तीन शिकारी – एक मजेदार लोक कथा Funny Folk Tales in Hindi

Teen Shikari Hunter Folk Tales Story in Hindi

तीन शिकारी थे : दो दाढ़ीवाले, एक बेदाढ़ी

एक बार वे चिडि़यों का शिकार करने जंगल में गये। वे दिन भर शिकार की तलाश में भटकते रहे और केवल शाम होते-होते एक द्रोफा (जंगल की एक बड़ी चिडि़या, जिसकी गर्दन लम्‍बी होती है और पैर काफ़ी मजबूत होते हैं।) मार पाये।

फिर शिकारियों ने एक झोपड़ी बनायी, अलाव सुलगाया और शिकार को बांटने ही जा रहे थे कि दुविधा में पड़ गये: द्रोफा तो केवल एक थी, जब कि वे तीन थे।

दाढ़ीवाले बोले:

”द्रोफा उसी को मिलेगी, जो सबसे ज्यादा देर तक चुप बेठा रहेगा, एक शब्‍द भी नहीं बोलेगा।”

”ठीक है,” बेदाढ़ी ने मान लिया, ”जैसी तुम्‍हारी इच्‍छा।”

तीनों अलाव के पास बैठ गये, ऐसे चुप्‍पी साध ली, मानो उनकी जबान पर ताले पड़े हों और केवल एक दूसरे की ओर देखते हुए इसी बात की प्रतीक्षा करने लगे कि पहले कौन बोलता है।

एक घंटा बीता, दो बीते, तीन घंटे बीत गये- पर किसी ने मुंह नहीं खोला।

तब बेदाढ़ी ने नि:शब्‍द द्रोफा उठायी और उसके पर नोचने लगा।

दाढ़ीवाले उसकी ओर देखते रहे, पर उन्‍होंने चूं भी नहीं की।

बेदाढ़ी ने द्रोफा के पर नोचकर उसे चुपचाप देगची में डालकर आग पर चढ़ा दिया।

दाढ़ीवाले देखते रहे, पर उन्‍होंने चूँ भी नहीं की।

द्रोफ़ा पक गयी, बेदाढ़ी ने बिना कुछ बोले उसे देगची में से निकाला और जल्‍दी-जल्‍दी खाने लगा।

दाढ़ीवाले उसकी ओर देखते रहे, पर उन्‍होंने चूँ भी नहीं की।

और जब उसने आखिरी हड्डी चचोड़ डाली, तभी दाढ़ीवाले एक साथ चीख उठे: ”तुमने शर्त तोड़कर द्रोफा को खाने की हिम्‍मत कैसे की? यह तो लूटमार है!”

बेदाढ़ी हँसने लगा:

”तुम लोग गुस्‍सा क्‍यों होते हो? क्‍या शर्त भूल गये? यही तो तय हुआ था कि जो सबसे ज्यादा देर चुप रहेगा, उसे ही द्रोफा मिलेगी। है ना? तुम दोनों ही पहले गला फाड़कर चिल्‍लाये। है ना? यानी द्रोफा मेरी हो गयी। फिर अब बहस करने की बात है क्‍या?”

दाढ़ीवाले दाढ़ी खुजलाने लगे। वे समझ गये कि वे बुद्धू बन गये। उन्‍हें खाली पेट ही सोना पड़ा।

अगले दिन शिकारियों ने दो कलहंस और एक चहा मारे।

”हम शिकार का बंटवारा कैसे करेंगे?” दाढ़ीवालों ने पूछा।

बेदाढ़ी बोला:

”तुम दो हो और मैं अकेला। कलहंस भी दो हैं, पर चहा एक है। तुम चहा ले लो और मैं दो कलहंस ले लेता हूँ। तब तुम भी तीन हो जाओगे और हम भी-तीन।”

”अरे, अरे,” दाढ़ीवाले बोले, ”लगता है, भई, तुम हमें बेवकूफ़ बनाना चाहते हो। हर कोई जानता है कि कलहंस चहा से बेहतर होते हैं।”

बेदाढ़ी ने आंख भी नहीं झपकाई।

”सच,” वह बोला, ”कलहंस चहा से बेहतर होते हैं। पर तुम भी तो मुझसे बेहतर हो। इसीलिए तो मैं तुम्‍हें अपने बदले चहा लेने को कह रहा हूँ और खुद तुम्‍हारे बदले कलहंस ले रहा हूँ।”

दाढ़ीवालों ने एक दूसरे से नज़रें मिलायी- उन्‍हें लगा शायद बेदाढ़ी ठीक ही कह रहा है। उन्‍होंने अपनी दाढ़ी खुजलाई औश्र एक ठण्‍डी सांस लेकर चहा को खाने लगे।

