हिंदू धर्म के पूज्य ग्रंथ श्रीरामचरित मानस में रामकथा विस्तार से वर्णित की गई है। इसके सात खंडों में सुंदरकांड का महत्त्व सर्वाधिक माना गया है। सुंदरकांड के प्रति लोगों का अधिक आकर्षण होने का मुख्य कारण यह है कि यह समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इसीलिए आपने देखा होगा कि पूरी रामायण का पाठ कराने की अपेक्षा अधिकांश श्रद्धालु शुभ अवसरों पर सुंदरकांड का पाठ कराते रहते हैं।

सुंदरकांड के अंतिम दोहे में कहा गया है-

सकल सुमंगल दायक, रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव, सिंधु बिना जलजान ॥
श्रीरामचरितमानस, सुंदरकांड 60
अर्थात् श्री रघुनाथजी का गुणगान संपूर्ण सुंदर मंगलों का यानी सभी लौकिक एवं पारलौकिक मंगलों को देने वाला है, जो इसे आदर सहित सुनेंगे, वे बिना किसी जहाज (अन्य साधन) के ही भवसागर को तर जाएंगे।

श्रीरामचरितमानस के सात कांडों को सात मोक्षपुरी यथा अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवंतिका पुरी, द्वारावती को सप्तेता मोक्षदायिका बताया जाता है। इस प्रकार सुंदरकांड पांचवी मोक्षपुरी कांची है जिसके दो भाग हैं शिव कांची व विष्णु कांची।

सुंदरकांड श्रीरामचरितमानस रूप भगवान् श्रीराम के शब्द विग्रह की सुंदर ग्रीवा (गर्दन/गला) है। सुंदरकांड में तीन श्लोक, छह छंद, साठ दोहे तथा पांच सौ छब्बीस चौपाइयां हैं। साठ दोहों में से प्रथम तीस दोहों में रुद्रावतार श्री हनुमान जी के चरित्र तथा तीस दोहों में विष्णु स्वरूप राम के गुणों का वर्णन है। सुंदर शब्द इस कांड में चौबीस चौपाइयों में आया है। सुंदरकांड के नायक रुद्रावतार श्रीहनुमान हैं। अशांत मन वालों को शांति मिलने की अनेक कथाएं इसमें वर्णित हैं।

इसमें रामदूत श्री हनुमान जी के बल, बुद्धि और विवेक का बड़ा ही सुंदर वर्णन है। एक ओर श्रीराम की कृपा पाकर हनुमान जी अथाह सागर को एक ही छलांग में पार करके लंका पहुंच जाते हैं, तो दूसरी ओर बड़ी कुशलता से लंकिनी पर प्रहार करके लंका में प्रवेश भी पा लेते हैं। बालब्रह्मचारी हनुमान ने विरह विदग्धा मां सीता को श्री राम के विरह का वर्णन इतने भावपूर्ण शब्दों में सुनाया है कि स्वयं सीता अपने विरह को भूलकर राम की विरह-वेदना के दुख में डूब जाती हैं। इसी कांड में विभीषण को भेद नीति, रावण को भेद और दंडनीति तथा भगवत कृपा प्राप्ति का मंत्र भी हनुमान जी ने दिया है। अंततः पवनसुत ने सीताजी का आशीर्वाद तो प्राप्त किया ही है, राम काज को पूरा करके प्रभु श्री राम को भी विरह से मुक्त किया है और उन्हें युद्ध के लिए प्रेरित भी किया है। इस प्रकार सुंदरकांड नाम के साथ-साथ इसकी कथा भी अति सुंदर है। आध्यात्मिक अर्थों में इस कांड की कथा के बड़े गंभीर और साधना मार्ग के उत्कृष्ट निर्देशन हैं। अतः सुंदरकांड आधिभौतिक, आध्यात्मिक एवं आधिदैविक सभी दृष्टियों से बड़ा ही मनोहारी कांड है।

धार्मिक प्रवृत्ति के श्रद्धालु सुंदरकांड के पाठ को अमोघ अनुष्ठान मानते हैं। इसके माध्यम से वे श्रीहनुमानजी की कृपा की अनुभूति पाते हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि सुंदरकांड का पाठ करने से दरिद्रता एवं दुखों का दहन, अमंगलों, संकटों का निवारण तथा गृहस्थ जीवन में सभी सुखों की प्राप्ति होती है। पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए भगवान् में पूर्ण श्रद्धा और विश्वास होना जरूरी है।

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