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स्‍वर्ण की चाह! Moral Story in Hindi

Suwarn Ki Chah Moral Story in Hindiबहुत समय पहले मिडांस नाम का राजा था। उसे स्‍वर्ण की बहुत चाहत थी। उसके पास जरूरत से ज्यादा स्‍वर्ण था, परंतु स्‍वर्ण के लिये उसकी इच्‍छा दिन-रात बढ़ती जा रही थी। एक दिन एक व्‍यक्ति जो कि उसके लिये अजनबी था, राजा के पास आया। उसने कहा- हे राजा, मैं तुम्‍हारी एक इच्‍छा पूरी कर सकता हूँ। राजा ने कहा- मैं चाहता हूँ कि जिस वस्‍तु को मैं छूऊँ, वह स्‍वर्ण हो जाये। उस अजनबी व्‍यक्ति ने कहा- ऐसा ही होगा।

अगले दिन से राजा जिस वस्‍तु को छूता, वह स्‍वर्ण में परिवर्तित हो जाती। राजा अंदर ही अंदर बहुत प्रसन्‍न हुआ। उसने अपने सिंहासन, पलंग, चादर, किताब को छुआ, वे सब स्‍वर्ण की हो गयी। नाश्‍ते के समय उसका नाश्‍ता स्‍वर्ण का हो गया। उसी समय उसकी बेटी कहीं से खेल कर आयी। उसने उसे सीने से लगाया। सीने से लगाते ही बेटी स्‍वर्ण के बुत में परिवर्तित हो गयी। राजा बहुत दुखी हुआ। परेशानी की हालत में राजा उस अजनबी के पास गया। अजनबी ने पूछा- क्‍या अब आप प्रसन्‍न है? राजा का रो-रोकर बुरा हाल हो गया था। राजा ने कहा- मै तुम्‍हें अपना सारा स्‍वर्ण दे दूंगा, मुझे अपनी बेटी वापस चाहिये।

अजनबी ने कहा- हे राजा, अब तुम वास्‍तव में समझदार हो गये हो,
और अजनबी ने राजा की इस शक्ति को समाप्‍त कर दिया। राजा को उसकी बेटी वापस मिल गयी।


स्‍वर्ग का अधिकारी! Greed Moral Story in HindiSuwarg Ka Adhikari Greed Moral Story in Hindi

स्‍वर्ग में एक बार बहुत भीड़ इकट्ठी हुयी। उनसे धर्मराज ने कहा- सब लोग एक प्रपत्र पर अपने जीवन में किए सभी अच्‍छे-बुरे कार्यो का विवरण लिखे, धर्म की कसौटी पर जिसके कार्य श्रेष्‍ठ समझे जाएगे, उन्‍हें ही यहॉं रखा जाएगा।

जब परीक्षा पत्रों की जॉंच की गयी, तो प्राय: सभी में कोई न कोई दोष निकला। किसी ने लिखा था कि मैंने जीवन भर तप किया है। कोई कह रहा था कि मैंने वेद शास्‍त्रों का अध्‍ययन कर लोगों को सन्‍मार्ग पर चलने का उपदेश दिया है। किसी का कहना था कि मैंने आजीवन व्रत-उपवास किए है, परंतु उन सबमें एक व्‍यक्ति ऐसा भी कहा था, जिसने परीक्षा पत्र की सभी प्रविष्टियां अधूरी छोड़ दी और लिखा- मैं भूल से स्‍वर्ग में चला आया हूँ। मैं जाना तो नर्क में चाहता था, ताकि वहॉं के दीन-दुखियों की सेवा कर सकूँ। यमराज ने केवल इसी व्‍यक्ति को स्‍वर्ण के योग्‍य माना।


संगत का असर! Effect of company! Story in Hindi

एक बार एक राजा शिकार के उद्देश्‍य से अपने काफिले के साथ किसी जंगल से गुजर रहा था। दूर-दूर तक शिकार नजर नहीं आ रहा था। वे धीरे-धीरे घनघोर जंगल में प्रवेश करते गये। अभी कुछ ही दूर गये थे कि उन्‍हें कुछ डाकुओं के छिपने की जगह दिखायी दी। जैसे ही वे उसके पास पहुचे कि पास के पेड़ पर बैठा तोता बोल पड़ा- पकड़ो-पकड़ो एक राजा आ रहा है। इसके पास बहुत सारा सामान है। लूटो-लूटो जल्‍दी आओ अल्‍दी आओ।

Sangati ka Aasar Effect of company Story in Hindiतोते की आवाज सुनकर सभी डाकू राजा की ओर दौड़ पड़े। डाकुओं को अपनी ओर आते देखकर राजा और उसके सैनिक दौड़ कर भाग खड़े हुए। भागते-भागते कोसों दूर निकल गये। सामने एक बड़ा सा पेड़ दिखाई दिया। कुछ देर सुस्‍ताने के लिए उस पेड़ के पास चले गये, जैसे ही पेड़ के पास पहुंचे कि उस पेड़ पर बैठा तोता बोल पड़ा- आओ राजन, हमारे साधु महात्‍मा की कुटिया में आपका स्‍वागत है। अंदर आइये पानी पीजिये और विश्राम कर लीजिये। तोते की इस बात को सुनकर राजा हैरत में पड़ गया और सोचने लगा की एक ही जाति के दो प्राणियों का व्‍यवहार इतना अल-अलग कैसे हो सकता है। राजा को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह तोते की बात मानकर अंदर साधु की कुटिया को ओर चला गया। साधु-महात्‍मा को प्रणाम कर उनके समीप बैठ गया और अपनी सारी कहानी सुनायी और फिर धीरे से पूछा, ऋषिवर, इन दोनों तोतों के व्‍यवहार में आखिर इतना अंतर क्‍यों है।

