धनी और निर्धन – नीलम चिड़िया की लोक कथा! Folk Tales in Hindi

Neelam chidiya Ki Lok Kahani Folk Tales in Hindi

बहुत दिन पहले दो भाई थे। छोटे भाई के कोई संतान नहीं थी, वह बड़ा व्‍यापारी था और सुखी जीवन व्‍यतीत करता था। बड़ा भाई निर्धनता में जीवन-यापन करता था, उसकी एकमात्र खुशी थी उसके दो बेटे- हसन और हसैन।

गर्मियों में जैसे ही जंगली बेरिया पकने लगती, हसन और हुसैन उन्‍हें चुनने चल पड़ते। मां बेरियां बाज़ार ले जाकर बेचती। सारा परिवार इसी से गुजर-बसर करता था।

एक बार दोपहर में, जब चारों ओर शांति छायी हुई थी, जब परछाई सबसे छोटी पड़ रही थी और चिलचिलाती धूप की चकाचौंध के कारण यह देख पाना मुश्किल था कि नदी में पानी बह रहा है या नहीं, हसन और हुसैन नदी के किनारे-किनारे झाडि़यों में से होकर चल रहे थे। अचानक उनके पैरों के पास से एक अप्रत्‍याशित सुंदर नीलम चिड़िया निकलकर उड़ गयी। लड़के उसे भली-भांति देख भी न पाये थे कि वह उड़कर काफ़ी ऊंचाई पर जा पहुँची और शीघ्र ही आंखों से ओझल हो गयी। तब हसन और हुसैन उसका घोंसला खोजने लगे और उसे जल्‍दी ही ढूंढ़ लिया। घोंसले में नीली धारियों वाले सफ़ेद अंडे पड़े थे। लड़कों को बहुत तेज भूख लगी थी और वे अंडे मिलने पर बहुत खुश हए। किंतु अण्‍डे इतने छोटे थे कि हसन और हुसैन ने फ़ैसला किया: ”अगर हम इन्‍हें खा भी लें, तो फ़ायदा कम होगा। इन्‍हें धनी चाचा के पाल ले जाना बेहतर होगा।” वे बिना घर में झांके चाचा के यहां गये और उससे पूछा कि क्‍या वह नीलम चिड़िया के नीली धारियोंवाले सफ़ेद अण्‍डे खरीदेगा।

”तुम इन्‍हें कहां से लाये?” चाचा ने पूछा।

”मैदान से, जहां हम झड़-बेरी चुन रहे थे,” भाइयों ने उत्तर दिया। चाचा ने अण्‍डे ले लिये और हसन व हुसैन को आश्‍चर्यचकित कर सौ रूबल दिये फिर बोला: ”अगर तुम चिड़िया को पकड़ लाओ, तो मैं तुम्‍हें दो सौ रूबल और दूँगा।”

चाचा को नीलम चिड़िया क्‍यों चाहिए थी हसन और हुसैन को मालूम न था, पर उन्‍होंने बिना कुछ सोचे जाल उठाया और उस स्‍थान के लिए रवाना हो गये, जहां उन्‍होंने चिड़िया देखी थी। उन्‍होंने ढूंढ़कर उस पर जाल फैलाया और खुद झाडि़यों में छिप गये।

कुछ समय बाद चिड़िया आयी, उसने अग़ल-बग़ल देखा और फुदककर घोंसले में बैठते ही जाल में फंस गयी। बच्‍चों को उस अद्भुत नीलम चिड़िया पर कितनी ही दया क्‍यों न आयी, पर फिर भी वे उसे चाचा के पास ले गये। साधारणत: कंजूस चाचा ने हसन व हुसैन को दो सौ रूबल, शक्‍कर तथा कपड़े दे दिये। भाई सारी चीजें घर ले आये। पर निर्धन परिवार अधिक दिन सुखी न रह सका।

नीलम चिड़िया का दिल!

न तो पिता को ही पता चला, न ही पुत्रों को कि चाचा नीलम चिड़िया को घर ले आया और उसे काटकर उसने अपनी पत्नी को सौंप दिया था।

”मैं शाम को घर आऊंगा,” उसने कहा, ”और तुम मेरे आने तक इस चिड़िया को पका रखना। देखो, इस चिड़िया का एक भी टुकड़ा किसी को मत देना! समझी?”

पत्नी ने सोचा: ”इस चिड़िया से इनका क्या पेट भरेगा, जब यह एक बार में पूरी भेड़ खा लेते हैं?” किन्‍तु उसने पति को नहीं टोका। उसने चिड़िया को साफ़ करके टुकड़े-टुकड़े किये, देगची में डालकर पानी भर दिया और आग पर चढ़ाकर पड़ोसन के यहां चली गयी और गपशप करती देर तक बैठी रही।

इस बीच कुतूहल से पीडि़त हसन और हुसैन ने यह पता लगाने चाचा के यहां जाने की सोच ली कि उस चिड़िया का क्‍या हुआ। कमरे में घुसने पर उन्‍होंने देखा कि वहां कोई नहीं है और देगची में से घनी भाप निकल रही है।

”क्‍या सचमुच यह हमारी चिड़िया पकाई जा रही है?” हसन से साश्‍चर्य पूछा।

”शायद वही है,” उतने ही आश्‍चर्यचकित हुसैन ने कहा।

उन्‍होंने देगची के पास जाकर ढक्कन थोड़ा-सा उठाकर देखा: उनकी नीलम चिड़िया ही पक रही थी।

”चलो, चिड़िया का गोश्‍त चखकर देखते हैं!” हसन ने सुझाव दिया।

”क्‍यों नहीं, चखे लेते हैं!” हुसैन सहमत हो गया।

उन्‍होंने चम्मच से चिड़िया का दिल निकाला, उसके बराबर-बराबर दो टुकड़े किये और खाकर चले गये।

गृहणी आयी और उसने चम्‍मच लेकर गोश्‍त निकाला तो उसका चेहरा फक रह गया: दिल नदारद था। ”अब तो जरूर वह मुझे डांटेंगे! क्‍या पड़ी थी मुझे इतनी देर तक पड़ोसन के यहां बैठने की!” वह अपने आप को कोसने लगी।

पर अब पछताये क्‍या होना था। उसने अहाते में निकलकर एक मुर्गा पकड़ा, उसे काटकर दिल निकाला और देगची में डालकर निश्चिन्‍त हो गयी।

शाम को पति आया। खाना उसे बहुत स्‍वादिष्‍ट लगा।

खाना खा लेने के बाद पति ने शरारती ढंग से पत्‍नी को आंख मारी और मुस्‍कराकर बोला: ”बेगम, अल्‍लाह ने हमारी किस्‍मत खोल दी! सुबह जब जागेगे, तो तकिये के नीचे सोना मिलेगा।”

पत्‍नी ने जवाब में कुछ नहीं कहा।

सुबह उनकी नींद खुल, उन्‍होंने तकिया उठाकर देखा- पर वहां कोई सोना-वोना नहीं था। उन्‍होंने सारा बिस्‍तर झाड़ मारा, लेकिन उन्‍हें कही सोना नहीं मिला।

जंगल में…

सुबह जब हसन और हुसैन की नींद खुली, तो अपने-अपने तकियों के नीचे अशरफियों से भरी एक-एक बोरी देखकर उनके आश्‍चर्य का पारापार नहीं रहा। लड़कों के मां-बाप को भी उनसे कम आश्‍चर्य नही हुआ। हसन व हुसैन का पिता, जिसने कभी इतना सोना नहीं देखा था, बहुत भयभीत हो उठा और सलाह लेने अपने भाई के पास लपका।

”अरे, भाई, मुझे बताओ कि यह क्‍या बात है? सुबह हमारे बच्‍चों के तकियों के नीचे हमें एक-एक बोरी अशरफियों की मिली। यह अच्‍छा है या बुरा?”

