हम आए दिन देखते हैं कि अनेक लोग दैनिक दिनचर्या की शुरुआत हो या यात्रा पर जाना हो, विवाह का अवसर हो, गृह-निर्माण हो या गृहप्रवेश, सभी के लिए शुभ घड़ी, मुहूर्त और चौघड़ियां देखकर कार्य प्रारंभ करते हैं। इसे कुछ पढ़े-लिखे व्यक्ति भले ही दकियानूसी अंधविश्वास कहें, लेकिन वैज्ञानिक प्रयोगों से पता चला है कि दिन के 24 घंटों में कुछ गिनी-चुनी घड़ियां ही ऐसी होती हैं, जिनमें किए गए काम सफल होने की संभावना प्रबल हो जाती है।
यों तो विचार पूर्वक शुभ कार्य करने के लिए हर समय शुभ होता है। बुद्धिमान् न मुहूर्त निकालते हैं, न साथ ढूंढ़ते हैं और न किसी का सहारा देखते हैं। वस्तुतः समय का प्रत्येक क्षेत्र शुभ है। अशुभ तो मनुष्य का संशय है। परोपकारी कार्य को जितनी जल्दी किया जाए, वही शुभ है। देर तो उनमें करनी चाहिए, जो अशुभ हैं, जिन्हें करते हुए अंतःकरण में भय, संकोच का संचार होता है। ऐसे दुष्ट कार्य किसी भी समय किए जाएं, वे दुख ही देंगे, चाहे जितने मुहूर्त देख लो।
शास्त्रकार ने कहा है-
सदुद्देश्यकृते कार्ये विवाहे जातकर्मणि ।
विघ्नाऽशुभमुहूर्तानां प्रभावो नोपजायते ॥
– ब्रह्मवर्चस पंचांग
अर्थात् सदुद्देश्य से प्रारंभ किए गए शुभ कार्यों पर किसी भी अशुभ मुहूर्त का प्रभाव नहीं पड़ता।
यदानास्तं गतो भानुगोधूल्या पूरितं नभः ।
सर्वमंगलकार्येषु गोधूलिः शस्यते सदा ॥
– ब्रह्मवर्चस पंचांग
अर्थात् जब सूर्य अस्त होने पर हो, जिस समय गायें घर वापस आती हों, वह गोधूलि वेला मांगलिक कार्यों में शुभप्रद होती है।
ब्रह्मवर्चस पंचांग में कहा गया है कि अक्षय तृतीया (बैसाख शुक्ल तृतीया), अक्षय नवमी (कार्तिक शुक्ल नवमी), वसंत पंचमी (माघ शुक्ल पंचमी), गंगा दशहरा (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी), विजया दशमी (आश्विनी शुक्ल दशमी), महाशिवरात्रि (फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी), श्रीराम नवमी (चैत्र शुक्ल नवमी) तथा सभी पूर्णिमा आदि पुण्य पर्वों पर विवाहित मंगल कार्यों के लिए मुहूर्त विचार की आवश्यकता नहीं पड़ती।
लोक मंगल के लिए किए गए यज्ञादि अनुष्ठानों में सभी मंगलमय मुहूर्तों का निवास होता है, उनमें बिना मुहूर्त का विचार किए कोई भी शुभ कार्य किए जा सकते हैं। पवित्र तीर्थ स्थलों में शुभ संस्कार करने का निर्णय अपने आप में शुभ मुहूर्त माना गया है। तीर्थ स्थल एवं शक्तिपीठें सिद्ध स्थल कहे जाते हैं, उनमें सत्कर्म, संस्कार आदि संपन्न करने के लिए लग्न मुहूर्त देखने की किंचित भी आवश्यकता नहीं होती।
स्वामी रामतीर्थ कहा करते थे कि सभी दिन भगवान् के बनाए हुए हैं। इनमें एक भी अपवित्र, अशुभएवं अनिष्टकारक नहीं है। मांगलिक कार्यों को गुरुजनों का आशीर्वाद लेकर कभी भी कर लेना चाहिए। अनुपयुक्त कार्यों को ही तिथि, वार का दोष निकाल कर आगे के लिए टालना चाहिए। लोकमत में रविवार और गुरुवार भी अधिक श्रेष्ठ माने जाते रहे हैं।
आचार्य महीधर का मत है कि मुहूर्तों में सुविधा एवं अवसर ही प्रधान कारण हैं। जैसे वर्षा ऋतु में आवागमन में असुविधा होती है, इसलिए उन दिनों विवाह नहीं होते, किंतु जिन देशों में वर्षा के दिन अन्य महीनों में होते हैं, उन दिनों विवाहादि में वहां कोई अड़चन नहीं।
ब्रह्मवर्चस पंचांग में कहा गया है कि अमंगल करने वाले जो मुहूर्त अथवा योगदोष हैं, वे सब गायत्री के प्रचंड तेज से भस्म हो जाते हैं।
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