सुहृदां हितकामानां न करोतीह यो वच:।
सकूम इव दुर्बद्धि: काष्ठाद् भ्रष्टो विनश्यति।हितचिन्तक मित्रों की बात पर जो ध्यान नहीं देता, वह मूर्ख नष्ट हो जाता है।
एक तालाब में कम्बुग्रीव नाम का कछुआ रहता था। उसी तालाब में प्रति दिन आने वाले दो हंस, जिनका नाम संकट और विकट था, उसके मित्र थे। तीनों में इतना स्नेह था कि रोज़ शाम होने तक तीनों मिलकर बड़े प्रेम से कथालाप किया करते थे। कुछ दिन बाद वर्षा के अभाव में वह तालाब सूखने लगा। हंसों को यह देखकर कछुए से बड़ी सहानुभूति हुई।
कछुए ने भी ऑंखों से आँसू भरकर कहा- अब यह जीवन अधिक दिन का नहीं है। पानी के बिना इस तालाब में मेरा मरण निश्चित है। तुमसे कोई उपाय बन पाए तो करो। विपत्ति में धैर्य ही काम आता है। यत्न से सब काम सिद्ध हो जाते हैं।
बहुत विचार के बाद यह निश्चय किया गया कि दोनों हंस जंगल से एक बॉंस की छरी लाऍंगे। कछुआ उस छड़ी के मध्य भाग को मुख से पकड़ लेगा। हंसों का यह काम होगा कि वे दोनों ओर से छड़ी को मज़बूती से पकड़कर दूसरे तालाब के किनारे तक उड़ते हुए पहुँचेंगे।
यह निश्चय होने के बाद दोनों हँसों ने कछुए को कहा- मित्र! हम तुझे इस प्रकार उड़ते हुए दूसरे तालाब तक ले जाएँगे, किन्तु एक बात का ध्यान रखना। कहीं बीच में लकड़ी को छोड़ मत देना, नहीं तो तू गिर जाएगा। कुछ भी हो, पूरा मौन बनाए रखना। प्रलोभनों की ओर ध्यान न देना। यही तेरी परीक्षा का मौका है।
हंसों ने लकड़ी को उठा लिया। कछुए ने उसे मध्य भाग से दृढ़तापूर्वक पकड़ लिया। इस तरह निश्चित योजना के अनुसार वे आकाश में उड़े जा रहे थे कि कछुए ने नीचे झुककर उन नागरिकों को देखा जो गर्दन उठाकर आकाश में हंसों के बीच किसी चक्राकार वस्तु को उड़ता देखकर कौतूहलवश शोर मचा रहे थे।
उस शोर को सुनकर कम्बुग्रीव से नहीं रहा गया। वह बोल उठा- अरे! यह शोर कैसा है?
यह कहने के लिए मुँह खोलने के साथ ही कछुए के मुख से लकड़ी की छड़ छूट गई और कछुआ जब नीचे गिरा तो लोगों ने उसकी बोटी-बोटी कर डाली।
टिटिहरी ने यह कहानी सुनाकर कहा- इसीलिए मैं कहती हूँ कि इपने शुभचिन्तकों की राय पर न चलने वाला व्यक्ति नष्ट हो जाता है। बल्कि बुद्धिमानों में भी वही बुद्धिमान सफल होते हैं जो बिना आई विपत्ति का पहले से ही उपाय सोचते हैं, और वे भी उसी प्रकार सफल होते हैं जिनकी बुद्धि तत्काल अपनी रक्षा का उपाय सोच लेती है। पर जो होगा, देखा जाएगा, कहने वाले शीघ्र ही नष्ट हो जाते है।
टिटिहरे ने पूछा- यह कैसे?
टिटिहरी ने कहा- सुनो:
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