दो भाई थे। बड़ा भाई बुद्धिमान और परिश्रमी था, जब कि छोटा-नसमझ, सुस्त और ईर्ष्यालु था। उसका नाम कादिर था। यह कहानी उसी के बारे में है।
क़ादिर अपने भाई के पास आया और अपना दुखड़ा रोने लगा:
”ऐसा क्यों होता है, भैया, कृपा करके ज़रा समझा दो! हम दोनों एक ही वंश और क़बीले के हैं, एक ही बाप के बेटे हैं, पर हमारा भाग्य अलग-अलग है। तुम्हें हर काम में सफलता मिलती है, मुझे- किसी काम में नहीं मिलती। तुम्हारी भेड़ें ब्याती है, मोटी होती रहती हैं, पर मेरी- एक के बाद एक मरती जा रही है, तुम्हारा घोड़ा घुड़दौड़ में अव्वल आया, जबकि मेरे ने मुझे बीच में गिरा दिया, तुम्हारे घर में हमेशा मांस और कि़मिज़ रहता है, जबकि मुझे घर में पनीला शोरबा भी पेट भर खाने को नहीं मिलता, तुम्हारी पत्नी स्नेहीमयी है, जबकि मेरी तरफ़ कोई लड़की आंख उठाकर भी नहीं देखती, तुम्हारा बुजुर्ग आदर करते हैं, जबकि छोटे-छोटे छोकरे भी बेशर्मी से मेरी खिल्ली उड़ाते हैं…;”
बड़ा भाई मुस्कराकर बोला:
”इसका कारण यह है कि मेरा भाग्य मेरी सहायता करता है।”
”आखिर वह मेरी मदद क्यों नहीं करता?”
”हर मनुष्य का अपना-अपना भाग्य होता है, क़ादिर, मेरा भाग्य मेहनती है, और तुम्हारा शायद कहीं किसी क़ैराग़ज (एल्म कि़स्म का सोवियत संघ के दक्षिणी इलाकों में पाया जाने वाला वृक्ष।) के तले सो रहा है।”
”तो ठीक है,” क़ादिर ने सोचा, ”मैं अपने भाग्य को ढूँढ़कर उसे मेरी खातिर काम करने को मजबूर कर दूँगा।”
वह उसी दिन अपने भाग्य की खोज में निकल पड़ा।
वह चलता रहा, चलता रहा और बहुत दूर जा पहुँचा। अचानक एक चट्टान के पीछे से एक शेर निकला और उसका रास्ता रोककर खड़ा हो गया। क़ादिर भयभीत हो उठा, लेकिन भागकर वह जा भी कहॉं सकता था: चारों तरफ़ घना जंगल फैला हुआ था। अब क्या होगा?
शेर बोला:
”तू कौन है?”
”मैं क़ादिर हूँ।”
”कहॉं जा रहा है?”
”अपने भाग्य को खोजने।”
”तो, फिर, सुन मेरी बात, क़ादिर,” शेर बोला, ”जब तू अपने भाग्य को ढूँढ़ लोगो, तो उससे पूछना कि मैं क्या करूँ, जिससे मेरे पेट का दर्द ठीक हो जाये। किसी जड़ी-बूटी से फ़ायदा नहीं हो रहा है। मैं परेशान हो गया हूँ, किसी काम का नहीं रहा। मेरा काम करने का वचन देगा, तो तुझे नहीं छुऊँगा, वरना इसी वक़्त चबा जाऊँगा।”
क़ादिर ने क़सम खायी कि वह उसकी कोई तरकीब बतायेगा या दवा लाकर देगा, और जानवर उसके रास्ते से हट गया।
क़ादिर आगे चला। उसने देखा: धूप में तपते खेत में एक बूढ़ा, बुढि़या और अद्वितीय सुन्दरी बैठे फूट-फूटकर रो रहे हैं, जैसे उनका कोई मर गया हो।
क़ादिर रुक गया।
”आप लोग क्यों रो रहे हैं?”
