गायक गधा! लोक कथा Indian Folk Tales Lok Kathayen in Hindi

Gayak Gadha Folk Tales in Hindi with Moral

दुनियां में भांति-भांति के लोग रहते हैं और इसमें कोई अचरज की बात नहीं है किसी ज़माने में किसी गांव में जाक़्सीबाय नाम का एक बूढ़ा बातूनी रहता था, जिसे कोई दु:ख नहीं था। इस आदमी के पास एक गधा था। देखने में उसमें और दूसरे गधों में कोई अंतर नहीं था, लेकिन उसने ऐसा गला पाया था कि जब वह अपने स्‍थान पर रेंकना शुरू कर देता, तो आस-पास के गांवों के लोग कानों में उंगली दे लेते थे।

एक बार जाक़्सीबाय प्राचीन शहर तुर्किस्‍तान आया और उसने गधे को फ़ौरन बाजार की ओर मोड़ दिया। वहॉं उसने अपने गधे को पेड़ से बांध दिया और खुद अपने चोगे के पल्‍ले उठाये चायखाने में घुस गया। अच्‍छे चायखाने में हमेशा भीड़ रहती है और जहॉं लोग होते हैं, वहीं बाते होती है, जहॉं बातें होती है, वही बहस छिड़ जाती है, जहॉं बहस हो रही हो, बातें हो रही हो, वहॉं कोई जाक्‍़सीबाय को बतियाने में, बहस करने में कभी मात नहीं दे सकता। कहते है: ”बातूनी की जबान में लगाम नहीं होती…”

गधा काफ़ी देर तक अपने स्‍वामी की बाट चोहता रहा। सूरज तप रहा था, मक्खियां भिनभिना रही थी, कुकुरमाछियां बुरी तरह काट रही थी। गधा बहुत देर से भूखा था और उसे प्‍यास लग रही थी। आखिर वक क्‍या करता? औश्र उसने वही किया, जो उसके स्‍थान पर उसकी जात का कोई भी प्राणी कर बैठता: पूंछ उठायी, कनौतियां आगे को खड़ी की, नथुने फुलाये, मुंह खोला और…. लगा गला फाड़कर रेंगने।

बाजार में काम से और बिना काम के जमा हुए लोग चौक उठे और सबने एक साथ उसकी ओर पलटकर देखा।

”वाह, क्‍या आवाज है!” सारा बाज़ार कह उठा। ”ऐसी आवाज हमने तुर्किस्‍तान में अभी तक नहीं सुनी थी!”

”वाह, क्‍या खुशखबरी है!” गधा खुश हो उठा। ”रास्‍तों की खाक छानते-छानते इतने साल हो गये, पर अपनी वक़अत का मुझे आज ही पता चला। सारे तुर्किस्‍तान में मेरी धाक जम गयी!”

उसी क्षण से गधे को विश्‍वास हो गया कि वह जन्‍मजात महान गायक है। भूखे सियार को कभी-कभी न जाने कहां-कहां मुंह मारना पड़ता है और मूर्ख गधे की खोपड़ी में न जाने कैसी-कैसी बातें उपजती हैं!

गधा सोचने लगा:
”अब मैं आगे से जाक़्सीबाय के लिए काम नहीं करूंगा! जल्‍दी ही मेरा नाम हो जायेगा, मुझे सम्‍मान मिलेगा। पर नाम और सम्‍मान पीठ पर लकड़ी ढोनेवाले को थोड़े ही मिलते है।”

उसने जोश में आकर पूरा जोर लगाकर रस्‍सी तुड़ा ली और सरपट शहर से बाहर भाग निकला। अलविदा, बूढ़े बातूनी, जाक़्सीबाय! अलविदा, पुराना तुर्किस्‍तान!

