उचित से अधिक की आकांक्षा
George Bernard Shaw Moral Story in Hindi
ईमानदारी और मेहनत से काम करने वाले, नैतिक मूल्यों को अपना कर कीर्तिनिष्ठ जीवन व्यतीत करने वाले भले ही धीमी गति से प्रगति करते हों, परंतु उनकी प्रगति ठोस होती है तथा उनका सुयश देखकाल की सीमाओं को लॉंघ कर विश्वव्यापी और अमर हो जाता है।
अंग्रेजी के प्रसिद्ध साहित्यकार जार्ज बर्नार्ड शा को कौन नहीं जानता? उन्होंने अपना जीवन प्रापर्टी डीलर के कार्यालय में क्लर्क की नौकरी से आरंभ किया था। प्रापर्टी डीलर और भी काम करता था जैसे मकानों को किराये पर उठाना, बीमा एजेंसी चलाना आदि। उसके यहॉं रंग का काम, मकानों तथा अन्य स्थानों के किराये वसूल करना, बीमें की किश्त लाना, टैक्स वसूली और आदयगी करना सरीखे काम भी होते थे। ये काम करने में उन्हें बड़ी-बड़ी रकमों का लेन देन करना पड़ता था और बड़े-बडे प्रतिष्ठित व्याक्तियों से संपर्क करना पड़ता था। स्वभाव बर्नार्ड साहब इतने विनम्र थे कि किसी के साथ सख्ती या जोर-जबरदस्ती नहीं कर पाते और लोग थे कि उनकी परवाह ही नहीं करते।
इन कारणों से वे अपने काम में अधिक सफलता प्राप्त नहीं कर पा रहे थे। यद्यपि मालिक को उनसे कोई शिकायत नहीं थी, परंतु स्वयं बर्नार्ड साहब को अपने काम से संतोष नहीं था। एक दिन उन्होंने अपना त्यागपत्र दे दिया कि वे काम नहीं कर पायेंगे। कारण यह है कि जितना वेतन मिलता है, मैं उतना काम नहीं कर पाता।
मालिक तो उनके काम से बहुत संतुष्ट थे। उन्होंने बर्नार्ड साहब को बहुत समझाया, परंतु वह नहीं माने।
कर्म बड़ा या भाग्य – Motivational Story in Hindi
एक बार देवर्षि नारदजी वैकुंठधाम गए, वहां उन्होंने भगवान विष्णु का नमन किया। नारद ने श्रीहरि से कहा, प्रभु! पृथ्वी पर अब आपका प्रभाव कम हो रहा है, धर्म पर चलने वालों को कोई अच्छा फल नहीं मिल रहा, जो पाप कर रहे हैं, उनका भला हो रहा है।
तब श्रीहरि ने कहा, ऐसा नहीं है देवर्षि, जो भी हो रहा है, सब नियति के जरिए हो रहा है। नारद बोले, मैं तो देखकर आ रहा हूँ, पापियों को अच्छा फल मिल रहा है और भला करने वाले, धर्म के रास्ते पर चलने वाले लोगों को बुरा फल मिल रहा है। भगवान ने कहा, कोई ऐसी घटना बताओ।
नारद जी ने कहा, अभी में एक जंगल से आ रहा हूँ, वहां एक गाय दलदल में फंसी हुई थी। कोई उसे बचाने वाला नहीं था। तभी एक चोर उधर से गुजरा, गाय को फंसा हुआ देखकर भी नहीं रूका, वह उस पर पैर रखकर दलदल लांघकर निकल गया। आगे जाकर चोर को सोने की मोहरों से भरी एक थैली मिली। थोड़ी देर बाद वहां से एक वृद्ध साधु गुजरा। उसने उस गाय को बचाने की पूरी कोशिश की। पूरे शरीर का जोर लगाकर उस गाय को बचा लिया लेकिन मैंने देखा कि गाय को दलदल से निकालने के बाद वह साधु आगे गया तो एक गढ्डे में गिर गया। प्रभु! बताइए यह कौन सा न्याय है?
नारद जी की बात सुन लेने के बाद प्रभु बोले, यह सही ही हुआ! जो चोर गाय पर पैर रखकर भाग गया था, उसकी किस्मत में तो एक खजाना था लेकिन उसके इस पाप के कारण उसे केवल कुछ मोहरें ही मिली। वही, साधु को गढ्डे में इसलिए गिरना पड़ा क्योंकि उसके भाग्य में मृत्यु लिखी थी लेकिन गाय को बचाने के कारण उसके पुण्य बढ़ गए और उसकी मृत्यु एक छोटी सी चोट में बदल गई। इसान के कर्म से उसका भाग्य तय होता है।
सीख- इंसान को कर्म करते रहना चाहिए, क्योंकि कर्म से भाग्य बदला जा सकता है।
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