माँ की पहचान! Tenali Rama Ki Kahani in Hindi

Maa Ki Pehchan Tenali Rama Ki Kahani in Hindi

तेनाली राम विलक्षण बुद्धि का था। वह विपरीत परिस्थितियों में भी अपना धैर्य बनाए रखता था। उसमें ऐसे अनेक गुण थे जो उसे आम विद्वानों से अलग करते थे। उसकी इन क्षमताओं के कारण ही महाराज कृष्णदेव राय उसे ऐसे उलझनपूर्ण कार्य भी सौंप दिया करते थे जिसका हल आम सभासदों के पास नहीं हुआ करता था।

एक बार महाराज एक नवजात शिशु को लेकर बहुत परेशान हो उठे। हुआ यह कि राजप्रासाद के निकट मन्दिर का पुजारी सुबह एक नवजात को अपनी गोद में उठाए महाराज के पास पहुँचा और बच्चे को महाराज को सौंपते हुए बताया, “महाराज! आज सुबह जब मैं मन्दिर की सफाई कर रहा था तब यह नवजात बालक मुझे मन्दिर की सीडियों के पास पड़ा हुआ मिला।

सम्भवतः रात भर यह बालक वहीं पड़ा हुआ था जिसके कारण ठंडी हवा के झोंकों ने बालक को अस्वस्थ कर दिया। मैंने सबसे पहले रुई के फाहे से इस बच्चे को दूध पिलाया फिर आँच के पास बैठकर इस बच्चे के शरीर को सेंका जिसके बाद बालक की स्थिति में सुधार आया।

महाराज! मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ और मन्दिर में ईश-वन्दना में लगा रहता हूँ। मुझे अपनी ही सुध नहीं रहती। ऐसे में मैं इस बालक का लालन-पालन कैसे करूँगा? आप इस राज्य के महाराज हैं। विजयनगर का हर प्राणी आप पर निर्भर है। यहाँ के प्रत्येक छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष और बालक-बालिका की सुरक्षा की जिम्मेदारी, राजा होने के नाते, आपकी है। ऐसा सोचकर मैं यह बालक आपके पास लेकर आया हैं और इसे आपको सौंप रहा हूँ। आप इसके लालन-पालन की व्यवस्था करें। वैसे महाराज, मेरी सलाह है कि आप इस बालक की माता की तलाश कराएँ और इसे उसको ही सौंपें क्योंकि एक माँ से अधिक अच्छी परवरिश किसी भी शिशु की कोई दूसरा नहीं कर सकता। यह बात मनुष्य ही नहीं अपितु समस्त जीवों के लिए मान्य है।”

महाराज उस पंडित की अकाट्य बातें सुनकर कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थे इसलिए उन्होंने उस बच्चे को अपनी गोद में ले लिया।

पंडित बालक सौंपने के बाद महाराज से विदा लेकर मन्दिर चला आया।

बालक को अपनी गोद में लेकर महाराज कुछ देर तक असमंजस की स्थिति में रहे। उनके मन में बार-बार यह विचार उत्पन्न हो रहा था कि यदि इस शिशु को उसकी माँ की गोद मिल जाए तो इससे अच्छी और कोई बात नहीं होगी।

महाराज कृष्णदेव राय धुन के पक्के थे। उन्होंने मन में ठान लिया कि वे इस बच्चे को उसकी माँ की गोद में ही सौंपंगे। लेकिन कैसे? यह सवाल उनके अन्तर्मन में बार-बार उमड़-घुमड़ रहा था। मन में उठ रहे सवालों के बवंडर से अप्रभावित महाराज बच्चे को गोद में लेकर महल चले आए और उस बच्चे को अपनी महारानी की गोद में डालते हुए कहा, “महारानी, इस बच्चे की माँ की तलाश की जाएगी। जब तक इसकी माँ नहीं मिल जाती तब तक आप ही इसके लालन-पालन का कर्तव्य निबाहें।” इसके बाद उन्होंने महारानी को वह पूरा वृत्तान्त सुना दिया जो कि बच्चा मिलने के सम्बन्ध में मन्दिर का पुजारी उन्हें सुना गया था।

