बहुत दिन हुए एक सदाचारी और ज्ञानी पुरुष रहता था। उसके तीन पुत्र थे। कहते है, शिकारी का बेटा तीरों के धार चढ़ाता है और दर्जी का बेटा कपड़े काटता है। और विद्धान के पुत्र बचपन से ही अपना सारा समय ज्ञानवर्द्धक पुस्तकें पढ़ने में बिताते थे। उनमें से बड़ा अभी घोड़े पर चढ़ना भी नहीं सीखा था, पर लोग उन भाईयों के पास न्याय करवाने और सलाह लेने आने लगे।
एक बार उसके पास दो आदमी दो ऊंटनियां और एक ऊंट का बच्चा लेकर आये।
”हमारा मामला ऐसा है,” वे कहने लगे, ”कि हममें से हरेक के पास एक-एक ऊंटनी है। वे जगंल में हमेशा साथ चरती थी। हाल ही में हम उन्हें लेने गये, तो हमने दो नवजात ऊंट के बच्चे देखे। एक चिन्दा था, दूसरा-मरा हुआ। अब हम यह नहीं जान पा रहे है कि ऊंट का बच्चा किसका होना चाहिए और उनमें से कौन-सी ऊंटनी उसकी मां है। वे दोनों ही बच्चे को प्यार करती है और दूध पिलाती हैं और वह भी दोनों ऊंटनियों को एक-समान प्यार करता है।”
बड़ा भाई बोला:
”ऊंटनियों को नदी किनारे ले जाइये।”
मझला बोला:
”ऊंट के बच्चे को डोंगी में दूसरे किनारे पर ले जाइये।”
और छोटा भाई बोला:
”तब आपके झगड़े का खुद-बखुद फै़सला हो जायेगा।”
उन लोगों ने वैसा ही किया, जैसा की सलाह लड़कों ने दी थी।
ऊंट का बच्चा जब किनारे पर अकेला रह गया, तो वह डर के मारे छटपटाने और दर्द भरी आवाज़ में बलबलाने लगा। ऊंटनियां भी घबराने और ज़ोर-ज़ोर से बलबलाने लगीं। एक ऊंटनी घबरायी हुई किनारे के सहारे-सहारे भागने लगी, जब कि दूसरी पानी में कूद पड़ी और तैरकर बच्चे के पास जाने लगी। तब सब समझ गये कि यही उसकी मां है।
असाधारण बालकों की बुद्धिमत्ता का समाचार कानों-कान सो जंगल में फैल गया। वृद्ध विद्वान को अपने पुत्रों के कारण हर्ष भी हुआ और उन पर गर्व भी।
वर्ष बीतते रहे। बाप बूढ़ा होता गया, बेटे बड़े होते गये। जब पुत्रों ने युवावस्था में पदार्पण किया, विद्वान ने उनसे कहा:
”ज्ञान लम्बी उम्रवाले का नहीं, बल्कि दुनिया देखनेवाले का ज्यादा होता है। सोने की सच्ची क़ीमत कौन जानता है? धनी नहीं, बल्कि सुनार। भोजन के गुणों का ज्ञान किसे होता है? खानेवाले को नहीं, बल्कि उसे पकानेवाले को। सच्चा रास्ता कौन दिखा सकता है? वह नहीं, जो उस पर जाने की तैयारी कर रहा है, बल्कि उससे गुजरनेवाला। तुम लोग अपनी पुस्तकें छोड़कर सबसे अधिक ज्ञानवर्द्धक पुस्तक- जीवन की पुस्तक पढ़ने के लिए देशाटन पर निकल जाओ।”
पिता ने पुत्रों को आशीर्वाद दिया और वे कई वर्षों के लिए अपना घर छोड़कर चल पड़े।
एक बार जब तीनों भाई एक रास्ते से गुजर रहे थे, अपने आस-पास नजर डालकर बड़ा भाई बोला:
”इस रास्ते से थोड़ी देर पहले एक थका-हारा ऊंट गुजरा है।”
मझला बोला:
”हां, और उस ऊंट की बायीं आंख नहीं है।”
छोटा बोला:
”और उस पर शहद लदा था।”
उसी समय उन्हें सामने से एक घबराया और हांफता हुआ आदमी आता दिखाई दिया:
”आपने रास्ते में कोई ऊंट तो नहीं देखा?” उसने पूछा। ” चोर मेरा ऊंट चुरा ले गये हैं।”
”तुम्हारे ऊंट ने बहुत लम्बा रास्ता तय किया है और वह बहुत थका हुआ है, सच है ना? बड़े भाई ने पूछा।
”हां,” अपरिचित ने जवाब दिया।
”और तुम्हारे ऊंट की बायी आंख नहीं है ना?” मझले भाई ने पूछा।
”हॉं, हॉं!” अपरिचित खुश हो गया।
”वह शहद तो ढोकर नहीं ले जा रहा था?” छोटे भाई ने पूछा।
”हॉं, हॉं, शहद! जल्दी बताइये, मेरा ऊंट कहॉं है?”
”यह हम नहीं जानते,” भाइयों ने कहा, हमने उसे देखा नहीं है।
अपरिचित क्रोधित हो उठा:
”तुम लोगों की झूठ बोलने की हिम्मत कैसे हुई कि तुमने उँट को नहीं देखा, जब कि तुम्हें ऊंट की सारी पहचान मालूम है? ऊंट जरूर तुम्हीं लोगों ने चुराया है और उसे किसी गुप्त स्थान में छिपा दिया है।”
और उसने इतना शोर मचाया कि उसकी आवाज थोड़ी दूरी पर जा रहे खान के सिपाहियों ने सुन ली। वे पुकार सुनकर सरपट घोड़े दौड़ाते आये और उन चारों को खान के पास ले गये।
खान ने उनसे पूछताछ शुरू की।
”आप लोग कहते हैं कि आपने लापता हुए ऊंट को नहीं देखा,” उसने विद्वान के पुत्रों को संबोधित किया, पर फिर आपने उसके मालिक को उसकी ठीक-ठीक पहचान कैसे बतायी?”
बड़ा भाई बोला:
”ऊंट ने लम्बा रास्ता तय किया है, इसका अनुमान मैंने उसके पद-चिन्हों से लगा लिया: थका हुआ जानवर पैर घिसटता चलता है, उसकी खोजें लम्बी होती है।”
मझला बोला:
”ऊंट की बायी आंख नहीं है, इसका फै़सला मैंने इस आधार पर किया, कि उसने चलते-चलते केवल रास्ते के दायीं ओर की घास ही खायी थी।”
छोटा भाई बोला:
”अगर रास्ते पर मक्खियों के झुण्ड के झुण्ड भिनभिना रहे हों, तो यह अंदाज लगाना मुश्किल थोड़े ही था कि ऊंट पर शहद लदा था।
खान भाइयों की सूक्ष्म-दृष्टि और उसके प्रश्नों का उत्तर आत्म-सम्मान के साथ देने से आश्चर्यचकित रह गया। लेकिन उसे एक बार और उनकी बुद्धिमत्ता की परीक्षा लेने की इच्छा हुई। उसने नज़र बचाकर एक पका हुआ अनार रूमाल में लपेट लिया और उसे भाइयों को दिखाकर पूछा:
”मेरे हाथ में क्या है?”
