बहुत समय पहले की बात है। एक बार एक भिखारी का पूरा दिन बुरा गुजरा। दिन भर में उसे लोगों से कुछ भी नहीं मिला। शाम को वह दु:खी मन से घर लोट रहा था कि उसकी नज़र रास्ते में पड़ी एक थैली पर गई। भिखारी ने थैली को उठा कर देखा तो उसमें सोने के सिक्के थे। भिखारी ने गिन कर देखा तो थैली में पूरे सौ सिक्के निकले।
सोने के सिक्के पाकर भिखारी ने सोचा कि ईश्वर ने उसकी मदद के लिए यह उपकार दिया है और अब उसकी गरीबी दूर हो जायेगी, पर अगले ही पल उसने विचार किया कि थैली के मालिक को अपनी थैली के गुम हो जाने का कितना दु:ख हो रहा होगा। यह बात मन में आते ही उस ईमानदार भिखारीने थैली असली मालिक को लौटाने का निश्चय कर लिया।
भिखारी कुछ आगे ही बढ़ा था तो उसे एक व्यक्ति मिला जो बहुत परेशान था। जब भिखारी ने उससे पूछा कि आप क्यों परेशान हैं तो उसने कहा कि मेरी सोने के सिक्कों की थैली खो गयी है, इसलिए मैं बहुत परेशान हूँ। जो भी मुझे थैली वापस कर देगा, उसे मैं इनाम दूँगा। यह सुन कर उस ईमानदार भिखारी ने उसे वह थैली दे दी और व्यापारी तुरंत वहां से थैली लेकर चल पड़ा। भिखारी ने व्यापारी से कहा कि आप ने तो कहा था कि थैली देने वाले को इनाम देंगे, परंतु मेरा इनाम तो आपने नहीं दिया। इस पर लालची व्यापारी ने कहा कि मेरी थैली में तो दो सौ सिक्के थे और तुमने सौ सिक्के निकाल लिए। अत: तुम्हें सजा मिलनी चाहिए।
भिखारी ने कहा कि मैं इसके विरूद्ध अदालत में जाऊँगा। व्यापारी बोला – ”मै किसी अदालत से नहीं डरता।” इस प्रकार भिखारी ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। दूसरे दिन जज साहब ने दोनों को बुलाया। दोनों अदालत में हाजि़र हुए। जज साहब ने व्यापारी से कई प्रश्न पूछे और पूछा कि तुम्हारी थैली में कितने सिक्के थे।
उसने कहा – दो सौ सिक्के थे।
इस पर जज साहब ने फैसला सुनाया कि यह थैली व्यापारी की नहीं है और उस थैली को भिखारी को दे दिया क्योंकि उस थैली में तो सौ सिक्के थे। अगर उसे सौ सिक्के हड़पने होते, तो वह थैली ही क्यों लौटाता? इस प्रकार व्यापारी को अपने लालच का फल भुगतना पड़ा।
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