रुद्राक्ष, तुलसी आदि दिव्य औषधियों की माला धारण करने के पीछे वैज्ञानिक मान्यता यह है कि होंठ व जीभ का प्रयोग कर उपांशु जप करने से साधक की कंठ-धमनियों को सामान्य से अधिक कार्य करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप कंठमाला, गलगंड आदि रोगों के होने की आशंका होती है। उसके बचाव के लिए गले में […]
माला में 108 दाने ही क्यों होते है ?
प्राचीन काल से ही जप करना भारतीय पूजा-उपासना पद्धति का एक अभिन्न अंग रहा है। जप के लिए माला की जरूरत होती है, जो रुद्राक्ष, तुलसी, वैजयंती, स्फटिक, मोतियों या नगों से बनी हो सकती है। इनमें रुद्राक्ष की माला को जप के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि इसमें कीटाणुनाशक शक्ति के अलावा विद्युतीय […]
सत्यनारायण की कथा का महत्त्व क्यों ?
श्री सत्यनारायण व्रत कथा देश के अनेक भागों में बहुत लोकप्रिय है। सत्य ही नारायण है, यह भाव सत्यनारायण की कथा से उभरता है। सत्य को साक्षात् भगवान् मानकर जीवन में उसकी आराधना करना ही सत्य-व्रत है। लोग सत्यनारायण कथा के माध्यम से सत्य-व्रत का सही रूप समझें, तो वे सच्चे अर्थों में सुख-समृद्धि के […]
जाति-पांति का भेद-भाव गलत और अनुचित क्यों ?
वर्ण व्यवस्था कर्म प्रधान होती है, जबकि जाति-पाति का संबंध जन्म वंश या कुल से होता है। वर्ण शब्द की उत्पत्ति ‘वृ’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ वरण या चुनाव करना है। जो व्यक्ति अपने गुण, कर्म, स्वभाव के अनुसार व्यवसाय का चुनाव करता है, वह उसी वर्ण का कहलाता है। गीता में भगवान् […]
पूजा कराने और दान-दक्षिणा लेने का अधिकारी ब्राह्मण ही क्यों?
ब्राह्मण में केवल सत्त्वगुण की प्रधानता होती है। इसीलिए उसमें सत्कर्मी को करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। चूंकि उसका स्वभाव सत्कर्मों के अनुकूल होता है, इसलिए उन्हें करने में उसे किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होती। भगवान् श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म इस प्रकार बताएं हैं- शमो दमस्तपः शौच क्षान्तिरार्जवमेव च। ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं […]
ब्राह्मण को सर्वाधिक महत्त्व क्यों?
हमारे धार्मिक शास्त्रों ने ब्राह्मण को सर्वोच्च स्थिति प्रदान की है। इसका प्रमुख कारण यह है कि सात्त्विक गुणों की प्रधानता के कारण ब्राह्मण अपने सज्ञान से सारे समाज को उत्कृष्ट बनाने का प्रयत्न करता है। पढ़ना-पढ़ाना, यज्ञ करना और कराना तथा अच्छे संस्कार देना ब्राह्मण का धर्म है। सारे लोग सन्मार्ग पर चलें, उन्नति […]
गायत्री मंत्र की सबसे अधिक मान्यता क्यों?
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् । गायत्री मंत्र भारतीय संस्कृति का सनातन एवं अनादि मंत्र है। पुराणों में कहा गया है कि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा को आकाशवाणी द्वारा गायत्री मंत्र प्राप्त हुआ था। सृष्टि निर्माण की शक्ति उन्हें इसी की साधना के तप से मिली थी। गायत्री की व्याख्या स्वरूप […]
मंत्रों की शक्ति में विश्वास क्यों ?
निश्चित क्रम में संगृहीत विशेष वर्ण जिनका विशेष प्रकार से उच्चारण करने पर एक निश्चित अर्थ निकलता है, मंत्र कहलाते हैं। शास्त्रकार कहते हैं-मननात् त्रायते इति मंत्रः। अर्थात् मनन करने पर जो त्राण दे, या रक्षा करे, वह मंत्र है। मंत्र में निहित बीजाक्षरों में उच्चारित ध्वनियों से शक्तिशाली विद्युत तरंगें उत्पन्न होती हैं जो […]
श्रीयंत्र की पूजा का विशेष महत्त्व क्यों है ?
यंत्रों में सबसे अधिक चमत्कारिक और शीघ्र असर दिखाने वाला सर्वश्रेष्ठ यंत्र श्रीयंत्र माना जाता है। कलियुग में श्रीयंत्र कामधेनु के समान है। उपासना सिद्ध होने पर सभी प्रकार की श्री अर्थात् चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। इसलिए इसे श्रीयंत्र कहते हैं। वेदों के अनुसार श्रीयंत्र में 33 करोड़ देवताओं का वास है। वास्तुदोष […]
पूजा में यंत्रों का महत्त्व क्यों होता है?
विद्वानों का मानना है कि पूजा के स्थान पर देवी-देवताओं के यंत्र रख कर उनकी पूजा उपासना करने से अधिक उत्तम फल मिलता है, क्योंकि देवी-देवता यंत्र में स्वयं वास करते हैं। अतः मंत्रों की तरह ही यंत्र भी शीघ्र सिद्धि देने वाले होते हैं। यों भी कहा जा सकता है कि यंत्र, मंत्रों का […]
