धार्मिक अनुष्ठानों में कुश (दर्भ) नामक घास से निर्मित आसन बिछाया जाता है। पूजा-पाठ आदि कर्मकांड करने से व्यक्ति के भीतर जमा आध्यात्मिक शक्ति-पुंज का संचय कहीं लीक होकर अर्थ न हो जाए अर्थात् पृथ्वी में न समा जाए, उसके लिए कुश का आसन विद्युत् कुचालक का कार्य करता है। इस आसन के कारण पार्थिव विद्युत प्रवाह पैरों के माध्यम से शक्ति को नष्ट नहीं होने देता है। कहा जाता है कि कुश के बने आसन पर बैठकर मंत्र जाप करने से सभी मंत्र सिद्ध होते हैं।

नास्य केशान् प्रवपन्ति, नोरसि ताडमाध्नते।
– देवी भागवत 19/32
अर्थात् कुश धारण करने से सिर के बाल नहीं झड़ते और छाती में आघात यानी दिल का दौरा (हार्ट अटैक) नहीं होता।
उल्लेखनीय है कि वेद ने कुश को तत्काल फल देने वाली औषधि, आयु की वृद्धि करने वाला और दूषित वातावरण को पवित्र करके संक्रमण फैलने से रोकने वाला बताया है।
कुश की पवित्री पहनना जरूरी क्यों?
कुश की अंगूठी बनाकर अनामिका उंगली में पहनने का विधान है, ताकि हाथ द्वारा संचित आध्यात्मिक शक्ति पुंज दूसरी उंगलियों में न जाए, क्योंकि अनामिका के मूल में सूर्य का स्थान होने के कारण यह सूर्य की उंगली है। सूर्य से हमें जीवनी शक्ति, तेज और यश प्राप्त होता है। दूसरा कारण इस ऊर्जा को पृथ्वी में जाने से रोकना भी है। कर्मकांड के दौरान यदि भूलवश हाथ भूमि पर लग जाए, तो बीच में कुश का ही स्पर्श होगा। इसलिए कुश को हाथ में भी धारण किया जाता है। इसके पीछे मान्यता यह भी है कि हाथ की ऊर्जा की रक्षा न की जाए, तो इसका दुष्परिणाम हमारे मस्तिष्क और हृदय पर पड़ता है।
Also Read This:
