मान्यता यह है कि आकाश में विद्यमान नवग्रह सूर्य, चंद्र, बृहस्पति, शुक्र, केतु, मंगल, बुध, शनि और राहु मिलकर संसार और मनुष्य के संपूर्ण जीवन को नियंत्रित करते हैं। इसीलिए हम जब कोई शुभ कार्य, पूजा-पाठ, अनुष्ठान प्रारंभ करते हैं, तो सबसे पहले नवग्रह यानी नौ ग्रहों का पूजन करते हैं, ताकि उनके दुष्प्रभावों को कम किया जा सके।

हमारे ऋषि-मुनियों ने यह माना है कि ग्रह, नक्षत्र आदि की किरणें पृथ्वी से टकराती हैं तथा सभी पर अपना प्रभाव डालती हैं। कोई भी ग्रह, नक्षत्र अथवा तारा बदलने अथवा उदय-अस्त होने पर हमारे खून की धाराएं बदल जाती हैं। अन्य अंगों पर भी उनका व्यापक असर होता है। हमारे शरीर में सूर्य के कोषाणु स्थित हैं, जिनकी वजह से जो सूर्य पर घटित होता है, उसका प्रभाव हमारे शरीर पर भी होता है। हमारे रक्त के एक-एक कण में सूर्य के अणु व्याप्त हैं। सूर्य को आध्यात्मिक शक्ति का पुंज माना गया है। यह अत्यंत तेजस्वी और दीप्तिमान है। सूर्य की उपासना करने वाले भक्तों को अनेक वरदान मिलते हैं।

Shubh Kariyo Me Navgrah Pooja Kyu Karte Hai
Shubh Kariyo Me Navgrah Pooja Kyu Karte Hai

चंद्रमा को औषधिपति भी कहा गया है। मन का संचालन करने के कारण इसे मन का राजा भी कहते हैं। बृहस्पति देवताओं के गुरु होने के कारण देवगुरु कहलाते हैं। उनके पास अनंत शक्ति है, वे नक्षत्रों में सबसे भारी भी हैं। इसीलिए वे गुरु कहलाए। शुक्र ग्रह से यश, मान, सम्मान, शारीरिक सुख और वीर्य की प्राप्ति होती है। केतु, राहु का ही अंश है। यह पूरे दिन और रात आकाश में चक्कर लगाता है। जब राहु ऊपर होता है, तब केतु नीचे रहता है। केतु अशुभ फल देने वाला माना जाता है।

मंगल को कार्तिकय का स्वरूप कहा गया है, जो देवताओं के सेनापति हैं। यह ग्रह बड़ा ही क्रूर ग्रह माना गया है और परम बलशाली भी। बुध ग्रह बुद्धिमान, तीक्ष्ण यानी कुशाग्र मस्तिष्क वाला है। शनि को सर्वाधिक कष्ट देने वाला ग्रह माना जाता है। राहु भी शनि की तरह कष्टकारक माना गया है।

याज्ञवल्क्य स्मृति आचाराध्याय 294 में कहा गया है-

श्रीकामः शान्तिकामो वा ग्रहयज्ञं समाचरेत् ।
अर्थात् श्री और शांति की कामना करने वाले मनुष्य को ग्रह यज्ञ यानी नवग्रह पूजन कराना चाहिए।

इनके पूजन से ग्रहों के चेतन तत्त्व को जाग्रत कर दुष्प्रभावों को दूर करने की कोशिश की जाती है और ग्रहों की सूक्ष्म अनुकूल शुभ रश्मियों के द्वारा घर के वातावरण को शुद्ध करके, पूरे परिवार के लिए मंगल कामनाएं की जाती हैं।

मान्यता यह भी है कि मानव शरीर में सूर्य ने आत्मा फूंकी, चंद्र ने मन का संचालन किया, मंगल ने रक्त संचार किया, बुध ने कल्पना शक्ति, बृहस्पति ने ज्ञान, शुक्र ने वीर्य और शनि ने सुख-दुख की अनुभूति प्रदान की है।

बुध ग्रह बुद्धिमान, तीक्ष्ण यानी कुशाग्र मस्तिष्क वाला माना जाता है। बृहस्पति के पास अनंत शक्ति है और वह नक्षत्रों में सबसे भारी माना जाता है इसीलिए बृहस्पति को सबका गुरु कहा जाता है।

शनि की दृष्टि को अमंगलकारी माना जाता है। राहु और केतु के दुष्प्रभावों को ध्यान में रखकर नवग्रहों की पूजा-पाठ किया जाता है।

एक महिला जिज्ञासु ने रामकृष्ण परमहंस से पूछा ‘क्या पंडित लोग ग्रहों की पूजा-प्रार्थना करके उनकी प्रतिकूलता को अनुकूलता में बदल सकते हैं?’

परमहंस जी ने कहा- ‘ग्रह नक्षत्र इतने क्षुद्र नहीं हैं, जो किसी पर अकारण उलटे-सीधे होते रहें और न उनकी प्रसन्नता-अप्रसन्नता ऐसी है, जो छुटपुट कर्मकांडों से बदलती रहे, पंडितों के पास उनकी एजेंसी भी नहीं कि उन्हें दक्षिणा देने पर ग्रहों को जैसा चाहे नाच नचाया जा सके।’

Also Read This:

धार्मिक कर्म में कुश का महत्त्व क्यों ?

आचमन तीन बार ही क्यों किया जाता है ?

 

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *