अद्भुत बाग! – लोक कथा हिंदी में ( Folk Tale in Hindi )

बहुत पहले दो ग़रीब दोस्‍त थे- असन और हसेन। असन जमीन के छोटे से टुकड़े पर खेती करता था। हसेन अपना भेड़ों का छोटा सा रेवड़ चराता था। वे इसी तरह रूखा-सूखा खाने लायक कमाकर गुजर-बसर करते थे। दोनों मित्र काफी पहले विधुर हो चुके थे, लेकिन असन की एक रूपवती व स्‍नेहमयी बेटी थी। उसकी एकमात्र दिलासा और हसेन का एक बलवान व आज्ञाकारी बेटा था- उसकी एकमात्र आशा।

एक बार बंसत में जब असन अपने खेत में बोबाई करने की तैयारी कर रहा था, हसेन पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा। स्‍तेपी में महामारी फैल गयी और बेचारे की सारी भेड़ें मर गयी।

हसेन फूट-फूटकर रोता, अपने बेटे के कंधे पर हाथ रखे अपने मित्र के पास आया और बोला-
”असन, मैं तुमसे विदा लेने आया हूँ। मेरी सारी भेड़ें मर गयी, उनके बिना मेरा भी भूखों मरना निश्चित है।”

यह सुनते ही असन ने बूढे गड़रिये को सीने से लगा लिया और बोला-

”मेरे दोस्‍त, मेरा आधा दिल तुम्‍हारा है, तुम मेरा आधा खोत भी ले लो, इंकार मत करना। चिन्‍ता मत करो, कुदाल उठाओ और गीत गुनगुनाते हुए काम में जुट जाओ।”

उसी दिन से हसेन भी किसान हो गया।

ऐसे ही कई बरस बीत गये। एक बार हसेन जब अपना खेत जोत रहा था, अचानक उसका कुदाल किसी चीज़ से टकरा गया और अजीब-सी खनखनाहट हुई। वह जल्‍दी-जल्दी मिट्टी हटाने लगा और शीघ्र ही उसे सोने की मुहरों से ठसाठस भरा एक पुराना बेग नजर आ गया।

हसेन खुशी से फूला न समाता बेग उठाकर अपने दोस्‍त की झोपड़ी की तरफ दौड़ा।

”खुशियॉं मनाओ, असन,” वह भागते-भागते चिल्ला रहा था, , ”खुशियॉं मनाओ! तुम्‍हारी कि़स्‍मत खुल गयी! मैंने तुम्‍हारी जमीन में से सोने की मुहरों से भरा बेग निकाल लिया। अब तुम सदा के लिए अभाव से मुक्त हो गये”

असन ने सौजन्‍यपूर्ण मुस्‍कान से उसका स्‍वागत कर जवाब दिया:-

” मुझे मालूम है, तुम कितने नि: स्‍वार्थी हो, हसेन, लेकिन यह सोना तो तुम्‍हारा ही है, मेरा नहीं। क्योंकि यह खजाना तुम्‍हें अपनी जमीन में मिला है।”

मुझे मालूम है, तुम कितने उदार हो, असन, हसेन ने विरोध किया, पर जमीन भेंट करके तुमने मुझे वह सब तो भेंट नहीे किया न, जो उसके गर्भ में छिपा है।

प्‍यारे दोस्‍त, असन बोला, धरती में छिपी संपदा उसी की होनी चाहिए, जो उसे अपने पसीने से सींचता है।

वे दोनों काफ़ी देर तक बहस करते रहे और दोनों ही खजाने को लेने से साफ इनकार करते रहे। अंत में असन बोला-

”चलो, इस मामले को खतम कर दें, हसेन। तुम्‍हारे बेटा है, और मेरे-बेटी। वे अरसे से एक दूसरे से प्रेम करते हैं। चलो, उन दोनों की शादी कर देते हैं और यह मिला हुआ सोना उन्‍हें दे देते हैं। खुदा करे, हमारे बच्‍चों को गरीबी की याद भी न रहे।”

