मॉं की महानता – Greatness of Mother Story in Hindi

Maa Ki Mahanta Greatness of Mother Moral Story in Hindiमॉं की महानता!

एक समय स्‍वामी विवेकानंद से उनके अनुयायी ने प्रश्‍न किया कि माता को इस पृथ्‍वी पर सबसे अधिक महान क्‍यों कहा जाता है। स्‍वामी जी ने मुस्‍कराते हुए उससे लगभग पांच किलो का एक पत्‍थर लाने को कहा। स्‍वामी जी ने अपने भक्‍त से कहा- अब तुम इस पत्‍थर को अपने पेट पर कपड़े से बांध लो और अपने समस्‍त कार्य इसी प्रकार एक दिन और रात करो और फिर मेरे पास आओ।

स्‍वामी जी के निर्देशानुसार उसने पत्‍थर को अपने पेट पर बांध लिया और दिन भर अपना कार्य करता रहा। उसे हरदम अत्‍यंत थकावट और परेशानी महसूस हुई। आठ-नौ घंटे में ही उसका बुरा हाल हो गया और उससे चला नहीं जा रहा था। वह उसी समय स्‍वामी जी के पास गया और कहा- अब हमें पत्‍थर बर्दाश्‍त नहीं हो रहा है। मैं और ज्‍यादा पत्‍थर बांधे नहीं रख सकता।

स्‍वामी जी ने कहा कि पेट पर बंधे हुए इस पत्‍थर हो बोझ तुमसे आठ-नौ घंटे नहीं उठाया जा रहा है और माता अपने गर्भ में पलने वाले शिशु को पूरे नौ महीने रखती है। घर का समस्‍त कार्य करती है। इस कार्य को मॉं प्रसन्‍नतापूर्वक करती है। कभी विचलित नहीं होती है। संसार में माता के अतिरिक्‍त कोई इतना धैर्यवान व सहनशीन नहीं है। इसीलिए माता से बढ़ कर इस संसार में कोई भी महान नहीं है।


कल्याण का सरल साधन!

कुरुक्षेत्र में खग्रास सूर्यग्रहण लगा था। ब्रज से वसुदेवजी भी वहाँ पहुँचे। ऋषि गणों के शिविर में उन्होंने शास्त्र प्रवक्ता व्यासजी से अनेक प्रश्न किए।

वसुदेवजी ने जिज्ञासावश पूछा, ‘सद्‌गृहस्थ के लिए कल्याण के सरल साधन कौन से हैं?’

महर्षि व्सास ने कहा, ‘न्यायपूर्वक अर्जित धन से पूजन-अर्चन तथा यज्ञ करें, इच्छाएँ सीमित रखें, परिवार का पालन-पोषण करें और धर्म व सत्य के मार्ग पर अटल रहें- इन नियमों के पालन से स्वतः कल्याण हो जाता है।’

वसुदेवजी ने पूछा, ‘ऋषिवर, इच्छाएँ त्यागने के उपाय क्या हैं?’

व्यासजी ने बताया, ‘धनार्जन करें, परंतु धर्मपूर्वक और न्यायपूर्वक (ईमानदारी) ही। भले ही भूखे रहना पड़े, पर अधर्मपूर्वक (बेईमानी से) धन कदापि अर्जित न करें। वही धन सार्थक होता है, जो यज्ञ, दानादि व परोपकार में व्यय किया जाता है।’

व्यासजी ने आगे कहा, ‘जब मनुष्य को पौत्र हो जाए, तो उसे गृहस्थ का मोह त्यागकर तपस्या, भजन-पूजन व समाज के ऋण से उऋण होने में लग जाना चाहिए।’

वसुदेवजी ने पूछा, ‘ऋषिवर, मुझे क्या करना चाहिए?’

व्यासजी ने बताया, ‘मधुसूदन ने साक्षात् आपके पुत्र के रूप में जन्म लिया है- यह आपके पूर्वजन्मों के पुण्यों का प्रताप है। आप समस्त कर्तव्यों से मुक्त हो चुके हैं। देवऋण से विमुक्त होने के लिए आप प्रतिदिन अग्निहोत्र व पंचयज्ञ करते रहें।’

वसुदेवजी व्यासजी से आशीर्वाद ग्रहण कर कृतकृत्य हो उठे।

 

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