”हम पर भारी मुसीबत आ गयी है,” बृद्ध ने उत्तर दिया। ”मैंने तीन साल पहले यह खेत खरीदा था और इसकी क़ीमत अपना सब कुछ देकर चुकायी थी। हम कमरतोड़ मेहनत करके इस जमीन में खेती करते हैं, जैसे मां बच्चे की संभाल करती है, वैसे हम पौधों की संभाल करते हैं। पर अभी तक एक बार भी फ़सल नहीं उठा पाये। अंकुर खूब घने निकलते हैं, बसंत में उमदा फ़सल की आशा दिलाता हरा-भरा हो जाता है, पर बीच गर्मी में, हम कितना भी पानी क्यों न दें, पौधे मुरझाने लगते हैं और जड़ तक सूख जाते हैं। इस प्रकोप का क्या कारण है, कोई नहीं बता पाता है। हम मर जायेंगे, भले आदमी। हमारा भाग्य है ही नहीं।”
क़ादिर बोला:
”हालांकि मेरा भाग्य है, पर वह कहीं किसी घने क़ैराग़च के तले सो रहा है। मैं उसे ढूँढ़ने ही जा रहा हूँ।”
बूढ़ा क़ादिर की चिरौरी करने लगा:
”प्यारे बेटा, तुम्हारा बाल भी बांका न हो, सफलता तुम्हारे क़दम चूमे! अगर तुम्हें अपना भाग्य मिल गया, तो कृपा करके, उससे पूछना कि क्या उसे हमारी फ़सल बरबाद होने का कारण मालूम है? हम हमेशा तुम्हारे आभारी रहेंगे।”
क़ादिर ने बूढ़े को जवाब लाकर उसी स्थान पर लौटने का वादा किया और फिर आगे चल पड़ा।
बहुत दिनों बाद क़ादिर एक बड़े शहर में पहुँचा, जो, मालूम पड़ा, खान की राजधानी था। उसके रास्ते में भीड़ के बीच नजर आने की देर थी कि उस पर सिपाही टूट पड़े और उसका गरेबान पकड़कर खान के महल में खीच ले गये। इतनी अप्रत्याशित बात से क़ादिर किंकर्त्तव्यविमूढ़ रह गया और यह न ज्ञात होने पर कि उसका क्या क़सूर है, बुरी से बुरी सज़ा की प्रतीक्षा करने लगा। किन्तु खान ने उसका स्वागत सहृदय मुस्कान और स्नेहपूर्ण शब्दों से किया:
”मुम मेरे मेहमान बनो, परदेसी,” खान ने कहा, ”और बताओ कि तुम कौन हो और कहाँ जा रहे हो?”
क़ादिर घुटनों पर गिर पड़ा और उसने हकलाते हुए अपनी सारी आपबीती खान को सुना दी।
उसकी बात सुनकर खान ने हुक्म दिया:
”उठो और मेरे पास आओ, क़ादिर। मुझसे डरो मत। मैं तुमसे अपने दास की तरह नहीं, मित्र की तरह बात कर रहा हूँ। मुझे तुमसे एक विनती करनी है। तुम्हें जब अपना भाग्य मिल जाये, तो उससे पूछना कि मैं इतने विशाल, समृद्ध और शक्तिशाली देश का खान होते हुए भी अपने सोने के महल में क्यों खुश नहीं रह पा रहा हूं और तड़पता रहता हूँ। उत्तर के लिए, वह चाहे जैसा भी क्यों न हो, मैं तुम्हें खुले दिल से इनाम दूँगा।”
और क़ादिर फिर सफ़र पर निकल पड़ा। वह तीन वर्ष तक यात्रा करता रहा। अंत में वह एक ऊँचे काले पर्वत के पास पहुँचा और देखा: एक खड़ी चट्टान की कगार पर एक शाखी क़ैराग़च उगा हुआ है और उसके नीचे मनुष्य से मिलता-चुलता कोई नंगा, कई दिनों से नहीं नहाया प्राणी नंगे पैर, बाल बिखेरे गहरी नींद में सो रहा है।
”क्या सचमुच यही मेरा भाग्य है?” क़ादिर ने सोचा और आलसी को जगाने लगा:
”उठो, ऑंखें खोलो, काम का वक़्त हो गया है। मेरे भाई का भाग्य तों वहॉं उसके लिए कमरतोड़ मेहनत कर रहा है। तुम क्या मेरी सेवा नहीं करना चाहते? आंखें खोलो और जल्दी से उठो!”
वह काफ़ी देर तक चिल्लाता और उनींदे को झंझोड़ता रहा। अंत में भाग्य हिला, उसने अंगड़ाई लेकर सिर उठाया और जँभाइयॉं लेते हुए ऑंखें मलने लगा।
”क्या तुम हो, क़ादिर? तुम बेकार भटकते फिर रहे हो दुनिया में, पैर तोड़ रहे हो। ऐसे ही किसी शाखी क़ैराग़च के तले लेटे रहते, तो ज्यादा अच्छा होता, तुम्हें अधिक शांति मिलती। भाग्य तो तुम्हारे भाई जैसे बुद्धिमानों और परिश्रमियों की सहायता करता है और तुम्हारे जैसे मूर्खों और कामचोरों के तो वह भी किसी काम का नहीं होता। लेकिन जब तुम मेरे पास आ ही पहुँचे हो, तो बैठो और बताओं कि तुमने यहॉं का रास्ता कैसे खोजा, क्या-क्या, किस-किस से मिले, उनसे क्या-क्या बातें हुईं और तुम्हें मुझसे क्या चाहिए?”
