यंत्रों में सबसे अधिक चमत्कारिक और शीघ्र असर दिखाने वाला सर्वश्रेष्ठ यंत्र श्रीयंत्र माना जाता है। कलियुग में श्रीयंत्र कामधेनु के समान है। उपासना सिद्ध होने पर सभी प्रकार की श्री अर्थात् चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। इसलिए इसे श्रीयंत्र कहते हैं। वेदों के अनुसार श्रीयंत्र में 33 करोड़ देवताओं का वास है। वास्तुदोष निवारण में इस यंत्र का कोई सानी नहीं हैं, इसमें ब्रह्मांड की उत्पत्ति एवं विकास का प्रदर्शन किया गया है।

Shri Yantra Ki Puja Karne Se Kya Hota Hai
Shri Yantra Ki Puja Karne Se Kya Hota Hai

दुर्गा सप्तशती में कहा गया है- ‘आराधिता सैव नृणां भोगस्वर्गापवर्गदा।’ आराधना किए जाने पर आदि शक्ति मनुष्यों को सुख, भोग, स्वर्ग, अपवर्ग देने वाली है।

श्रीयंत्र की उत्पत्ति के संबंध में कहा जाता है कि एक बार कैलास मानसरोवर के पास आदि शंकराचार्य ने कठोर तप करके शिवजी को प्रसन्न किया। जब शिवजी ने वर मांगने को कहा, तो शंकराचार्य ने विश्व कल्याण का उपाय पूछा। शिवजी ने शंकराचार्य को साक्षात् लक्ष्मी स्वरूप श्रीयंत्र तथा श्रीसूक्त के मंत्र प्रदान किए।

श्रीयंत्र परम ब्रह्म स्वरूपिणी आदि प्रकृतिमयी देवी भगवती महात्रिपुर सुंदरी का आराधना स्थल है, क्योंकि यह चक्र ही उनका निवास एवं रथ है। उनका सूक्ष्म शरीर व प्रतीक रूप है। श्रीयंत्र के बिना की गई राजराजेश्वरी, कामेश्वरी त्रिपुरसुंदरी की साधना पूर्ण सफल नहीं होती। त्रिपुर सुंदरी के अधीन समस्त देवी-देवता इसी श्रीयंत्र में आसीन रहते हैं।

त्रिपुर सुंदरी को शास्त्रों में विद्या, महाविद्या, परम विद्या के नाम से जाना जाता है। वामकेश्वर तंत्र में कहा गया है- सर्वदेवमयी विद्या। दुर्गा सप्तशती में भी कहा गया है विद्यासि सा भगवती परमा हि देवी। जिनका अर्थ है- ‘हे देवि! तुम ही परम विद्या हो।’

श्रीयंत्र के प्रभाव के बारे में एक पौराणिक कथा है कि एक बार लक्ष्मी जी पृथ्वी से अप्रसन्न होकर बैकुंठ चली गईं। परिणामस्वरूप पृथ्वी पर अनेक समस्याएं उत्पन्न हो गई। तब महर्षि वसिष्ठ ने विष्णु की सहायता से लक्ष्मी को मनाने के प्रयास किए, लेकिन विफल रहे। इस पर देवगुरु बृहस्पति ने लक्ष्मी को खींचने का एकमात्र उपाय श्रीयंत्र बताया। श्रीयंत्र की आराधना से लक्ष्मी तुरंत पृथ्वी पर लौट आईं और कहा- ‘श्रीयंत्र ही मेरा आधार है तथा इसमें मेरी आत्मा निवास करती है। इसलिए मुझे आना ही पड़ा।’

विधिवत् प्राणप्रतिष्ठित श्री यंत्र की पूजा उपासना से सभी सुख एवं मोक्ष प्राप्त होते हैं। दीपावली, धनतेरस, दशहरा, अक्षय तृतीया, वर्ष प्रतिपदा आदि श्री यंत्र की स्थापना के लिए श्रेष्ठ मुहूर्त होते हैं। इसकी पूजा साधना करते समय मुख पूर्व दिशा की ओर रखना चाहिए और मन में पूर्ण श्रद्धा का भाव रखना चाहिए।

Also Read This:

पूजा में यंत्रों का महत्त्व क्यों होता है?

यज्ञ में मंत्रों का ऊंचे स्वर में उच्चारण क्यों?

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *