प्रातः काल विस्तर से उतरने के पहले यानी पृथ्वी पर पैर रखने से पूर्व पृथ्वी माता का अभिवादन करना चाहिए, क्योंकि हमारे पूर्वजों ने इसका विधान बनाकर इसे धार्मिक रूप इसलिए दिया, ताकि हम धरती माता के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट कर सकें। वेदों ने पृथ्वी को मां कहकर वंदना की है। चूंकि हमारा शरीर भूमि तत्त्वों से बना है और भूमि पर पैदा अन्न हमने खाया है, जल पिया है, औषधियां पाई हैं। इसलिए हम इसके ऋणी हैं। उस पर पैर रखने की विवशता के लिए उससे क्षमा मांगते हुए प्रार्थना करनी चाहिए-
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डिते ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे ॥
– विश्वामित्र स्मृति 1/44-45
अर्थात् समुद्ररूपी वस्त्र धारण करने वाली अर्थात् चराचर प्राणी रूप अपनी संतानों के पोषण हेतु जीवनदायिनी नदियोंरूपी दुग्ध-धाराओं को जन्म देने वाली। पर्वतरूपी स्तनों वाली, हे विष्णु पत्नी भूमाता ! अपने ऊपर पैर रखने के लिए मुझे क्षमा करें।

इस तरह पृथ्वी का वंदन करना अपनी मातृभूमि का सम्मान करना भी है।
वैज्ञानिक मतानुसार जब हम पलंग पर चादर या कंबल ओढ़कर सोते हैं, तो हमारे शरीर की गर्मी ढके हुए पैरों में बढ़ जाती है। ऐसे में तुरंत बिस्तर से उतरकर पृथ्वी पर पैर नहीं रखना चाहिए, क्योंकि हमारे शरीर में पैरों के माध्यम से सर्दी-गर्मी का प्रवेश शीघ्र ही हो जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। अतः प्रातः भूमिवंदन करने से कुछ समय कंबल हटा देने के कारण पैरों का तापमान सामान्य हो जाता है। प्रार्थना में यही वैज्ञानिक रहस्य छिपा हुआ है।
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