वीकार है’, कहलवाने की प्रथा है। विवाह संस्कार पद्धति के अनुसार, ये सब प्रतिज्ञाएं […]
शौच के समय जनेऊ कान पर लपेटना जरूरी क्यों हैं?
आम बोलचाल में यज्ञोपवीत को ही जनेऊ कहते हैं। मल-मूत्र त्याग के समय जनेऊ को कान पर लपेट लिया जाता है। कारण यह है कि हमारे शास्त्रों में इस विषय में विस्तृत ब्यौरा मिलता है। शांख्यायन के मतानुसार ब्राह्मण के दाहिने कान में आदित्य, वसु, रुद्र, वायु और अग्नि देवता का निवास होता है। पाराशर […]
गुरु का महत्त्व क्यों? Guru Ka Mahatva Kyon Hota Hai
आदि काल से हमारे समाज ने गुरु की महत्ता को एक स्वर से स्वीकारा है। ‘गुरु बिन ज्ञान न होहि’ का सत्य भारतीय समाज का मूलमंत्र रहा है। शिक्षा हो, जीवनदर्शन हो या धर्म संस्कार की बात हो, इनका ज्ञान बिना गुरु के नहीं मिलता। हमारे प्राचीन शास्त्रों में गुरु महिमा का वर्णन इस प्रकार […]
मां सरस्वती को ही ज्ञान की देवी क्यों माना जाता है?
मां सरस्वती विद्या, संगीत और बुद्धि की देवी मानी गई हैं। देवीपुराण में सरस्वती को सावित्री, गायत्री, सती, लक्ष्मी और अंबिका नाम से संबोधित किया गया है। प्राचीन ग्रंथों में इन्हें वाग्देवी, वाणी, शारदा, भारती, वीणापाणि, विद्याधरी, सर्वमंगला आदि नामों से अलंकृत किया गया है। यह संपूर्ण संशयों का उच्छेद करने वाली तथा बोधस्वरूपिणी हैं। […]
धर्म की आवश्यकता क्यों? Dharm Ki Avashyakta Kyon Hai
धर्म का विषय बड़ा गहन है। धर्म शब्द धू+मन् से बनता है। धृ का अर्थ जो है, जो विद्यमान है, जो स्थापित है, जो सुरक्षित है, जो नित्य सहायक है, जो आप धारण किया हुआ है और मन् का अर्थ है याद करना, मानना, मूल्यवान समझना, बड़ा मानना, प्रत्यक्ष करना और पूजा करना। हमारे वेद-पुराणों […]
मनुष्य जीवन दुर्लभ क्यों?
प्राचीन काल से हमारे ऋषि-मुनियों, विचारकों और मर्मज्ञों ने इस बात का समर्थन किया है कि मनुष्य जीवन अपने आप में अद्भुत एवं महान है। ईश्वर ने पृथ्वी पर 84 लाख योनियां बनाई हैं जिसमें जीवात्मा भटकने के बाद मनुष्य का जन्म पाती है, क्योंकि पेड़-पौधों में 30 लाख, कीड़े-मकोड़ों में 27 लाख, पक्षी में […]
