आपको इस पोस्ट में 10 बेहद प्ररेणादायक कहानियॉं (Inspirational Stories in Hindi) पढ़ने मिलेगी, इन कहानियों को पढ़ कर आपके अंदर एक ऐसा बदलाव आऐगा जिससे आपका जीवन सरल हो जाऐगा।
वर्षा एवं व्यक्ति!
एक व्यक्ति अपने मालिक से छुट्टी लेकर अपने घर जा रहा था। उसने कच्चे रंग की चुनरी, कागज के खिलौने व बतासे आदि अपने घर के लोगों के लिए खरीदे। मार्ग में वर्षा आने से उसके पास की सारी वस्तुएं खराब हो गयी। वह व्यक्ति ईश्वर को कोसने लगा कि अभी ही वर्षा होनी थी। थोड़ी दूर आगे जाकर उसे कुछ डाकू झाड़ में बैठे हुये मिले, उन्होंने इस पर निशाना लगाया, पर कारतूस गीला होने के कारण गोली नहीं चली और किसी तरह से व्यक्ति ने अपनी जान बचायी। अब व्यक्ति पश्चातप करने लगा तथा ईश्वर को धन्यवाद देने लगा।
संघर्ष क्यों जरूरी है ? inspirational story in hindi
एक शख्स बगीचे में बैठा था। अचानक पेड़ से नीचे एक कोकून आ गिरा। नन्ही तितली उससे बाहर आने की कोशिश कर रही थी। व्यक्ति घंटों बैठा उसे देखता रहा। उससे रहा नहीं गया। उसने तितली की मदद का फैसला कर लिया। पास रखी छोटी कैंची से उसने कोकून के एक हिस्से को काट दिया, ताकि तितली आसानी से बाहर आ सके। तितली तो बाहर आ गई, लेकिन अविकसित। बिना एक पंखे के, उसका पिछला हिस्सा भी कुछ फूल गया था। अब वह कभी उड़ नहीं सकती थी। दरअसल, उस शख्स ने यह नहीं सोचा कि संघर्ष भी जीवन की एक प्रक्रिया है। उसने तितली के संघर्ष को ही समाप्त कर दिया और ऐसा करके उसने, तितली का जीवन हमेशा के लिए बर्बाद कर दिया। संघर्ष हमारी ताकत को बढ़ाता है। हमारे बच्चे भी तितली की ही तरह हैं। उनके जीवन में आए संघर्षों को आप सिर्फ देखें, लेकिन उन संघर्षों को समाप्त ना करें, वरना यह आपके बच्चों के संघर्ष की क्षमता हो ही खत्म कर देगा।
सीख:- संघर्ष भी जीवन का एक हिस्सा है। वही हमें संपूर्णता देता है।
सच्ची सुंदरता – Motivational Story in Hindi
राजकुमार भद्रबाहु को अपने सौंदर्य पर बहुत गर्व था। वह खुद को दुनिया का सबसे सुंदर आदमी मानता था। एक बार वह अपने मित्र सुकेशी के साथ कहीं घूमने जा रहा था। रास्ते में श्मशान आ गया। वहां जब भद्रबाहु ने आग की लपटें देखी तो चौंक गया। उसने सुकेशी से पूछा- यहां क्या हो रहा है? सुकेशी ने कहा, युवराज, मृत व्यक्ति को जलाया जा रहा है। इस पर भद्रबाहु ने कहा, जरूर वह बहुत ही कुरूप रहा होगा।
सुकेशी बोला, नहीं वह बहुत ही सुंदर था। इस पर भद्रबाहु ने आश्चर्य से कहा, तो फिर उसे जलाया क्यों जा रहा है? सुकेशी ने जवाब दिया, मृत व्यक्ति की देह को एक दिन जलना ही होता है। चाहे वह कितना ही सुंदर क्यों न हो। मरने के बाद शरीर नष्ट होने लगता है। इसलिए उसे जलाना जरूरी है। यह सुनकर भद्रबाहु को काफी धक्का लगा। उसका सारा अहंकार चूर-चूर हो गया। उसके बाद से वह हरदम उदास रहने लगा। इससे उसके परिवार के लोग और मित्र चिंतित हो गए। एक दिन भद्रबाहु को एक महात्मा के पास ले जाया गया। सारी स्थिति जानकर महात्मा ने उसे समझाया, कुमार, तुम भारी भूल कर रहे हो। शरीर थोडे ही सुंदर होता है। सुदत तो होता है, उसमें रहने वाला हमारा मन। हमारे विचार और कर्म सुंदर होते हैं। तुम शरीर को इतना महत्तव न दो। इसे एक उपकरण या माध्यम भर समझो। अपने विचार और कर्म को सुंदर बनाने का प्रयत्न करो। तभी तुम्हारा जीवन सार्थक होगा। भद्रबाहु को बात समझ में आ गई। उस दिन से वह बदल गया।
सीख- शारीरिक सुंदरता नाशवन है। मन, कर्म और विचारों से सुंदर बने।
महात्मा गांधी
एक बार महात्मा गांधी चरखा संघ के लिये लोगों से दान लेने हेतु निकले। उड़ीसा में एक जनसभा करके लोगों से भरपूर दान देने के लिये कहा। भाषण के बाद एक अत्यंत गरीब एवं बुजुर्ग महिला ने, जिसकी त्वचा ढीली, कपड़े फटे हुये, शरीर कमजोर, कमर झुकी हुई थी, महात्मा गांधी जी के पास जाकर दर्शन करने की लोगों से विनती की। लोगों ने उसे रोका, परंतु किसी तरह उसने गांधी जी के चरणरत ले ली। बुजुर्ग महिला ने तांबे का सिक्का, जिसे उसने अपनी साड़ी के पल्लू में बांध रखा था, निकाल कर महात्मा जी के चरणों में रख दिया। महात्मा जी ने सिक्का बड़ी सावधानी से लेकर अपने पास रख लिया।
चरखा संघ में धन रखने का कार्य श्री जमन लाल बजाज करते थे। उन्होंने गांधी जी से सिक्के की मांग की, परंतु गांधी जी ने उसे देने से इनकार किया। बजाज जी ने गांधी जी से कहा कि क्या आप मुझ पर विश्वास नहीं करते। इस पर गांधी जी ने कहा कि यह सिक्का मेरे लिए अत्यंत मूल्यवान है क्योंकि यदि किसी व्यक्ति के पास हजारों रूपये हैं और उसमें से एक या दो हजार दे देता है तो उसके पास कुछ न कुछ बच जाता है, परंतु इस स्त्री के पास तांबे का यह सिक्का ही एकमात्र पूँजी थी। वह भी उसने मुझे दे दिया, इसलिए यह करोड़ों रूपये से भी ज्यादा मूल्यवान है।
एक मामिर्क कथा – a touching story in hindi
एक नौजवान कालेज से ग्रेजुएशन करके निकला। उसकी महीनों से एक अच्छी स्पोर्ट्स कार खरीदने की इच्छा थी और उसे ज्ञात था कि उसके पिता यह कार खरीदने में समर्थ हैं। उसने अपने पिता से स्पोर्टस कार खरीदने की इच्छा जाहिर की। जिस दिन उसे स्नातक की उपाधि मिलने वाली थी, तब उसके पिता जी ने एक नई बाइबिल उसे उपहार स्परूप प्रदान की। इस पर नौजवान बहुत दुखी हुआ, घर छोड़ कर चला गया तथा अपना व्यापार प्रारंभ कर दिया। धीरे-धीरे उसे जीवन के सभी भौतिक वस्तुयें जैसे, अच्छा घर व परिवार आदि प्राप्त हो गये।