गधा सुनसान रास्‍ते पर भटकने लगा, – सूरज और जोर से तप रहा था, मक्खियां और ज्यादा भिनभिन करके परेशान कर रही थीं, कुकुरमाछियां और ज्यादा ज़ोर से काट रही थी। भगोड़ा थक गया, भूख और प्‍यास के मारे निढ़ाल हो गया। और आस-पास न कहीं छाया थी, न घास की कोई पत्ती, न ही कोई छोटा-मोटा डबरा।

”यश कमाना आसान नहीं होता,” गधे ने एक ठण्‍डी सांस ली, ”पर अल्‍लाह अपने चुनिंदा बंदे को बेमौत नहीं मरने देगा।” और वह आगे चल दिया।

अचानक- न जाने यह शकुन था या अपशकुन – गधे को अपनी सामने मिट्टी की चहारदीवारी से घिरा एक विशाल बाग़ दिखाई दिया। दीवार एक जगह पर ढही हुई थी और दरार में से छायादार वृक्ष, मुलायम दूब से ढके आकर्षक मैदान और निर्मल जल की नालियॉं देखी जा सकती थी। प्रलोभन अत्‍यन्‍त सम्‍मोहक था और गधा बदन सिकोड़कर दरार में से आनजाने बाग़ में घुस गया। सारी दुनिया से बेखबर होकर वह मरझुक्‍खे की तरह चारे-पानी पर टूट पड़ा। वह रास्‍तों का ध्‍यान रखे बिना लानों और फुलवारियों को रौंदता तब तक घूमता रहा, जब तक कि उसका पेट न भर गया और उसे डकारें न आने लगी। तब उसने दम लेने के लिए रुककर सिर उठाया और… अप्रत्‍याशित बात से चौंक उठा।

झाडि़यों के झुरमुट में से अन्‍नत की परी जैसी सुंदर एक जवान हिरनी सीधी उसी की ओर आ रही थी। वह हिरनी भी चोरी से बाग़ में घुस आयी थी। वह सुबह से जंगल में उछलती-कूदती रही थी और खेलती-खेलती चहारदीवारी तक पहुँची, उसे फांदकर शानदार घास चरने लगी थी। गधे को देखते ही वह भागने की तैयारी करके जड़वत् खड़ी रही।

गधा हिरनी पर पहली नज़र पड़ते ही उसके प्यार में पागल हो उठा। उसका दिल भयाकुल हिरन-मूसा की तरह कूद रहा था, वह आंखें निकाले सुंदरी को देख रहा था और उमंग में सोच रहा था: ”मेरा भाग्‍य वास्‍तव में मुझ पर कृपालु है: उसने मुझे विरला स्‍वर प्रदान किया है, इस अद्भुत बाग़ में पहुँचा दिया है और अब एक अतिसुन्‍दर दुलहन से मेरी भेंट भी करा दी।”

और वह कनौतियां हिलाकर विनम्रतापूर्वक बोला:

”कुलांगना! आपने अपने स्‍वर्गिक सौन्‍दर्य से मेरा मन मोह लिया है। मुझे आपके लिए गाने का आज्ञा दीजिये। मेरा मधुर स्‍वर सुनकर आप महान गायक के प्रेम की अस्‍वीकार न कर सकेंगी।

हिरनी ने अग़ल-बग़ल झांका और धीरे से बोली:

”गधे, क्‍या आपका चुप रहना बेहतर नहीं होगा? देखिये, कहीं आपके उत्साह के कारण हम पर भी ऐसी न बीते, जैसी सात लापरवाह चोरों पर बीती थी।”

और उसने यह नीति-कथा सुनाई:

”एक बार रात को सात चोर एक धनवान के घर में घुस गये। वे तहखाने में पुरानी शराब के विशाल ढोलों के बीच दुबककर बैठ गये और घर में सन्‍नाटा छाने की प्रतीक्षा करने लगे, जिससे कि अपनी सोची कर सकें। पर शराब की गंध से उनकी मति भ्रष्‍ट हो गयी और वे चुल्‍लु भर-भरके मूल्‍यवान पेय अपने गले के नीचे उतारने लगे। इसका परिणाम यह हुआ कि नशे में चोर भूल गये कि वे कहॉं है और गला फाड़-फाड़कर विनोदी गीत गाने लगे। घरवालों ने उनकी आवाजें सुन लीं, धनवान के पहरेदार तहखाने में जा पहुँचे और उन्होंने बिनबुलाये मेहमानों की मुश्‍कें कस दी। आखिर मैं और आप भी तो, गधे, गृहस्‍वामी के बुलाये बिना इस बाग़ में पधारे हैं और उसकी आज्ञा के बिना स्‍वादिष्‍ट घास का रसास्‍वादन कर रहे हैं!”