मित्रों ने जब अपने निर्णय के बारे में बच्‍चों को बताया, तो उनके आनंद का पारापार न रहा। उसी दिन धूमधाम से उनकी शादी कर दी गयी। शादी की दावत रात देर गये ख़तम हुई।

अगले दिन पौ फटने ही लगी थी कि नवविवाहित अपने पिताओं के पास आ पहुँचे। उनके चेहरों पर चिन्‍ता छायी थी, और वे हाथों में सोने की मुहरों से भरा बेग उठाये थे।

”क्‍या हुआ, बच्‍चों ?” असन और हसेन घबरा उठे। ”ऐसी क्‍या मुसीबत आ गयी, जो तुम इतने तड़के उठ गये?”

हम आपसे यह कहने आये है, नवविवाहितों ने उत्तर दिया, कि संतान को ऐसी कोई वस्‍तु अपने पास रखना शोभा नहीं देता, जिसे उनके पिताओं ने ठुकरा दिया हो। यह सोना हमारे किस काम का ? हमारा प्रेम संसार के सारे ख़जानों से अधिक मूल्‍यवान है।

और उन्‍होंने बेग झोपड़ी के बीचोंबीच रख दिया…

तब उनमें फिर इस बारे में बहस छिड़ गयी कि उस खजाने का क्‍या किया जाये, और यह बहस तब तक चलती रही, जब तक कि उन चारों को उस ज्ञानी से सलाह करने की बात न सूझी, जो अपनी ईमानदारी और न्‍यायप्रियता के लिए विख्‍यात था।

वे स्‍तेपी में कई दिनों तक चलते रहे और अंत में ज्ञानी के तम्‍बू-घर के पास पहुँच गये। तंबू-घर स्‍तेपी के बीचोंबीच अकेला खड़ा था और काला पड़ा व फटा-पुराना था।

यात्री आज्ञा लेकर सिर नवाये तंबू-घर के भीतर गये।

ज्ञानी नमदे के फटे-पुराने टुकड़े पर बैठा था। उसकी अगल-बगल उसके चार शिष्‍य दो-दो करके बैठे थे।

आप किस काम से मेरे पास आये हैं, सज्जनों? ज्ञानी ने आगंतुकों से पूछा।

उन्होंने उसे अपनी समस्‍या के बारे में बताया। उसकी बातें सुनकर ज्ञानी काफ़ी देर तक मौन रहा, और फिर अपने सबसे बड़े शिष्‍य से पूछा:-

बताओ, अगर तुम मेरी जगह होते, तो इन लोगों के विवाद का निबटारा कैसे करते?

ज्‍येष्‍ठ शिष्‍य ने उत्तर दिया:- मैं तो इन्‍हें सोना बादशाह को सौंप देने को कहता, क्योंकि वह धरती की सारी सम्पदा का स्‍वामी है।

ज्ञानी की भौंहें सिकुड़ गयी। उसने दूसरे शिष्‍य से पूछा:-

और अगर तुम मेरी जहग होते, तो क्‍या फै़सला करते?

दूसरे शिष्‍य ने उत्तर दिया:-

मैं तो सोना खुद ले लेता, क्योंकि वादी और प्रतिवादी जिस वस्‍तु को लेने से इंकार करते हैं, वह न्‍यायानुसार क़ाजी की हो जाती है।

ज्ञानी की भौंहे और अधिक सिकुड गयी, इसके बावजूद- उसने वैसे की शांतिपूर्वक तीसरे शिष्‍य से पूछा:-

तुम बताओ हमें, इस समस्‍या का समाधान तुम कैसे करते?