महारानी को बालक थमाकर महाराज राजभवन पहुँचे और प्रहरी को भेजकर अविलम्ब तेनाली राम को बुलावा भेजा।

तेनाली राम अचानक महाराज द्वारा बुलाए जाने से थोड़ा उद्वेलित हुआ और अविलम्ब उनसे मिलने के लिए राजभवन पहुँच गया।

राजभवन पहुँचकर तेनाली राम ने देखा, महाराज राजभवन में बेचैनी से टहल रहे हैं। तेनाली राम ने महाराज के सामने पहुँचकर औपचारिक अभिवादन किया लेकिन महाराज ने बिना औपचारिकता के तेनाली राम का हाथ थाम लिया और एक मित्र की तरह टहलते हुए राजभवन के पाश्र्व में बने बगीचे में चले आए। तेनाली राम के आने के बाद महाराज थोड़े आश्वस्त अवश्य हुए कि अब उस बच्चे को उसकी माँ तक पहुँचाने की व्यवस्था हो जाएगी। उन्होंने बाग में टहलते हुए पुजारी द्वारा उस शिशु को लाए जाने और शिशु को महारानी को सौंपे जाने तक की कहानी तेनाली राम को सुना दी।

तेनाली राम महाराज के मन के उद्वेलन को तो समझ ही रहा था, एक राजा होने के नाते उस बालक के प्रति उनके दायित्व को भी समझ रहा था।

अन्ततः महाराज ने कहा, “तेनाली राम! मैं चाहता हूँ कि इस बच्चे की माँ की खोज की जाए और ऐसी व्यवस्था की जाए कि वह महिला अपने बच्चे का लालन-पालन करे। मुझे लगता है कि किसी महिला ने अपनी गरीबी के कारण इस बच्चे को भगवान के मन्दिर में छोड़ा। भगवान के मन्दिर में आस्थावान, धार्मिक प्रवृत्तियों के लोग जाते हैं। बच्चे को मन्दिर में छोड़ते समय उस महिला के मन में यही विचार रहा होगा कि कोई धर्मात्मा इस बच्चे को अपना लेगा और इसका लालन-पालन करेगा। वह अपने बच्चे को निश्चित रूप से संस्कारवान बनाने की कामना रखती होगी इसलिए ही उसे मन्दिर के द्वार पर छोड़कर चली गई।” महाराज यह सब कहते हुए भावुक हो उठे और आगे कहा, “तेनाली राम! मेरा मन कहता है कि इस बच्चे को इसकी माँ अवश्य मिलेगी।”

तेनाली राम महाराज की मनःस्थिति समझ रहा था। उसने महाराज से कहा, “यदि आपका मन कहता है तो महारानी को उस बालक को पालने दीजिए और जब उसकी माँ आ जाए तब उसे वह बालक सौंप दीजिए।”

“तुम भी क्या बातें करते हो तेनाली राम! तब क्या बहुत विलम्ब न हो जाएगा? फिर महारानी की गोद में पलने के बाद यह बालक किसी अन्य महिला को माँ का सम्मान दे पाएगा? नहीं, ऐसा करना उचित नहीं होगा।” महाराज ने कहा।

तेनाली राम को महाराज की बातें ठीक लगीं और उसने महाराज की इच्छा जानने के लिए पूछा, “फिर उचित क्या होगा महाराज?”

“उचित यह होगा कि हम इस बच्चे की माँ को तलाश करें।” महाराज ने कहा।… थोड़ी देर चुप रहने के बाद महाराज ने फिर कहा, “और मैं चाहता हूँ कि उस बच्चे की माँ की खोज की जिम्मेदारी तुम स्वीकार करो।”

यह बात हालाँकि तेनाली राम पहले समझ चुका था लेकिन महाराज के मुँह से सुन लेने के बाद उसने कहा, “जैसी महाराज की आज्ञा।” थोड़ी देर तक तेनाली राम चुप-चाप महाराज के साथ टहलता रहा और फिर बोला, “महाराज, यदि मैं इस बच्चे बच्चे की माँ की खोज करूँगा तो यह भी चाहूँगा कि इससे सम्बन्धित व्यवस्था भी मैं ही करूँ।”

