बादशाह और फकीर
एक गांव के लोगों ने उस गांव के सिद्ध फकीर से कहा कि बादशाह तुम्हें बहुत मानता है, उससे कह कर एक मदरसा या स्कूल बनवा दो। उस फकीर ने कहा कि मैंने जीवन में कभी किसी से कुछ नहीं मांगा, किन्तु तुम चाहते हो तो राजा से बात करूंगा। वह फकीर राजधानी गया और बादशाह के द्वार पर सुबह-सुबह पहुंच गया। भीतर जाकर देखा तो बादशाह मस्जिद में घुटने टेके हुए, हाथ फैलाये नमाज पढ़ रहा है।
बादशाह ने नमाज के अंत में कहा कि हे अल्लाह, मुझे और संपत्त्िा दो, मुझे और राज्य दो, मेरी संपत्ति को और बढ़ा दो। इतना सुनते ही फकीर एकदम लौट पड़ा। बादशाह उठा तो उसने फकीर को सीढि़यां उतरते देखा तो वह वहीं से चिल्लाया – ”कैसे आये और लौट चले” ?
फकीर ने कहा कि गलती से आ गया था। मैं समझा था तुम बादशाह हो, परंतु यहां आकर पाया कि तुम भी भिखारी हो। तुम भी अभी मांग ही रहे हो। मैं तुमसे कुछ मांगने आया था, परंतु अब तुम ही मांग रहे हो तो तुमसे मांग कर तुम्हें कष्ट नहीं दूंगा। जिसके खुद के पास ही बहुत कम है, उससे क्या मांगना! अब उसी से मांग लूंगा, जिससे तुम मांग रहे हो, बीच में बिचौलिये को क्यों डालूं?
विद्वता और आचरण
एक राजा के यहॉं विद्वानों का बहुत सम्मान होता था। उसके यहॉं अनेक विद्वान आते-जाते रहते थे। एक व्यक्ति के मन में यह जिज्ञासा पैदा हुई कि विद्वान अपनी विद्वता के कारण सम्मान पाता है अथवा आचरण के कारण ? तभी पंडित जी ने राजा और मंत्री की उपस्थिति में एक स्वर्ण सिक्का उठा कर जेब में रख लिया। दूसरे दिन फिर उसने और स्वर्ण सिक्के उठा कर जेब में रख लिये।
मंत्री ने सोचा कि यदि इसी तरह पंडित जी रोज स्वर्ण सिक्का उठाते रहे तो एक दिन चोरी का आरोप उसी पर लग जायेगा। मंत्री ने राजा को बताया कि आप जिन्हें विद्वान बता कर सम्मान देते हैं, वह स्वर्ण सिक्कों की चोरी करते हैं। राजा ने तुरंत पंडित जी को चोरी की सचा सुना दी। पंडित जी ने कहा- हे महराज, मैंने सिक्कों की चोरी नहीं की है, मैं यह देखना चाहता था कि विद्वान का सम्मान उसके ज्ञान के कारण होता है या आचरण के कारण। इस गुत्थी को सुलझाने के लिये मैंने चोरी का नाटक किया। सदाचार सबसे बड़ा गुण है। सदाचारी को हर क्षेत्र में सम्मान प्राप्त होता है। बेईमान का एक न एक दिन सर्वनाश होता ही है। राजा ने ससम्मान उन्हें मुक्त कर दिया।
सुपात्र व्यक्ति
एक बार एक शिष्य ने अपने गुरू से जानना चाहा- ‘प्रत्येक व्यक्ति में असीमित शक्तियॉं हैं, फिर भी जीवन में वह क्यों गिरता-पड़ता रहता है।’ गुरूजी ने अपना कमण्डल नदी में फेंक दिया और दिखाया कि वह ठीक प्रकार से तैर रहा है। फिर गुरूजी ने कमण्डल की तली में एक छेद कर दिया और दोबारा नदी में फेंक दिया, तब वह डूब गया।
गुरूजी ने इस प्रक्रिया को समझाते हुये इस प्रकार से बताया- असंयम के छेद हो जाने से दुर्गुण घुस जाते हैं और फिर मानव को डुबो देते हैं। गाय का दूध बर्तन की जगह छलनी में दुहा जाये तो दूध जमीन पर गिर जायेगा, गंदगी पैदा करेगा व पीने के लायक नहीं रहेगा। लाभ तभी है, जब दुहने का पात्र बिना छेद का हो। यानी उसमें कोई बुराई न हो।
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