बहुत वर्ष बीत जाने पर उसे अपने पिता की याद आयी। उसने सोचा कि पिता अब बहुत बुजुर्ग हो गये होंगे, चलो एक बार उनसे मिल आयें। तभी उसे टेलीग्राम प्राप्त हुआ कि उसके पिता स्वर्गवासी हो गये हैं तथा सारी संपत्ति उसके नाम कर गये हैं।
वह युवक तुरंत अपने पुराने घर पहुँचा जहॉं उसने पुराने कागज आदि देखने शुरू किये। उसमें उसे वही बाइबिल मिली, जिसे पिताजी ने पूर्व में दी थी। उसने दुखी मन से पढ़ना शुरू किया। उसे एक चाभी लिफाफे में रखी प्राप्त हुई। उसमें एक कागज चिपका था, कागज पर लिखा था- कार के मूल्य का पूर्ण भुगतान कर दिया गया है।
निश्वार्थ भाव – Prernadayak kahani
एक ग्वाला गायों को चराने गांव से बाहर जंगल में जाता था। जंगल में एक संत का आश्रम था। वहां संत रोज तप, ध्यान, मंत्र जाप करते थे। ग्वाला रोज संत को देखता तो उसे समझ नहीं आता था कि संत ये सब क्यों करते हैं? ग्वाले की उम्र कम थी। संत के इन कर्मों को समझने के लिए वह आश्रम में पहुंचा और संत से पूछा कि आप रोज ये सब क्या करते है? संत ने बताया कि मैं भगवान को पाने के लिए भक्ति करता हूँ। रोज पूजा-पाठ, तप ध्यान और मंत्र करने से भगवान के दर्शन हो सकते हैं। संत की बात सुनकर ग्वाले ने सोचा कि मुझे भी भगवान के दर्शन करना चाहिए। ये सोचकर ग्वाला आश्रम से निकलकर एक सुनसान जगह पर पेड़ के नीचे एक पैर पर खड़े होकर तप करने लगा। कुछ देर बार उसने सांस लेना भी बंद कर दिया। ग्वाले ने सोचा कि जब तक भगवान दर्शन नहीं देंगे, मैं ऐसे ही रहूंगा। छोटे से भक्त की इतनी कठिन तपस्या से भगवान बहुत जल्दी प्रसन्न हो गये। वे ग्वाले के सामने प्रकट हुए और बोले कि पुत्र आंखे खोलो, मैं तुम्हारे सामने आ गया हूँ। ग्वाले ने आंखे खोले बिना ही पूछा कि आप कौन हैं? भगवान बोले कि मैं वही ईश्वर हूँ, जिसके दर्शन के लिए तुम तम कर रहे हो। ये सुनकर ग्वाले ने आंखे खोल ली, लेकिन उसने ईश्वर को कभी देखा नहीं था। वह सोचने लगा कि क्या ये ही वो भगवान है? सच जानने के लिए उसने भगवान को एक पेड़ के साथ रस्सी से बांध दिया। भगवान भी भक्त के हाथें बंध गए। ग्वाला तुरंत दौड़कर उस संत के आश्रम में पहुंच गया और पूरी बात बता दी। संत ये सब सुनकर हैरान थे। वे भी तुरंत ग्वाले के साथ उस जगह पर पहुंच गए। संत उस पेड़ के पास पहुंचे तो वहां कोई दिखाई नहीं दिया। भगवान सिर्फ ग्वाले को दिखाई दे रहे थे। संत ने बताया कि मुझे तो यहां कोई दिखाई नहीं दे रहा है तो ग्वाले ने भगवान से इसकी वजह पूछी। भगवान ने कहा कि मैं उन्हीं इंसानों को दर्शन देता हूँ जो निस्वार्थ भवन से मेरी भक्ति करते हैं। जिन लोगों के मन में कपट, स्वार्थ, लालच होता है, उन्हें मैं दिखाई नहीं देता।
सीख:- जो लोग भगवान की भक्ति निजी स्वार्थ की वजह से करते हैं, उन्हें भगवान की कृपा नहीं मिल पाती है। निस्वार्थ भाव से की गई भक्ति ही सफल होती है।
