नामकरण संस्कार के संबंध में स्मृति संग्रह में लिखा है- आयुर्वर्थोऽभिवृद्धिश्च सिद्धिव्र्व्यवहृतेस्तथा । नामकर्मफलं त्वेतत् समुद्दिष्टं मनीषिभिः ॥ अर्थात् नामकरण संस्कार से आयु तथा तेज की वृद्धि होती है एवं लौकिक व्यवहार में नाम की प्रसिद्धि से व्यक्ति का अलग अस्तित्त्व बनता है। इस संस्कार को प्रायः दस दिन के सूतक की निवृत्ति के बाद […]
सीमंतोन्नयन संस्कार क्यों ? Why Simantonnayana sanskar?
यह संस्कार गर्भ के चौथे, छठे या आठवें मास में किया जाता है, जिसका उद्देश्य गर्भ की शुद्धि और माता को श्रेष्ठ चिंतन करने की प्रेरणा प्रदान करना होता है। उल्लेखनीय है कि गर्भ में चौथे माह के बाद शिशु के अंग-प्रत्यंग, हृदय आदि बन जाते हैं और उनमें चेतना आने लगती है, जिससे बच्चे […]
जानें- पुंसवन संस्कार क्या है? कब होता है और क्यों होता है?
गर्भ जब दो-तीन महीने का होता है अथवा स्त्री में गर्भ के चिह स्पष्ट हो जाते हैं, तब गर्भस्थ शिशु के समुचित विकास के लिए पुंसवन संस्कार किया जाता है। प्रायः तीसरे महीने से स्त्री के गर्भ में शिशु के भौतिक शरीर का निर्माण प्रारंभ हो जाता है, जिसके कारण शिशु के अंग और संस्कार […]
जानें – गर्भाधान संस्कार क्या होता है और क्यों?
दांपत्य जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य है- श्रेष्ठ गुणों वाली, स्वस्थ, ओजस्वी, चरित्रवान और यशस्वी संतान प्राप्त करना। स्त्री-पुरुष की प्राकृतिक संरचना ही ऐसी है कि यदि उचित समय पर संभोग किया जाए, तो संतान होना स्वाभाविक ही है, किंतु गुणवान संतान प्राप्त करने के लिए माता-पिता को विचार पूर्वक इस कर्म में प्रवृत्त होना पड़ता […]
हिंदू धर्म में संस्कारों का महत्त्व क्यों है ?
भारतीय संस्कृति का मूलभूत उद्देश्य श्रेष्ठ संस्कारवान मानव का निर्माण करना है। सामाजिक दृष्टि से सुख-समृद्धि और भौतिक ऐश्वर्य आवश्यक है, किंतु मनुष्य जीवन केवल खाने-पीने और मौज-मस्ती करने के लिए ही नहीं है। हमारे ऋषियों ने भौतिक उन्नति को गौण और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति को जीवन का मुख्य उद्देश्य बताया है। इसी उद्देश्य की […]
सुहागिन स्त्री मंगलसूत्र क्यों पहनती हैं और इसका महत्त्व क्या है?
विवाहित स्त्रियां अन्य आभूषण पहनें या न पहनें, लेकिन उनके गले में धारण किया मंगलसूत्र सौभाग्यवती रहते कभी अलग नहीं होता, क्योंकि हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार विवाहित नारी के सुहाग और अस्मिता से जुड़ा मंगलसूत्र एक ऐसी अमूल्य निधि है, जिसका स्थान न तो कोई अन्य आभूषण ले सकता है और न उसका मूल्य […]
अतिथि देवो भव -अतिथि को देवता क्यों मानते हैं ?
वेद वाक्य अतिथिदेवो भव का अर्थ है- अतिथि देवस्वरूप होता है। उसकी सेवा देव पूजा कहलाती है। सूतजी के अनुसार अतिथि सत्कार से बढ़कर दूसरा कोई महान धर्म नहीं है, अतिथि से महान कोई देवता नहीं है। द्वार पर आए अतिथि का यथा – योग्य स्वागत – सत्कार करना हमारी परंपरा में कर्तव्य ही नहीं […]
सुबह जगते ही भूमि वंदना क्यों करनी चाहिए ?
प्रातः काल विस्तर से उतरने के पहले यानी पृथ्वी पर पैर रखने से पूर्व पृथ्वी माता का अभिवादन करना चाहिए, क्योंकि हमारे पूर्वजों ने इसका विधान बनाकर इसे धार्मिक रूप इसलिए दिया, ताकि हम धरती माता के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट कर सकें। वेदों ने पृथ्वी को मां कहकर वंदना की है। चूंकि हमारा शरीर […]
प्रातः सुबह जगते ही हथेलियों को क्यों देखना चाहिए?
शास्त्रों में प्रातः काल जगते ही बिस्तर पर सबसे पहले दोनों हाथों की हथेलियों (करतल) के दर्शन करने का विधान बताया गया है। दर्शन के दौरान निम्न श्लोक का उच्चारण करना चाहिए- Subah Uthkar Hatheli Dekhne Ka Mantra कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती । करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ॥ (आचार, प्रदीप) अर्थात् हथेलियों के […]
कीर्तन में ताली बजाने के क्या फायदे और लाभ है ?
श्रीरामकृष्ण देव कहा करते थे, ‘ताली बजाकर प्रातः काल और सायं काल हरिनाम भजा करो। ऐसा करने से सब पाप दूर हो जाएंगे। जैसे पेड़ के नीचे खड़े होकर ताली बजाने से पेड़ पर की सब चिड़ियां उड़ जाती हैं, वैसे ही ताली बजाकर हरिनाम लेने से देहरूपी वृक्ष से सब अविद्यारूपी चिड़ियां उड़ जाती […]
