दूरदर्शी बनो! – तीन मछलियों की पंचतंत्र की प्रेरक कहानी!

Doordarshi Bano Panchatantra Kahani in Hindi

यद् भविष्‍यो विनश्‍यति

‘जो होगा देखा जाएगा’ कहने वाले नष्‍ट हो जाते है।

एक तालाब में तीन मछलियॉं थी। अनागतविधाता, प्रत्‍युत्‍पन्‍नमति और यद्भविष्‍य। एक दिन मछियारों ने उन्‍हें देख लिया और सोचा,इस तालाब में खूब मछलियॉं हैं। आज तक कभी इसमें जाल भी नहीं डाला है, इसलिए यहाँ खूब मछलियॉं हाथ लगेंगी। उस दिन शाम अधिक हो गई थी।, खाने के लिए मछलियॉं भी पर्याप्‍त मिल चुकी थीं, अत: अगले दिन सुबह ही वहॉं आने को निश्‍चय करके वे चले गए।

अनागतविधाता नाम की मछली ने उसकी बात सुनकर सब मछलियों को बुलाया और कहा- आपने उन मछियारों की बात सुन ली है। रातों-रात ही हमें यह तालाब छोड़कर दूसरे तालाब में चले जाना चाहिए। एक क्षण की भी देर करना उचित नहीं।

प्रत्‍युत्‍पन्‍नमति ने भी उसकी बात का समर्थन किया। उसने कहा- परदेश में जाने का डर प्राय: सबको नपुंसक बना देता है। ‘अपने ही कुऍं का जल पिऍंगे’- यह कहकर जो लोग जन्‍म-भरा खारा पानी पीते हैं, वे कायर होते हैं। स्‍वदेश का यह राग वही गाते हैं, जिनकी कोई और गति नहीं होती।

उन दोनों की बातें सुनकर यदभवति नाम की मछली हँस पड़ी। उसने कहा- किसी राह जाते आदमी के वचन-मात्र से डरकर हम अपने पूर्वजों के देश को नहीं छोड़ सकते। दैव अनुकूल होगा तो हम यहाँ भी सुरक्षित रहेंगे, प्रतिकूल होगा तो अन्‍यत्र जाकर भी किसी के जाल में फँस जाऍंगे। मैं तो नहीं जाती, तुम्‍हें जाना हो तो जाओं।

उसका आग्रह देखकर अनागतविधाता और प्रतयुत्‍पन्‍नमति दोनों सपरिवार पास के तालाब में चली गई। यदभविष्‍य अपने परिवार के साथ उसी तालाब में रही। अगले दिन सुबह मछियारों ने उस तालाब में जाल फैलाकर सब मछलियों को पकड़ लिया।

इसलिए मैं कहती हूँ कि ‘जो होगा देखा जाएगा’ की नीति विनाश की ओर ले जाती है। हमें प्रत्‍येक विपत्ति का उचित उपाय करना चाहिए।

यह बात सुनकर टिटिहरे ने टिटिहरी से कहा- मैं यद्भविष्‍य जैसा मूर्ख और निष्‍कर्म नहीं हूँ। मेरी बुद्धि का चमत्‍कार देखती जा। मैं अभी चोंच से पानी बाहर निकालकर समुद्र को सुखा देता हूँ।

टिटिहरी- समुद्र के साथ तेरा बैर तुझे शोभा नहीं देता। इस पर क्रोध करने से क्‍या लाभ? अपनी शक्ति देखकर हमें किसी से बैर करना चाहिए, नहीं तो आग में जलने वाले पतंगे जैसी गति होगी।

टिटिहरा फिर भी अपनी चोंच से समुद्र को सुखा डालने की डींगे मारता रहा। तब टिटिहरी ने फिर उसे मना करते हुए कहा कि जिस समुद्र को गंगा-यमुना जैसी सैकड़ो नदियॉं निरन्‍तर पानी से भर रही हैं, उसे तू अपनी बूंद-भर उठाने वाली चोंच से कैसे खाली कर देगा?

टिटिहरा तब भी अपने हठ पर तुला रहा। तब टिटिहरी ने कहा- यदि तूने समुद्र को सुखाने का हठ ही कर लिया है तो अन्‍य पक्षियेां की भी सलाह लेकर काम कर। कई बार छोटे-छोटे प्राणी मिलकर अपने से बहुत बड़े जीव को भी हरा देते हैं। जैसे चिडि़या, कठफोड़ें और मेढक ने मिलकर हाथी को मार दिया था।

टिटिहरे ने पूछा- कैसे?

टिटिहरी ने तब चिड़िया और हाथी की कहानी सुनाई।

आगें पढें :- एक और एक ग्यारह! – चिड़िया और हाथी की कहानी!

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