एक गांव के लोगों ने उस गांव के सिद्ध फकीर से कहा कि बादशाह तुम्हें बहुत मानता है, उससे कह कर एक मदरसा या स्कूल बनवा दो। उस फकीर ने कहा कि मैंने जीवन में कभी किसी से कुछ नहीं मांगा, किन्तु तुम चाहते हो तो राजा से बात करूंगा। वह फकीर राजधानी गया और बादशाह के द्वार पर सुबह-सुबह पहुंच गया। भीतर जाकर देखा तो बादशाह मस्जिद में घुटने टेके हुए, हाथ फैलाये नमाज पढ़ रहा है।
बादशाह ने नमाज के अंत में कहा कि हे अल्लाह, मुझे और संपत्त्िा दो, मुझे और राज्य दो, मेरी संपत्ति को और बढ़ा दो। इतना सुनते ही फकीर एकदम लौट पड़ा। बादशाह उठा तो उसने फकीर को सीढि़यां उतरते देखा तो वह वहीं से चिल्लाया – ”कैसे आये और लौट चले” ?
फकीर ने कहा कि गलती से आ गया था। मैं समझा था तुम बादशाह हो, परंतु यहां आकर पाया कि तुम भी भिखारी हो। तुम भी अभी मांग ही रहे हो। मैं तुमसे कुछ मांगने आया था, परंतु अब तुम ही मांग रहे हो तो तुमसे मांग कर तुम्हें कष्ट नहीं दूंगा। जिसके खुद के पास ही बहुत कम है, उससे क्या मांगना! अब उसी से मांग लूंगा, जिससे तुम मांग रहे हो, बीच में बिचौलिये को क्यों डालूं?
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