जैसा करोगे वैसा पाओगे – प्ररेणादायक कहानी
बहुत समय पहले की बात है। शहर से दूर गॉंव में एक दुकानदार था। जो अपने ही गांव के एक व्यक्ति से रोजाना एक किलो मक्खन खरीदा करता था। वो दुकानदार कई सालों से उस व्यक्ति से मक्खन की खरीददारी कर रहा था। एक दिन उस दुकानदार ने सोचा की में रोज इस व्यक्ति से मक्खन खरीदता हूँ लेकिन मैंने बहुत समय से इसके मक्खन का वजन तोल कर नहीं देखा। कल जॉंच करके देखूंगा की ये मुझे मक्खन एक किलो से कम तो नहीं देता। अगले दिन जब वो व्यक्ति मक्खन देकर गया तो उस दुकानदार ने मक्खन का वजन किया और देखा की मक्खन सिर्फ 900 ग्राम ही है। उस दुकानदार को काफी गुस्सा आ गया। वो व्यक्ति गुस्से में गॉंव की पंचायत के पास गया और उसने उस व्यक्ति की शिकायत कर दी।
गांव की पंचायत बैठी और उस व्यक्ति को बताया गया की तुम पर इस दुकानदार ने धोखा देने का आरोप लगाया है। तुम इस दुकानदार को देने वाले मक्खन के वजन में हेरा फेरी करते हो और हर बार तुम इसे एक किलो मक्खन की जगह सिर्फ 900 ग्राम ही देते हो। क्या तुम्हें अपनी सफाई में कुछ कहना है? वो व्यक्ति बोला- सरपंच जी मैं तो एक गरीब आदमी हूँ, मेरे पास वजन तोलने के लिए सही माप नहीं है। मैं रोज इस दुकानदार से अपने लिए एक किलो गेहूं खरीदता हूँ और अगले दिन उसी गेंहू को तराजू के एक तरु रखकर इस दुकानदार के लिए मक्खन तोलता हूँ। अब आपको जो भी पूछना है इस दुकानदार से पूछिए। पंचायत में बैठे सभी लोगों को पूरी सच्चाई समझ आ गयी। और उन्होंने उस दुकानदार को गांव से बाहर करवा दिया।
सीख:- जैसे दुकानदार को अपनी ही चालाकी से नुकसान झेलना पड़ा उसी तरह हमें भी अपने कर्मों की वजह से कभी ना कभी नुकसान झेलना ही पड़ता है। दूसरों के साथ बुरा करके हम एक, दो या दस बार बच तो सकते हैं लेकिन एक ना एक दिन उसका परिणाम हमें भुगतना ही पड़ता है।
जीवन का मूल्य! – लघु कथा
यह महात्मा बुद्ध के समय की घटना है, महात्मा बुद्ध जब भी भिक्षाटन के लिए जाते, तो आमलोग उनको भिक्षा में तो देते ही थे। कभी-कभी उनको घेर कर अपने मन के सवालों का समाधान भी उनसे पूछते। एक दिन एक व्यक्ति ने बुद्ध से पूछा- प्रभु, जीवन का मूल्य क्या है? महात्मा बुद्ध ने उस व्यक्ति को एक चमकता हुआ पत्थर दिया और कहा- जाओ, इस पत्थर का मूल्य पता करके आओ, पर ध्यान रहे तुम्हें इस पत्थर को बेचना नहीं है, केवल इसका मूल्य पता करना है।
