सीख न दीजे बानरा – चिड़िया और मूर्ख बंदर की कहानी!

Chidiya Aur Murkh Bandar Ki Panchatantra Kahani

उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये।

उपदेश से मूर्खों का क्रोध और भी भडक उठता है, शान्त नहीं होता।

किसी पर्वत के एक भाग में बन्दरों का दल रहता था। एक दिन हेमन्त ऋतु के दिनों में वहां इतनी बर्फ पड़ी और ऐसी हिम वर्षा हुई कि बंदर सर्दी के मारे ठिठुर गए। कुछ बंदर लाल फलों को ही अग्नि कण समझकर उन्हें फूंके मार-मार कर सुलगाने की कोशिश करने लगे।

सूचीमुख पक्षी ने तब उन्हें वृथा प्रयत्न से रोकते हुए कहा- ये आग के शोले नहीं, गुंजाफल हैं।
इन्हें सुलगाने की व्यर्थ चिंता क्यों करते हो? अच्छा यह है कि कहीं गुफा-कंदरा में चले जाओ। तभी सर्दी से रक्षा होगी।

बंदरों में एक बूढ़ा बंदर भी था। उसने कहा- सूचीमुख इनको उपदेश ना दें।
यह मूर्ख हैं। तेरे उपदेश को नहीं मानेंगे, बल्कि तुझे मार डालेंगे।

वह बंदर कह ही रहा था कि एक बंदर ने सूचीमुख को उसके पंखों से पकड़कर झकझोर दिया।

इसलिए मैं कहता हूं कि मूर्ख को उपदेश देकर हम उसे शांत नहीं करते, बल्कि और भी भड़काते हैं।
जिस तिस को उपदेश देना स्वयं मूर्खता है। मूर्ख बंदर ने उपदेश देने वाली चिड़िया का घोंसला तोड़ दिया था।

दमनक ने पूछा कैसे?

करटक ने तब बंदर और चिड़िया की यह कहानी सुनाई: शिक्षा का पात्र

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