बड़ा भाई बोला: ”यह कोई गोल चीज़ है।”
मझला बोला: ”इसके अलावा बहुत ही स्वादिष्ट है।”
और छोटे ने पूरी तरह समाधान कर दिया:
”कहने का मतलब है, यह अनार है, जहांपनाह।”
खान का चेहरा खिल उठा।
”बिलकुल ठीक!” वह कह उठा। ”मैंने पहले कभी इतने सूक्ष्मदर्शी लोगों को नहीं देखा था। आप जवान हैं, पर मेरे दाढ़ीवाले वज़ीर भी आपकी तुलना में कुछ नहीं हैं। आप मेरे यहॉं तीन दिन रुकिये, आपको बारी-बारी से मेरे लोगों के मुक़दमों का फै़सला करना होगा और अगर मुझे आपके निर्ण न्यायापूर्ण लगे, तो मैं आपको अपने वज़ीर बना लूँगा।”
यह सुनकर बूढ़े वज़ीर तीनों युवा विद्वानों से घृणा करने लगे और उन्होंने उनके साथ अपनी आय, सत्ता और खान की कृपालुता न बांटने के लिए उन्हें हर काम में नुकसान पहुँचाने की ठान ली।
पहले दिन न्यायालय की अध्यक्षता बड़े भाई ने की। उसके सामने दो आदमी पेश किये गये। उनमें से एक ने कहा:
”मैं एक गरीब गड़रिया हूँ। कल तंगी के कारण मैंने अपनी सबसे बढि़या भेड़ काटी और आज दिन भर बाज़ार में मांस बेचता रहा। मैंने अपनी सारी आमदनी थैली में रखी थी, पर इस आदमी ने उसे मेरी जेब से निकाल लिया।”
दूसरा व्यक्ति झल्लाकर उस पर लगाये आरोप से इंकार करने लगा:
”गड़रिया झूठ बोलता है। मेरे पास रक़म की थैली है, पर वह मेरी अपनी थैली है। यह ठग मुझ पर झूठा दोष लगा रहा है और पराया माल हथियाना चाहता है।”
क़ाजी ने कहा:
”थैली मुझे दो। हम एक मिनट में पता लगा लेंगे कि थैली किसकी है।”
उसने खान के नौकरों को एक बरतन में उबलता पानी लाने को कहा और उसमें थैली के सिक्के उलट दिये। पानी पर तत्क्षण चरबी की तह तैर आयी, जैसे उसमें भेड़ का मांस पकाया गया हो। अब कोई संदेह न रहा कि गड़रिये ने सच कहा था। क़ाजी ने उसे रक़म लौटा दी और चोर को हिरासत में लेने का आदेश दे दिया।
दूसरे दिन मझले भाई ने न्याया किया
अदालत में ठसाठस भरे बोरे जैसा एक मोटा बाय किसी फटीचर अभागे को आस्तीन पकड़कर घसीट लाया।
बाय कहने लगा:
”इस फटीचर ने मुझसे यह रोना रोकर कि इसका बेटा मर रहा है, मुझसे एक चरक (पुराना कजाखी बाट – 250 ग्राम।) गोश्त उधार लिया था। इसने क़सम खाकर कहा था कि यह कर्ज एक सप्ताह में लौटा देगा, चाहे अपनी पिण्डली का गोश्त काटकर देना पड़े। बच्चा काफ़ी दिन हुए मर चुका है, सप्ताह पर सप्ताह बीतते जा रहे हैं, पर यह चालबाज़ न तो मुझे मांस लौटा रहा है और न ही उसकी क़ीमत।”
क़ाजी ने गरीब से पूछा:
”तुमने बाय का उधार क्यों नहीं चुकाया?”