व्‍यापारी की आंखे ईर्ष्‍या से चमक उठीं। उसने भौंहें सिकोड़ और नज़रे ज़मीन में गड़ाये डराते हुए कहा:

”तुम्‍हारा बहुत बुरा होनेवाला है, बहुत बुरा! ये जिनों की करतूत है। एक बार एक मुल्‍ला से मेरी बातचीत हुई थी, तो उसने, अल्‍लाह की इनायत से, कहा था: ”जिन आदमी को बिगाड़ देता है! जिन से पीछा छुड़ाना चाहिए।” तुम अपने बेटों को कहीं ले जाकर उन्‍हें मार डालो, वरना सारी जिंदगी वे तुम्‍हारा बुरा करते रहेंगे। और सोना मुझे दे दो।”

पिता उदास हुआ घर लौट आया। उसने हर पहलू पर विचार किया और अन्‍त में यह निणर्य किया: ”नही, अपने बच्‍चों की जान मैं नहीं लूँगा। उन्‍हें दूर कही स्‍तेपी या जंगल में ले जाकर छोड़ आऊंगा, जिससे न वे तुझे नजर आयें, न उनकी आवाज मेरे कानों में पड़े।”

उसने सुबह पड़ोसी से घोड़ागाड़ी मांगी, उसमें बच्‍चों को बिठाया और कहा: ”आज मैं तुम्‍हें ऐसी जगह छोड़ आता हूँ, जहां ढेर सारी बेरियां हैं। मैं शाम को आकर तुम्‍हें ले जाऊंगा, इस बीच तुम्‍हें एक बोरी झड़-बेरी इकट्ठी कर लेनी चाहिए।”

वे काफी देर तक जंगल में चलते रहे और अंत में एक घने जंगल के छोर पर पहुँच गये। पेड़ों के तनों के बीच झाडि़यां आपस में गुंथी हुई थी और लड़कों को वहां ढेरों बेरियां लगी दिखाई दी।

”लो, बेटो, तुम यहां रुककर झड़-बेरियां इकट्ठी करो।”

पिता इसके आगे कुछ न कह सका और पलटकर रोता हुआ घोड़ागाड़ी के पास लौट गया। उसने लौटकर सोना अपने छोटे भाई को दे दिया और उसके कहे अनुसार इस प्रकार जिनों से पिण्‍ड छुड़ा लिया।

हसन और हुसैन काफी देर तक झड़-बेरियां इकट्ठी करते रहे, उन्‍होंने पूरी बोरी भर ली। फिर वे बैठकर पिता की प्रतीक्षा करते हुए सुस्‍ताने लगे। पर पिता आया ही नहीं। भाइयों को रात जंगल में ही गुजारनी पड़ी।

सुबह उनकी नींद खुली, देखा-फिर उनके सिरों के नीचे एक-एक बोरी अशरफियों से भरी रखी है। भाइयों ने उसे छुआ भी नहीं और जंगल में भटकने लगे। उन्‍हें रास्‍ते में घोड़े पर सवार एक बूढ़ा शिकारी मिला।

”सलाम, बाबा!” दोनों भाइयों ने एक साथ कहा।
”सलाम, बच्‍चों! तुम कहां से आ रहे हो और कहां जा रहे हो?”
”कहां से आ रहे है, नहीं जानते, जंगल बहुत बड़ा है, पर पहला आदमी मिलने तक जा रहे हैं। जिसके कोई बेटी न हो- उसके लिए हम बेटियों की तरह रहेंगे, जिसके बेटा न हो- उसके लिए बेटे की तरह।”

”मेरे बच्‍चे नहीं है, तुम मेरे बेटे हो जाओ। मेरे यहा चलोगो?”
”चलेंगे,” लड़को ने सहमति व्‍यक्त की।

बूढा भाइयों को घोड़े पर बिठाकर बोला:
”तुम चलो, घोड़ा खुद तुम्‍हें मेरे घर पहुँचा देगा”

भाइयों ने बूढ़े को धन्‍यवाद किया:
”बाबा,” वे बोले, ”जहां हम सो रहे थे, वहां अशरफियों को दो बोरियां पड़ी है।”