अगर यह सोना किसी का नहीं है और सभी इसे लेने से इंकार करते हैं, तो मैं इसे वापस ज़मीन में गाड़ देने का आदेश दे देता।

ज्ञानी बिलकुल उदास हो गया और उसने अपने चौथे व सबसे छोटे शिष्‍य से पूछा:-

और तुम क्‍या कहते हो, मेरे बच्‍चे?

उस्‍ताद, छोटे शिष्‍य ने उत्तर दिया, आप मुझ पर गुस्‍सा न हों और मेरे भोलेपन के लिए मुझे क्षमा कर दें, लेकिन मेरी अंतरात्‍मा ने निर्णय इस प्रकार दिया है:- मैं इस सोने से वीरान स्‍तेपी में एक विशाल छायादार बाग़ लगा देता, जिससे उसमें सारे थके-हारे ग़रीब लोग आराम कर सकें और उसके फलों का मज़ा ले सकें।

यह सुनते ही ज्ञानी उठ खड़ा हुआ, उसकी आंखे डबडबा आयी और उसने युवक हो गले लगा लिया।

जो कहते है:- छोटा यदि बुद्धिमान हो, तो उसे बृद्ध की तरह सम्मान दीजिये – उनका कहना बिलकुल ठीक है। तुम्‍हारा निर्णय न्‍यायसंगत है, मेरे बच्‍चे! तुम यह सोना लेकर राजधानी चले जाओ, वहॉं उत्तम बीज खरीदो और लौटकर वैसा ही बाग लगाओं, जिसकी चर्चा तुमने की है। ताकि निर्धनों में तुम्‍हारा और इन उदार व्‍याक्तियों का नाम सदा अमर रहे, जिन्‍हें इतनी सम्‍पदा का बिलकुल भी लालच नहीं हुआ।

युवक ने फौरन मुहरें चमड़े के थैले में भरी और उसे कंधे पर लादकर सफ़र पर रवाना हो गया।

काफ़ी दिनों तक स्‍तेपी में भटकने के बाद अंत: वह राजधानी में सकुशल पहुँच गया। शहर में पहुँचते ही वह फ़ौरन बाजार रवाना हो गया और वहॉं फलों के बीजों के व्‍यापारियों को खोजने लगा।

वह दोपहर तक दुकानों के आगे रखी अद्भुत वस्‍तुओं व चटकीले कपड़ों को देखता घूमता रहा। अचानक उसे अपने पीछे से डफली की आवाज और किसी की मर्मभेदी चीखें सुनाई दी। युवक ने मुड़कर देखा, बाजार के चौक से आश्‍चर्यजनक बोझ से लदा कारवां गुज़र रहा है- ऊंटों पर माल की गांठों के बजाय पहाड़ों, जंगलों, स्‍तेपी तथा रेगिस्‍तान में रहने वाले नाना प्रकार के जीवित पक्षी लदे थे। उनके पंजे बांधे हुए थे, मुडे-तुड़े औश्र छितरे हुए पंख चिथड़ों की तरह लटक रहे थे। कारवॉं के ऊपर रंगबिरंगे परों के घने बादल मंडरा रहे थे। ऊंटों के हर बार क़दम रखने पर चिडि़यों के सिर उनके पहलुओं से टकरा रहो थे, और उनकी खुली चोंचों से दर्दभरी चीखें निकल रही थी। युवक का हृदय सहानुभूति से द्रवित हो उठा। वह कुतूहलियों की भीड़ को चीरकर कारवां के सरदार के पास पहुँचा और उसने सिर नवाकर उससे नम्रतापूर्वक पूछा:-

”साहब, इन सुंदर पक्षियों को इतने भयानक कष्‍ट देने का हुक्‍म आपको किसने दिया है, और आप इन्‍हें लेकर कहॉं जा रहे हैं ?”