”मेरे पास कुछ नहीं है,” गरीब ने डर के मारे थरथर कांपते जवाब दिया, ”मैं पतझड़ से पहले बाय का हिसाब साफ नहीं कर सकूँगा।”
”लेकिन मैं पतझड़ तक इंतज़ार नहीं कर सकता!” बाय चीखा।
तब क़ाजी बोला, ”मैं इस मामले का फै़सला इस तरह करता हूँ। बाय, तुम छुरा लो और प्रतिवादी की पिण्डली से एक चरक मांस काट लो। ठीक एक चरक! अगर टुकड़ा रत्ती भर भी कम या ज्यादा हुआ, तो मैं तुम पर कोड़े लगवाने का हुक्म दे दूँगा।”
बाय किकर्त्तव्यविमूढ़ हो गया और एकाएक अपने चोग़े के पल्लों में उलझकर गिरता-पड़ता सिर पर पॉंव रखकर भाग गया। सब उस पर हंसने लगे, और गरीब कृपापूर्ण निर्णय के लिए क़ाजी को धन्यवाद देने लगा।
तीसरे दिन छोटे भाई को न्याय करने का अवसर मिला। उसके पास दो जवान आदमी आये। उन दोनों में से जो क़द में लम्बा और चौड़े कंधोंवाला था, वह वादी था। उसने शिकायत की:
”मेरे दोस्त ने मुझसे एक अशरफ़ी छीन ली है।”
प्रतिवादी ने सफ़ाई पेश की:
”मैंने अशरफ़ी ईमानदारी से मेहनत करके कमाई है। लोगों का बुरा करने का विचार मेरे दिमाग़ में कभी आता ही नहीं है।”
काज़ी ने वादी से पूछा:
”क्या कोई गवाह मौजूद था, जब तुम्हारे दोस्त ने तुम पर हमला किया?”
”नहीं, कोई गवाह नहीं था।”
”तो फिर, क़ाजी ने कहा, ”आपका मुक़दमा निबटाना मुश्किल होगा। मैं इस पर विचार करे लेता हूँ। और इस बीच आप लोग कुश्ती लड़कर मेरा दिल बहलाइये। कुश्ती के विजेता को मैं इनाम दूँगा।”
क़ाजी सोच-विचार में डूब गया, और बांके नौजवान एक दूसरे का कमरबंद पकड़ कुश्ती लड़ने लगे। पंद्रह मिनट के अंदर-अंदर वादी ने प्रतिवादी को तीन बार पछाड़ दिया।
”बस,” क़ाजी ने कहा। ”सच्चाई जाहिर हो गयी है, और मेरा फैसला तैयार है। मूर्ख से मूर्ख को भी यह स्वष्ट हो गया है कि इन दोनों पहलवानों में कौन ज्यादा ताक़तवर है। सबके सामने वादी ने प्रतिवादी को लगातार तीन बार पछाड़ा है। इस बात पर कौन विश्वास करेगा कि कमजोर ने ताक़तवर से पैसा छीना है? नहीं, प्रतिवादी निर्दोष है, जबकि, ढीठ वादी, तुम्हें झूठी शिकायत और बलप्रयोग के लिए कड़ा दण्ड दिया जाना चाहिए। लेकिन अपने वचनानुसार मैं तुम्हें कुश्ती में कौशल दिखाने के लिए क्षमा-दान देता हूँ। जाओ, अपस में सुलह कर लो और फिर से दोस्त बनने की कोशिश करो।”
सब लोगों ने तीनों भाईयों के न्यायपूर्ण निर्णयों की सराहना की, और खान भी उनसे संतुष्ट हो गया। केवल बूढ़े वज़ीर उनसे डाह करने लगे और नाराज हो उठे। वे खान के कान भरने लगे कि तीनों भाई संदिग्ध बदमाश है, अनजाने परदेसियों पर विश्वास करना मूर्खता होगी, उन्हें जरूर दुश्मनों ने भेजा है और वे उसका बुरा करने की योजना बना रहे हैं। लेकिन खान ने चुगलखोरों को डांट दिया और सबके सामने अपनी इच्छा घोषित कर दी:
”मैं तीनों बुद्धिमान युवकों को वजीर बना रहा हूँ। दिन में वे सरकारी काम-काज में मेरी मदद किया करेंगे, शाम को किस्से सुनाकर मेरा दिल बहलाया करेंगे और रात को मेरे सोते समय पहरा दिया करेंगे।”