… हसन और हुसैन काफ़ी समय तक बूढ़े शिकारी के पास रहे। वे जंगल के जीवन के अभ्‍यस्‍त हो गये, तीरंदाजी में दक्ष हो गये और अनुभवी व साहसी शिकारी बन गये। कभी का ग़रीब बूढा उस समय तक आस-पास के इलाकों में सबसे धनी आदमी हो गया।

भाई जब कुछ बड़े हुए, उनके तकियों के नीचे सोना मिनना बंद हो गया। एक बार वे काफ़ी देर तक आपस में बातचीत करते रहे और उन्‍हें अपना सारा जीवन स्‍मरण हो आया।

”किसी ने ठीक ही कहा है, हुसैन, कि कुत्ता कही भी क्‍यों न भटक जाये हमेशा उसी जगह लौट आता है, जहां उसे मांसवाली हड्डी मिली है, और इंसान हमेशा उसी जगह लौटने को तड़पता है, जहां उसका जन्‍म हुआ था। चलो, हुसैन, अपने मां-बाप को ढूंढ़ने चलें!”

जैसा मेरा भाई सोचता है, वैसा ही मैं। तुम जिधर- मैं भी उधर,” हुसैन ने जवाब दिया। ”चलो!”

वे बूढ़े से विदा लेने उसके पास गये। बूढ़े शिकरी को बांके नौजवानों पर दया आयी, वह बोला: ”मैं तुम्‍हें पशुओं का झुण्‍ड दे सकता था, पर देखता हूँ, तुम्‍हें उसकी जरूरत नहीं है। तुम्‍हारी यात्रा शुभ हो और सफलता तुम्‍हारे क़दम चूमे!”

बूढ़े ने हसन और हुसैन को एक-एक बढि़या घोड़ा दिया और वे रवाना हो गये।

सात सिरवाला सांप!

भाई पूरे महीने यात्रा करते रहे और अंत में उन्‍होंने देखा कि वे एक दोराहे पर पहुँच गये है।

”यहॉं हमारे रास्‍ते अलग-अलग हो जायेंगे,” हसन ने कहा, ”तुम दायी ओर जाओ और मैं बायीं ओर जाता हूँ।”

”ठीक है” हुसैन ने कहा। ”हम कही भी क्‍यों न जायें, वापस लौटकर यही मिलेंगे।”

उन्‍होंने दोराहे के नुक्कड़ पर लकड़ी की मूठवाला छुरा जमीन में गाड़ दिया।

”हम में से कोई मर जाये या जिंदा रहे, यह छुरा बता देगा,” हसन ने कहा।

”अगर हममें से कोई मर जाये, तो मूठ का उसके रास्‍ते की तरफ़ का आधा हिस्‍सा जल जायेगा।”

एक दूसरे से विदा लेकर भाई भिन्‍न-भिन्‍न दिशा में चल पड़े।

अब हुसैन को अपने रास्‍ते पर आगे बढ़ने दीजिये और हसन का किस्सा सुनिये।

हसन जब कई गुल्‍म-वन पार करके खुले जंगल में पहुँचा, उसे अपने सामने एक बड़ा शहर फैला हुआ मिला।

हसन ज्‍यों-ज्‍यों शहर के निकट पहुंचता गया, त्‍यों-त्‍यों उसका आश्‍चर्य बढ़ता गया: उसे हर जगह काले झण्‍डे, घरों के चारो ओर लटकी बड़ी-बड़ी काली चादरें दिखाई दे रही थी।

”आपके शहर में शोक क्‍यों मनाया जा रहा है?” हसन ने रास्‍ते में मिली एक बुढि़या से पूछा।

”लगता है, तुम हमारे शहर के नहीं हो,” बुढि़या ने उत्तर दिया। ”अगर जानना चाहते हो, तो बताती हूँ! हमारे यहॉं सात सिरवाला एक मरभुक्खा सांप आने लगा है। वह रोज एक लड़की और एक खरगोश खा जाता है। आज सांप को खान की बेटी खिलाने की बारी है। खान ने सारे मुनादी करवा दी है: जो भी सांप को मार देगा और खानशाइम को बचा लेगा, वह उसी से उसकी शादी कर देगा। लेकिन शहर में ऐसा कोई दिलेर अभी तक नहीं मिला, इसलिए खान ने सारे शहर में काले झण्‍डे लगाने का हुक्‍म दिया है।”