“हाँ! तुम्हें पूरी छूट है। जो चाहो करो।” महाराज ने कहा।

“तो महाराज, मेरी पहली विनती है कि उस बालक को राजभवन में एक पालने पर रखवा दें और उसकी देखभाल वहाँ हो सके इसके लिए एक दासी वहाँ नियुक्त करवा दें। मैं जानता हूँ कि महारानी जी बच्चे की अच्छी देखभाल कर रही होंगी लेकिन बच्चे की माँ की खोज के लिए बच्चे को महल से राजभवन में लाया जाना आवश्यक है।” तेनाली राम ने कहा।

महाराज ने तेनाली राम को आश्वस्त किया, “ऐसी व्यवस्था करा दी जाएगी।”

पुनः तेनाली राम ने महाराज से कहा, “महाराज! पूरे विजयनगर में यह मुनादी करा दी जाए कि कल रात नगर के एक मन्दिर में एक बालक मिला है। लालन-पालन के लिए उसे महाराज कृष्णदेव राय अपने साथ ले गए हैं। बच्चे को उन्होंने अपना आधा राज्य देने का मन बना लिया है। इसके सम्बन्ध में कोई भी वैधानिक घोषणा करने से पूर्व महाराज इस बच्चे की माँ से मिलना चाहते हैं ताकि वे उसकी मदद कर सकें। महाराज को विश्वास है कि किसी मजबूरी में ही किसी ने अपने जिगर के टुकड़े को स्वयं से अलग कर भगवान के द्वार पर छोड़ दिया होगा।”

महाराज ने इसकी भी स्वीकृति दे दी।

दोपहर का समय था। महाराज कृष्णदेव राय का दरबार लगा हुआ था। सभा की कार्रवाई चल रही थी। महाराज से एक सभासद विजयनगर के पूर्वी भाग में सिंचाई की व्यवस्था कराने का आग्रह कर रहा था क्योंकि बरसात के दिनों में विजयनगर के पूर्वी भाग में अपेक्षाकृत कम बारिश हुई थी जिससे किसानों में हताशा की स्थिति थी। वे आशंकित थे कि यदि सिंचाई की व्यवस्था समय रहते नहीं की गई तो खेत में लगी फसलें बरबाद हो जाएँगी और यदि ऐसा हुआ तो राज्य में खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो जाएगा। अभी यह बहस जारी थी तभी एक प्रहरी एक महिला के साथ सभा भवन में आया। तेनाली राम उन्हें देखते ही समझ गया कि अवश्य उसके कहने के अनुसार मुनादी करा दी गई है जिसके कारण यह महिला अपने बच्चे को लेने राजभवन में आई है।

तेनाली राम की आशा के अनुरूप ही महिला ने महाराज के समक्ष अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया, “वह उस बच्चे की माँ है जो महाराज को मन्दिर में मिला है।”

बच्चा पालने में महाराज के पास ही रखा गया था। महाराज ने महिला से कहा, “आओ और आकर देख लो कि यही बच्चा तुम्हारा है?”

महिला महाराज के आसन के पास गई। पालने में सोए बच्चे को भली प्रकार देखा। उसे गोद में लेकर उसे अपने सीने से चिपटा लिया और बिलखती हुई बोली, “जी हाँ, महाराज! यह बच्चा मेरा है। केवल इसके शरीर पर जो वस्त्रा हैं, वे मेरे नहीं हैं। बच्चे का बाप नशेड़ी है। हमेशा नशे में धुत्त रहता है। कमाता-धमाता नहीं है। मैं अपनी तंगहाली से आजिज आ गई तब इस बच्चे को मन्दिर में भगवान के भरोसे छोड़ आई। अभी मैंने सुना कि आप इस बच्चे को आधा राज्य देनेवाले हैं तब मैं भागी-भागी यहाँ आ गई। आप यह न सोचें महाराज कि मैं किसी लोभ में यहाँ आई। मुझे कुछ भी नहीं चाहिए। आप इस बच्चे की अच्छी परवरिश कराएँ, यही मेरे लिए बहुत है।” इतना कहकर उस महिला ने बच्चे को पालने में रख दिया और वहीं सुबक-सुबककर रोने लगी।