कारवां के सरदार ने उत्तर दिया:-

”हम खान के महल की ओर जा रहे हैं। ये चिडि़यां खान के खाने के लिए हैं। खान इनके बदले में हमें पॉंच सौ अशरफि़यॉं देगा।”

”अगर मैं आपको उससे दुगुना सोना दूँ, तो क्‍या आप इन चिडि़यों को छोड़ देंगे?”

कारवां के सरदार ने व्‍यंग्‍यमिश्रित मुस्‍कान के साथ उसकी ओर दृष्टि डाली और आगे चल दिया।

तब युवक ने कंधे से थैला नीचे पटककर कारवां के सरदार के सामने उसका मुंह खोल दिया। कारवां का सरदार स्‍तम्भित हाकर रुक गया और यह समझ में आने पर कि उससे कितना धन दिया जा रहा है, उसने ऊंटवानों को पक्षियों को मुक्‍त करने का आदेश दे दिया।

आज़ादी महसूस करते ही चिडि़या एक साथ आकाश में उड़ गयीं, उनकी संख्‍या इतनी अधिक थी कि क्षण भर में दिन रात में बदल गया और उनके पंखों के फड़फड़ाने से धरती पर अंधड़ आ गया।

युवक काफ़ी देर तक उड़कर दूर जाते पक्षियों को देखता रहा और जब वे आंखों से ओझल हो गये, वह चमड़े का खाली थैला उठाकर वापस घर रवाना हो गया। उसका दिल बाग-बाग हो उठा और वह खुशी से क़दम बढ़ाता, गीत गाता चलने लगा।

किन्‍तु ज्‍यों-ज्‍यों वह अपने घर के निकट पहुँचता गया, त्‍यों-त्‍यों कष्‍टप्रद चिन्‍ता उस पर हावी होती गयी और पश्‍चाताप की भावना उसके दिल को कचोटने लगी।

”मुझे अपनी झक में दूसरे के धन को मनमाने ढंग से खर्च करने का अधिकार किसने दिया? क्या खुद मैंने ही ग़रीबों के लिए बाग लगाने का वचन नहीं दिया था? अब मैं उस्‍ताद को, उन नेक लोगों को क्‍या जवाब दूँगा, जो मेरे बीज लेकर लौटने का इंतजार कर रहें हैं?, युवक सोच-सोचकर दु:खी होने लगा। शनै: शनै: निराशा उस पर पूरी तरह हावी हो गयी और वह जमीन पर गिरकर रोता-बिलखता अपनी मृत्‍यु की कामना करने लगा। आंसुओं व दु:ख के कारण वह इतना शिथिल हो गया कि अपनी पलकों पर नियंत्रण खो बैठा और उसे झपकी आ गयी।

… और उसे एक सपना दिखाई दिया: न जाने कहॉं से एक संदर रंग बिरंगी चिडि़या आकर उसके सीने पर बैठ गयी और अनूठे स्‍वर में कूजने लगी:-

”ओ भले युवक! अपना दु:ख भूल जाओ! स्‍वतंत्र पक्षी तुम्‍हें सोना तो नहीं लौटा सकते, पर तुम्‍हारी कृपा का प्रतिदान वे किसी न किसी रूप में करेंगे। आंखें खोलो, जल्‍दी से आंखे खोलो!…

युवक ने आंखे खोली और आश्‍चर्यचकित रह गया:- समस्‍त विस्‍तृत स्‍तेपी में चारों ओर दुनियां भर की चिडि़याँ चहक रही थी।

पक्षी अपने पंजों से जमीन में छोटे-छोटे गढ्डे खोद रहे थे और उनमें अपनी चोंचों से बीच डालकर फिर पंखों से जल्‍दी-जल्दी मिट्टी भर रहे थे।

युवक किंचित् हिला तो पक्षी तत्‍क्षण आसमान में उड़ गये। और फिर दिन रात में बदल गया, उनके पंखों की फड़फडाहट से जमीन पर अंधड़ आ गया… जब सब शांत हो गया, चिडि़यों के खोदे प्रत्‍येक गढ्डे में से एकाएक हरे अंकुर फूटने लगे, वे उत्तरोउत्तर ऊँचे होते गये और थोड़ी देर बाद भव्‍य, दमकती पत्तियों व सुनहले फलों से सुसज्जित शाखी वृक्षों में परिवर्तित हो गये।

