ब्रह्म मुहूर्त में क्यों उठाना चाहिए ? Brahma Muhurta Me Kyu Uthna Chahiye?

ऐसा माना जाता है कि रात्रि 12 बजे से प्रातः 4 बजे तक आसुरी व गुप्त शक्तियों का प्रभाव रहता है। ब्रह्म मुहूर्त में यानी प्रातः 4 बजे के बाद ईश्वर का वास होता है। ब्रह्म मुहूर्त का नाम ब्रह्मी शब्द से पड़ा है, जिसका अर्थ शास्त्रों में ज्ञान की देवी सरस्वती बताया गया है। यही कारण है कि प्राचीन काल से ब्रह्म मुहूर्त में शिष्यों को वेद अध्ययन करवाया जाता रहा है। संसार के प्रसिद्ध साधक, बड़े-बड़े विद्वान् और दीर्घजीवी मनुष्य सूर्योदय के पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में उठकर दैनिक कार्यों की शुरुआत करने के अभ्यस्त रहे हैं।

brahma muhurta me kyu uthna chahiye
brahma muhurta me kyu uthna chahiye

आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त (प्रातः 4 से 5.30 बजे तक का समय) में बहने वाली वायु चंद्रमा से प्राप्त अमृत कणों से युक्त होने के कारण हमारे स्वास्थ्य के लिए अमृततुल्य होती है। इस समय की शांत, सुखद, शीतल, परम आनंदप्रद, स्वास्थ्य और सौंदर्यवर्धक वायु में 41 प्रतिशत ऑक्सीजन, 55 प्रतिशत नाइट्रोजन एवं 4 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड होती है। सूर्य की किरणों की शक्ति बढ़ने के साथ-साथ ऑक्सीजन का प्रतिशत कम और कार्बन डाइऑक्साइड का प्रतिशत बढ़ता जाता है।

ब्रह्म मुहूर्त का समय शारीरिक, यौगिक व मानसिक क्रियाओं जैसे ध्यान, योगाभ्यास, ईश्वर उपासना, विद्याध्ययन, मनन-चिंतन आदि के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होता है, क्योंकि इस समय के शांत एवं शीतल वातावरण में मस्तिष्क के एकाग्रता से कार्य करने के सुखद परिणाम मिलते हैं।

ऋग्वेद में कहा गया है-

प्रातारत्नं प्रातरित्वा दधाति तं चिकित्वान्प्रतिगृह्मनिवत्ते ।
तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचेत सुवीरः ॥
– ऋग्वेद 1/125/1
अर्थात् प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठने वाले को उत्तम स्वास्थ्य रत्न की प्राप्ति होती है, इसलिए बुद्धिमान् उस समय को व्यर्थ नहीं खोते। प्रातः जल्दी उठने वाला पुष्ट, स्वस्थ, बलवान, सुखी, दीर्घायु और वीर होता है।

सामवेद में कहा गया है-

यद्य सूर उदितोऽनागा मित्रोअर्यमा। सुवाति सविता भगः ॥
– सामवेद 35
अर्थात् मनुष्य को प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व शौच व स्नान से निवृत्त होकर ईश्वर की उपासना करनी चाहिए। सूर्योदय से पूर्व की शुद्ध व निर्मल वायु के सेवन से स्वास्थ्य और संपदा की वृद्धि होती है।

महाभारत के शांतिपर्व में लिखा है-

न च सूर्योदये स्वपेत् ।
अर्थात् सूर्य उदय हो जाने पर सोये नहीं रहना चाहिए।

अथर्ववेद में कहा गया है-

उद्यन्त्सूर्य इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आददे ।
– अथर्ववेद 7/16/2
अर्थात् सूर्योदय तक भी जो नहीं जागते इनका तेज नष्ट हो जाता है।

महर्षि वाधूलविरचित ‘वाधूल स्मृति’ में लिखा है-

ब्राह्मे मुहूर्त सम्प्राप्ते त्यक्तनिद्रः प्रसन्नधीः ।
प्रक्षाल्य पादावाचम्य हरिसंकीर्तनं चरेत् ॥
ब्राझे मुहूर्ते निद्रां च कुरुते सर्वदा तु यः ।
अशुचिं तं विजानीयादनर्हः सर्वकर्मसु ॥
– वाधूल स्मृति 4-5
अर्थात् ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिए और निद्रा का परित्याग कर प्रसन्न मन रहना चाहिए। हाथ-पांव धोकर आचमन से पवित्र होकर प्रातःकालीन मंगल श्लोकों तथा पुण्य श्लोकों का पाठ करना चाहिए और भगवन्नामों का कीर्तन करना चाहिए। ऐसा करने से सब प्रकार का कल्याण होता है।

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