हसन सीधा खान के पास गया। खान महल में नहीं मिला, पर हसन ने खान के शयनकक्ष में लगे कमरे मे एक बंधा हुआ खरगोश और अभूतपूर्व सौन्‍दर्य की स्‍वामिनी युवती को देखा। उसकी काली-काली चोटियां उजबेकी रेशम जैसी थी और आंखे प्रखर रविरश्मियों की तरह चमक रही थीं। हसन को देखते ही खानशाइम चौक उठी।

”डरो मत,” हसन ने उसको शांत किया। ”मैं तुम्‍हें सांप से बचा लूँगा। लेकिन तुम इसके बदले में मुझे क्‍या इनाम दोगी?”

”यदि तुम मुझे मुक्‍त करा दोगे, तो मैं तुमसे शादी करूँगी।”

हसन थोड़ी देर सोच-विचार कर बोला:

”मैं बहुत दूर से आया हूँ और थक गया हूँ। मैं लेटकर सुस्‍ता लेता हूँ, जब सांप आये, तुम मुझे फ़ौरन जगा देना।

हसन गहरी नींद में सोया हुआ था कि अचानक कुछ खट-खट, घड़-घड़ हुई और दरवाजा झट से खुल गया। खानशइम देहलीज पर सांप का एक सिर, फिर दूसरा, तीसरा, पूरे सात सि देखकर भय के मारे जड़वत् रह गयी।

पर हसन गहरी नींद में सो रहा था। उसकी नींद लड़की की चीखों से भी नहीं खुली। खानशाइम हसन के ऊपर फूट-फूटकर रोने लगी। आंसुओं की गरम-गरम मोटी-मोटी बूँदें हसन के चेहरे पर टपकने से उसकी नींद खुल गयी।

हसन ने जागते ही अपने सामने सांप को देखा। कमर पर बंधी भारी तलवार खीचकर उसने वार किया और सांप के सातों सिर एक ही वार में कटकर दूर जा गिरे।

खानशाइम ने अपनी सोने की अंगूठी उतारकर हसन को दे दी और महल से चला गया।

उसी समय संयोगवश खान के वज़ीर ने दरवाजे में झांका। युवती को जीवित और सांप को मरा देखकर वज़ीर को आश्‍चर्य हुआ, किन्‍तु एक क्षण में वह समझ गया कि उसके खान की नज़रों में चढ़ने का अवसर आ गया है। लड़की के सामने आये बिना ही वह वहां से निकलकर फ़ौरन खान के सामने अप्रत्‍याशित शुभ समाचार देने हाजिर हो गया।

”मैंने खुद अपने हाथों से सांप को मारकर खानशाइम को बचा लिया है!” वज़ीर बोला ”अपना वादा पूरा करके, खान, खानशइम की शादी मुझसे कीजिये!”

”ऐसा ही हो! खान ने उत्तर दिया।

उसने सफे़द झण्‍डे फहराने और घरों को सफ़ेद चादरों से सजाने की आज्ञा दे दी, जिससे सारी प्रजा हो मालूम हो जाये कि सात सिरवाला सांप मारा गया और खान की पुत्री के प्राण बच गये। इसके बाद खान ने अपनी बेटी की निकाह की रस्म अदा करने के लिये सारे मुल्‍लाओं को मसजिद में बुलवाया।

हसन ने भी वज़ीर को सांप पर अपनी विजय के बारे में डींग मारते हुए सुन लिया। उसने वज़ीर की ओर उंगली उठाकर कहा:
”यह झूठा और कायर है! यह अपनी बात की सच्‍चाई किस तरह साबित कर सकता है? सांप को मैने मारा है, न कि इसने!”

