Posted inHindu Riti Riwaj / Manyataye

जानें शकुन-अपशकुन क्‍या होता है और इसकी मान्यता क्यों है ?

वेदों, स्मृतियों, पुराणादि धर्मशास्त्रों एवं फलित ज्योतिष शास्त्रों तथा धर्मसिन्धु में शुभ-अशुभ शकुनों के विषय में विस्तार से जानकारी दी गई है। शकुन हेतु तुलसीकृत ‘रामाज्ञा-प्रश्न’ एवं ‘रामशलाका’ भी प्रसिद्ध हैं। शकुन के संबंध में प्रसिद्ध ग्रंथ वसंतराज शाकुन का कथन है- ‘शुभाशुभज्ञानविनिर्णयाय हेतुर्नणां यः शकुन’ अर्थात् जिन चिह्नों को देखने से ‘शुभ-अशुभ’ का ज्ञान […]

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शुभ कार्यों में मुहूर्त का महत्त्व क्यों होता है ?

हम आए दिन देखते हैं कि अनेक लोग दैनिक दिनचर्या की शुरुआत हो या यात्रा पर जाना हो, विवाह का अवसर हो, गृह-निर्माण हो या गृहप्रवेश, सभी के लिए शुभ घड़ी, मुहूर्त और चौघड़ियां देखकर कार्य प्रारंभ करते हैं। इसे कुछ पढ़े-लिखे व्यक्ति भले ही दकियानूसी अंधविश्वास कहें, लेकिन वैज्ञानिक प्रयोगों से पता चला है […]

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दिवाली पर लक्ष्मी पूजन क्यों करते हैं ?

हर हिंदू परिवार में दीवाली की रात्रि को धन-दौलत की प्राप्ति हेतु लक्ष्मी का पूजन होता है। ऐसा माना जाता है कि दीवाली की रात लक्ष्मी घर में आती हैं। इसीलिए लोग देहरी से घर के अंदर जाते हुए लक्ष्मीजी के पांव (पैर) बनाते हैं। पुराणों के आधार पर कुल और गोत्रादि के अनुसार लक्ष्मी-पूजन […]

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स्वस्थ जीवन के लिए प्राणायाम आवश्यक क्यों?

प्राण अर्थात् जीवनशक्ति (Vital Power) और उसका आयाम अर्थात् विस्तार, नियमन मिलकर प्राणायाम शब्द की रचना हुई है। प्राणायाम अष्टांगयोग का एक महत्त्वपूर्ण अंग है जिसका शाब्दिक अर्थ है- प्राण का व्यायाम। महर्षि पतंजलि के मतानुसार- तस्मिन् सति श्वास-प्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः अर्थात् श्वासप्रश्वास की गति का विच्छेद करके प्राणवायु को सीने में भरने, भीतर रोककर रखने […]

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मौन व्रत का विशेष महत्त्व क्यों है ?

आध्यात्मिक उन्नति के लिए वाणी का शुद्ध होना परमावश्यक है। मौन से वाणी नियंत्रित एवं शुद्ध होती है। इसलिए हमारे शास्त्रों में मौन का विधान बनाया गया है। श्रावण मास की समाप्ति के बाद भाद्रपद प्रतिपदा से 16 दिनों तक इस व्रत के अनुष्ठान का विधान है। ऐसी मान्यता है कि मौन से सब कामनाएं […]

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व्रत-उपवास का महत्त्व क्यों है ?

पुराणों में इस बात का विस्तार से उल्लेख मिलता है कि हमारे ऋषि-मुनि उपवास के द्वारा ही शरीर, मन एवं आत्मा की शुद्धि करते हुए अलौकिक शक्ति प्राप्त करते थे। वेद में कहा गया है- व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षयाप्नोति दक्षिणाम् । दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते ॥ – यजुर्वेद 19/30 मनुष्य को उन्नत जीवन की योग्यता व्रत […]

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माता-पिता की सेवा करना सबसे बड़ा धर्म क्यों है ?

हिंदू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी सेवा माना गया है। शास्त्र मातृ देवो भव, पित्र देवो भव आदि सम्मानित वचनों से माता-पिता को देवताओं के समान पूजनीय मानते हैं। माता का स्थान तो पिता से अधिक माना गया है-जननी और जन्म-भूमि को तो स्वर्ग से भी श्रेष्ठ कहो गया है। प्रत्यक्ष में […]

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स्वर्ग-नरक की कल्पना का आधार क्या है ?

मृत्यु के उपरांत प्राणी को स्वर्ग या नरक प्राप्त होता है, इस बात को संसार के समस्त धर्म एक स्वर से स्वीकार करते हैं। इस प्रकार मनुष्य को मृत्यु और पुनर्जन्म के बीच में स्वर्ग-नरक भोगना पड़ता है। इस संबंध में गरुड्पुराण में बताया गया है कि यमलोक में ‘चित्रगुप्त’ नामक देवता हर एक जीव […]

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पाप-पुण्य के बुरे और अच्छे फल भुगतने की धारणा क्यों है ?

शास्त्र में कहा है- ‘पापकर्मेति दशघा।’ अर्थात् पाप कर्म दस प्रकार के होते हैं। हिंसा (हत्या), स्तेय (चोरी), व्यभिचार-ये शरीर से किए जाने वाले पाप हैं। झूठ बोलना (अनृत), कठोर वचन कहना (परुष) और चुगली करना-ये वाणी के पाप हैं। परपीड़न और हिंसा आदि का संकल्प करना, दूसरों के गुणों में भी अवगुणों को देखना […]

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कर्म फल भोगना पड़ता है इसकी मान्यता क्‍यों है ?

भारतीय संस्कृति में कर्मफल के सिद्धांत को विश्वासपूर्वक मान्यता प्रदान की गई है। मनुष्य को जो कुछ भी उसके जीवन में प्राप्त होता है, वह सब उसके कर्मों का ही फल है। मनुष्य के सुख-दुख, हानि-लाभ, जीत-हार, सुख-दुख के पीछे उसके कर्मों को आधार माना गया है। कर्म फल भोगने की अनिवार्यता पर कहा गया […]

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