ढोल की पोल! Panchtantra Story in Hindi With Moral

Dhol Ki Pol Panchtantra Story in Hindi With Moral

शब्‍दमात्रात् न भीतव्‍यम्

शब्‍द-मात्र से डरना उचित नहीं।

गोमायु नाम का गीदड़ एक बार भूखा-प्‍यासा जंगल में घूम रहा था। घूमते-घूमते वह एक युद्धभूमि में पहुँच गया। वहॉं दो सेनाओं में युद्ध होकर शांत हो गया था। किन्‍तु एक ढोल अभी तक वहीं पड़ा था। उस ढोल पर इधर-उधर की बेलों की शाखाऍं हवा से हिलती हुई प्रहार करती थी। उस प्रहार से ढोल से बड़े ज़ोर की आवाज़ होती थी।

आवाज़ सुनकर गोमायु बहुत डर गया। उसने सोचा, इससे पूर्व कि यह भयानक शब्‍दवाला जानवर मुझे देखे, मैं यहॉं से भाग जाता हूँ- किन्‍तु दूसरे ही क्षण उसे याद आया कि भय या आंनद के उद्वेग में हमें सहसा कोई काम नहीं करना चाहिए। पहले भय के कारण खोज करनी चाहिए। यह सोचकर वह धीरे-धीरे उधर चल पड़ा, जिधर से शब्‍द आ रहा था। शब्‍द के बहुत निकट पहुँचा तो ढोल को देखा। ढोल पर बेलों की शाखाऍं चोट कर रही थी। गोमायु ने स्‍वयं भी उस पर हाथ माने शुरू कर दिए। ढोल और भी ज़ोर से बज उठा।

गीदड़ ने सोचा, यह जानवर तो बहुत सीधा-सादा मालूम होता है। इसका शरीर भी बहुत बड़ा है। मांसल भी है। इसे खाने से बहुत दिनों की भूख मिट जाएगी। इसमें चर्बी, मांस, रक्‍त खूब होगा। यह सोचकर उसने ढोल के ऊपर लगे चमड़े में दॉंत गड़ा दिए- चमड़ा बहुत कठोर था।, गीदड़ के दो दॉंत टूट गए। बड़ी कठिनाई से ढोल में एक छिद्र हुआ। उस छिद्र को चोड़ा करके गोमायु गीदड़ जब ढोल में घुसा तो यह देखकर बड़ा निराश हुआ कि वह तो अंदर से बिलकुल खाली है, उसमें रक्‍त-मांस-मज्‍जा थे ही नहीं।

– इसीलिए मैं कहता हूँ कि शब्‍द मात्र से डरना उचित नहीं है। पिंगलक ने कहा- मेरे सभी साथी उस आवाज़ से डरकर जंगल से भागने की योजना बना रहे हैं। इन्‍हें किस तरह धीरज बंधाऊं?

दमनक- इसमें इनका क्‍या दोष? सेवक तो स्‍वामी का ही अनुकरण करते हैं! जैसा स्‍वामी होगा, वैसे ही उसके सेवक होंगे। यह संसार की रीति है। आप कुछ काल धीरज रखें, साहस से काम लें। मैं शीघ्र ही शब्‍द का स्‍वरूप देखकर आऊँगा।

पिंगलक- तू वहॉं जाने का साहस कैसे करेगा?

दमनक- स्‍वामी के आदेश का पालन करना ही सेवक का काम है। स्‍वामी की आज्ञा हो तो आग में कूद पडूँ, समुद्र में छलॉंग मार दूँ।

पिंगलक- दमनक! जाओ इस शब्‍द का पता लगाओ। तुम्‍हारा मार्ग कल्‍याणकारी हो, यही मेरा आशीर्वाद है।

तब दमनक पिंगलक को प्रणाम करके संजीवक के शब्‍द की ध्‍वनि का लक्ष्‍य बॉंधकर उसी दिशा में चल दिया।

दमनक के जाने के बाद पिंगलक ने सोचा- यह बात अच्‍छी नहीं हुई कि मैंने दमनक का विश्‍वास करके उसके सामने अपने मन का भेद खोल दिया। कहीं वह उसका लाभ उठाकर दूसरे पक्ष से मिल जाए और उसे मुझ पर आक्रमण करने के लिए उकसा दे तो बुरा होगा। मुझे दमनक का भरोसा नहीं करना चाहिए था। यह पदच्‍युत है, उसका पिता मेरा प्रधान मंत्री था। एक बार सम्‍मानित होकर अपमानित हुए सेवक विश्‍वासपात्र नहीं होते। वे सदा अपने इस अपमान का बदला लेने का अवसर खोजते रहते हैं। इसलिए किसी दूसरे स्‍थान पर जाकर दमनक की प्रतीक्षा करता हूँ।

यह सोचकर वह दमनक की राह देखता हुआ दूसरे स्‍थान पर अकेला चला गया।

दमनक जब संजीवक के शब्‍द का अनुकरण करता हुआ उसके पास पहुँचा तो यह देखकर उसे प्रसन्‍नता हुई कि वह कोई भयंकर जानवर नहीं बल्कि सीधा-सादा बैल है। उसने सोचा, अब में संधि-विग्रह की कूटनीति से पिंगलक को अवश्‍य अपने वश में कर लूँगा। आपत्तिग्रस्‍त राजा ही मंत्रियों के वश में होते हैं।

यह सोचकर वह पिंगलक से मिलने के लिए वापस चल दिया।

पिंगलक ने उसे अकेले आया देखा तो उसके दिल में धीरज बंधा। उसने कहा- दमनक, वह जानवर देख लिया तुमने?

दमनक- आपकी दया से देखा, स्‍वामी!

पिंगलक- सचमुच?

दमनक- स्‍वामी के सामने असत्‍य नहीं बोल सकता मैं। आपकी तो मैं देवता की तरह पूजा करता हूँ, आपसे झूठ कैसे बोल सकूँगा?

पिंगलक- संभव है तूने देखा हो, इसमें विस्‍मय क्‍या ? और इसमें भी आश्‍चर्य नहीं कि उसने तुझे नहीं मारा। महान व्‍यक्ति महान शत्रु पर ही अपना पराक्रम दिखाते हैं, दिन और तुच्‍छ जन पर नहीं। आंधी का झोंका बड़े वृक्षों को ही गिराता है, घास-पात को नहीं।

दमनक- मैं दीन ही सही, किन्‍तु आपकी आज्ञा हो तो मैं उस महान पशु को भी आपका दीन सेवक बना दूँ।

पिंगलक ने लम्‍बी साँस खींचते हुए कहा- यह कैसे होगा दमनक?

दमनक- बुद्धि के बल से सब कुछ हो सकता है स्‍वामी! जिस काम को बड़े-बड़े हथियार नहीं कर सकते, उस काम को छोटी-सी बुद्धि कर सकती है।

पिंगलक- यदि यही बात है तो मैं तुझे आज से अपना प्रधानमंत्री बनाता हूँ। आज से मेरे राज्‍य के इनाम बॉंटने या दण्‍ड देने के काम तेरे ही अधीन होंगे।

पिंगलक से यह आश्‍वासन पाने के बाद दमनक संजीवक के पास जाकर अकड़ता हुआ बोला- अरे दुष्‍ट बैल! मेरा स्‍वामी पिंगलक तुझे बुला रहा है। तू यहॉं नदी के किनारे व्‍यर्थ ही हुंकार क्‍यों भरता रहता है?

संजीवक- यह पिंगलक कौन?

दमनक- अरे! पिंगलक को नहीं जानता? थोड़ी देर ठहर तो उसकी शक्ति को जान जाएगा। जंगल के सब जानवरों का स्‍वामी पिंगलक शेर वहॉं वृक्ष की छाया में बैठा है।

यह सुनकर संजीवक के प्राण सूख गए। दमनक के सामने गिड़गिड़ाते हुए बोला- मित्र! तू सज्‍जन प्रतीत होता है। यदि तू मुझे वहॉं ले जाना चाहता है तो पहले स्‍वामी से मेरे लिए अभय-वचन ले ले।

दमनक- तेरा कहना सच है मित्र! तू यहीं बैठ, मैं अभय-वचन लेकर अभी आता हूँ।

तब, दमनक पिंगलक के पास जाकर बोला- स्‍वामी! वह कोई साधारण जीव नहीं है। वह तो भगवान का वाहक बैल है। मेरे पूछने पर उसने मुझे बतलाया कि उसे भगवान ने प्रसन्‍न होकर यमुना-तट की हरी-हरी घास खाने को यहॉं भेजा है। वह तो कहता है कि भगवान ने उसे यह सारा वन खेलने और चरने को सौंप दिया है।

पिंगलक- सच कहते हो दमनक! भगवान के आशीर्वाद के बिना कौन बैल है जो यहॉं इस वन में इतनी निश्‍शंकता से घूम सके! फिर तूने क्‍या उत्‍तर दिया दमनक?

दमनक- मैंने उसे कहा कि इस वन में तो चंडिका वाहन-रूप शेर पिंगलक पहले से ही रहता है। तुम भी उसके अतिथि बनकर रहो। उसके साथ आंनद से विचरण करो, वह तुम्‍हारा स्‍वागत करेगा।

पिंगलक- फिर उसने क्‍या कहा?

