एक युवक ने अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने का दृढ़ संकल्प किया था। बड़ी लगन और धैर्य के साथ उसने एम.ए. तक की शिक्षा प्राप्त की थी। शिक्षा की समाप्ति के बाद उसने नौकरी खोजना प्रारंभ किया ताकि पारिवारिक जिम्मेदारी का निर्वाह हो सके। इतनी अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी यह उसका दुर्भाग्य था कि उसे कहीं काम नहीं मिला। नौकरी की तलाश में जगह-जगह भटका, खूब प्रयास किये किंतु हर स्थान से उसे निराशा ही प्राप्त होती थी। अच्छी बात यह थी कि युवक ने मात्र किताबी शिक्षा ग्रहण नहीं की थी अपितु जीवन में धैर्य कैसे रखा जा सकता है, इसके सूत्र भी उसने हृदयंगम किये थे। अत: आशावादी बनकर वह हर परिस्थिति का सामना करने लगा और उसकी खोज लगातार जारी रही।
इस कार्य में उसका आत्मविश्वास उसे बल देता था। फिर तो जहां चाह की इतनी उत्कृष्टता हो वहां राह को सात समंदर पार करके भी आना पड़ता है। एक दिन वह काम की तलाश करता हुआ एक बंगले पर पहुंचा जो बहुत बड़े व्यापारी का था।
युवक ने सोचा, इस व्यापारी के पास कई काम हो सकते हैं। जिस समय वह उनके घर पहुंचा उस समय वे अपनी गाड़ी मे बैठकर जाने की तैयारी में थे। युवह ने व्यापारी को आदरपूर्वक नमस्कार करके प्रार्थना के स्वर में बोला, ”साहब मैं काम की तलाश में आप तक पहुंचा हूँ। यदि मेरे लायक आपके पास कोई काम हो तो मुझे अवश्य दिया जाए। मैं एम.ए. पास हूँ, ”सेठ ने एक गहरी दृष्टि युवक पर डाली और उसकी उत्कंठा व मजबूरी का एहसास करते हुए बोले,
‘एक काम करो ये जो सामने पत्थरों का ढेर पड़ा है इन्हें उठाकर इसी बगीजे के दूसरे कोने में रख दो। जब तुम्हारा कार्य पूर्ण हो जाए तब मुझसे ऑफिस में आकर मिलना।’ एक पल की देरी किए बिना वह युवह श्रमपूर्वक कार्य में जुट गया।
एक-एक करके उसने वे सारे पत्थर उठाने प्रारंभ कर दिए। बड़ी लगन और कड़ी मेहनत के साथ्ज्ञ उसने व्यापारी द्वारा बताए गए स्थान पर वे सारे पत्थर रख दिए। लगभग 4 घंटे में उसका यह कार्य पूर्ण हो गया। तब वह कार्यालय पहुंचा और कार्य पूरा हो जाने की सूचना दी। व्यापारी ने युवक को बुलाकर पूछा, ‘यह काम हो गया, क्या तुम और भी काम करना चाहते हो?’ उसने विनम्र स्वर में कहा, ‘जी, मैं काम करना चाहता हॅू।’
व्यापारी ने उसके साहस और धैर्य की परीक्षा लेने के लिए कहा, ‘अब तुम उन पत्थरों को उसी स्थान पर रख दो जहां से उठाए थे’। व्यापारी का आदेश पाकर युवह पुन: व्यापारी के बंगले पर आया और पूरे उत्साह के साथ काम करने लग गया। उसका लक्ष्य मात्र एकनिष्ठता से काम करना था। काम क्या है, कैसा है, इस ओर उसका तनिक भी ध्यान नहीं था।
वह पूर्ण लगन के साथ कार्य में जुट गया। शाम तक वह काम पूरा हुआ और वह ऑफिस पहुंचा। व्यापारी ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘यदि और कोई काम करना चाहते हो तो कल आ जाना। ‘इतना कहकर व्यापारी ने उसे 100 रूपये दिए।’
दूसरे दिन भी ठीक वही कहानी दोहराई गई। आज भी युवक को उन्होंने वही काम बताया और उसने उसी धीरज से काम पूरा किया। चाहे काम का कोई सिर-पैर उसे समझ में नहीं आ रहा था फिर भी वह प्रसन्नतापूर्वक परिश्रम करता रहा। सायंकाल व्यापारी ने पूछा, ‘क्या और काम करना चाहते हो? उसने कहा, जी, मैं निरन्तर काम करना चाहता हूँ। श्रम करना मेरे जीवन का लक्ष्य है। अत: मैं हर परिस्थिति में काम करने को तैयार हूँ।
उसके हां कहने पर व्यापारी ने कहा, ‘क्या यही काम करोगे ? उसने कहा, ‘जो आप बताओगे वही करूंगा। यदि आप ये काम दुबारा बताओगे तो मुझे उसे भी पूरे उत्साह के साथ करने में कोई आपत्ति नहीं है। ‘इतना सुनते ही व्यापारी ने कुर्सी से उठकर युवह की पीठ थपथपाते हुए कहा, ‘शाबाश बेटे, मैं तुम्हारे धैर्य की परीक्षा ले रहा था। कल से तुम मेरे ऑफिस के मैनेजर नियुक्त एि जाते हो। यह सुनकर उसके चेहरे पर मुस्कुराहट फैल गई। उसका रोम-रोम हर्षि हो गया और वह अनिमेष दृष्टि से व्यापारी की आंखो में झांकता हुआ उनके चरणों में झुक गया। युवक बड़ी प्रसन्नता के साथ घर पहुंचकर पत्नी से सारी बात बताकर अंत में बोला ‘धैर्य का फल मीठा होता है’
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