बुद्ध की सीख – Gautam Buddha Ki Kahani in Hindi
भगवान बुद्ध नदी किनारे व्याख्यान देते थे। उन्हें सब लोग बड़े ही ध्यान से सुनते थे। एक व्यक्ति उनका रोज व्याख्यान सुनता था, परंतु उसमें कोई बदलाव नहीं आया। एक दिन उसने बुद्ध भगवान से पूछा कि मैं आपके व्याख्यान रोज सुनता हूँ, परंतु मुझमें कोई बदलाव क्यों नहीं आता।
इस पर भगवान बुद्ध मुस्कुराये और उससे पूछा कि तुम किस गॉंव से हा। उसने काहा कि यहॉं से दस कोस दूर एक पीपली गॉव है, मैं उसी में रहता हँ। तुम अपने गॉंव से कैसे आते हो। मैं पैदल चलकर आता हँ। इस पर बुद्ध भगवान ने कहा कि यदि बिना चले तुम आपने गाँव पहुँच जाओ, तो मैं जानूं। इस पर उस व्यक्ति ने कहा कि यह तो संभव नहीं ह।
इसी प्रकार मेरे वजनों को यदि तुम अपने व्यवहार में नहीं लाओगे तो तुम पर कोई असर नहीं होगा। इसके लिए तुम्हें स्वयं विभिन्न स्थितियों में निरंतरता के साथ उन्हें प्रयोग में लाना होगा, तभी तुम अपने जीवन में परिर्वतन ला सकते हो।
मैले कपड़े – Controlling Anger Story in Hindi
जापान के ओसाका शहर के निकट किसी गांव में एक जेन मास्टर रहते थे। उनकी ख्याति पूरे देश में फैली हुई थी और दूर-दूर से लोग उनसे मिलने और अपनी समस्याओं का समाधान कराने आते थे। एक दिन की बात है, मास्टर अपने एक अनुयायी के साथ प्रात: काल सैर कर रहे थे कि अचानक ही एक व्यक्ति उनके पास आया और उन्हें भल-बुरा कहने लगा। उसने पहले मास्टर के लिए बहुत से अपशब्द कहे, पर बावजूद इसके मास्टर मुस्कुराते हुए चलते रहे। मास्टर को ऐसा करता देख वह व्यक्ति और भी क्रोधित हो गया और उनके पूर्वजों तक को अपमानित करने लगा, पर इसके बावजूद मास्टर मुस्कुराते हए आगे बढ़ते रहे। मास्टर पर अपनी बातों का कोई असर न होते देख अंतत: वह व्यक्ति निराश हो गया और उनके रास्ते से हट गया। उस व्यक्ति के जाते ही अनुयायी ने आश्चर्य से पूछा, मास्टर आपने भला उस दुष्ट की बातों का जवाब क्यों नहीं दिया, और तो और आप मुस्कुराते रहे, क्या आपको उसकी बातों से कोई कष्ट नहीं पहुंचा? जेन मास्टर कुछ नहीं बोले और उसे अपने पीछे आने का इशारा किया, कुछ देर चलने के बाद वे मास्टर के कक्ष तक पहुंच गए, मास्टर बोले, तुम यहीं रूको, मैं अंदर से अभी आया। मास्टर कुछ देर बाद एक मैले कपड़े लेकर बाहर आए और उसे अनुयायी को थमाते हुए बोले, लो अपने कपड़े उतारकर इन्हें धारण कर लो? कपड़ों से अजीब सी दुर्गंध आ रही थी और अनुयायी ने उन्हें हाथ में लेते ही दूर फेंक दिया, मास्टर बोले, क्या हुआ, तुम इन मैले कपड़ों को नहीं ग्रहण कर सकते ना? ठीक इसी तरह मैं भी उस व्यक्ति द्वारा फेंके हुए अपशब्दों को नहीं ग्रहण कर सकता। इतना याद रखो कि यदि तुम किसी के बिना मतलब भला-बुरा कहने पर स्वयं भी क्रोधित हो जाते हो तो इसका अर्थ है कि तुम अपने साथ-सुथरे वस्त्रों की जगह उसके फेंके फटे-पुराने मैले कपड़ों को धारण कर रहे हो।
सीख- गुरू ने शांत चित रहकर अपने आप पर और अपने विचारों पर काबू पाने की बात कही है, किसी के अपशब्दों से हमें बिलकुल भी विचलित नहीं होना चाहिए। हमारे मन और तन पर सिर्फ हमारा ही कंट्रोल होना चाहिए।
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