पीपल व नीम!
आपने अक्सर देखा होगा कि जंगल के किसी विशाल पेड़ पर कोई अन्य छोटा पेड़ उग आता है। इसका कारण है कि पक्षियों द्वारा प्राय: विभिन्न पेड़ों के बीज दूसरे पेड़ पर डाल दिये जाते हैं, जहां धीरे-धीरे बीच एक छोटे पेड़ का रूप ले लेता है। यह कथा भी इसी प्रकार से है।
एक चिडि़या ने नीम का बीज अपनी चोंच में लाकर पीपल के तने पर डाल दिया। बीज ने नयी जगह पाकर पौधे का आकार ले लिया। धीरे-धीरे पीपल की छाया में छोटे नीम का पेड़ बढ़ने लगा, परंतु दूसरे पर निर्भर होने के कारण नीम के पेड़ का विकास बहुत कम हुआ। एक दिन नीम के छोटे से पेड़ को अपना आकार न बढ़ने के कारण गुस्सा आ गया।
उसने पीपल से गुस्से से कहा – ”तू स्वयं तो आकाश तक पहुंच रहा है, परंतु मुझे बढ़ने नहीं दे रहा है। ”पीपल ने हंस कर कहा – दोस्त, औरों की दया पर इतना ही विकास हो सकता है। इससे ज्यादा विकास करना है तो अपनी नींव स्वयं बनाओ।”
”एक दिन तेज आंधी आयी, पीपल के वृक्ष का कुछ नहीं हुआ, परंतु नीम का पौधा नीचे गिर पड़ा। एक राहगीर उधर से निकला और उसने कहा, किसी बड़े वृक्ष के नीचे छोटे पौधों का भविष्य सर्वथा खतरे में रहता है। जो लोग औरों के साये में बढ़ने की आशा रखते हैं, अनका अंत हमेशा दु:खदायी होता है।
ईश्वर को खत
एक व्यक्ति पोस्ट आफिस में कार्य करता था, जहॉं उसे ऐसे पत्रों को भी देखना होता है, जिन पर सही पता नहीं लिखा होता था। उसे एक पत्र मिला जो ईश्वर को संबोधित था। लोगों को बहुत उत्सुकता हुई और उन्होंने पत्र खोल कर पढ़ा।
पत्र में लिखा था – ‘ हे ईश्वर! मैं 85 वर्ष का बुजुर्ग विधुर हूँ, जो थोड़ी सी पेंशन पर निर्भर है। कल किसी ने मेरा पर्स चुरा लिया, जिसमें सौ रुपये रखे थे। अब मेरे पास कुछ भी नहीं है। मेरे परिवार में भी कोई नहीं है। मैंने अपने मित्र को खाने पर बुलाया है। आप ही हमारी अंतिम आशा है। पत्र पढ़कर पोस्ट आफिस में सभी लोगें को पत्र प्रेषक से सहानुभूति व दया हो गयी। सभी कर्मियों ने चंदा इकट्ठा किया और उसे बुजुर्ग को भेज दिया। पोस्ट आफिस के सभी कर्मियों को उसकी मदद करते हुए अच्छा लगा।’
कु दिनों के बाद ईश्वर के पते पर बुजुर्ग द्वारा पुन: पत्र भेजा गया, जिसमें उसने ईश्वर की उदारता की बहुत प्रशंसा की तथा बहुत धन्यवाद भी दिया, परंतु यह भी कहा कि मेरे गुम हुये रुपये में चार रुपये आपने कम भेजे हैं। लगता है कि घटिया किस्म के लोग आपके यहॉं काम करते हैं।
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