
एक गांव में संत पुरूष के साथ एक चूहा भी रहता था। चूहा धीरे-धीरे संत पुरूष के बहुत करीब हो गया। एक दिन चूहे से संत पुरूष ने कहा – ” हम तुमसे बहुत प्रसन्न हैं, तुम जो भी चाहो, हमसे मांग लो।”
चूहे ने कहा – ” कृपया मुझे शेर बना दीजिये।” संत पुरूष ने अपनी तंत्र साधना से चूहे को शेर बना दिया। शेर बन कर चूहा अति प्रसन्न हुआ और जंगल में जाकर दूसरे छोटे वन प्राणियों को परेशान करने लगा।
जंगल के वन प्राणी शेर से बुहत दु:खी रहते थे। एक दिन वही शेर संत पुरूष की कुटिया में आ गया और उसने संत पुरूष को खाने की सोची। यह देखकर संत पुरूष को बड़ा आश्चर्य तथा दु:ख भी हुआ। उसने अपने मंत्रों द्वारा शेर को पुन: चूहा बना दिया।
लालच
मीरपुर गॉंव में अनिल अपनी दादी के साथ रहता था। दादी उसको बहुत प्यार करती थी और रोज सोते समय उसे तरह-तरह की कहानियॉं सुनाती रहती थी। उसे ईमानदारी से रहने की शिक्षा देती थी।
एक बार अनिल जंगल में लकडि़यॉं बिनने गया। उसे वहॉं पर एक स्थान पर बहुत सारे चमगादड़ दिखे। वह उन्हें देखकर डर गया और भागता हुआ चला गया। उसे एक झोपड़ी दिखी। वह उस ओर भागा और उसकी छत पर चढ़ गया। उस झोपड़ी की छत बहुत कमजोर थी। वह धप से छत से नीचे झोपड़ी के अंदर गिर गया। वहॉं वह बहुत सारे लोग बैठे थे जो अजनबी को दख कर डर गये। उस झोपड़ी में बहुत सारा सोना रखा था। उस सोने की पोल न खुल जाये इसलिए उन लोगों ने कहा कि अजनबी, तुम इस झोपड़ी से जब चाहो, एक टुकड़ा सोना ले जा सकते हो।
इस प्रकार अनिल रोज उस झोपड़ी में आता और एक टुकड़ा सोना उठा कर ले जाता। जब जाता तो उसे वहॉं उतना ही सोना दिखायी देता। एक बार उसने सोचा कि रोज-रोज आने से तो अच्छा है कि मैं एक बार में सारा सोना ले जाऊँ। उसके मन में लालच आ गया। उसने सारा सोना एक बोरी में भरा और उसे ले जाने लगा। कुछ ही देर में वह सोना लेकर अपने गॉंव पहुंच गया और बोरी खोल कर सोना दादी को दिखाने लगा।
अचानक वह सब सोना पत्थर हो गया। इस पर दादी ने उससे कहा कि तुमने लालच किया, इस कारण यह परिणाम हुआ। लालच करना बुरी बला है। दादी के कहने पर फिर वह बोरी उठा कर उसी झोपड़ी में रख आया और कहते है कि वह फिर साना हो गयी।
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