दृढ़ निश्‍चय! Determination! Motivational Story in Hindi

Determination Motivational Story in Hindi for Studentइंग्‍लैंड में रॉबर्ट जेम्‍स नाम का एक व्यक्ति रहता था। वो घोड़ों को प्रशिक्षण देने का काम करता था। काम के सिलसिले में वो अक्‍सर घर से बाहर रहता था। तब रॉबर्ट घर पे नहीं होता था तब उसका बेटा मोंटी रोबट्स घर संभालता था। घर संभालने के चक्‍कर में उसे कई बार स्‍कूल भी छोड़ना पड़ता था। जिससे उसकी पढ़ाई में निरंतर व्‍यवधान पड़ता था।

एक बार की बात है उसके टीचर ने कक्षा में सभी बच्‍चें को कहा कि तुम बड़े होकर क्‍या बनना चाहते हो या फिर तुम्‍हारे सपने क्‍या है, उसपर एक लेख लिखो। टीचर ने फिर कहा, याद रखना तुम्‍हारे लेख वास्‍तविक होनी चाहिए। सबको A से लेकर F तक ग्रेड दिया जाएगा और जिसको F ग्रेड आया उसे फ़ेल माना जाएगा।

मोंटी ने अपने लेख में लिखा कि मैं बड़ा होकर घोड़े के तबेले का मालिक बनना चाहता हूँ ताकि मेरे पिता को काम के लिए यहॉं-वहॉं भटकना न पड़े। मोंटी ने तबेले का स्‍केच भी बनाया और अपनी योजनाऍं भी लिखकर टीचर के पास दिखाने गया।

टीचर ने उसे F ग्रेड दिया और डांटते हुए कहा कि तुम पागल हो गए हो क्‍या? न तुम्‍हारे पास पैसे है और न ही साधन! ये लेख तो वास्‍तविकता से कोसों दूर है। तुम ऐसा कर ही नहीं सकते हो। टीचर ने हिदायत देते हुए कहा कि अगर तुम्‍हें अपना ग्रेड सुधारना है तो कल दूसरा लेख लिख कर आना।

मोंटी काफी दुखी मन से सारी बातें अपने पिता को बताया और पूछा कि मुझे क्‍या करना चाहिए। पिता ने कहा कि तुम तो बनना चाहते हो वही काम करो। तुम जो चाहो बन सकते हो। फिर क्‍या था मोंटी ने फिर से वही लेख लिखा और टीचर को दिखाया और कहा आप मुझे जो भी ग्रेडिंग दीजिये लेकिन मैं बड़ा होकर बनूँगा तो घोड़ों के तबेलों का मालिक ही।

उसने दृढ़ निश्‍चय किया और अपने सपने पूरे किए। आज मोंटी रोबर्ट्स के पास 200 एकड़ में फैला घोड़ों का तबेला है और इंग्‍लैंड के सबसे अच्‍छे तबेलों में से एक है। आज यहॉं देश भर से घोड़े प्रशिक्षण के लिए आते है। मोंटी ने आज भी वो लेख अपने पास रखा है।


असली सुख!

कुरु प्रदेश का राजकुमार भगवान् श्रीकृष्ण का भक्त था। उसने संकल्प लिया कि अपना समस्त जीवन वह वृंदावन में बिताएगा। वृंदावन पहुँचकर यमुना तट पर उसने कुटिया बनाई और पूजा-उपासना करने लगा।

एक बार मगध देश के राजा सपरिवार वृंदावन पहुँचे। जब राजा-रानी यमुना स्नान करने जा रहे थे, तब वृक्ष के नीचे उपासना में लीन तेजस्वी साधु को देखकर वे रुक गए। साधु की समाधि पूरी होने के बाद मगधराज ने विनम्रतापूर्वक कहा, ‘तपस्वी, मुझे आपके चेहरे के तेज से आभास होता है कि कहीं आप राजकुमार तो नहीं।’

साधु ने कहा, ‘राजन्, भगवान् श्रीकृष्ण की पावन लीला-भूमि में न कोई राजकुमार होता है और न राजा। श्रीकृष्ण तो अपने सखा ग्वालों को भी गले लगाते थे, इसलिए यहाँ कुल और जाति का विचार करना भी अधर्म है।’

राजा युवा तपस्वी के वचनों से अत्यधिक प्रभावित हुए। उन्होंने अनुरोध किया, ‘आप हमारे साथ चलें। अभी आप युवक हैं। हम आपका विवाह अपने कुल की कन्या से करा देंगे। गृहस्थ आश्रम के सभी सुख आप भोगेंगे। कभी दुःखी नहीं रहेंगे।’

साधु ने पूछा, ‘क्या राजा व धनवान को कभी दुःख नहीं सताता? क्या राजा व गृहस्थ के परिवार में किसी की अकाल मृत्यु नहीं होती? फिर सुख से रहने की बात कहकर आप मुझे साधना से विरत क्यों करना चाहते हैं? श्रीकृष्ण की भक्ति में मुझे अनूठा सुख मिलता है।’

राजा ने युवा साधु को गुरु मान लिया और स्वयं भी राजपाट त्यागकर वृंदावन में रहने लगे।

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