सारे लोग मुड़कर हसन की ओर देखने लगे।
”तुम इसे कैसे साबित कर सकते हो?” वजीर ने घमंड भरी आवाज में पूछा।

”मेरे पास इसका सबूत है,” हसन ने कहा और अपनी जेब से अंगूठी निकालकर एकत्र लोगों को दिखा दी।

”उसने खानशाइम की यह अंगूठी चुरा ली है!” वज़ीर गुर्राया।

”अगर सांप को तुमने मारा है,” हसन ने कहा, ”तो इसका मतलब है, तुम उसकी लोथ उठाकर खिड़की से बाहर फेंक सकते हो।

वज़ीर ने मरे सांप को उठाने की कितनी ही कोशिश क्‍यों न की, पर वह उसे टस से मस भी न कर सका। जबकि हसन ने उसे बड़ी आसानी से उठाकर खिड़की से बाहर नदी में फेंक दिया, तभी हसन को देखकर खानशाइम ने, जिसे खान ने बुलवा लिया था, कहा: ”मुझे इस बांके नौजवान ने बचाया है और अंगूठी खुद मैंने इसे दी है।”

खान ने वज़ीर को महल से निकाल दिया और हसन से अपनी पुत्री का विवाह करके उसे अपना मुसाहिब बना लिया।

हसन कुछ ही दिनों में खान के महल और उसके भव्‍य कक्षों में रहते-रहते ऊब गया और शिकार पर असकर अकेला जाने लगा। एक बार वह तपती दोपहर में नदी के किनारे-किनारे घोड़े पर जा रहा था। उसके साथ-साथ एक शिकारी कुत्ता भाग रहा था। हसन ने बेद के वृक्ष की एक टहनी तोड़, उससे घोड़े को हांकने लगा। अचानक तेज़ हवा चलने लगी। ठण्‍ड पड़ने लगी और तीव्र हिमपात होने लगा। हसन तेज़ हवा और बर्फ से बचने और बदन गरम करने के लिए स्‍थान खोजने लगा और उसे एक अकेला स्‍प्रूस का ऊँचा वृक्ष दिखाई दे गया। हल्‍की बर्फ से ढका वह विशाल तम्‍बू-घर-सा लग रहा था। हसन ने घोड़े व कुत्ते को उसके नीचे खड़ा कर दिया और खुद टहनियां तोड़, अलाव जलाकर तापने लगा। तभी उसे पेड़ पर धनी शाखाओं के बीच एक बुढि़या बैठी दिखाई दी- वह बैठी-बैठी फूट-फूटकर रो रही थी, लगा जैसे बर्फ का तूफ़ान चीख रहा हो।

”तुम क्‍यों रो रही हो?” हसन ने पूछा। ”क्‍या ठिठुर गयी हो? नीचे उतर आओ और आग के पास बैठकर ताप लो।”

”मैं उतर तो जाती, बेटा,” बुढि़या बोली, ”पर कुत्ते से डरती हूँ। तुम अपना चाबुक मुझे दे दो!”

हसन ने अपना चाबुक, जिसकी चमत्‍कारी शाक्ति का उसे ज्ञान न था, उसकी ओर बढ़ा दिया। बुढि़या ने छड़ी घोड़े, कुत्ते और हसन के ऊपर फेर दी- और वे तीनों तीन पत्थर बनकर उसी स्‍प्रूस के नीचे पड़े रह गये।

भाई की तलाश में!

आइये अब हुसैन का किस्‍सा सुनें।

भाई से बिछुड़ने के कुछ समय बाद वह खान बन गया और एक बड़े शहर में रहने लगा। जिस दिन हसन जीवित न रहा, हुसैन का हृदय उदास हो उठा और उसने अपने भाई की तलाश करने का निर्णय किया। हुसैन घोड़े पर काठी कसके यात्रा पर रवाना हो गया और अंतत: उस स्‍थान पर पहुँच गया, जहॉं उनके रास्‍ते अलग होते थे। छुरा अपने स्‍थान पर गड़ा हुआ था, उसका हुसैन के मार्ग की दिशा की ओर का आधा भाग सही-सलामत था, जबकि दूसरा भाग- जला हुआ था। हुसैन समझ गया कि हसन मर चुका है। वह रो पड़ा और उसने निश्‍चय किया: ”जिन्‍दा हुसैन को न सही, तो मैं मरे को तलाश करने जाऊँगा!”