”आप अतिसुन्‍दर हैं, हिरनी,” गधे ने उसके प्रत्‍युत्तर में कहा, ”लेकिन आप वीरान जंगल में बड़ी हुई हैं और शायद अच्‍छे गायन के बारे में बहुत कम जानती हैं। मैंने तो सारा जीवन लोगों के बीच बिताया है, तुर्किस्‍तान में रह चुका हूँ और दावे के साथ्‍ज्ञ कह सकता हूँ कि मैं कला में दक्षता प्राप्‍त कर चुका हूँ। मेरे गीत गाना आरम्‍भ करने की देर है और फिर आप मुझसे यही विनत करेंगी कि मैं उसे कभी न रोकूँ।”

किन्‍तु हिरनी बोली:

”क्‍या आपके लिए सावधान रहना और शोर न करना बेहतर नहीं रहेगा? जो कोई जरा-सा भी असावधान होता है, उस पर अवश्‍य विपत्ति टूट पड़ती है, जैसे कि एक मूर्ख लकड़हारे के साथ हुआ था।”

और हिरनी ने यह नीति-कथा सुनाई:

”एक लकड़हारे को जंगल में देर हो गयी और रात में वह घने वन में भटक गया। उसे अचानक पास ही से जोरदार आवाजें आती सुनाई दीं। लकड़हारा जल्‍दी से पेड़ पर चढ़ गया और घनी शाखाओं में दुबक गया। तीन जिन आये। वे पेड़ के तले बैठकर अपने सामने एक मूल्‍यवान सुराही रखकर दावत उड़ाने लगे। जैसे ही, कोई जिन सुराही को हाथ से छूता, वह ऐसी सुगंधित किमिज से लबालब भर जाती, जैसी शायद जिनों के अलावा और किसी ने कभी न पी होगी।

भोर हुआ। जिनों ने जादूई सुराही पेड़ के नीचे छिपा दी और भिन्‍न-भिन्‍न दिशा में चले गये। लकड़हारा पलक झपकते नीचे उतरा और सुराही उठाकर जंगल से भाग निकला। घर लौटकर उसने अपने संबंधियों व पड़ोसियों को बुलाया और उनके सामने अपने हाथ लगी दुर्लभ वस्‍तु की डींग हांकने लगा। वह बार-बार सुराही को हाथ से स्‍पर्श करता और सुगंधित किमिज की धारें नीचे रखे प्‍यालों में गिरने लगतीं। लकड़हारा खुशी के मारे इतना पागल हो उठा कि सुराही सिर पर रखकर सारे तम्‍बू-घर में हा-हा-ही-ही करता चक्‍कर काटने लगा। अचानक वह ठोकर खा गया और जादूई सुराही गिरकर टुकड़े-टुकड़े हो गयी। कहीं हम भी, गधे, तुम्‍हारी मूर्खता के कारण इस स्‍वादिष्‍ट दूब से बंचित न रह जायें।”

गधे ने एक ठण्‍डी सांस ली और निराशापूर्वक बोला:

”ऐ हिरनी, प्रकृति ने आपको असीम सौन्‍दर्य प्रदान किया है, पर उसने आपके सीने में निष्‍ठुर हृदय रख दिया है। फिर भी मुझे पूरा विश्‍वास है कि मेरे गायन के मनमोहक सुर आपके कठोर स्‍वभाव को मृदु बना देंगे और आपके मन में उदात्त भाव जगा देंगे।

हिरनी गधे को शांत करने का प्रयास करती रही:

”मैं आपसे विनती करती हूँ, गधे, कि समय रहते होश में आ जाइये और अपनी आवाज़ तुर्किस्‍तान के बाजार के लिए बचाकर रखिये। क्योंकि मुंह से असमय निकला एक भी शब्‍द हमें असाध्‍य कष्‍ट पहुँचा सकता है। एक जवान सौदागर ने भी इसका ध्‍यान नहीं रखा और उसके बाद में बहुत पछताना पड़ा था।

और उसने एक और नीति-कथा सुनाई:

”एक नौजवान सौदागर दावत उड़ाने के बाद आधी रात को शहर की अंधेरी गलियों से होकर घर लौट रहा था। उसकी जेबें अशरफि़यों से भरी थी। ”अगर मुझ पर लुटेरे टूट पड़ें और मेरा धन छीन ले जायें तो?” सौदागर ने भय के मारे सोचा। और वह अपना हौसला बढ़ाने के लिए खुद से जोर-जोर से बातें करने लगा: ”ज़रा नज़र तो आयें लुटेरे!… मैं उनके टुकड़े-टुकडे कर डालूँगा… मैं खुद शैतान तक से नहीं डरता!” रात देर गये घर लौटनेवाले राहगीरों की घात में पास की गली में गुण्‍डों का एक गिरोह चक्कर काट रहा था। गुण्‍डों ने सौदागर की आवाज सुन ली और उन्‍होंने उस पर हमला कर धन व कपड़े छीन लिये और उसे शहर में नंगा भटकने के लिए छोड़ गये। अब शायद, गधे, हमारा भी, मुसीबत को बुलावा न देकर, थोथी बातें करना छोड़, पराये बाग़ से चले जाने का समय हो आया है।”

इस पर गधा कह उठा:

”ऐ निर्मम सुन्‍दरी, हिरनी! आप मुझसे चुप रहने को कैसे कह सकती है, जब कि अपनी प्रियतमा के सम्‍मान में गीत के बोल स्‍वयं मेरे हृदय में उमड़ते मुंह से निकलने के लिए तड़प रहे हैं?!”

यह कहकर उसने आंखें मूंद लीं, जैसा कि ख्‍यातिप्राप्‍त गायक करते हैं, मुंह फाड़ा, जैसा कि सारे गधे एक निश्चित समय पर करते हैं और जोर-जोर से रेंकने लगा। हिरनी चौंककर एक ओर हट गयी और एक छलांग में चहारदीवारी पार करके हवा से बातें करती जंगल की ओर दौड़ पड़ी। जबकि गधा सारी दुनिया से बेपरवाह चीपों-चीपों का राग अलापता रहा।

बाग़ का स्‍वामी मोटा डण्‍डा लिये भागा आया और उसने गधे को ऐसी मार लगायी कि वह और जोर से रेंकने लगा और बड़ी मुश्किल से चहारदीवारी से जिंदा बाहर निकल सका। गधा सिर झुकाये लड़खड़ाता घिसटता आगे चल दिया।

रात आयी। आसमान पर पूनम का चांद निकल आया। तब जंगल के सारे भेडि़ये मुंह ऊपर को करके अपने पूर्वजों की परम्‍परानुसार तरह-तरह के स्‍वरों में हू-हू करने लगे।

गधे ने न तो कभी भेडि़यों को देखा था और न ही उसने कभी उनकी आवाज सुनी थी। रुककर उसने पारखी की तरह ध्‍यान सु सुना और फिर कह उठा:

”ये भी कोई गायक है! मैं अकेला अपनी आवाज से इनके बेसुरे सहगान को दबा सकता हूँ।”

उसने इतने ज़ोर से सांस खींची कि उसका सारा बदन चरमरा उठा और इतने जोर से रंका कि उसका खुद का सिर भन्‍ना उठा। भेडि़ये आश्‍चर्यचकित हुए तत्‍क्षण मौन हो गये: जंगल में आधी रात को गधा कहॉं से आ सकता है? वे बिना आपस में सलाह किये रास्‍ते की ओर लपके और शिकार उन्‍हें फ़ौरन नजर आ गया…. गधे का कि़स्‍सा यही समाप्‍त हो गया। अगर आप किसी भी क़ीमत पर जाक्‍़सीबाय के बारे में भी सुनना चाहते हैं, तो सिर पर पैर रखकर प्राचीन शहर तुर्किस्‍तान दौड़कर जाइये, बिना देर किये वहॉं का बड़ा बाजार और बाजार में सबसे खचाखच भरा चायखाना ढूंढ लीजिये और बेधड़क उसमें घुस जाइये। इस बात की पूरी सम्‍भावना है कि जाक्‍़सीबाय अपने गधे के बारे में भूलकर अभी तक वहॉं गुदगुदे नमदे पर बैठा चाय की प्‍याली पर प्‍याली पिये जा रहा होगा और तरह-तरह के सच्‍चे-झूठे किस्‍से गढ़े जा रहा होगा। वह जरूर आपको अपने बारे में किस्‍से सुनायेगा- बस सुनते रहिये।

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