दिन बीतने लगे। खान का युवकों से लगाव निरन्त बढ़ता गया। वह शाम को घंटों उनकी बातें सुनता रहता और विचित्र कहानियों की लोरी सुनता सो जाता था। भाई बारी-बारी से खान की सेवा करते रहे, और वह सब का समान रूप से ध्यान रखता, किन्तु छोटे भाई पर उसकी विशेष कृपा रहती थी। इसीलिए बूढ़े वजीर युवक से बहुत द्वेष रखने लगे। अंतत: उन्होने उसके खिलाफ षड्यंत्र रचने की ठानी।
एक दिन जब छोटे भाई की खान के साथ दिन भर रहने की बारी आयी, वज़ीरों ने चोरी से खान के शयन-कक्ष में एक विषैला सर्प छोड़ दिया। उन्हें आशा थी कि खान को सांप देखते ही अपने चहैते पर बुरे इरादे का संदेह हो जायेगा और वह गुस्से से आगबबूला हो उठेगा, और तब उसे तीनों भाइयों को सज़ा देने के लिए मनाना आसान हो जायेगा।
रात आयी। खन पलंग पर लेटा हुआ था और युवा वज़ीर उसे एक के बाद एक प्राचीन दंतकथाएं सुना रहा था। वह इतने क्रमबद्ध ढंग से बोल रहा था कि लगता था जैसे वह अपने सामने कोई अदृश्य पुस्तक रखे हुए हो। जी भर कहानियां सुन लेने के बाद खान आधी रात बाद गहरी नींद में सो गया।
तभी चिराग बुझाने जा रहे युवक को खान के पलंग की तरफ़ रेंगता भयावह सांप नज़र आ गया। उसने बिना विवेक खोये तलवार निकाल ली और सांप का सिर काटकर उसका कटा धड़ पलंग के नीचे फेंक दिया। वह तलवार म्यान में रखने ही जा रहा था कि शोर से उद्विग्न खान जाग गया और उसने आंखे खोली।
युवा वज़ीर को अपने सामने नंगी तलवार हाथ में थामे खड़ा देख वह झट उठ खड़ा हुआ और चिल्लाने लगा:
”बचाओ! मुझे जान से मारना चाहते हैं!”
अंगरक्षक तत्क्षण शयन-कक्ष में भागे घुस आये और उन्होंने युवक को पकड़कर सुबह तक के लिए उसे काल-कोठरी में बंद कर दिया।
खान ने सुबह मामले की जांच करने और बंदी के भाग्य का फैसला करने के लिए अपने सारे वज़ीरों की बैठक बुलवाई।
वज़ीर ज्येष्ठता के अनुसार बोले, पर सभी ने एक ही बात कही: उन्होंने शब्दाडम्बर का जाल फैलाते हुए और वाक्-चातुर्य में एक दूसरे से होड़ करते हुए युवक पर विश्वासघात, नमकहरामी और अपने शासक की हत्या के प्रयास का आरोप लगाया और अंत में उसे निर्मम से निर्मम और कष्टप्रद से कष्टप्रद दण्ड-प्राणदण्ड दिये जाने की मांग की। उनकी बातें सुनते समय खान सिर हिलाता रहा तथा साथ ही साथ और अधिक उदास होता गया। वज़ीर मन-ही-मन खुश हो रहे थे, पर इसे प्रकट नहीं होने दे रहे थे और अपने निर्ल्लज षड्यंत्र के सफल होने का पहले से ही पूरा विश्वास था।
किन्तु उधर अभियुक्त के बड़े भाई की बोलने की बारी आ गयी।
”जहांपनाह,” उसने कहा, ”मुझे न्यायिक भाषण के स्थान पर एक प्राचीन नीतिकथा सुनाने की आज्ञा दें, जैसा कि मैं और मेरे भाई आपके सिरहाने बैठकर इतनी रातों से करते आये हैं।”
बहुत पुराने ज़माने में एक पराक्रमी बादशाह था। उसे दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार अपने बोलने वाले तोते से था, जो सोने के पिंजरे में उसके शयन-कक्ष में रहता था। बुद्धिमान तोता कठिन परिस्थितियों में बादशाह को सलाह भी देता था, दु:ख में सान्त्वना भी दिलाता था और अवकाश के समय में उसका मनोरंजन भी करता था।
एक बार बादशाह पिंजरे के पास आया, तो उसने देखा कि तोते ने पर खड़े कर रखे हैं और वह उदास है।
”तुझे क्या हुआ है, मेरे दोस्त?” बादशाह ने पूछा।
