महाराज कृष्णदेव राय अपने सभासदों के साथ अपने राजदरबार में बैठे थे। किसी विषय पर बहस चल रही थी। महाराज गौर से सभासदों के विचार सुन रहे थे। इसी बीच एक गरीब व्यक्ति फरियादी के रूप में दरबार में उपस्थित हुआ और महाराज के समक्ष हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।
महाराज ने उसकी तरफ देखा तो वह सिसकते हुए बोला, “महाराज! फरियादी हूँ। आपके पास अपनी फरियाद लेकर आया हूँ।”
महाराज ने उससे कहा, “बोलो! तुम्हारी क्या फरियाद है और तुम क्या चाहते हो?”
“महाराज! मैं गड़रिया हैं। भेड़-बकरियाँ पालना मेरा पुश्तैनी धन्धा है। मेरे परिवार का भरण-पोषण इन्हीं भेड़-बकरियों से होता है। मेरे पड़ोस में एक व्यक्ति पक्के मकान में रहता है। वह साधन-सम्पन्न होते हुए भी मुझसे ईष्या रखता है। इसी ईष्या के कारण उसने मेरी झोंपड़ी से सटाकर अपनी जमीन में ऊची दीवार खड़ी करवा ली कि मेरी बकरियाँ उसके अहाते में चरने न जा सकें। कल तेज बारिश में उसकी वह दीवार ढह गई और दीवार के मलवे में दबकर मेरी दस बकरियाँ मर गईं। मुझ गरीब को इससे बहुत हानि हुई है जिसकी भरपाई होनी चाहिए, नहीं तो मेरा परिवार चलाना कठिन हो जाएगा।”
महाराज कुछ बोलते, उससे पहले ही तेनाली राम ने कहा, “इस घटना में तो नुकसान की भरपाई उसे करनी चाहिए जिसकी दीवार गिरी है।”
“जी हाँ, महाराज! मुझे न्याय मिल जाए। इसी आशा में मैं हाथ जोड़े खड़ा हैं।” फरियादी ने कहा।
महाराज ने तेनाली राम से कहा, “तेनाली राम! इस फरियादी की व्यथा-कथा सुनकर तुम जो भी उचित हो, करो।”
“जैसी आज्ञा महाराज!”
तेनाली राम ने कहा और प्रहरी को भेजकर उसने फरियादी के पड़ोसी को दरबार में बुलवा लिया। तेनाली राम ने फरियादी के पड़ोसी से कहा, “तुम्हारे मकान की दीवार ढहने से इस व्यक्ति की दस बकरियाँ मर गईं। इसको हुई इस अप्रत्याशित क्षति की भरपाई तो तुम्हें करनी होगी।”
उस व्यक्ति ने तेनाली राम के आगे अपने हाथ जोड़ लिये और कहा, “आपका आदेश सिर आँखों पर, लेकिन श्रीमान, आप इतना तो विचार करें कि दीवार मैंने बनाई नहीं, बनवाई है! दीवार गिरने से मुझे भी तो क्षति हुई है। मेरी क्षतिपूर्ति कौन करेगा? दीवार गिरने का कारण तो अपर्याप्त गारे से ईंटों का जोड़ा जाना ही होगा। इसलिए दीवार गिरने के लिए मैं नहीं, उसे बनानेवाला दोषी है।”
तेनाली राम ने उस व्यक्ति से कहा, “तुम ठीक कहते हो। दीवार गिरने से तुम्हें भी क्षति हुई है और इसके लिए भी वह कारीगर जिम्मेदार है जिसने दीवार बनाई है।” तेनाली राम ने आदेश दिया कि दरबार में कारीगर को बुलाया जाए।
थोड़ी ही देर में दो सिपाही कारीगर को भी दरबार में पकड़कर ले आए।
तेनाली राम ने उस कारीगर को दीवार गिरने की घटना बताई और कहा, “दीवार गिरने से हुई क्षति की भरपाई उसे ही करनी होगी।”
तब कारीगर ने कहा, “दीवार गिरने की घटना के लिए वह जिम्मेदार नहीं है। असल में गारा बनाते समय भिश्ती ने जिस मशक से पानी डाला, उस मशक की माप सही नहीं थी जिसके कारण अधिक पानी पड़ने से गारा गीला हो गया और दीवार कमजोर बनी।”
दरबार में फिर भिश्ती को भी बुलाया गया। भिश्ती पर जब दीवार गिरने का दोष मढ़ा गया तब भिश्ती रो पड़ा। उसने रोते-रोते कहा, “महाराज! मुझ पर अन्याय न हो! मशक तो मैंने बनाई नहीं। जो मशक मैंने माँगी, इसे बनाने और बेचनेवाले ने मुझे यह मशक देकर झूठ बोला कि जिस माप की मशक मैंने माँगी थी उसने उसी माप की मशक मुझे बेची है और मुझे यह मशक इसी व्यक्ति ने बेची थी जिसकी बकरियाँ दीवार ढहने से मरी हैं।”
तेनाली राम ने फरियादी की ओर देखा। फरियादी हाथ जोड़े बोला, “जी हाँ। मशक मैंने ही बेची थी। मुझे क्षमा कर दें।”
तेनाली राम ने उससे कहा, “भविष्य में झूठ बोलकर सामान मत बेचना, जाओ, घर जाओ।”
फरियादी अपना-सा मुँह लेकर अपने घर लौट आया।
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