साधु-महात्‍मा ने धैर्य से सारी बातें सुनी और बोले, ये कुछ नहीं राजन बस संगति का असर है। डाकुओं के साथ रहकर तोता भी डाकुओं की तरह व्‍यवहार करने लगा है और उनकी ही भाषा बोलने लगा है। अर्थात जो जिस वातावरण में रहता है, वह वैसा ही बन जाता है। कहने का तात्‍पर्य यह है कि मूर्ख भी विद्वान बन जाता है और अगर विद्वान भी मूर्खो के संगत में रहता है तो उसके अंदर भी मूर्खता आ जाती है। इसलिए हमें संगती सोच समझ कर करनी चाहिए।


कछुआ और लोमड़ी की दोस्‍ती! True Friendship Story in Hindi

Kachua Aur Lomdi Ki Dosti True Friendship Story in Hindi

बहुत समय पहले की बात है, कछुआ और लोमड़ी में बहुत अच्‍छी दोस्‍ती थी। कछुआ एक तालाब में रहता था और लामड़ी तालाब के पास ही एक मांद में रहती थी। दोनों खाली समय में एक-दूसरे के पास जाकर बैठते और अपना सुख-दुख बांटते। एक दिन लोमड़ी और कछुआ तालाब के किनारे बैठे हुए गप-शप कर रहे थे, तभी वहां एक तेंदुआ आ गया। दोनों तेंदुए को देखकर अपनी-अपनी जान बचाने के लिए घर की तरफ भागे। लोमड़ी सरपट दौड़कर अपनी मांद में छिप गई। कछुआ अपनी चाल से तालाब की तरफ भाग रहा था परंतु उसके तालाब तक पहुंचने से पहले ही तेंदुए ने उसे पकड़ लिया और उसके खोल पर प्रहार किया परंतु कछुआ के खोल पर तेंदुए के हमले का कोई असर नहीं हुआ। पास में ही लोमड़ी अपनी मांद में से सब देख रही थी, वह किसी भी तरह अपने मित्र की जान बचाना चाहती थी। लोमड़ी के चालाक दिमाग में एक युक्ति सूझी। वह तेंदुए से बोली- तेंदुआ भाई! कछुए का खोल बहुत मजबूत है। यह इस तरह नहीं टूटेगा, आप इसे तालाब के पानी में डाल दो, पानी में इसका खोल गल जाएगा, तब आप इसे आराम से खा सकते हो।

तेंदुए को लोमड़ी की बात अच्छी लगी और उसने कछुए को तालाब के पानी में डाल दिया। अब क्या था कछुआ धीरे से तालाब के अंदर छिप गया। इस प्रकार लोमड़ी को चालाकी ने उसके दोस्‍त की मदद की और उसकी जान बचा ली।

शिक्षा- एक समझदार मित्र की सहायता से जीवन के बड़े से बड़े संकट को दूर किया जा सकता है।


यह अच्‍छा है! Positive Thinking in Life Story in Hindi

एक देश में राजा था, जिसका एक मित्र था। दोनों एक साथ रहते, घूमते तथा शिकार पर जाते थे। राजा का मित्र हर स्थिति में कहा करता था- यह अच्‍छा है।

एक दिन राजा अपने मित्र के साथ शिकार पर गया। रोज की भॉंति उसके मित्र ने बंदूक में गोली भरकर राजा को शिकार के लिये दी। राजा ने बंदूक चलाई, परंतु उसी समय राजा का अंगूठा बैकफायर के कारण दुर्घटनाग्रस्‍त हो गया, राजा बहुत दुखी हुआ, परंतु स्थिति को देखने के बाद राजा के मित्र ने कहा- यह अच्‍छा है।

Positive Thinking in Life Story in Hindiराजा को अपने दोस्‍त का वार्तालाप ठीक नहीं लगा और उसने तुरंत दोस्‍त को जेल भेज दिया। लगभग एक वर्ष के बाद राजा जंगल में शिकार के लिये पुन: गया, वहॉं उसे नरभक्षी लोगों ने पकड़ लिया। राजा के हाथ-पैर बांध कर आग जला कर गाना गाने लगे। अब राजा को लगा कि उसका अंतिम समय आ गया है। राजा ने नरभक्षी समुदाय से बहुत विनती की कि उसे छोउ़ दिया जाये, परंतु उसी समय राजा को उन लोगों ने पास से देखा कि उसके एक हाथ में अंगूठा नहीं है। नरभक्षी समुदाय अत्‍यन्‍त अंधविश्‍वासी था। इस पर नरभक्षी समुदाय ने उसके हाथ-पैर खोल दिये और जाने के लिये कहा। महल लौटकर राजा ने तत्‍काल मित्र को रिहा कर दिया।

दोस्‍त ने कहा- यह अच्छा है।
राजा ने कहा- यह तुम पुन: क्‍यों कह रहे हो कि यह अच्‍छा है।

मित्र ने कहा- अगर मैं जेल में न होता तो मैं आपके पास होता, इस प्रकार नरभक्षी मुझे खा जाते। चूँकि मेरा कोई अग कम नहीं है।

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