अनागतवती चिन्तामभायां करोति य:।
स एव पाण्डुरः शेते सोमशर्मपिता यथा।।हवाई किले मत बाँधो।
एक नगर में कोई कंजूस ब्राह्मण रहता था। उसने भिक्षा से प्राप्त सत्तुओं में से थोड़े-से खाकर शेष से एक घड़ा भर लिया था। उस घड़े को उसने रस्सी से बाँध खूँटी से सरका दिया और उसके नीचे पास ही खटिया उस पर लेटे-लेटे विचित्र सपने देखने लगा और कल्पना के हवाई घोड़े दौड़ाने लगा।
उसने सोचा कि देश में अकाल पड़ेगा तो इन सत्तुओं का मूल्य सौ रुपये हो जाएगा। उन सौ रुपयों से मैं दो बकरियाँ लूँगा। छः महीने में उन दो बकरियों से कई बकरियाँ बन जाएँगी। उन्हें बेचकर एक गाय लूँगा। गायों के बाद भैंस लूँगा और फिर घोड़े ले लूँगा। घोड़े को महंगे दामों में बेचकर मेरे पास बहुत-सा सोना हो जाएगा।
सोना बेचकर मैं बहुत बड़ा घर बनाऊँगा। मेरी सम्पत्ति को देखकर कोई भी धनी व्यक्ति अपनी सुरूपवती कन्या का विवाह मुझसे कर देगा। वह मेरी पत्नी बनेगी। उससे जो पुत्र होगा उसका नाम में सोमशर्मा रखूंगा।
जब वह घुटनों के बल चलना सीख जाएगा, तो मैं पुस्तक लेकर घुड़शाल के पीछे की दीवार पर बैठा हुआ उसकी बाल लीलाएँ देखूंगा। उसके बाद सोमशर्मा मुझे देखकर माँ की गोद से उतरेगा और मेरी ओर आएगा, तो में उसकी माँ को क्रोध से कहूंगा- अपने बच्चे को संभाल।
वह गृहकार्य में व्यस्त होगी, इसलिए मेरा वचन न सुन सकेगी, तब मैं उठकर उसे पैर की ठोकर से मारूँगा। – यह सोचते ही उसका पैर ठोकर मारने के लिए ऊपर उठा। वह पैर सत्तू भरे घड़े पर लगा। घड़ा गिरकर चकनाचूर हो गया। कंजूस ब्राह्मण के स्वप्न भी साथ ही चकनाचूर हो गए।
स्वर्ण-सिद्धि ने कहा:- यह बात तो सच है, किन्तु उसका भी क्या दोष लोभ वश सभी अपने कर्मों का फल नहीं देख पाते और उनको वही फल मिलता है जो, चन्द्रभूपति को मिला था।
चक्रधर ने पूछा:- यह कैसे हुआ?
स्वर्णसिद्धि ने तब यह कथा सुनाई:- लोभ बुद्धि पर पर्दा डाल देता है!
आगें पढें:- लोभ बुद्धि पर पर्दा डाल देता है! (बंदरों और राजा की कहानी)
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