तोता बोला:
” मेरे पास दूर देश से मेरे साथी आकर खिड़की पर बैठे थे। वे समाचार लाये कि मेरी बहन का विवाह हो रहा है और वह चाहती है कि मैं शादी में मौजूद रहूँ। आप मुझे अपने देश हो आने की अनुमति दे दीजिये, बादशाह सलामत! आपकी इस कृपा के बदले में मैं वहॉं से आपके लिए एक बहुमूल्य उपहार लेकर आऊँगा।”
”तुम्हें वहॉं उड़कर जाने-आने में कितने दिल लगेंगे?” बादशाह ने पूछा
”चालीस दिन, बादशाह सलामत। चालीसवें दिन मैं फिर आपके साथ होऊँगा।”
बादशाह ने पिंजरे की खिड़की खोल दी, और पक्षी उल्लसित स्वर में चिल्लाता पंख फड़फड़ाता खिड़की में से आकाश में उड़ चला।
उस समय वहॉं उपस्थित वज़ीर ने कहा:
”मैं किसी भी चीज़ की शर्त लगाने को तैयार हूँ, हुजूरे आलम, कि चालाक पक्षी ने आपको धोखा दिया है और वह कभी इस पिंजरे में नहीं लौटेगा।”
दुष्ट लोग अविश्वासी और शंकालू होते हैं, मेरे हुजूर, और वह वजीर दुष्ट आदमी था।
लेकिन चालीस दिन बीतते ही तोता अपने वचनानुसार वापस लौट आया। बादशाह उसके आने पर बहुत प्रसन्न हुआ और उसने मज़ाक में पूछ लिया:
”मेरे लिए तू कौन-सा उपहार लाया है, मेरे मित्र?”
तोते ने चोंच खोली और बादशाह की हथेली पर एक नन्हा-सा दाना रख दिया। बादशाह विस्मित हुआ, पर तोते की बुद्धिमत्ता जानने के कारण उसने अपने सफ़ेद दाढ़ीवाले माली को आवाज दी और उसे वह बीज बोने को कहा। एक ही दिन में उस बीज में से एक सुगठित सेब का वृक्ष निकल आया, दो दिन में उसमें फूल निकल आये और तीसरे दिन – वह अनेग सुगंधित फलों से सुशोभित हो उठा।
माली ने सबसे लाल सेब तोड़ा और उसे बादशाह के पास ले जा रहा था कि उसे रास्ते में वज़ीर ने रोक लिया। उसने हाथ से सेब ले जाने के लिए माली को फटकारा और सोने की थाली लाने को कहा। बूढ़ा चला गया, पर इस बीच वज़ीर ने फल पर विष मल दिया और माली को लौटने तक प्रतीक्षा करके उसके साथ बादशाह के सामने उपस्थित हुआ। माली ने अद्भुत वृक्ष के बारे में बताया और सेबवाली थाली मेज़ पर रखकर चला गया। पर वज़ीर बोला:
”हुजूरे आलाम, यह सेब देखने में तो सुंदर है, पर सुंदरता प्राय: भ्रामक होती है। मुझे संदेह है कि सेब विषैला है। आप कारागार में किसी हत्यारे को, जिसे प्राण-दण्ड सुनाया गया हो, यहॉं लाने की आज्ञा दीजिये और आपसे पहले उसे सेब का एक टुकड़ा चख लेने दीजिये।”
बादशा ने वज़ीर की सलाह मान ली। जंजीरों में जकड़े डाकू को वहॉं लाया गया और उसे सेब का टुकड़ा खाने को बाध्य किया गया और पल भर में वह व्यक्ति मृत पड़ा था।
Bharat Ki Lok Kathayen in Hindi with Moral
बादशाह क्रोधोन्मत्त हो उठा। वह लपककर पासवाले कमरे में गया और उसने तोते को पिंजरे में से खींचकर उसकी गरदन मरोड़ दी।
कुछ समय पश्चात बादशाह को स्वयं यह सेब का वृक्ष देखने की इच्छा हुई। वह बाग़ में निकलकर बागवान को आवाज देने लगा। उसके पास एक सुगठित शरीर व सुंदर चेहरे वाला युवक भागा आया।
”तुम कौन हो?” बादशाह ने पूछा।
”मैं आपका माली हूँ, जहांपनाह।”
”लेकिन मेरा माली तो बिलकुल बुड्ढा था!” बादशाह हो आश्चर्य हुआ।