हुसैन उस शहर में पहुँच गया, जिसमें हसन रहता था। वहाँ उसका हार्दिक स्‍वागत किया गया और उसे महल में ले जाया गया। वहॉं हुसैन की मुलाक़ात एक युवा स्‍त्री से हुई और उसे पता चला कि वह उसके लापता भाई की पत्नी थी।

हसन की मृत्‍यु के पश्‍चात् खान के महल में लौटे वज़ीर द्वारा आयोजित अत्‍यधिक हार्दिक स्‍वागत-समारोह से हुसैन को संदेह हुआ। ”जरूर दाल में कुछ काला है,” उसने सोचा। ”कही मेरा अभागा भाई इसी वज़ीर का तो शिकार नहीं बना?” हुसैन सारी रात इसी बारे में सोचता रहा। सुबह, खानशाइम से यह मालूम होते ही कि उसका भाई शिकार में लापता हो गया था, वह उसे ढूंढ़ने निकल पड़ा।

हसन की तरह हुसैन भी हिमझंझावत में फंस गया। जो स्‍प्रूस भाई का शरण-स्‍थल तथा क़ब्र बना, उसी तले हुसैन ने भी शरण ली। अलाव जलाते हुए उसे टहनियों के बीच एक बुढि़या दिखाई दी और उसने भी उस पर भाई की तरह ही दया की।

”दादी, पेड़ से उतरकर ताप लो,” उसने कहा।

”मैं उतर तो जाती,” बुढ़िया बोली, ”पर कुत्ते से डरती हूँ। ठहरो, मैं इसे छड़ी से डराती हूँ।”

हुसैन ने बुढि़या को देखा और अचानक उसका माथा ठनका। हुसैन ने बुढि़या को जादूई छड़ी उठाने नहीं दिया, वह पत्थर से, ि‍जस पर बैठा था, उतरा और बंदूक उठाकर बोला: ”चलो, नीचे उतरो, वरना गोली मार दूँगा।”

बुढि़या डर के मारे थर-थ्‍ज्ञर कांपती नीचे उतर आयी।

”लगता है, तुम यह जानते हो कि मेरा भाई कहॉं है। बताओं वरना मैं तुम्‍हें मार डालूँगा।”

”जिस पत्थर पर तुम बैठे थे, वही तुम्‍हारा भाई है,” बुढ़िया ने उत्तर दिया।

”वज़ीर ने मुझे उसे यहॉं लुभाकर लाने और मार डालने का हुक्‍म दिया था। मुझ पर दया करो, मैं तुम्‍हें तुम्‍हारा भाई लौटा दूंगी। तुम स्‍प्रूस की टहनियों में छिपायी छड़ी निकालकर उसे इन पर फेरो।”

हुसैन ने वैसा ही किया- और पलक झपकते उस पत्‍थर का स्‍थान, जिस पर वह बैठा था, उसके भाई ने ले लिया। यह वर्णन करना कठिन है कि लम्‍बे विछोह के बाद मिनले पर भाई कितने खुश हुए।

माता-पिता से पुनर्मिलन!

हुसैन हसन के यहाँ काफ़ी दिनों तक रहा और एक दिन वह बोला:

”अब, हसन, तुम्‍हें वह बात याद दिला दूँ, जो तुमने मुझसे बूढ़े शिकारी के घर में कही थी: ‘कुत्ता वह जगह ढूंढ़ता है, जहां उसे भरपेट खाने को मिलता है, जबकि इनसान- जहॉं उसका जन्‍म हुआ था।’ तुम्‍हारा क्‍या विचार है, हमें अपने मां-बाप को ढूंढ़ने निकलने का समय तो नहीं आ गया है?”