वह व्यक्ति पत्थर लेकर गांव के बाजार में सबसे पहले एक फल वाले के पास गया, जो संतरे बेच रहा था। उस फल वाले को उसने पत्थर दिखाते हुए उसकी कीमत पूछी, उसने उस पत्थर की कीमत कुल 12 संतरे लगायी। उसके बाद वह व्यक्ति एक सब्जी बेचने वाले के पास गया, सब्जी वाले ने उसकी कीमत एक बोरी आलू के बराबर लगायी। वह व्यक्ति फिर अनाज व्यापारी के पाय गया, उसने उस पत्थर की कीमत एक बोरी अनाज के बराबर लगायी। इसके बाद वह व्यक्ति स्वर्णकार के पास गया और उसे पत्थर दिखाया, फिर उससे उसका मूल्य पूछा तो स्वर्णकार ने उस पत्थर को देखते हुए कहा – 50 लाख रूपये में मुझे इस पत्थर को बेच दो। उस व्यक्ति ने स्वर्णकार को मना कर दिया, तो स्वर्णकार ने फिर कहा- भाई, 2 करोड़ रूपये में दे दो या तुम ही बता दो इसकी क्या कीमत तुम लोगो।
उस आदमी ने स्वर्णकार से कहा- मेरे गुरू ने इस पत्थर को बेचने से मना किया है। इसके बाद वह व्यक्ति हीरे के एक जौहरी के पास गया। जौहरी ने उस पत्थ्ार को देखा, उसने उसे रूबी के रूप में पहचाना, उसने उस पत्थर के सामने एक लाल कपड़ा बिछाया और उस बेशकीमती रूबी की एक परिक्रमा लगायी, माथा टेका। फिर जौहरी ने उस व्यक्ति से पूछा- कहां से लाये भाई ये बेशकीमती रूबी? सारी कायनात क्या, सारी दुनिया बेच कर भी इस अनमोल पत्थर की कीमत नहीं लगायी जा सकती है। वह व्यक्ति हक्का-बक्का रह गया। फिर वह सीधे महात्मा बुद्ध के पास गया और पैरों के पास दोनों हाथ को जोड़कर बैठ गया। उसने पूरी कहानी महात्मा बुद्ध को सुनायी और बोला- प्रभु अब आप ही बताओं, मानवीय जीवन का मूल्य क्या है?
महात्मा बुद्ध मुस्कुराते हुए बोले- फल वाला, जो संतरे का व्यापारी था उसने पत्थर की कीमत 12 संतरे लगायी, सब्जी वाले ने एक बोरी आलू, अनाज व्यापारी ने एक बोरी अनाज, स्वर्णकार से दो करोड़ और जौहरी ने इसे बेशकीमती माना ठीक यही स्थिति तुम्हारे जीवन की भी है। तुम बेशक हीरा हो, लेकिन ध्यान रखना कि सामने वाले तुम्हारी कीमत अपनी क्षमता, अपनी जानकारी व समझ से ही लगायेगा। महात्मा बुद्ध की बात सुनते ही उस व्यक्ति को मानवीय जीवन का मूल्य समझ में आ गया था।
लघुकथा – बुद्धिमान लालची
एक राजा अपने लिए समझदार और ईमानदार मंत्री की तलाश कर रहे थे। राजा ने कई लोगों का साक्षात्कार लिया लेकिन कोई भी व्यक्ति उन्हें मंत्री बनने के लायक नहीं लगा। वहीं जब यह बात राज्य के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति को पता लगी तो वो फौरन राजमहल चला गया। राजा से मिलकर उसने कहा, मैं इस गांव का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति हूँ और मैं आपका मंत्री बनने के काबिल हूँ। राजा ने उससे काफी कठिन सवाल किए और उसने समझदारी से सवालों का जवाब दिया। राजा ने उसे मंत्री बना लिया। एक दिन मंत्री को रास्ते में एक बूढ़ा इंसान मिलता है जिसके पास तीन गठरी होती है। बूढ़ा मदद मांगते हुए कहता है। क्या तुम मेरी एक गठरी उठा सकते हो? ये काफी भारी है। वह बुजुर्ग की मदद करने के लिए हां कर देता है और एक गठरी उठा लेता है। मंत्री बुजुर्ग से पूछता है कि आखिर इसमें क्या है जो ये इतनी भारी है?