”वह मैं ही हूँ,” सुंदर युवक ने कहा। ”आपने जब तोते को मार डाला, तो मैंने सोचा कि मैं भी आपके कोप से नहीं बच सकूँगा। तब व्यर्थ के कष्ट न भोगने के लिए मैंने सेब खाकर आत्म-हत्या करने का निर्णय लिया। मैंने एक सेब तोड़कर थोड़ा-सा दांत से काटा कि तत्क्षण मेरा यौवन लौट आया।”
आश्चर्यचकित बादशाह ने, जैसे कोई सपना देख रहा हो, अद्भुत वृक्ष के पास जाकर सेब तोड़ा और खा लिया। उसे अपने सारे शरीर में अनिर्वचनीय सुख की अनुभूति हुई और उसने आपने को फिर वैसा ही युवा और बलशाली महसूस किया जैसा कि वह अठारह वर्ष की आयु में था।
तभी उसकी समझ में आया कि उसने वफ़ादर तोते को व्यर्थ मारा था, वह दु:ख और पश्चाताप के मारे रो पड़ा, पर अब देर हो चुकी थी: शासक प्राण ले तो सकते हैं, पर प्राण लौटने का सामर्थ्य उनमें नहीं होता।”
बड़ा भाई मौन हो गया। खान गहन चिन्तन में डूबा निश्चल बैठा रहा। फिर उसने मझले भाई को संकेत से बोलने का आदेश दिया। और वह कहने लगा:
”जहांपनाह, मैं भी आपको एक ऐसी ही कथा सुनाना चाहता हूँ। यह घटना भी बहुत दिन पहले घटी थी, पर दूसरे देश में और दूसरे बादशाह के साथ। उस बादशाह को बचपन से ही शिकार का शैंक़ था। वह अपने तेज़ घोड़े पर जंगल में कई दिनों और महीनों तक वन्य पशु-पक्षियों का पीछा किया करता था। बादशाह का एक चहैता उक़ाब था, जिसका जैसा उक़ाब न तो उससे पहले किसी शिकारी के पास था और न ही उसके बाद किसी के पास हुआ।
एक बार बादशाह एक हिरन का पीछा करते-करते निर्जन जंगल में पहुँच गया। सूरज निर्ममतापूर्वक तप रहा था, कहीं पानी नहीं था, बादशाह को बहुत तेज़ प्यास लगी थी। अचानक उसे एक चट्टान नज़र आ गयी, जिसमें से पतली धारा में एक चश्मा फूट रहा था। बादशाह ने सोने का प्याला निकालकर उसमें पानी भरा और पीना ही चाहा था कि एकाएक उक़ाब ने झपट्टा मारा और सारा पानी बिखेर दिया।
बादशाह क्रद्ध हो उठा और उसने उक़ाब पर चिल्लाकर फिर पानी भरा। किन्तु उक़ाब ने फिर झपट्टा मार अपने सीने से बादशाह के हाथ से प्याला गिरा दिया। बादशाह ने क्रोध में खाली प्याला उठाकर उक़ाब के सिर पर दे मारा। उक़ाब मरकर ढेर हो गया। बादशाह चश्में के पास गया और भय के मारे जड़वत् रह गया: चट्टान की दरार में से एक विशाल सांप रेंगता बाहर निकल आया। चट्टान से जल की नहीं, घातक विष की धार निकल रही थी। बादशाह उछलकर काठी पर सवार हुआ और वहॉं से सरपट दूर भाग चला। किन्तु उस दिन से वह समझ गया कि सतर्कता उतावली से श्रेष्ठ होती है, कि उच्चपद सांघातिक भूलों से नहीं बचा सकता, कि बुरे और भले में अंतर बुद्धिमान ही कर सकता है, न कि शक्तिशाली।
”बहुत हो चुका! चुप हो जा!” बादशाह चिल्लाया और भयानक ढंग से आंखे चमकाता अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ। ”तुम दोनों ने अपने भाई के साथ षड्यंत्र रचाया है, तुम प्रतिशोध से बचने के लिए, उसके और अपने प्राण बचाने की ख़ातिर दुष्ट को निर्दोष सिद्ध करना चाहते हो। तुम्हारे कहने का अर्थ यह है कि मेरे समक्ष वह दोषी नहीं है, बल्कि मैं मूर्ख हूँ और उसके प्रति अन्याय कर रहा हूँ। अगर ऐसा ही है, तो फिर उसने अपने स्वामी के ऊपर तलवार क्यों उठाई?”
