क्‍या करें? लोक कथा Motivational Prernadayak Kahani in Hindi

Kya Kare Prernadayak Kahani Lok Katha Story in Hindi with Moral

प्राचीन समय में संजय नाम का एक उत्‍साही व्‍यक्ति था। उसे साधु-महात्‍माओं की संगति बहुत प्रिय थी। इसके लिए वह बड़े-बड़े तीर्थों और मठों में घूमता रहता था। एक बार उसे किसी सिद्ध योगी के पास रहने का अवसर मिला। संजय ने उन्‍हें अपनी सेवा से कुछ ही दिनों में बहुत प्रसन्‍न कर लिया। एक दिन योगीजी उससे बोले- बेटा, कोई कामना हो तो बताओ, हम योग-बल से अभी तुम्‍हारा मनोरथ पूरा कर देंगे।

संजय ने हाथ जोड़कर कहा- महाराज, यदि आप सचमुच प्रसन्‍न हैं तो मुझें योग के कुछ गुप्‍त रहस्‍य बता दीजिए। मैं संसार को इस विद्या का चमत्‍कार दिखाना चाहता हुँ।

योगीजी ने उसको कुछ दिन अपने पास रखकर योग का थोड़ा-बहुत अभ्‍यास करा दिया। उससे संजय अपने भीतर एक विचित्र शक्ति का अनुभव करने लगा। कुछ दिनों बाद वह अपने गुरु से विदा लेकर भ्रमण करने निकला। उसे चारों ओर अपनी अलौकिक सिद्धि का विज्ञापन करना था।

योगीजी के आश्रम से निकलने के बाद संजय एक जंगल से होकर जा रहा था। वहां कुछ शिकारी लोग लोहे के पिंजरे में एक शेर फंसाकर ले जाते दिखाई पड़े। संजय ने अपना प्रभाव दिखाने के लिए तुरंत मंत्र पढ़कर शेर को बंद पिंजरे से बाहर निकाल दिया। शेर ने निकलते ही एक शिकारी को मार डाला। अन्‍य शिकारियों ने बड़ी कठिनाई से उसको फिर पकड़कर बंद किया। इस पर संजय हंसकर उनसे बोला- कहो तो इसे फिर निकाल दूं!

शिकारियों ने उसे जादूगर समझकर खूब पीटा, इतना पीटा कि वह अचैत होकर गिर पड़ा। होश आने पर वह लंगड़ाता हुआ आगे बढ़ा। कुछ दूर जाने पर एक पहाड़ी गांव मिला। गांववालों को अन्‍न का बड़ा संकट था, क्‍योंकि पहाडि़यों के कारण वे खेती नहीं कर सकते थे। संजय ने सोचा कि यदि मैं योगबल से पहाड़ों को यहां से हटा दूं तो यो लोग मुझे सिर पर बैठा लेंगे। उसने गांववालों के आगे एक मंत्र पढ़ा। बस, सारी पहाडि़यां खिसकने लगी। धीरे-धीरे वे घरों को तहस-नहस करती हुई आगे चल पड़ी। सारे गांव में हाहाकर मच गया। लोग प्राण बचाने के लिए संजय की शरण में पहुंचे। वह पहाड़ को चला तो सकता था, लेकिन रोकने की विद्या नहीं जानता था, इसलिए किसी का उद्धार नहीं कर सका। सबके घर और पशु देखते-देखते नश्‍ट हो गए। पहाडि़यां सैकड़ों गांवों को मिट्टी में मिलाती हुई बंगाल की खाड़ी में जाकर समा गई। इधर चारों ओर से लोग डण्‍डे लेकर संजय के पीछे पड़ गए। वह मार खाकर भागता-भागता मछुओं के एक गांव में पहुंचा। वहां मछलियों का अकाल पड़ा था।

संजय ने सारे मछुओं को इकट्ठा करके कहा- देखो, अभी मैं योग का चमत्‍कार दिखाता हूँ।

उसने मंत्र पढ़कर गांव के तालाब को मछलियों से भर दिया। मछुओं ने जाल डाल दिए। घर-घर मछलियां पकने लगीं। गांव-भर में संजय की महिमा का प्रचार हो गया।

संयोग की बात देखिए। वे मछलियां ज़हरीली थीं। जो लोग खाने के लिए पहले ही टूट पड़े थे वे घर छटपटाकर मर गए। शेष लोग संजय को अघोरी या पिशाच समझकर उस पर टूट पड़े। बीसों लाठियों की चोट से घायल होकर वह गिर पड़ा। गांव वाले उसको मरा हुआ जानकर दूर के एक जंगल में फेंक आए।

आधी रात तक संजय वहीं मूर्चिछत पड़ा रहा। चैतन्‍य होने पर वह पीड़ा से ब्‍याकुल होकर चिल्‍लाने लगा, उसमें स्‍वयं उठकर चलने-फिरने की शक्ति नहीं थी। वहां से कुछ दूरी पर एक महात्‍मा वन में आश्रम बनाकर रहते थे। संजय का चिल्‍लाना सुनकर वे उसके पास आए और उसको अपने कंधे पर उठाकर आश्रम में ले गए। वहां उन्‍होंने जंगली जड़ी-बूटियों से उसकी पीड़ा शान्‍त की।

सवेरे संजय ने महात्‍मा को अपना सारा हाल सुनाकर कहा- महाराज, मेरे पास ऐसी अलौकिक शक्ति है, फिर भी संसार में न तो मुझे मान-प्रतिष्‍ठा मिल रही है और न शक्ति। समझ में नहीं आता कि क्‍या करूं, कैसे करूं! संसार मेरे गुण को मानता ही नहीं है।

महात्‍माजी ने उत्तर दिया- संजय इसमें संसार का नहीं, तुम्‍हारा ही दोष है। तुम अपनी शक्ति का सदुपयोग करना नहीं जानते और अहंकार से चूर होकर उसका झूठा विज्ञापन करने में लगे हो। शक्ति का सर्वोत्तम उपयोग है- अभिमान त्‍यागकर दीनों की सेवा करना, निर्बलों को सहारा देना, जिस उपाय से भी हो सके परोपकार करना। ऐसा करने से ही मनुष्‍य को सुख और यश- दोनों मिलते हैं। यही मनुष्‍य का कर्तव्‍य है। तुम कौतुक दिखाना छोड़कर अपना सेवा-बल दिखाओं। कौतुक तो मायावी राक्षस भी दिखा सकता है। तुम शक्तिशाली मनुष्‍य बनो, मनुष्‍य का कर्तव्‍य करो। इसी में तुम्‍हारा और लोग का भी कल्‍याण है।

संजय की आंखे खुल गई। स्‍वस्‍थ होने पर वह महात्‍मा से लोक-सेवा की शिक्षा लेकर समाज में आया और दूसरों के लिए अपनी शक्ति का सदुपयोग करने लगा। इस उपाय से उसे कीर्ति के साथ सच्‍ची शांति भी मिलने लगी।

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