खुलीं आँखें महाराज की! Tenali Rama Short Moral Story in Hindi

Khuli Ankhein Maharaj Ki Tenali Rama Moral Story in Hindi

महाराज कृष्णदेव राय कभी-कभी तेनाली राम को साथ लेकर विजयनगर की प्रजा का दुख-सुख जानने के उद्देश्य से भ्रमण के लिए निकल जाते थे। ऐसे भ्रमण के समय दोनों आम नागरिकों जैसे परिधान में रहते थे।

एक दिन महाराज ने कहा, “तेनाली राम! राज-काज की समरसता से बड़ी ऊब हो रही है। क्यों न हम लोग दो-चार दिनों के लिए कहीं भ्रमण के लिए निकल जाएँ? इससे समरसता भी दूर होगी और हम लोग अपनी प्रजा की वास्तविक स्थितियों को भी समझ पाएँगे।”

तेनाली राम भला महाराज की बातों का क्या विरोध करता! वह तुरन्त तैयार हो गया। कार्यक्रम तय हो गया। उस दिन तेनाली राम यात्रा की तैयारी के लिए अपने घर चला गया। दूसरे दिन यात्रा आरम्भ होनी थी इसलिए तेनाली राम ने आनन-फानन में अपनी तैयारियाँ पूरी कर लीं। उसने थैले में कुछ कपड़े रखे। जेब में कुछ मुद्राएँ रखीं। जूतों को साफ किया। घोड़े को नहला-धुलाकर उसकी मालिश की। हो गई उसकी तैयारी पूरी। ऐसे भी वह महाराज के साथ जा रहा था इसलिए राह व्यय आदि की चिन्ता उसे नहीं करनी थी फिर भी उसने कुछ पैसे अपने साथ रख लिये थे। यह सोचकर कि पता नहीं कब पैसों की आवश्यकता पड़ जाए। तेनाली राम का मानना था कि पैसों का कोई विकल्प नहीं होता। पैसों का काम पैसे से ही पूरा हो सकता है।

दूसरे दिन वहू महाराज के साथ राज्य-भ्रमण के लिए निकल पड़ा। यानी उन दोनों की यात्रा प्रारम्भ हो गई। यात्रा के दौरान महाराज तेनाली राम से प्रायः कुछ बातें किया करते थे। उनकी बातों में कई प्रकार की जिज्ञासाएँ हुआ करती थीं। इस बार यात्रा का पहला पड़ाव एक नगर की धर्मशाला में था। महाराज ने धर्मशाला पहुँचकर स स्‍नान किया और वस्त्रा बदले। फिर तेनाली राम के साथ पैदल ही नगर भ्रमण के लिए निकले। उन्हें यह देखकर प्रसन्नता हुई कि उनके राज्य का यह नगर खुशहाल था। बाजार में प्रकाश था। अधिकांश दुकानों में तोरण द्वार लगे हुए थे। एक स्थान पर महाराज ने भीड़ देखी तो तेनाली राम के साथ वे यह देखने के लिए उस स्थान पर गए कि भीड़ क्यों लगी हुई है। उस स्थान पर पहुँचकर महाराज ने देखा कि एक धनाढ्य व्यक्ति गरीबों के बीच अनाज और पैसे बाँट रहा है। महाराज उस व्यक्ति की दानशीलता से बहुत प्रभावित हुए और तेनाली राम से कहा, “तेनाली राम! ऐसे दानी और पुण्यात्मा लोगों से ही धरती टिकी हुई है। देखो इस दानी को, कितनी एकाग्रता से यह गरीबों को दान दे रहा है!”

महाराज इतना ही बोल पाए थे कि दानकर्ता के पास खड़े दो पगड़ीधारी लठैतों ने नारा बुलन्द किया, “…बोलो ध्यानी चन्द सेठ की…”

दान लेने के लिए खड़े लोगों ने आवाज लगाई, “जय!”

इस जयकार की गंज के साथ ही महाराज तेनाली राम का हाथ पकड़कर पुनः धर्मशाला की दिशा में चल पड़े।

महाराज चाहते थे कि तेनाली राम दान पर भी कुछ बोले। जिस तरह लोगों ने उस सेठ के लिए जयकार किया था, उससे महाराज के मन में भी इच्छा हो गई थी कि कभी वे भी गरीबों की बस्ती में जाएँगे और उनकी सहायता के लिए अन्न और द्रव्य दान करेंगे तब लोग उनके लिए भी ऐसे ही जयघोष करेंगे। सत्ता हमेशा ऐसे ही छोटे प्रलोभन से उत्पन्न जय के मद में डूबी रहती है। महाराज की इस चाह में भी सत्ता का वही मद काम कर रहा था।

महाराज द्वारा पूछे जाने पर भी तेनाली राम ने सेठ के दान के प्रसंग में कुछ भी नहीं कहा।

महाराज क्षुब्ध हो उठे और तेनाली राम से चिढ़कर कहा, “तुम कैसे मनुष्य हो? एक प्रश्न मैंने तुमसे कई बार पूछा लेकिन तुम मौन साधे रहे! आखिर क्यों?”

