महाराज कृष्णदेव राय अपने दरबार के सभी सभासदों को विशेष महत्त्व देते थे किन्तु फिर भी सभासदों को प्रायः ऐसा लगा करता था कि महाराज तेनाली राम पर अधिक कृपालु हैं और उसे ऐसा मौका दे दिया करते हैं कि वह शेष सभी सभासदों पर भारी पड़ता है। इसलिए आम सभासद ऐसे अवसरों की तलाश में रहते थे जिसमें तेनाली राम का मजाक उड़ाया जा सके।
एक दिन महाराज का दरबार लगा हुआ था। आम दिनों की तरह ही राज्यसभा की कार्रवाई चल रही थी। तभी महाराज ने एक अजीब सी गन्ध उठती महसूस की। उन्होंने सभासदों से पूछा, “क्या उन्हें कोई दुर्गन्ध महसूस हो रही है?”
सभी सभासदों ने बिना सतर्कता से दुर्गन्ध अनुभव करने की कोशिश किए ही कहा, “नहीं महाराज!”
लेकिन तेनाली राम अपने आस-पास की ह्वा को महसूस करता हुआ बोला, “हाँ, महाराज ! ऐसी गन्ध मरे चूहे के शरीर में सड़न उत्पन्न होने के कारण पैदा होती है। लगता है, कहीं आस-पास ही कोई चूहा मरा पड़ा है।”
महाराज ने सेवकों से अविलम्ब चूहे की खोज करने के लिए कहा।
थोड़ी ही देर में एक सेवक ने मरा चूहा ढूँढ़ निकाला और उसे लेकर महाराज के पास चला आया।
महाराज सेवक पर नाराज हो गए। उन्होंने कहा, “ठीक है! तुमने इसे खोज निकाला मगर इसे यहाँ लाने की आवश्यकता क्या थी? कहीं फेंक आते, फिर मुझे आकर सूचना दे देते! मैं इस चूहे का क्या करूँगा?”
सेवक डर से थरथर काँपने लगा।
तभी एक दरबारी ने कहा, “महाराज, आप चाहें तो चूहा इस दरबार के सबसे विद्वान सभासद तेनाली राम को भेंट कर सकते हैं। आपने उसे तरह-तरह के उपहार दिए हैं, आज मरा चूहा ही सही!”
उस दरबारी की बात पर सभी सभासद ही-ही-ही-ही करने लगे। बोलने वाला सभासद इस दरबार में मसखरा सभासद माना जाता था इसलिए महाराज ने उसकी बातें अनसुनी कर दीं। मगर तेनाली राम इस सभासद की बातों में छुपे कटाक्ष से तिलमिला गया और तत्काल अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “माननीय सभासद ! यदि महाराज ने मुझे यह चूहा उपहार में दिया तो मैं इसे आदर के साथ ग्रहण करूँगा। ऐसे भी चूहा विकल्पों का प्रतीक है। भगवान गणपति का वाहन ऐसे ही नहीं बन गया है।”
महाराज तेनाली राम के प्रतिवाद पर मुस्कुरा उठे और बोले, “मरे चूहे का तुम क्या करोगे?”
“यदि आपने मुझे यह चूहा भंवेट किया तब मैं यह समझेंगा कि आप मेरी बुद्धि की परीक्षा लेना चाहते हैं और यह परीक्षा देने के लिए मैं इस चूहे से व्यापार करूँगा महाराज!” तेनाली राम ने कहा।
“मरे चूहे से व्यापार? यह तुम कैसे कर सकते हो तेनाली राम?” महाराज ने पूछा।
“महाराज! संसार की प्रत्येक वस्तु का कोई-न-कोई उपयोग है। कोई भी वस्तु व्यर्थ नहीं है। मैं इस मरे चूहे को किसी सपेरे को बेच आउँगा और उससे गुड़ खरीद लूँगा। इन दिनों गर्मी का मौसम है। है। मैं उस गुड़ को पानी में मिलाकर मीठा पानी बेचूँगा। मीठा पानी बेचने से जो पैसे मिलेंगे उससे चना खरीदूँगा और चना बेचकर, चना से बने पकवान, सत्तू, गुड़चना आदि बेचकर अच्छा पैसा कमाउँगा और उन पैसों से कोई बड़ा रोजगार आरम्भ करूँगा।” तेनाली राम ने कहा।
महाराज तेनाली राम की बातें सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और सभासदों से कहा, “तेनाली राम की यही तर्कबुद्धि उसे तेनाली राम बनाती है। ऐसी तर्कबुद्धि आम इंसान में प्रायः दुर्लभ है। मैं इस बात का गर्व है कि हमारे दरबार में तेनाली राम जैसा बुद्धिमान सभासद है। मैं आज इसके उत्तर से इतना सन्तुष्ट हँ कि इसके लिए ‘स्वर्ण मूषक’ पुरस्कार की घोषणा करता हूँ तथा राज्य के कोषाध्यक्ष को आदेश देता हूँ कि तेनाली राम को पुरस्कृत करने के लिए पाँच तोले सोने का चूहा बनवाकर दरबार को यथाशीघ्र सौंपे!”
महाराज के इस आदेश का पालन हुआ।
उस दिन दरबार में महाराज ने तेनाली राम को सोने का चूहा पुरस्कार में देकर उसे अपने गले से लगा लिया।
तेनाली राम के आलोचकों को महाराज की ओर से दिया गया यह एक करारा जवाब था।
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