गुरू के प्रति भक्ति एवं ज्ञान का मर्म Moral Story in Hindi

गुरू के प्रति भक्ति!

Guru Ke Prati Bhakti Story in Hindi with Moralएक बार गांव के एक अनाथ बालक मगरू को हाथ भर की छड़ी को ऊपर उछालने और उसके एक सिरे को मुंह में पकड़ने का शौक लग गया। कई बार उसके अभ्‍यास करने में चोट आयी और इस कला में उसे सफलता नहीं मिली। एक कुशल संयासी ने उसे इस तरह के करतब करते देख कर कहा- साधना की सफलता के लिए गुरू का होना अत्‍यन्‍त आवश्‍यक है।

मगरू ने पूछा कि मैं किसे अपना गुरू बनाऊँ। क्‍या आप मेरे गुरू बनेंगे? उस संयासी से कला सीखकर मंगरू कुशलता से करतब करने लगा। धीरे-धीरे वह चाकू व तलवार मुँह से पकड़ने लगा। राजा के यहॉं पर एक प्रतियोगिता में भी उसने तरह-तरह के करतब दिखाये।

राजा अत्‍यन्‍त प्रसन्‍न हुए और उससे पूछा कि इस प्रकार की कला तुमने किससे सीखी। मंगरू ने कहा कि मुझे अभ्‍यास करते-करते ये कलाएं आ गयी, परंतु गुरू का नाम नहीं बताया। वह सोचने लगा कि इससे गुरू की प्रशंसा होने लगेगी और उसका कहीं नाम भी नहीं आयेगा।

इसी बीच रानी ने एक बार फिर मंगरू से आश्‍चर्यचकित करतब दिखाने को कहा। कला में पारंगत मंगरू ने तलवार उछाल दी, लेकिन इस बार उसने ऐसे तलवार उछाल दी कि तलवार उसके दॉंतों के बजाय उसकी आंख पर आकर गिरी। मंगरू पर अभिमान सवार था। गुरूकृपा साथ न थी और वह अंधा हो गया।


ज्ञान का मर्म – Moral Story in Hindi

Gyan Ka Marg Story in Hindi with Moral

बहुत समय पूर्व एक गुरूजी थे। उन्‍होंने अपने प्रिय शिष्‍य को ज्ञान और कर्तव्‍य की महिमा बताने के लिये अपने पास बुलाया और कहा- तुम्‍हारी गुरूकुल की शिक्षापूर्ण हो गयी है। अब तुम्‍हें जीवन में कर्तव्‍य मार्ग पर चलना है। इसलिए तुम एक दिन मेरे साथ रहो।

अगले दिन गुरू अपने शिष्‍य को लेकर भ्रमण पर निकले तथा काफी दूर चलकर एक खेत में पहुंचे। वहां देखा कि किसान अपने खेत में सिंचाई कर रहा है तथा बड़ी जतन से खेती के कार्यों में व्‍यस्‍त है। किसान को उन लोगों के आने का आभास भी नहीं हुा तथा अपने काम में निरंतर लगा रहा।

कुछ समय के बाद दोनों एक शहर की तरफ गये। वहां उन्‍होंने देखा कि लोहार गर्म लोहे को पीट-पीट कर नया आकार दे रहा है। उसका शरीर पसीने से भीग रहा है, फिर वह अपने काम में इतना व्‍यस्‍त ै कि उसे गुरू व शिष्‍य को देखने का मौका ही नहीं है।

शाम होने पर दोनों एक धर्मशाला में पहुंचे। वहां उन्‍होंने तीन अन्‍य पथिकों को देखा जो कहीं दूर से आ रहे थे। काफी थके हुये थे और अब वहीं रात गुजरने के लिए ठहरे थे। सब लोगों ने भोजन ग्रहण किया और सोने का प्रयत्‍न करने लगे।

प्रश्‍न- गुरू ने शिष्‍य से क्‍या कहा?
उत्‍तर- गुरू ने शिष्‍य से कहा- कुछ पाने के लिए समर्पण जरूरी है। किसान दिन-रात मेहनत करता है तब जाकर अनाज पैदा होता है। लोहार पसीने-पसीने होकर धातु को आकार दे पाता है। यात्री अपने को नि:शेष कर देता है, तब जाकर लक्ष्‍य की प्राप्ति होती है। मेरे प्रिय शिष्‍य, शिक्षा के उपरांत, अपने कर्मो से ज्ञान की क्‍यारियॉं सींचो, जीवन की आंच से धातु को सिद्ध करो तथा मार्ग में आपने को समर्पित करके ज्ञान की मंजिल प्राप्‍त करो। ज्ञान किसी का अपना नहीं होता। जो उसे कमाता है अर्थात् अर्जित करता है, उसी के पास (ज्ञान) आता है। यही शिक्षा का मर्म है।

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