क़ादिर अपना क़िस्सा सुनाने लगा, और भाग्य जंभाइयां लेता हुआ उसकी बातें सुनता रहा। उसकी पूरी बातें सुनकर उसने उसे समझाया कि उसे वापस लौटते समय किस-किस को क्या-क्या उत्तर देना है और फिर बोला:
”तुम्हारे क़िस्से सुनकर मैं इस निर्णय पर पहुँचा हूँ, कादिर, कि तुम में बुराइयां बहुत है, पर साथ ही कुछ अच्छाइयां भी है। तुम्हारी अच्छाइयों के लिए ही मैं तुम्हें इनाम देना चाहता हूँ। अब घर जाओ। तुम्हारा भाग्योदय होनेवाला है। हर किसी को ऐेसा सुख नहीं मिलता। लेकिन देखो, कही अपनी नासमझी के कारण मौंका मत चूक जाना। अच्छा, जाओं!”
क़ादिर का भाग्य फिर क़ैराग़च तले पैर पसारकर लेट गया और उसके खर्राटों से सारी घाटी गूंजने लगी। क़ादिर उससे अपना भविष्य भली-भांति मालूम करने के लिए उसे फिर झंझोड़ने लगा, पर वह कहाँ जागनेवाला था – वह पसीने-पसीने हो गया, पर भाग्य किसी तरह जागा ही नहीं। वह थोड़ी देर खड़ा रहा और फिर मुड़कर उसी रास्ते पर डग भरने लगा, जिससे आया था।
वह राजधानी में पहुँचकर खान के सामने हाजिर हुआ। खान उसे देख बहुत खुश हुआ, उसने अपने सारे अनुचरों व अंगरक्षकों को बाहर भेज दिया और अतिथि को अपने पास बिठा लिया:
”सुनाओ, क़ादिर!”
और क़ादिर ने का:
”मेरे भाग्य ने मुझे तुम्हारे दु:ख का कारण बता दिया। तुम इस देश पर राज कर रहे हो, और सब तुम्हें पुरुष मानकर तुम्हें खान कहकर पुकारते हैं। जब कि वास्तव में तुम स्त्री हो। तुम्हारे लिए यह रहस्य छिपाये रखना तुश्किल होता है और सेना-संचालन करना, शासन चलाना अकेले तुम्हारे बस का काम नहीं है। तुम कोई योग्य पति चुन लो, फिर सुख से रहने लगोगे।”
”तुम्हारे भाग्य ने बिलकुल सच कहा, क़ादिर,” खान ने लजाते हुए कहा और अपनी बहुमूल्य टोपी उजार दी: काली चोटियां रंगीन क़ालीन को छूने लगी, और क़ादिर ने देखा कि उसके सामने पूनम के चांद-सी सुंदर लड़की खड़ी है।
खानरूपी युवती शर्म से लाल होकर बोली:
”मेरा रहस्य जाननेवाले तुम पहले बांके नौजवान हो। तुम ही मेरे पति और मेरे देश के खान बन जाओ!”
क़ादिर यह शब्द सुनकर स्तब्ध रह गया और होश में आने पर सिर और हाथ हिलाने लगा:
”नहीं, नहीं, मैं खान नहीं बनना चाहता! मेरे भाग्य का उदय होनेवाना है।”
और वह आगे चल दिया।
बूढ़े, बुढ़िया और उनकी रूपवती बेटी ने सिर नवाकर उसका हार्दिक स्वागत किया।
”हमारे लिए क्या ख़बर लाये हो, प्यारे क़ादिर?”