शायद हिन्‍दुस्‍तान के बादशाह के पास भी इतना घना और लम्‍बा-चौड़ा बाग नहीं होगा। तृण-मणि सरीखी छाल से ढके सेब के भव्‍य वृक्षों को गिन पाना असम्‍भव था। सुडौल तनों के बीच-बीच में अंगूर के बड़े-बड़े गुच्छों वाली अंगूर-वाटिकाएं, खूबानी के भुरमुट तथा घनी घास व रंग बिरंगे फूलों से भरे हरे-भरे मैदान दिखाई दे रहे थे। सर्वत्र कलकल करते बहते शीतल जल के नाले थे, जिनके तलों में हीरे-जवाहरात जड़े थे। और वृक्षों की डालों पर युवक को सपने में दिखाई देने वाली चिडि़या जैसी सुंदर और मुखर चिडि़यां निरन्‍तर फुदक रही थी, कलरव कर रही थी।
युवक ने विस्‍मय से अगल-बगल देखा, किन्‍तु उसे किसी तरह विश्‍वास ही नहीं आ रहा था कि वह बाग को सपने में नहीं देख रहा है। उसने इसकी जांच करने के लिए जोर से आवाज दी और उसे अपने स्‍वर की कई गुना प्रवर्द्धित प्रतिध्‍वनि स्‍पष्‍ट सुनाई दी। दृश्‍य लुप्‍त नहीं हुआ। तब वह खुशी से विहृल हुआ ज्ञानी के तम्‍बू-घर की ओर दौड़ पड़ा।

कुछ ही समय में अद्भुत बाग की ख़बर सारी स्‍तेपी में फैल गयी। सबसे पहले ”श्‍वेत अस्थि” घुडसवार अपने तेज क़दमबाजों पर बाग की तरफ़ सरपट लपके। लेकिन वन के पास पहुँचते ही उनके आगे सात ताले लगे लोहे की फाटकोंवाली ऊँची दीवार खड़ी हो गयी। तब वे अपनी-अपनी नक्‍काशीदार काठियों पर खड़े होकर दीवार के ऊपर से सुनहले सेब तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाने लगे। किन्‍तु उन में से जिसने भी फलों को स्‍वर्श किया, अचानक अशक्‍त हो जमीन पर गिरकर ढेर हो गया। यह देखते ही घुड़सवार घोड़े मोड़कर सरपट अपने-अपने गांव भाग गये।

उनके जाने के बाद हर कोने से निर्धनों की भीड़ आने लगी। उनके निकट आते ही लोहे के फाटकों पर लगे ताले गिर पड़े और वे पूरे खुल गये। बाग पुरुषों, नारियों, वृद्धों व बालकों से भर गया। वे चटकीले फूलों पर चलते रहे, लेकिन फूल नहीं मुरझाये, वे निर्मल जल के नालों का पानी पीते रहे, पर पानी गंदा नहीं हुआ, वे वृक्षों से फल तोड़ते रहे, पर फल कम ही नहीं हो रहे थे। बाग में दिन भर डफलियों की आवाजें, हंसी-मजाक गूंजते रहे।

और जब रात आयी और धरती पर अंधेरा छा गया, सेबों से मंद प्रकाश फूटने लगा और पक्षी समवेत स्‍वर में शांत व मधुर गीत गाने लगे। तब ग़रीब लोग वृक्षों तले सुगंधित घास पर लेट गये और प्रगाढ़ निद्रा की गोद में लीन हो गये। इतना संतोष और सुख उन्‍हें अपने जीवन में पहली बार मिला था।

 


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