बुजुर्ग ने कहा- इस गठरी में सिक्के हैं, आगे एक नदी आती है जिसे पार करना होता है। बुजुर्ग कहता है, क्या तुम मेरी दूसरी गठरी उठा सकते हो? क्योंकि दो गठरी लेकर मैं ये नदी पार नहीं कर सकता हूँ। वह दूसरी गठरी उठा लेता है और ये गठरी भी भारी होती है। बुजुर्ग कहता है इस गठरी में चांदी के सिक्के है। नदी पार करने के बाद एक पहाड़ आता है। बुजुर्ग ने कहा- मैं गठरी के साथ ये पहाड़ नहीं चढ़ सकता हूँ। क्या तुम मेरी तीसरी गठरी भी उठा सकते हो। मंत्री बिना कुछ बोले तीसरी गठरी भी उठा लेता है। बुजुर्ग पहाड़ चढते हुए उससे कहता है कि इस गठरी में सोने के सिक्के हैं। तुम इसको लेकर मत भागना, मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर सकता हूँ। थोड़ी दूर जाने के बाद मंत्री सोचता है कि अगर ये तीनों गठरी लेकर भाग जाऊं तो मैं धनवान बन जाऊंगा और ये बुजुर्ग तो मुझे कभी पकड़ भी नहीं पाएगा। और वह तीनों गठरी लेकर भाग जाता है। घर जाकर वो जैसे ही तीनों गठरी खोलता है तो उसमें लोहे के सिक्के होते है। वो हैरान रह जाता है। कुछ देर बाद उसके घर बुजुर्ग आ जाते है और उससे कहते हैं कि तुमने लालच में आकर मेरी तीनों गठरी चुरा ली। मंत्री गुस्से से कहता है कि तुमने झूठ बोला, इन गठरी में सोने और चांदी के सिक्के नहीं है! बुजुर्ग हंसते हुए अपने असली वेश में आ जाते है। वह कोई और नहीं, बल्कि राजा रहते है। राजा कहते हैं, तुम बुद्धिमान थे इसलिए मैंने तुम्हें अपना मंत्री नियुक्त किया लेकिन तुम्हारे अंदर ईमानदारी बिलकुल नहीं है, इसलिए तुम मेरे मंत्री बनने के लायक नहीं हो। राजा की ये बात सुनकर उसको अपनी गलती पर खूब पछतावा हुआ।
सीख:- लालच में आकर हम अपना ही नुकसान कर बैठते हैं, इसलिए हमेशा ईमानदार रहें।
दृष्टिकोण – A Very Motivational Heart Touching Story in Hindi
क्यों, तुम उस फल वाली को, जितने रूपये वह मांगती है, उतने ही क्यों दे देती हो।
कुछ मोल भाव क्यों नहीं करती हो? पति ने पूर्णिमा से सवाल किया!
अरे, तुमने देखा नहीं है कि लॉकडाउन की वजह से कैसे वह अपनी बेटी को साथ में लिए सिर पर टोकरी और जान हथेली पर रख कर गली-गली कड़ी धूप में घर-घर घूमकर फल बेचती है। ऐसे में अगर मोलभाव करके हम दो-चार रूपये कम न भी करें, तो हमें क्या फर्क पडे़गा, पर उस बेचारी के लिए तो यह छोटी-सी राशि भी बड़ा मायने रखती है। पत्नी ने पति को समझाते हुए अपना दृष्टिकोश पेश किया। उधर फल वाली के साथ आने वाली उसकी बेटी ने अपनी मां के सामने अपनी रिज्ञासा रखी- माई, उन पूर्णिमा आंटी को तू औरों की अपेक्षा ज्यादा भाव क्यों बताती है? वह भी बिना मोल-तोल किये, तू जो भाव बताती है, उसी कीमत में हमारे फल खरीद लेती है।
तभी तो उन्हें ज्यादा भाव बताती हूँ रे, क्योंकि उन्हें जो भाव बताओ वह दे देती हैं, जबकि दूसरे लोग बहुत मोल-तोल करते हैं। इससे हमें बहुत धाटा होता है। अब किसी भी तरह से घाटे की भरपाई तो हो… फलवाली ने बेटी को अपना दृष्टिकोण समझाया।
सुन सुनकर वह मासूम गहरे सोच में पड़ गयी। वह यह समझ नहीं पा रही थी कि क्या सही है और क्या गलत!
– प्रो. शरद नारायण खरे
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