”आपके लिए ख़बर यह है,” क़ादिर ने उत्तर दिया, ”कि पुराने ज़माने में, जिस जगह आपका खेत है, वहॉं एक धनी आदमी ने विदेशियों की लूट-मार से डरकर सोने से भरे बड़े-बड़े चालीस घड़े गाड़ दिये थे। इसी लिए आपकी जमीन पर कोई फ़सल नहीं उगती। आप सोना खोदकर निकाल लीजिये और आपकी मिट्टी फिर उपजाऊ हो जायेगी, फिर आप इस इलाक़े में सबसे ज्यादा धनी हो जायेंगें।”
ग़रीब लोग खुशी से नाच उठे, हंसने लगे, रोने लगे और क़ादिर को सीने से लगाने लगे।
बूढ़़ा बोला:
”तुमने हम सबको सुखी कर दिया, क़ादिर। हमारे साथ रह जाओ। सोना खोदने में हमारी मदद करो। आधा खजाना तुम ले लो और हमारी बेटी से शादी कर लो। तुम मेरे बेटे और दामाद बन जाओ।”
क़ादिर को बूढ़ा और बुढि़या अच्छे लगे, उनकी बेटी तो उसे और भी ज्यादा पसंद आयी, फिर भी वह उनके यहॉं रात बिनाने को भी नहीं रुका।
”नही,” क़ादिर ने कहा, ”मेरे भाग्योदय होनेवाला है।”
और वह आगे चल दिया।
वह चलता रहा, चलता रहा- उसके जूते घिस गये, पांव चूर-चूर हो गये, बड़ी मुश्किल से सुनसान पगडण्डी पर लंगड़ाता हुआ चलता रहा। एक चट्टान देखकर वह उस पर बैठ गया और सोचने लगा:
”मेरी यात्रा का अंत होनेवाला है, पर मेरा भाग्योदय कब होगा?”
वह बैठकर यह सोचने ही लगा था कि देखा- उसके सामने शेर खड़ा है।
”क्यों, क़ादिर,” शेर बोला, ”मेरे लिए सलाह या दवा लाया?”
”दवा तो मैं नहीं लाया, पर तुम्हारी बीमारी से पिण्ड छुड़ाने का एक तरीक़ा है। तुम दुनिया के सबसे मूर्ख आदमी का दिमाग़ खा लो- फ़ौरन ठीक हो जाओगे।”
”धन्यवाद, क़ादिर। मैं अब सर्वत्र ऐसे बेवक़ूफ को खोजूँगा। क्या तुम इस काम में मेरी मदद करोगे? अच्छा, सुनाओ, तुम सफ़र में कैसे-कैसे लोगों से मिले, उनसे क्या-क्या बातें की। जब तक नहीं सुनाओगे, तुम्हें जाने नहीं दूँगा।”
कोई चारा न रहा। क़ादिर ने उसे बूढ़े कै़राग़च के तले अपने भाग्य के साथ हुई बातचीत, खानरूपी युवती और बूढ़े, बुढि़या व उनकी रूपवती बेटी के बारे में बता दिया।
शेर की आंखे चमक उठीं, वह दांत पीसने लगा और उसकी अयाल खड़ी हो गयी। वह बोला:
”कितना मूर्ख है तू, क़ादिर! सुखी होने का इतना अच्छा मौक़ा तुझे मिला था, पर तूने उसे छोड़ दिया। तूने राज और सम्मान को ठुकरा दिया, धन और समृद्धि को ठुकरा दिया, तूने दो सुंदर युवतियों को ठुकरा दिया… अगर मैं दुनिया के तीन चक्कर लगाऊँ, तो भी मुझे तुमसे ज़्यादा मूर्ख किसी हातल में नहीं मिलेगा। तेरा दिमाग़ से ही मेरा पेट ठीक होगा!…”
शेर दौड़कर क़ादिर पर कूदा। क़ादिर डर के मारे सिर कटे मेढ़े की तरह ज़मीन पर गिर पड़ा। और इसी से उसकी जान बच गयी: शेर सीने के बल चट्टान से टकराया और वहीं ढेर हो गया।
”मेरा भाग्य कितना अच्छा है!” क़ादिर खुशी से फूला न समाता चिल्लाया।
”मेरी मृत्यु निश्चित थी, पर मैं जि़न्दा बच गया। मेरा भाग्य कितना अच्छा है!”
क़ादिर जब अपने गांव लौटकर आया, उसे कोई पहचान नहीं सका: चेहरा-मोहरा तो उसका पहले जैसा था, पर स्वभाव बिलकुल दूसरा। मानो बांके नौजवान का दूसरा जन्म हुआ हो, वह बिलकुल नया आदमी बन चुका था। वह हमेशा हंसमुख रहने लगा, सबसे नम्रतापूर्वक व्यवहार करने लगा। उसने फिर कभी कोई शिकायत भी नहीं की और किसी से ईर्ष्या भी नहीं की। अब वह सुबह से शाम तक गीत गाता मेहनत करता रहता। सब उसकी बुद्धिमत्ता और मधुर स्वभाव की प्रशंसा करते न अघाते। क़ादिर की सम्पन्नता दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगी, उसका अपना घर बस गया और वह सुख व सम्मान के साथ जीने लगा।
”क्या हाल है, क़ादिर?” उसके मित्र पूछते।
”मैं दुनियां भर में सबसे ज्यादा सुखी हूँ!” क़ादिर मुस्कराजा हुआ उत्तर देता।
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