“महाराज! मैं एक ऐसा मनुष्य हूँ जिसका अपनी देह और मन पर पूर्ण अधिकार है।” तेनाली राम ने कहा। “यह है आपके अभी-अभी पूछे गए प्रश्न का उत्तर।”

“क्या मतलब?” महाराज ने कहा, “क्यों उलझी हुई बातें कर रहे हो? जो कुछ कहना है, साफ-साफ कहो।”

“मेरे कहने का मतलब है कि जिस प्रकार कुम्हार घड़े को बनाता है, नाविक नौकाएँ चलाता है, धनुर्धारी शरसन्धान करता है, गायक गीत गाता है, वादक वाद्ययंत्रा बजाता है, उसी प्रकार ज्ञानी व्यक्ति स्वयं पर शासन करता है। मैं ज्ञान-यात्रा का यात्री हैं इसलिए स्वयं पर शासन करने का अभ्यास करता हूँ। उचित अवसर आने पर ही मैं आपके पूर्व प्रश्न का उत्तर दूँगा।”

जब तक ये बातें हो रही थीं तब तक धर्मशाला आ गया था। महाराज तेनाली राम के उत्तर से सन्तुष्ठ नहीं थे और अपने प्रश्न की उपेक्षा के कारण कुपित भी हो उठे थे इसलिए विश्राम के लिए अपने कक्ष में चले गए।

जाड़े की रात थी। कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। तेनाली राम ने मध्य रात्रि में महाराज के कमरे का द्वार खटखटाया। महाराज ने द्वार खोला तो दरवाजे पर तेनाली राम को देखकर साश्चर्य प्रश्न किया, “क्या हुआ तेनाली राम! इतनी रात गए तुमने द्वार क्यों खटखटाया?”

“महाराज, बड़ी कृपा होगी यदि आप वस्त्र बदल लें और इस समय नगर भ्रमण के लिए चलें। शाम को या दिन को जो नगर दिखता है वह नगर का एक रूप है। नगर का वास्तविक रूप तो रात को ही दिखता है।” तेनाली राम ने कहा।

महाराज मान गए और तैयार होकर तेनाली राम के साथ धर्मशाला से बाहर आ गए।

दोनों पैदल चलते हुए बाजार की ओर आ गए। शाम को इस बाजार में कितनी चहल-पहल थी! महाराज सोच रहे थे-कितना भव्य और सम्पन्न दिख रहा था बाजार! अभी किस तरह सन्नाटे में पड़ा है! मानो यहाँ कभी मनुष्य के पाँव ही न पड़े हों! दुकानों के आगे प्रकाश के स्थान पर अँधेरा था। वे दोनों चलते रहे। एक स्थान पर उन्होंने देखा, एक बेसहारा आदमी एक दुकान के पायों की ओट में ठिठुर कर लेटा हुआ है। ठंड से बचाव के लिए उसके पास कम्बल नहीं था। वे लोग धीमी चाल से उस व्यक्ति की ओर बढ़ने लगे। तभी उन्होंने देखा- विरोधी दिशा से एक व्यक्ति कम्बल ओढ़े चला आ रहा था। उसकी भी नजर उस व्यक्ति पर पड़ी और वह तुरन्त उसके पास गया और अपना कम्बल उतारकर धीरे से उसने उस व्यक्ति को ओड़ा दिया और स्वयं बिना कम्बल के ही तेज कदमों से वहाँ से चला गया। उसने कहा उस व्यक्ति पर कम्बल डालते समय इतनी सतर्कता निभाई कि उस व्यक्ति की नींद न टूटे। महाराज यह दृश्य देखकर चमत्कृत हो उठे।

तेनाली राम ने कहा, “महाराज! ऐसे ही लोगों के कारण धरती टिकी हुई है। असल दान तो यही है। बाकी दान के नाम पर जो कुछ भी होता है वह प्रशस्ति पाने का प्रयास है, उपक्रम है, व्यापार है… और कुछ भी नहीं।”

महाराज मन-ही-मन ग्लानि से भर उठे कि उनके मन में भी गरीबों को कुछ दान करके अपना जयघोष सुनने की इच्छा उत्पन्न हुई थी। उन्होंने तेनाली राम को गले लगाते हुए कहा, “तेनाली राम! तुमने मेरी आँखें खोल दीं!”

Khuli Ankhein Maharaj Ki Tenali Rama Moral Story in Hindi

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