”हालांकि तुमने वह कहावत ठीक से नहीं दोहराई, फिर भी मैं तुमसे सहमत हूँ। अगर हम अपने माता-पिता को जीवित देखना चाहते हैं, तो हमें उनकी तलाश अब टालनी नहीं चाहिए।”

उन्‍होंने जैसी ठानी, वैसा ही किया। हसन व हुसैन पहले व्‍यापारी काफिले के साथ यात्रा पर निकल पड़े और त्‍योहार के दिन अपने शहर के हाट-बाज़ार में पहुँच गये। वहाँ उन्हें उनका चाचा-धनी व्‍यापारी मिला। वह माल लेकर आये बड़े कारवां से मिलने के लिए दुकानों के सामने से गुजर रहा था। चाचा ने भतीजों को नहीं पहचाना, पर खुद उन्‍होंने अपने नाम बताये, वह तुरन्‍त उनकी चापलूसी, खुशामद करने लगा और उनका साथ चूमने तक को तैयार हो गया।

”पर हमारे मां और बाप कहॉं है?” हसन और हुसैन ने एक साथ पूछा।

”यहीं, इसी शहर में हैं। लेकिन तुम्‍हें बुढ्डे-बुढिया की क्‍या जरूरत पड़ी है, जिन्‍हें दिखना काफी दिन हुए बंद हो चुका है? तुम लोग तो काफी धनी हो,” चाचा ने कहा।

हसन और हुसैन लोगों से अपने माता-पिता के बारे में पूछताछ करने लगे। उन्‍हें एक पुरानी, चीर्ण-शीर्ण झोंपड़ी की ओर इशारा किया। उसमें खिड़कियां नहीं थी, अंधेरे के कारण यह देख पाना मुश्किल था कि उसमें कौन है। हसन और हुसैन ने आग जलायी और अपने सामने फटे-पुराने चिथड़े पहने अपने अंधे माता-पिता को पाया।

”मां! अब्‍बा! आपको क्‍या हो गया?” हसन और हुसैन चिल्‍ला उठे।

मां अपने बेटों की आवाजें सुनकर रो पड़ी। पिता घबराते और खुश होते हाथ हिलाकर बोले:

”क्‍या सचतुच दुनिया में कोई ऐसा बचा है, जो मुझे खोज रहा है? क्‍या सचमुच मेरे बेटे, जो कभी के मर चुके हैं, मुझसे मिलने आये हैं?”

हसन और हुसैन ने उन्‍हें सब ब्‍योरेवार बताया कि वे कहाँ-कहाँ रहे, उन्‍होंने क्‍या-क्‍या देखा और अंत में माता-पिता के पास कैसे पहुँचे।

”आप तब हमें जंगल में क्‍यों छोड़ गये थे? क्‍या सचमुच आप ने सोने के लालच में ऐसा किया था?” हसन ने पिता से पूछा।

”आप तब हमें लेने क्‍यों नहीं आये थे? अगर आप आये होते हमारे पास और भी ज्‍यादा सोना हो गया होता!” हुसैन ने भी पिता को उलाहना दिया।

”तुम मुझसे रूठो नहीं, मेरे बच्‍चों,” वृद्ध रो पड़ा। ”तुम्‍हारे चाचा ने मुझसे कहा था कि अल्‍लाह की मर्जी है कि मैं सोना उसे दे दूँ, तुम्‍हें मार दूँ, क्‍योंकि तुम पर जिन चढ़ आया है। तुमसे बिछुड़कर हमने बहुत मुसीबतें झेली, और तुम दुख ही रहे हो कि हम कैसे जी रहे हैं। तुम्‍हारे धनी चाचा ने हमारी बिलकुल मदद नहीं की। लेकिन हमारे लिए सबसे बुरी सचा तो यह है कि हम तुम्‍हें देख नहीं सकते!”

बूढ़ा मौन हो गया।

हसन और हुसैन फौरन झोंपड़ी से निकल पड़े। उन्‍होंने हाट में पहुँचकर अपने चाचा को ढूंढ़ निकाला और उसे गहरे कुएं में फेंक दिया।

हसन और हुसैन हाट से घर लौटकर आये, तो उन्‍होंने देखा: उनके माता-पिता दरवाजे के बाहर खड़े उनका स्‍वागत कर रहे हैं, उन्‍हें निहार-निहारकर किसी तरह अंधा नहीं रहे हैं। भाइयों को बहुत आश्‍चर्य हुआ, पर बाद में वे समझ गये- यह चमत्‍कार जादूई छड़ी ने किया था।

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