हिम्‍मत और श्रम और ईमानदारी – दो प्ररेणादायक कहानिंया

श्रम और ईमानदारी – Motivational Moral Story in Hindi

Sram Aur Imandari Short Moral Story in Hindiएक बालक बहुत ही प्रतिभाशाली था, परंतु उसके पिता ने उससे कभी काम नहीं लिया। उस बालक ने कभी कोई कार्य नहीं किया। जब उसके पिता की मृत्‍यु हो गयी, तब उसे खाने की समस्‍या हो गयी। वह काम की तलाश में जगह-जगह फिरने लगा। एक स्‍थान पर उसने एक होटल देखा। उसे बहुत ही भूख लगी थी, परंतु वह बहुत ही स्‍वाभिमानी था। होटल का मालिक उसे देखता रहा कि वह बालक खाने की ओर निहार रहा है। उसने कहा कि क्‍या तुम भूखे हो? तब उस बालक ने कहा- हॉं!

इस पर होटल के मालिक ने स्‍वयं उसे खाना परोस कर दिया, परंतु उसने खाना खाने से इंकार कर दिया। इस पर मालिक ने बहुत आग्रह किया, परंतु उसने खाने से साफ मना कर दिया। उस बालक ने कहा कि मैं बिना कार्य किये व्‍यर्थ में भोजन नहीं ग्रहण कर सकता। इस बात पर होटल के मालकि ने उसे कार्य पर रख लिया और उसे होटल के बर्तनों की सफाई पर लगा दिया।

उसके कार्य से प्रसन्‍न होकर होटल के मालिक ने उसका वेतन बढ़ा देने को कहा, परंतु उसने उसे लेने से इंकार कर दिया। उसने कहा- यदि सब कर्मचारियों का वेतन बढ़ाईये तो मेरा भी बढ़ा दीजिए। इस पर मालिक बहुत प्रसन्‍न हुआ कि यह बालक किसी भी तरह से स्‍वार्थी नहीं है। अत: मालिक ने उसे अच्‍छे कार्य में लगा कर सभी के साथ उसका वेतन भी बढ़ा दिया।


हिम्‍मत – Prernadayak kahani hindi mein

पुराने समय में एक राजकुमार तलवार चलाने से भी डरता था। राजा ने राजकुमार को तलवारबाजी सिखाने की बहुत कोशिश की थी, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली।

राजकुमार में तलवार चलाने का साहस नहीं था, फिर भी पिता ने किसी तरह राजकुमार को थोड़ी बहुत तलवार चलानी सिखा दी। राजा ने राजकुमार को युद्ध में ले जाने की भी कोशिश कई बार की, लेकिन राजकुमार डर की वजह से युद्ध में नहीं जाता था। राजा अपने पुत्र का डर दूर करने की कोशिश करते रहते थे, लेकिन राजकुमार की हालत वैसी की वैसी थी। एक दिन उनके राज्‍य पर दुश्‍मनों ने आक्रमण कर दिया। राजा की सेना के मुकाबले दुश्‍मनों की सेना बहुत बड़ी थी। कुछ ही समय में राजा के सभी महारथी योद्धा युद्ध में मारे गए। अंत में राजा ही जीवित बचे थे। जब राजकुमार को मालूम हुआ कि युद्ध में सब कुछ खत्‍म हो गया है तो वह भी हिम्‍मत करके महल से बाहर निकला। बाहर निकलते ही उसने देखा कि सामने से दुश्‍मनों की सेना आगे बढ़ रही है। वह डर गया, अपने महल की ओर भागने के लिए पीछे पलटा तो उसने देखा कि पीछे भी दुश्‍मनों की सेना ने उसके पिता को बंदी बना लिया है। राजा को बंदी बना देखकर महल के अंदर के सेवकों ने महल का दरवाजा बंद कर दिया, ताकि दुश्‍मन महल के अंदर न आ सकें। मैंदान में राजकुमार अकेला और सामने दुश्‍मनों की सेना थी। उसके पास दो विकल्‍प थे। पहला ये कि वह समर्पण कर दे और दूसरा ये कि वह तलवार उठाकर दुश्‍मनों का सामना करे। राजकुमार ने दूसरा विकल्‍प चुना उसने तलवार उठाई और वह दुश्‍मनों पर टूट पड़ा। राजा द्वारा सिखाई गई तलवारबाजी से वह दुश्‍मनों पर भारी पड़ने लगा। राजकुमार को लउ़ते देखकर महल के सेवकों को भी जोश आ गया और वे भी लड़ाई में कूद पड़े। कुछ ही देर में उन्‍होंने दुश्‍मनों को वहां से खदेड़ दिया और राजा को आजाद करवा लिया।

सीख- जब तक हम डरते हैं, किसी भी काम की शुरूआत नहीं कर पाते हैं। डर की वजह से ही हम सफलता से दूर रहते है। निडर होकर काम करने से ही कामयाबी मिल सकती है।

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