श्री सत्यनारायण व्रत कथा देश के अनेक भागों में बहुत लोकप्रिय है। सत्य ही नारायण है, यह भाव सत्यनारायण की कथा से उभरता है। सत्य को साक्षात् भगवान् मानकर जीवन में उसकी आराधना करना ही सत्य-व्रत है। लोग सत्यनारायण कथा के माध्यम से सत्य-व्रत का सही रूप समझें, तो वे सच्चे अर्थों में सुख-समृद्धि के अधिकारी बन सकते हैं।

श्री सत्यनारायण व्रत कथा में विभिन्न कथानकों के माध्यम से एक ही तथ्य प्रमुखता से प्रकट हुआ है कि सत्यनिष्ठा अपनाने से अर्थात् सत्यनारायण का व्रत लेने से लौकिक और पारलौकिक दोनों जीवन सुख-शांतिमय बनते हैं और इस सत्यवृत्ति को छोड़ने से अनेक प्रकार के कष्टों को भोगना पड़ता है।

Satyanarayan Vrat Katha Ka Mahatva Kyon Hai
Satyanarayan Vrat Katha Ka Mahatva Kyon Hai

एक बार नारद ने भगवान् विष्णु से प्राणियों के दुखों के निवारण का उपाय पूछा।

भगवान् विष्णु ने कहा-

व्रतमस्ति महत्पुण्यं स्वर्गे मर्त्य च दुर्लभम्।
तव स्नेहान्मया वत्स! प्रकाशः क्रियतेऽधुना॥
अर्थात् हे पुत्र! मृत्युलोक में ही नहीं बल्कि स्वर्ग में भी अति दुर्लभ बड़ा ही पवित्र एक व्रत है, जिसे मैं प्रकट करता हूँ।

‘श्री सत्यनारायण व्रत’ को विधि-विधानपूर्वक करने से इस लोक में सुख और अंत में सद्गति प्राप्त होती है। सत्य को ही भगवान् स्वरूप मानकर जो व्यक्ति इस व्रत को करता है, उसे प्रभु की कृपा का लाभ अवश्य मिलता है। प्रभु सत्य साधना से प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा से साधकों को लौकिक सुख और पारलौकिक शांति निश्चित रूप से मिलती है।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि केवल वचन से ही सत्य का पालन नहीं हो जाता और न सत्य शब्दों के वश में होता है, अपितु जिससे धर्म की रक्षा और प्राणियों का हित होता है, वस्तुतः वही सत्य है। एक सत्यव्रती अपने उत्तम व्यवहार और शुभ कर्मों से ही भगवान् की सच्ची पूजा करता है।

शास्त्रकार ने लिखा है-

सत्यमेव जयते नानृतम्। मुण्डक 3/1/5
अर्थात् सत्य ही जीतता है, असत्य नहीं।

सत्यव्रत को अपनाने वाला दरिद्र भी भगवान् की कृपा से धन-धान्य से पूर्ण हो जाता है। उसके पास से संसार के कष्ट, आपत्तियां डरकर भाग जाती हैं। वे विघ्न-बाधा रहित जीवन जीते हैं। उन्हें इच्छित फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही भव-बंधनों से मुक्ति मिलकर देवताओं की तरह स्वर्ग में सुख और संतोष का जीवन मिलता है।

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