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मैं रानू हूँ और आज मेरा जन्मदिन है। मैं आज आपके सामने मेरे जीवन के सबसे यादरगार जन्मदिन के उपहार के बारे में बताने जा रही हूँ, मेरे पति आशीष ने आज सुबह ही कहा कि कुछ भी मत बनाना, हम लंच के लिए कही बाहर चलेंगे। तुम्हारे जन्मदिन पर आज तुम्हें एक अनोखी ट्रीट मिलेगी। 17 साल हो गए हमारी शादी को, मैं आशीष को बहुत अच्छे से जानती हूँ। दोनों बच्चे शाम 4 बजे स्कूल से लौटेंगे, मतलब लंच पर मैं और आशीष ही जाएँगे और बच्चों के आने से पहले लौट भी आएँगे। एक नये नये बने मॉल की पार्किंग में हमारी गाड़ी पहुँची। 5वी मंजिल पर खाने-पीने के ढेरों स्टॉल्स थे, फाइनली एक बंद दरवाजे पर हम पहुँचे। उस दरवाजे पर बोर्ड लगा था, और लिखा था :-
“Dialogue in the dark”
मुझे पढ़कर बड़ा आश्चर्य हुआ!
“अंधेरे में संवाद” ? ये कैसा नाम है, रेस्टॉरेंट का ?
बड़ा विचित्र सा लग रहा था सब कुछ। अगले मोड़ के बाद इतना गहरा अंधेरा हो गया कि, मैंने आशीष का हाथ पकड़ लिया और फिर शायद हम एक हॉल में पहुँचे गये।
एक सूटबूट वाले आदमी ने किसी को आवाज लगाई :- “संपत”
ये आज के हमारे खास गेस्ट हैं। आज मैडम का जन्मदिन है।
Give them special treat…
ऑर्डर मैंने ले लिया है, तुम इन्हें इनकी टेबल पर लेकर जाओ,
अब उस दूसरे आदमी ने हमें टेबल पर पहुँचाया, हम बैठ गए,
मैंने सामने टेबल पर हाथ फिराया…
जब टेबल ही नहीं दिख रहा तो खाना कैसे दिखेगा ?
हम खाना कैसे खाएँगे ? ये कैसा जन्मदिन का उपहार है ?
ऐसे न जाने कितने सवाल मेरे दिमाग में घूम रहे थे, पर मुझे आशीष पर भरोसा था, फिर कुछ देर बाद टेबल पर प्लेट्स आदि सजाए जाने की आवाजें आने लगीं। वेटर्स का आना-जाना समझ में आ रहा था। फिर वो प्लेट्स में खाना सर्व करने लगा।
आवाज आई कि मैंने खाना परोस दिया है। अब आप लोग शुरू कीजिए। आपको कुछ दिखेगा तो नहीं, पर मुझे भरोसा है कि, स्पर्श और खुशबू से आपको खाने में एक अलग ही आनंद प्राप्त होगा।
उस घनघोर अंधेरे में… मैंने रोटी तोड़ी, प्लेट में रखी सब्जी को लपेटा और पहला निवाला लिया। मैंने उल्टे हाथ से प्लेट पकड़ी हुई थी इसलिए मुझे सीधे हाथ से छूकर खाने के आईटमों के बारे में पता चल रही थी। और फिर, आहा… इतने अंधेरे में भी खाने के पदार्थ तो अपने स्वाद का मजा दे ही रहे थे, खुशबू, स्पर्श और आवाज बस यही काम कर रहे थे। बीच-बीच में संपत, सब्जियाँ या अन्य कुछ और परोस देता।
मेरा जन्मदिन, अंधेरे में खाना, एक अनोखा आनंद दे गया,
कैंडल लाइट डिनर से भी अधिक आनंददायक रहा।
आप जब, बाहर जाना चाहें तो बताइएगा।
मैं आपको बाहर छोड़ आऊँगा ।” -संपत ने कहा।
तो आशीष बोल पड़े: “हाँ… हाँ… अब चलो।
बिल भी तो बाहर ही पे करना है।
चलो संपत, ले चलो हमें।
फिर संपत ने हम दोनों के हाथ थामे और हमें बाहर को ले चला। अंधेरे हॉल से बाहर निकल हम दो मोड़ों के बाद प्रकाश दिखने लगा और हम संपत का हाथ छोड़ उसके पीछे चलते रहे थे। उसका आभार मानने के लिए मैंने उसे आवाज दी तो संपत पलटा और मेरी ओर देखने लगा। तब कमरे के प्रकाश में मैंने संपत का चेहरा देखा और मेरे मुँह से हल्की चीख निकल गई क्योंकि, संपत की आँखों की जगह दो अंधेरे गढ्ढे नजर आ रहे थे। वो पूर्ण रूप से अँधा था।
संपत बोला :- “यस मैडम ?”
मैं समझ नहीं पा रही थी कि, क्या कहूँ ?
फिर मैंने कहा :- संपत, अपनी ऐसी हालत में भी तुमने, हमारी खूब सेवा,
इतनी बढ़िया खातिरदारी की, मैं ये बात सारी जिंदगी नहीं भूलूँगी
संपत बोला :- मैडम, आपने जिस अंधेरे को आज अनुभव किया है वो तो हमारा रोज का ही है। लेकिन हमने उस पर विजय पा ली है, We are not disabled, we are Differently Able People… We can lead our Life without any Problem with all Joy and Happiness as you Enjoy…
बिना किसी की सहानुभूति के मोहताज, एक सशक्त व्यक्ति से आज आशीष ने मुझे मिलवाया, ऐसा जन्मदिन मुझे कभी नहीं भूलेगा। आशीष बिल देकर मेरे पास आये, हमेशा आशीष को उसकी फिजूलखर्ची के चिल्लाने वाली मैंने, बिल को देखा तो मेरी नजर बिल पर सबसे नीचे लिखे प्रिंटेड शब्दों पर ठहर गई…
लिखा था : We do not accept tips, Please think of Donating your Eye’s, which will bring light to Somebody’s ’s Life.
(हम टिप्स स्वीकार नहीं करते। कृपया अपने नेत्रदान के बारे में सोचें, जो किसी के जीवन में रोशनी ले आएगा।)
नेत्रदान महादान