जबकि बेदाढ़ी ने भरपेट कलहंस का मांस खाया।

तीसरे दिन शिकारियों ने एक हंस मारा। उन्‍होंने उसके पर नोचकर उसे पकाया और देगची आग पर से उतार ली।

”अब हंस को हम कैसे बांटेगे?” एक दाढ़ीवाले ने पूछा।

”ऐसे,” दूसरा दाढ़ीवाला बोला। ”हम हंस को देगची में पड़ा रहने देंगे और खुद सो जायेंगे। जिसे सबसे आश्‍चर्यजनक सपना दिखाई देगा, हंस उसे ही मिलेगा।”

”ठीक है,” बेदाढ़ी बोला, ”जैसी तुम्‍हारी इच्‍छा।”

शिकारी लेट गये। बेदाढ़ी लेटते ही खर्राटे भरने लगा, जबकि दाढ़ीवाले आधी रात गये तक एक दूसरे से अधिक आश्‍चर्यजनक सपने गढ़ते हुए करवटें बदलते रहे।

सुबह बेदाढ़ी बोला:

”अच्‍छा, अब सुनाओ अपने-अपने सपने।”

पहला दाढ़ीवाला कहने लगा:

”मुझे बहुत अद्भुत सपना दिखाई दिया। मुझे लगा जैसे मैं तुलपार (परी-कथाओं का उड़नेवाला घोड़ा।) बन गया हूँ। मेरे कंधों के नीचे पंख उग आये, पैरों की जगह चांदी के घुर और कंधों पर – सुनहली अयाल। मैंने अयाल झटकारी, पंख फड़फड़ायें, खुर ज़मीन पर मारे और तीन छलांगों में एक छोर से दूसरे छोर तक सारी जंगल पार कर ली। तभी एक अतिसुंदर अपरिचित शूरवीर मेरे सामने आ खड़ा हुआ। वह मेरी पीठ पर सवार हो गया और मैं अपनी पीठ पर बलवान सवार को बैठा महसूस कर इतना ऊँचा उड़ गया कि वहॉं से जमीन दिखाई देना बंद हो गया। मेरा सिर चकरा गया और मेरी नींद खुल गयी।”

दूसरा दाढ़ीवाला सुनाने लगा:

”तुम्‍हारा सपना अच्‍छा है, दोस्‍त, पर मेरा- उससे भी अच्‍छा है। मैंने सपने में देखा कि मैं वही अतिसुंदर अपरिचित शूरवीर हूँ। अचानक तुम तुलपार में बदलकर मेरे पास भागकर आये। मैं उछलकर तुम्‍हारी पीठ पर सवार हो गया, तुम्‍हारी अयाल पकड़ ली और आकाश में उड़ चला। हम आकाश में हवा से बातें करते दूर, बहुत दूर पहुँच गये- आगे सूरज, पीछे चांद, पैरों तले तारे, बिजलियॉं, बादल… मेरे चारों ओर शानदार कपड़े पहने परियां उड़ रही थी, वे मुझ पर बहुमूल्‍य उपहार लुटा रही थी, पर मैं उन्‍हें पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाता, तो कोई भी हाथ नहीं आती थी और न ही मैं तुलपार को रोक पा रहा था… तभी मेरा सपना टूट गया, इसके बाद क्‍या हुआ, मुझे कुछ मालूम नहीं।

तब बेदाढ़ी बोला:

”तुम्‍हारे सपने अच्‍छे हैं, दोस्‍तों, बहुत अच्‍छे! मैं तुम्‍हारा क्‍या मुकाबला कर सकता हूँ! मुझे सपने में दिखा जैसे हम तीनों इस झोपड़ी में बैठे हैं और अचानक तुम में से एक तुलपार बन गया और दूसरा अपरिचित अतिसुंदर शूरवीर। तुलपार ने अयाल झटकारी, पंख फड़फड़ाये, खुर ज़मीन पर मारे और तीन छलांग में एक छोर से दूसरे छोर तक सारी जंगल पार कर गया। तभी न जाने कहॉं से उसके सामने एक अपरिचित शूरवीर आ पहुँचा, उछलकर उसकी पीठ पर सवार हो गया और आकाश में उड़ चला। मैं फूट-फूटकर रोने लगा। ‘आह,’ मैंने मन में कहा, ‘अब मेरे दोस्‍त शायद जमीन पर लौटकर नहीं आयेगे। और हंस की उन्‍हें अब कोई जरूरत नहीं रह गयी है। कम-से-कम मैं कुछ खाकर उन्‍हें याद तो कर लूँ!’ मैंने दु:ख के मारे पूरा हंस खा डाला।”

”तुम क्‍या कह रहे हो!” दोनों दाढ़ीवाले एक साथ चिल्‍ला उठे। ”यह नहीं हो सकता!”

उन्‍होंने देगची में झांककर देखा, उसमें केवल हंस की हड्डियां पड़ी थी।

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