”इसका हमें पता नहीं,” भाइयों ने उत्तर दिया। ”आप उसी से पूछ लीजिये।”
”बंदी को हाजिर करो!” खान ने पहरेदारों को आवाज दी।
और तीनों भाईयों में सबसे छोटे को खान और वज़ीरों के सामने ला खड़ा किया गया। युवक को मर्मान्वेषी दृष्टि से घूरते हुए खान ने पूछा:
”बिना कुछ छिपाये सच-सच बताओ, क्योंकि तुम्हें किसी तरह की चालबाजी मृत्यु दण्ड से नहीं बचा सकती- कल रात को तुमने किस इरादे से मेरे पलंग के पास तलवार निकाली थी?”
”आपको मौत से बचाने के लिए, हुजूर,” युवक ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया।
”तुम्हारे अलावा मुझे मौत का खतरा और किस से था?”
”सांप से, जो आपको डसने जा रहा था और जिसे मैंने तलवार से काट दिया।”
”सांप से? तुम झूठ बोल रहे हो! सांप मेरे शयन-कक्ष में आ ही कैसे सकता था?”
खान ने विस्मय से पूछा।
”आपके अत्यधिक अनुभवी वज़ीर, जिन पर आप इतना भरोसा रखते हैं, आपके प्रश्न का उत्तर मुझसे बेहतर ढंग से दे सकते हैं।”
खान लपककर शयन*कक्ष में गया और कुछ समय पश्चात् सिर लटकाये, धीरे-धीरे चलता न्याय-कक्ष में लौट आया। वह डबडबाती आंखों के साथ सबसे छोटे भाई के पास आया और उसे गले लगाकर रुंधे हुए कंठ से बोला:
”मुझे क्षमा कर दो, मेरे विश्वस्त मित्र उद्वारक! अब मुझे सत्य मालूम हो गया है। अपमान के बदले जो चाहो, मांग लो, मैं सबसे समक्ष सौगंध खाकर कहता हूँ कि मैं तुम्हें और तुम्हारे भाइयों को कुछ भी देने से इंनकार नहीं करूँगा।”
युवक ने कहा:
”हम सबको जाने दीजिये, जहांपनाह, अपनी सेवा से मुक्त कर दीजिये। हमें अपना देशाटन जारी रखने दीजिये। हमारी यात्रा अभी समाप्त नहीं हुई है, हमने जीवन की पुस्तक, सबसे ज्ञानवर्द्धक पुस्तक अभी आधी भी नहीं पढ़ी है।”
ऐसी प्रार्थना खान के लिए अप्रत्याशित थी। वह फिर क्रद्ध हो गया, उसका चेहरा तमतमा उठा, पर अब अपना दिया वचन भंग करना असम्भव था।
और तीनों भाई खान को छोड़कर आगे चल दिये।
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