अभी उसका रुदन चल ही रहा था कि प्रहरी एक अन्य महिला को साथ लिए आया और वह महिला जो अभी-अभी महाराज के सामने प्रस्तुत हुई, दूसरी बिलखती हुई महिला पर ध्यान दिए बिना ही बोली, “महाराज, मुझ अबला पर दया कीजिए! मैं अपनी गरीबी से तंग आकर अपने जिगर के टुकड़े से अलग हुई।

वह अचानक पालने के पास पहुँची और बच्चे को गोद में उठाकर उसे अपने सीने से लगाकर बेतहाशा चूमने लगी। उसके हाव-भाव से भी यही प्रकट हो रहा था कि वही उस बच्चे की वास्तविक माँ है।

महाराज सहित सभी सभासद असमंजस की स्थित में थे कि आखिर इन दोनों महिलाओं में से बच्चे की असली माँ कौन है?

तभी तेनाली राम ने अपने आसन से उठकर महिलाओं से पूछा, “ठीक-ठीक बताओ, इस बच्चे की माँ कौन है?”

दोनों महिलाओं के मुँह से हठात् निकला, “मैं!”

तेनाली राम ने बिना उनकी ओर देखे जोर से कहा, “प्रहरी! बच्चे को तलवार से दो टुकड़े कर दो और इन दोनों महिलाओं को बच्चे का एक-एक टुकड़ा दे दो। झमेला ही खत्म! सुबह से इस बच्चे के कारण राजभवन का कामकाज प्रभावित हो रहा है।” तेनाली राम के स्वरों में खीज और क्रोध का मिला-जुला सम्मिश्रण था।

तेनाली राम का यह आदेश सुनते ही पहली महिला के मुँह से अचानक जोरों की चीख निकली, “नहीं!” और वह अपने स्थान से उठकर दो-तीन छलाँग में ही तेनाली राम के पास पहुँचकर उसके पाँवों से लिपटकर विलाप करने लगी, “कृपा कीजिए! ऐसा अनर्थ मत कीजिए! आप यह बच्चा उसी महिला को दे दीजिए! वही उसकी असली माँ है। मैं तो लोभी हूँ। बच्चे को आधा राज्य मिलने के लालच में यहाँ चली आई। मैं उसकी माँ नहीं हैं, मुझे जो सजा देना चाहें, दे लें मगर बच्चे को कुछ न करें।”

इस महिला का यह आचरण देखकर तेनाली राम अपने निष्कर्ष पर पहुँच चुका था। उसने प्रहरियों को बुलाकर दूसरी महिला को गिरफ्तार कर लेने का निर्देश दिया और अपने पैरों से लिपटी महिला को स्नेहपूर्वक उठाया और कहा, “चुप हो जाओ माँ! तेरे लाल को कुछ नहीं होगा। उसका बाल भी बाँका न होगा। चुप हो जाओ!”

महिला खड़ी हुई और अपने आँसू पोंछे लेकिन उसकी हिचकियाँ बँधी हुई थीं और रह-रहकर सुबक उठती थी।

तेनाली राम ने गिरफ्तार की गई महिला से जाकर पूछताछ की। शीघ्र ही वह महिला टूट गई। उसने स्वीकार कर लिया कि वह बच्चे को आधा राज्य मिलने की घोषणा सुनकर लालच में आ गई और उसी लोभ में पड़कर उसकी माँ होने का दावा कर बैठी।

उस महिला की गरीबी और विवशताओं के बारे में जानकर तेनाली राम को उस पर दया आ गई और उसने उसे मुक्त करा दिया। इसके बाद तेनाली राम पहली महिला को साथ लेकर महाराज के पास गया और कहा, “महाराज! यही है इस बच्चे की असली माँ। जो अपने बच्चे को काटे जाने की धमकी से उद्वेलित हो गई और इस बात से भी मुकर गई कि वह उसकी माँ है। इसमें इसका यही स्वार्थ था कि बच्चे को कुछ न हो। वह सुरक्षित रहे।”

महाराज ने महिला की वास्तविक स्थिति का अनुमान लगा लिया और बच्चे सहित उसकी परवरिश की व्यवस्था राज्य की ओर से करा दी।

 

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