दमनक- उसने यह बात मान ली और कहा कि अपने स्‍वामी से अभय वचन ले आओ, मैं तुम्‍हारे साथ चलूंगा। अब स्‍वामी जैसा चाहें, वैसा करूंगा।

दमनक की बात सुनकर पिंगलक बहुत प्रसन्‍न हुआ, बोला- बहुत अच्‍छा कहा दमनक, तूने बहुत अच्‍छा कहा। मेरे दिन की बात कह दी। अब उसे अभय-वचन देकर शीघ्र मेरे पास ले आओ।

दमनक संजीवक के पास जाते-जाते सोचने लगा- स्‍वामी आज बहुत प्रसन्‍न है। बातों ही बातों में मैंने उन्‍हें प्रसन्‍न कर लिया। आज मुझसे अधिक धन्‍यभाग्‍य कोई नहीं।

संजीवक के पास जाकर दमनक सविनय बोला- मित्र! मेरे स्‍वामी ने तुम्‍हें अभय-वचन दे दिया है, मेरे साथ आ जाओ। किन्‍तु, राजप्रसाद में जाकर अभिमानी न हो जाना, मुझसे मित्रता का संबंध निभाना। मैं भी तुम्‍हारे संकेत से राज्‍य चलाऊंगा। हम दोनों मिलकर राज्‍य लक्ष्‍मी का भोग करेंगे।

दोनों मिलकर पिंगलक के पास गए। पिंगलक ने नखविभूषित दाहिना हाथ उठाकर संजीवक का स्‍वागत किया और कहा- कल्‍याण हो आपका। अन्‍य इस निर्जन वन में कैसे आ गए?

संजीवक ने सव वृतान्‍त कह सुनाया। पिंगलक ने सब सुनकर कहा- मित्र! डरो मत। इस वन में मेरा ही राज्‍य है। मेरी भुजाओं से रक्षित वन में तुम्‍हारा कोई बाल भी बॉंका नहीं कर सकता । फिर भी, अच्‍छा यही है कि तुम हर समय मेरे साथ रहो। वन में अनेग भयंकर पशु रहते हैं। बड़े-बड़े हिसंक बनचरों को भी डरकर रहना पड़ता है, तुम तो फिर हो ही निरामिषभोजी

शेर और बैल की इस मैत्री के बाद कुछ दिन तो वन का शासन करटक-दमनक ही करते रहे, किन्‍तु बात में संजीवक के संपर्क से पिंगलक भी नगर की सभ्‍यता से परिचित हो गया। संजीवक को सभ्‍य जीव मानकर वह उसका सम्‍मान करने लगा और स्‍वयं भी संजीवक की तरह सुसभ्‍य होने का यत्न करने लगा। थोड़े दिन बाद संजीवक का प्रभाव पिंगलक पर इतना बढ़ गया कि पिंगलक ने अन्‍य सब वनचर पशुओं की उपेक्षा शुरू कर दी। प्रत्‍येक प्रश्‍न पर पिंगलक संजीवक के साथ ही एकान्‍त मंत्रणा किया करता। करटक-दमनक बीच में दखल नहीं दे पाते थे। संजीवक की इस मानवृद्धि से दमनक के मन में आग लग गई।

दमनक बोला- करटक भाई! यह तो अनर्थ हो गया। शेर की दृष्टि में महत्‍व पाने के लिए ही तो मैंने यह प्रपंच रचा था। इसी लक्ष्‍य से मैंने संजीवक को शेर से मिलाया था। अब उसका परिणाम सर्वथा विपरीत ही हो रहा है।

संजीवक को पाकर स्‍वामी ने हमें बिल्‍कुल भुला दिया है। यहां तक कि अपना काम भी वह भूल गया है।

करटक ने कहा- किन्‍तु इसमें भूल किसकी है? तूने ही दोनों की भेंट कराई थी। अब तू ही कोई उपाय कर, जिससे इन दोनों में बैर हो जाए।

दमनक- जिसने मेल कराया है, वह फूट भी डाल सकता है।

करटक- यदि इनमें से किसी को भी यह ज्ञान हो गया कि तू फूट कराना चाहता है तो तेरा कल्‍याण नहीं।

दमनक- मैं इतना कच्‍चा खिलाड़ी नहीं हूँ। सब दॉव पेंच जानता हूँ।
करटक- मुझे तो फिर भी भय लगता है। संजीवक बुद्धिमान है, वह ऐसा नहीं होने देगा।
दमनक- भाई मेरा बुद्धि-कौशल सब करा देगा। बुद्धि के बल से असम्‍भव भी संभव हो जाता है। जो काम शस्‍त्रास्‍त्र से नहीं हो पाता, वह बुद्धि से हो जाता है। जो जैसे सोने की माला से काकपत्‍नी ने काले सॉंप का वध किया था।

करटक ने पूछा- वह कैसे?

दमनक ने तब ‘सांप और कौवे की कहानी’ सुनाई!

पढें सांप और कौवे की कहानी:- अक्‍ल बड़ी की भैंस!

देखें सभी पंचतंत्र की प्रेरक कहानियां


Read Dhol Ki Pol Panchtantra Kahani in Hindi, Panchtantra Short Stories With Moral for Kids in Hindi, Read All Motivational Story in Hindi,

error: Content is protected !!